मुख्यमंत्री, राज्यपाल और मंत्री छोड गए राजधानी भगवान भरोसे
आंदोलनों की आग से झुलस रही राजधानी
नेताओं की आस में आम आदमी, जनप्रतिनिधि जूते घिसने को मजबूर
राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 20 दिसम्बर,। दून घाटी आज कल आंदोलनों की आग से झुलस रही है, लेकिन आग बुझाने वाले मातहत गायब हैं। आंदोलनकारियों को आखिर समझाए तो कौन समझाए। यहां तक कि आंदोलनकारियों से ज्ञापन लेने के लिए अदने से अधिकारियों की जिम्मेदारी लगाई गई है। राजधानी में यदि कुछ हो गया, तो निर्णय लेने वाला भी कोई नहीं है। राज्य का मुख्यमंत्री विदेश दौरे पर तो राज्यपाल मध्यप्रदेश के दौरे पर हैं, वहीं कुछ मंत्रीगण तो अपने घरों में आराम फरमा रहे हैं और कुछ अपनी विधानसभा क्षेत्रों में बताए गए हैं। विधानसभा वीरान पड़ा है और समस्याओं के पुलिंदे लिए राज्य के सुदूरवर्ती अंचलों के जनप्रतिनिधि सचिवालय और विधानसभा के बीच झूल रहे हैं। यह उस राज्य की दशा है, जिसे बने अभी मात्र 12 वर्ष हुए हैं।
आंदोलनों की आग में सूबे की राजधानी दून गुरूवार और भड़क गई। जहां सामान्य वर्ग के कर्मचारियों ने प्रोन्नति में आरक्षण को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों को जमकर कोसा वहीं उनकी शव यात्रा निकालकर पुतला दहन किया। इसके साथ ही दिल्ली में हुए सामूहिक गैंगरेप के विरोध में छात्राओं ने राजधानी की सड़कों पर रैली निकालकर आरोपियों को फांसी पर लटकाने की मांग की। वहीं समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने आरक्षण को
समर्थन देने के विरोध में भाजपा और कांग्रेस दोनों पर के खिलाफ प्रदर्शन किया। इधर हड़ताल कर रहे बैंक कर्मियों ने धरने-प्रदर्शन और जुलूस निकालकर निकाल राजधानी की सड़कों पर केन्द्र सरकार के खिलाफ अपना आक्रोश जाहिर किया। उधर उत्तराखंड परिवहन महासंघ द्वारा कर्मिशियल वाहनों पर पंजीकरण शुल्क बढ़ाये जाने के विरोध में धरना दिया और सरकार को चेतावनी दी कि अगर सरकार ने अपना निर्णय वापस नहीं लिया तो वह अनिश्चित कालीन हड़ताल पर चले जायेंगे। स्वास्थ्य विभाग के लैब टेक्नीशियल अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर चले गये जिसके कारण अस्पतालों में मरीजों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। रोज की तरह उधर मिनिस्ट्रियल कर्मियों का आंदोलन भी गुरूवार को जारी रहा। विभिन्न संगठनों और राजनीतिक दलों और कर्मचारियों के इन राजधानी दून की सड़कें पूरी तरह से आंदोलनों से पटी पड़ी हैं, जिसके कारण प्रशासन की हालत खस्ता होती जा रही है और आम आदमी को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। धरने-प्रदर्शनों से राजधानी की सड़कों पर जाम की स्थिति बननी अब आम हो गई है, राज्य सभा में प्रोन्नति में आरक्षण के बाबत लाये जाने वाले संविधान संशोधन बिल के विरोध में सामान्य वर्ग के कर्मचारियों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है, जिसके चलते गुरूवार को भी इन कर्मचारियों ने परेड ग्राउंड में जनसभा कर भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही जमकर खरी-खोटी सुनाई वहीं इन कर्मचारियों ने नुक्कड नाटक के माध्यम से सरकार को कटघरे में खड़ा किया। इन कर्मचारियों में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों की शव यात्रा निकाली, उनकी यह शव यात्रा घंटाघर व पल्टन बाजार होती हुई लक्खीबाग पंहुची जहां कर्मचारियों ने इनके पुतले दहन किये।
राज्य के मातहत नेता राज्य को भगवान भरोसे छोड़ अपनी-अपनी यात्राओं में मशगूल हैं, मुख्यमंत्री अफ्रीकी देशों सहित यूरोपीय देशों की यात्रा पर हैं, तो राज्यपाल अपने निजी दौरे पर अपनी कर्मस्थली रहे भोपाल के दौरे पर। ऐसा ही हाल मंत्रियों का भी है, कोई अपनी विधानसभा क्षेत्र में रहने की बात कहकर राजधानी से किनारा किए हुए है, तो कोई अपने निजी दौरे पर। राज्य के अधिकारियों का भी बुरा हाल है। ऐसे में दूरदराज से आए जनप्रतिनिधि व समस्याओं से जूझ रहे लोगों के जहां विधानसभा और सचिवालय के बीच जूते तो घिस रहे हैं, वहीं उनकी जेबों पर अतिरिक्त आर्थिक भार पड़ रहा है। 12 साल के इस राज्य में नेताओं का इतना गैर जिम्मेदाराना व्यवहार कभी नहीं देखा गया। राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि राज्य सही दिशा पर न चलकर अपने विकास के मार्ग से भटक गया है। उन्होंने इसकी सारी जिम्मेदारी राज्य के नेताओं पर डालते हुए कहा कि नेता राज्य को दिशा देता है, लेकिन जब नेता ही राज्य के प्रति लापरवाह हो तो वह राज्य कैसे उन्नति कर सकता है, यह विचारणीय है।
