बुधवार, 7 नवंबर 2012

गैरसैंण बना बिल्ली के गले की घण्टी

गैरसैंण बना बिल्ली के गले की घण्टी
राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 6 नवम्बर। गैरसैंण में विधानभवन के शिलान्यास की घोषणा मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा द्वारा भले ही 14 जनवरी 2013 को किए जाने की की गई है, राजनैतिक हलकों में उनकी इस घोषणा के कई निहितात लगाए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री बहुगुणा की इस घोषणा से उत्तराखण्ड में सत्तारूढ़ दल कांग्रेस को जहां ऑक्सीजन मिली है, वहीं अन्य राजनैतिक दल मुख्यमंत्री की इस घोषणा से हतप्रभ हैं। राजनैतिक विश्लेषक इसे बिल्ली के गले में घण्टी बांधने जैसा करार दे रहे हैं। उनका कहना है कि राज्य बने अब तक 12 साल पूरे होने में कुछ ही दिन शेष हैं, ऐसे में गैरसैंण में विधानभवन के शिलान्यास की घोषणा महज 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर की गई घोषणा की प्रतीत होती है। इनका कहना है कि राज्य बने इन 12 सालों में छहः मुख्यमंत्रियों ने इस राज्य में राज किया और इनकी अब तक डेढ़ हजार से ज्यादा घोषणाएं महज कागजी घोषणाएं बनकर रह गई है, ऐसे में गैरसैंण में मुख्यमंत्री बहुगुणा द्वारा की गई 23 घोषणाओं सहित गैरसैंण में विधानभवन के शिलान्यास की घोषणा कितनी साकार हो पाती है, यह तो आना वाला वक्त ही बताएगा।
राजनैतिक विश्लेषकों के अनुसार मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने आने वाली सरकारों सहित मुख्यमंत्रियों के सामने एक बहुत बड़ी चुनौति खड़ी कर दी है कि वे गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में समर्थन दें। इतना ही नहीं राजनैतिक विश्लेषक गैरसैंण घोषणा को कांग्रेस के भीतर मुख्यमंत्री पद को लेकर चल रहे अंतरद्वंद व अंर्तविरोध के रूप में भी देख रहा है। जहां मुख्यमंत्री की इस घोषणा के विरोध में काशीपुर के विधायक हरभजन सिंह चीमा ने जिस तरह से गैरसैंण में राजधानी के मुद्दे पर सड़कों उतरने की घोषणा की है, इससे तो कम से कम यह साफ है कि भले ही चीमा इसके विरोध में हों, लेकिन भारतीय जनता पार्टी इसके विरोध में नहीं है। यहां भाजपा मंे भी गैरसैंण मुद्दे को लेकर अंर्तविरोध साफ झलक रहा है क्यांेकि तीन नवम्बर से आज तक इस मुद्दे पर भाजपा के किसी भी नेता का बयान गैरसैंण में ग्रीष्मकालीन राजधानी अथवा गैरसैंण में विधानसभा सत्र चलाने को लेकर टिप्पणी के रूप में सामने नहीं आया। वहीं पर्वतीय क्षेत्र के आंदोलनकारी नेताओं सहित विधायकों ने जहां इस मुद्दे पर सरकार की पीठ थपथपाई है, इससे यह मुद्दा और भी संवेदनशील हो गया है।
राजनैतिक विश्लेषकों के अनुसार गैरसैंण चाहे ग्रीष्मकालीन राजधानी बने या न बने और गैरसैंण में चाहे विधानभवन बने या न बने, लेकिन गैरसैंण मुद्दे ने राज्य की राजनीति को जरूर गरमा दिया है और उत्तराखण्ड के पर्वतीय जिलों में गैरसैंण को लेकर जो उत्साह लोगों में दिखाई दे रहा है, उसने भी राजनैतिक दलों को गैरसैंण की ओर देखने के लिए विवश कर दिया है कि गैरसैंण अब गैर नहीं है।

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