शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

उद्योग विभाग की तानाशाही से प्रदेश में स्थापित उद्योग संकट में



प्रदेश के राजस्व पर अधिकारियों का डाका
उद्योग विभाग की तानाशाही से प्रदेश में स्थापित उद्योग संकट में



राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 28 जून। प्रदेश में चल रहे उद्योगों को तो राज्य सरकार मदद करने में असहाय नजर आती है, लेकिन जो उद्योग प्रदेश में स्थापित ही नहीं है उनसे प्रदेश के उद्योग विभाग की गलबहियां अपने आप में संदेहास्पद है कि कहीं न कहीं दाल में कुछ काला जरूर है। मामला राज्य के अस्तित्व में आने केे बाद से स्थापित सीमेंट फैक्ट्रियों को लाईम स्टोन की माईनिंग के पट्टे का है।
 
उल्लेखनीय है कि प्रदेश के अस्तित्व में आने के बाद तिवारी सरकार के दौरान प्रदेश में औद्योगिकीकरण का माहौल बना। तिवारी के व्यक्त्त्वि व उनके औद्योगिक घरानों से सम्बधों के चलते व केन्द्र में बाजपेई की सरकार द्वारा राज्य को दिये गये विशेष औद्योगिक पैकेज  के मिलते ही प्रदेश में औद्योगिकीकरण का माहौल भी बना जिसका लाभ नवोदित राज्य  उत्तराखण्ड को मिला। प्रदेश मे देश की नामी गिरामी औद्योगिक घरानों  ने अपने उद्योगों को प्रदेश में स्थापित करना शुरू किया। इस दौरान प्रदेश में सीमेन्ट की तीन फैक्ट्रियां भी लगी जिनमें अम्बुजा, श्री सीमेंट तथा जेपी सीमेंट प्रमुख है। एक जानकारी के अनुसार राज्य में इन सीमेन्ट उद्योगों के स्थापना के दौरान प्रदेश सरकार ने उन्हे प्रदेश से लाईम स्टोन जिससे सीमेंट बनाया जाता है के खनन के पट्टे भी दिये जाने पर सहमति प्रकट की थी, राज्य में स्थापित सीमेंट उद्योगों ने सरकार के इस निर्णय का स्वागत करते हुए चूने के पत्थर की माइनिंग के लिए स्थल का चयन कर उसकी विस्तृत रिपोर्ट प्रदेश के उद्योग विभाग को दे दी थी ताकि राज्य के बाहर से उन्हे लाईमस्टोन न लाना पड़े और सीमेंट के दाम अन्य राज्यों के मुकाबले कम हों, प्रदेश को राजस्व के रूप में पैसा भी मिले। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण व चौंकाने वाली बात यह है कि प्रदेश सरकार के उद्योग विभाग ने एक ऐसे उद्योग समूह को लाईमस्टोन की माइनिंग का पट्टा देने की तैयारी कर ली है जिसने यहां सीमेंट उद्योग लगाया ही नहीं। चर्चा तो यहां तक है कि प्रदेश सरकार का उद्योग विभाग मामला खुलता देख यह प्रचार करने लगा है कि यह उद्योग समूह 3500 करोड़ रूपया उत्तराखण्ड में निवेश करने को तैयार है।
 
इस समूचे प्रकरण में सबसे संदेहास्पद बात यह है कि जिन उद्योग समूहों ने राज्य निर्माण के बाद राज्य में औद्यौगिकीकरण में इच्छा जताई उद्योग विभाग ने उन्हे दूध की मक्खी की तरह किनारे कर दिया। इस समूचे प्रकरण में चर्चा तो यहां तक है कि अल्ट्राटेक सीमेट व सरकार के उद्योग विभाग के बीच अन्डर टेबिल मोटी डील हुई है और अब मामला खुलने की डर से विभाग प्रदेश में बड़े निवेश की बात करने लगा है ताकि विरोध को कुछ कम किया जा सके। सूत्रों के अनुसार इस डील में राज्य सरकार का प्रमुख सचिव स्तर के एक अधिकारी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कुल मिलाकर उद्योग विभाग की इस तरह की कार्यशैली से राज्य निर्माण के दौरान स्थापित सीमेंट उद्योगों में निराशा का वातावरण और इससे प्रदेश में औद्योगिक संकट आ सकता है। क्योंकि उन्हे उम्मीद थी कि उनके द्वारा चूने के पत्थर की माईनिंग का लाभ प्रदेश की जनता को सीमेंट के दाम कम होने से मिलता और उन्हे भी अन्य प्रदेशों से आयात में खर्च से मुक्ति मिलती। मामले में संयुक्त निदेशक खनन से जब बात की गयी तो उन्होने बताया कि अल्ट्राटेक से प्रदेश सरकार का चूने के पत्थर को लेकर एमओयू होने वाला है जबकि इससे पहले से आवेदनकर्ता प्रदेश में स्थापित सीमेन्ट उद्योगों के आवेदन निरस्त किये जा चुके हैं। राज्य में स्थापित सीमेंट उद्योंगों के आवेदनों के निरस्तीकरण के क्या कारण रहे वह नहीं बता पाये। इससे साफ होता है कि ‘‘अंधा बांटे रेवड़ी अपने-अपने को देय‘‘ की उक्ति यहां साकार हो रही है।


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