आंदोलनों की आग से झुलस रही राजधानी
नेताओं की आस में आम आदमी, जनप्रतिनिधि जूते घिसने को मजबूर
राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 20 दिसम्बर,। दून घाटी आज कल आंदोलनों की आग से झुलस रही है, लेकिन आग बुझाने वाले मातहत गायब हैं। आंदोलनकारियों को आखिर समझाए तो कौन समझाए। यहां तक कि आंदोलनकारियों से ज्ञापन लेने के लिए अदने से अधिकारियों की जिम्मेदारी लगाई गई है। राजधानी में यदि कुछ हो गया, तो निर्णय लेने वाला भी कोई नहीं है। राज्य का मुख्यमंत्री विदेश दौरे पर तो राज्यपाल मध्यप्रदेश के दौरे पर हैं, वहीं कुछ मंत्रीगण तो अपने घरों में आराम फरमा रहे हैं और कुछ अपनी विधानसभा क्षेत्रों में बताए गए हैं। विधानसभा वीरान पड़ा है और समस्याओं के पुलिंदे लिए राज्य के सुदूरवर्ती अंचलों के जनप्रतिनिधि सचिवालय और विधानसभा के बीच झूल रहे हैं। यह उस राज्य की दशा है, जिसे बने अभी मात्र 12 वर्ष हुए हैं।
आंदोलनों की आग में सूबे की राजधानी दून गुरूवार और भड़क गई। जहां सामान्य वर्ग के कर्मचारियों ने प्रोन्नति में आरक्षण को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों को जमकर कोसा वहीं उनकी शव यात्रा निकालकर पुतला दहन किया। इसके साथ ही दिल्ली में हुए सामूहिक गैंगरेप के विरोध में छात्राओं ने राजधानी की सड़कों पर रैली निकालकर आरोपियों को फांसी पर लटकाने की मांग की। वहीं समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने आरक्षण को
समर्थन देने के विरोध में भाजपा और कांग्रेस दोनों पर के खिलाफ प्रदर्शन किया। इधर हड़ताल कर रहे बैंक कर्मियों ने धरने-प्रदर्शन और जुलूस निकालकर निकाल राजधानी की सड़कों पर केन्द्र सरकार के खिलाफ अपना आक्रोश जाहिर किया। उधर उत्तराखंड परिवहन महासंघ द्वारा कर्मिशियल वाहनों पर पंजीकरण शुल्क बढ़ाये जाने के विरोध में धरना दिया और सरकार को चेतावनी दी कि अगर सरकार ने अपना निर्णय वापस नहीं लिया तो वह अनिश्चित कालीन हड़ताल पर चले जायेंगे। स्वास्थ्य विभाग के लैब टेक्नीशियल अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर चले गये जिसके कारण अस्पतालों में मरीजों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। रोज की तरह उधर मिनिस्ट्रियल कर्मियों का आंदोलन भी गुरूवार को जारी रहा। विभिन्न संगठनों और राजनीतिक दलों और कर्मचारियों के इन राजधानी दून की सड़कें पूरी तरह से आंदोलनों से पटी पड़ी हैं, जिसके कारण प्रशासन की हालत खस्ता होती जा रही है और आम आदमी को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। धरने-प्रदर्शनों से राजधानी की सड़कों पर जाम की स्थिति बननी अब आम हो गई है, राज्य सभा में प्रोन्नति में आरक्षण के बाबत लाये जाने वाले संविधान संशोधन बिल के विरोध में सामान्य वर्ग के कर्मचारियों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है, जिसके चलते गुरूवार को भी इन कर्मचारियों ने परेड ग्राउंड में जनसभा कर भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही जमकर खरी-खोटी सुनाई वहीं इन कर्मचारियों ने नुक्कड नाटक के माध्यम से सरकार को कटघरे में खड़ा किया। इन कर्मचारियों में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों की शव यात्रा निकाली, उनकी यह शव यात्रा घंटाघर व पल्टन बाजार होती हुई लक्खीबाग पंहुची जहां कर्मचारियों ने इनके पुतले दहन किये।
राज्य के मातहत नेता राज्य को भगवान भरोसे छोड़ अपनी-अपनी यात्राओं में मशगूल हैं, मुख्यमंत्री अफ्रीकी देशों सहित यूरोपीय देशों की यात्रा पर हैं, तो राज्यपाल अपने निजी दौरे पर अपनी कर्मस्थली रहे भोपाल के दौरे पर। ऐसा ही हाल मंत्रियों का भी है, कोई अपनी विधानसभा क्षेत्र में रहने की बात कहकर राजधानी से किनारा किए हुए है, तो कोई अपने निजी दौरे पर। राज्य के अधिकारियों का भी बुरा हाल है। ऐसे में दूरदराज से आए जनप्रतिनिधि व समस्याओं से जूझ रहे लोगों के जहां विधानसभा और सचिवालय के बीच जूते तो घिस रहे हैं, वहीं उनकी जेबों पर अतिरिक्त आर्थिक भार पड़ रहा है। 12 साल के इस राज्य में नेताओं का इतना गैर जिम्मेदाराना व्यवहार कभी नहीं देखा गया। राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि राज्य सही दिशा पर न चलकर अपने विकास के मार्ग से भटक गया है। उन्होंने इसकी सारी जिम्मेदारी राज्य के नेताओं पर डालते हुए कहा कि नेता राज्य को दिशा देता है, लेकिन जब नेता ही राज्य के प्रति लापरवाह हो तो वह राज्य कैसे उन्नति कर सकता है, यह विचारणीय है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें