सोमवार, 6 अगस्त 2012

देवभूमि में देह के दलदल में राजनीतिक दल

राजेन्द्र जोशी

देहरादून :   उत्तराखण्ड के अस्तित्व में आये अभी भले ही 12 साल होने वाले हैं,लेकिन इन सालों में प्रदेश  के नेताओं में महिला प्रेम को लेकर क्या गुल नहीं खिलाये यह किसी से छिपा नहीं है। प्रदेश मे इन सालों में दोनों ही राजनीतिक दलों के नेताओं के नाम गाहे-बगाहे महिलाओं से ही नहीं जुड़े बल्कि इस तरह के मामलों में चर्चित किसी ने जेल ही हवा खायी तो किसी को डीएनए परीक्षणों के दौर से गुजरना पड़ा। इस तरह का मामला तब अंर्तराष्ट्रीय सुर्खियों में आया जब बीती 27 जुलाई को पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व राज्यपाल नारायण दत्त तिवारी की डीएनए रिपोर्ट दिल्ली उच्च न्यायालय में खुली और तिवारी 87 साल की उम्र में पिता घोषित हो गये।
     देश के नक़्शे पर उत्तराखंड राज्य एक दशक पहले अस्तित्व में आया हो लेकिन इस छोटे से पहाड़ी प्रदेश की जमीन राजनेताओं पैदावार के लिए उपजाऊ रही है। प्रदेश की ऊबड़ खाबड़ और दरदरी जमीन से कई राष्ट्रीय स्तर के नेता पैदा हुए, जिसमें देश के पहले गृहमंत्री गोविंद बल्लभ पंत जैसे राजनीतिक भीष्म भी शामिल हैं, तो वर्तमान में प्रदेश में ऐसे कई नेता हैं जो सूबे के भाग्यविधाता बनने की हरसत पाले हुए हैं। आजादी से लेकर आधुनिक भारत के नेताओं की सोच में भारी अंतर आ चुका है। तब के राजनेता देश-प्रदेश के लिए अपने जीवन को इस लिए खपा देते थे  कि उनका मिशन राजनीति सेवा के लिए था न कि व्यवसाय। वे अपने अनुभव का लाभ जनता को देते थे, लेकिन अब के नेता राजनीति में जीवन तो खपा रहे हैं लेकिन देश-प्रदेश के लिए नहीं ,बल्कि अपने स्वार्थों के लिए।
  आजादी के कुछ दशकों तक उत्तराखंड के राजनेताओं ने देश की राजनीति में जो छवि बनाई, उसके लिए उन्हे हमेशा उन्हें याद किया जायेगा। लेकिन आठवें दशक के बाद सूबे की राजनीति में जो पुरोधा आये, वो भले ही जनता के हितैषी रहे होंगे लेकिन उनके दामन पर कई प्रकार के दाग भी लगे। यही वजह है कि इस दौर के नेता अपने जमाने में किये गये अनैतिक कार्यों के कारण आज भी मीडिया में सुर्खियां बटोर रहे हैं। राज्य गठन के बाद सूबे की राजनीति में भाजपा और कांग्रेस का दखल रहा, दोनों ही दलों की प्रदेश में बारी-बारी से सरकारें रही, लेकिन इन दोनों ही दलों के नेताओं का महिलाओं के प्रति एक खास तरह का लगाव चर्चाओं में रहा। महिलाओं के प्रति नेताओं  के अगाध प्रेम के चलते कई मोर्चों पर प्रदेश के नेताओं को मुंह की भी खानी पड़ी। प्रदेश की पहली निर्वाचित सरकार के मुख्यमंत्री जहां महिला प्रेम को लेकर बुढापे में बदनाम हुए वहीं उन्ही की सरकार में रहे खाद्य मंत्री भी महिला प्रकरण में फंसे और जैनी प्रकरण में नाम चर्चा में आने के चलते उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
   भाजपा सरकार के कई नेताओं और मंत्री पर भी महिला प्रेम का आरोप लगा। खंडूडी सरकार में दो कैबिनेट मंत्रियों सोमेश्वर  व हरिद्वार से विधायकों पर महिला प्रेम और उसके बाद उसकी हत्या तक करने का आरोप गीता खोलिया तथा कविता हत्याकांड के रूप में सामने आया। इतना ही नहीं इस सरकार के नेताओं पर एक दलित युवती के साथ बलात्कार का आरोप लगा जिससे सरकार की खूब किरकिरी भी हुई और सहकारिता प्रकोष्ठ के संयोजक सहित कई छूटभैय्या नेताओं को जेल की हवा भी खानी पड़ी लेकिन इस मामले में भाजपा संगठन के एक नेता जिसका नाम सामने आ रहा था पर दबाव के चलते पुलिस हाथ नहीं डाल सकी। कैबिनेट मंत्री  रहे भाजपा संगठन के प्रमुख पर एक दलित जिला पंचायत अध्यक्ष ने शारीरिक शोषण के आरोप लगाये और इसे इत्तेफाक ही कहा जा सकता है कि ठीक इसी तरह के आरोप वर्तमान सरकार के कैबिनेट मंत्री व पार्टी के प्रधान पर भी लगे हैं।
   लेकिन अब वर्तमान सरकार के दो मंत्रियों की भी एक महिला के प्रमोशन को लेकर ठनी हुई है। दरअसल शिक्षा विभाग से बीईओ पद से बिना किसी विभागीय अनापत्ति के कृषि विभाग में बीज प्रमाणिकरण अभिकरण के निदेशक पद तैनाती लेने से ये बखेड़ा खड़ा हुआ है। मामले में बीते दिन मुख्यमंत्री ने हस्तक्षेप किया है लेकिन इसका क्या परिणाम होगा वह अभी सामने नहीं आया है। सूबे में हाल ही में सामने आये इन दो ताजा प्रकरणों ने साफ कर दिया कि सूबे के नेताओं का महिलाओं के प्रति रूझान राज्य की राजनीति में गुल खिलाता रहेगा। इन तमाम प्रकरणों से तो साफ जाहिर होता है कि प्रदेश के सियासदां उत्तर प्रदेश की तरह यहां भी महिलाओं के मोहपाश में फंसे नजर आते हैं जिन्हे प्रदेश की फिक्र कम और महिलाओं मित्रों की चिन्ता ज्यादा सताती है। लेकिन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के साफ दामन में दमयन्ती का जो दाग लगा उसे किस डिर्टजेंन्ट से धोया जाएगा बहुगुणा बखूबी जानते होंगे।

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