शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

गंगा के रौद्र रूप में छिपे कई राज

गंगा के रौद्र रूप में छिपे कई राज
राजेन्द्र जोशी
देहरादून। ‘‘राम तेरी गंगा मैली हो गई पापियों के पाप धोते-धोते‘‘ गंगा के रौद्र रूप और उसमें बहते गंदले पानी को देखकर बालीवुड के मशहूर फिल्म निर्माता राजकपूर की वह फिल्म ‘‘राम तेरी गंगा मैली‘‘ का यह टाईटल सौंग याद आ जाता है। गौमुख से लेकर गंगा सागर तक महाराजा भगीरथ के अथक प्रयासों से निकाली गई यह गंगा आज भले ही विकराल रूप लेकर बह रही है, लेकिन गंगा की इस विनाशलीला के लिए हम खुद भी जिम्मेदार हैं।
देश के उच्चतम न्यायालय ने वर्षों पहले उत्तर प्रदेश सरकार से लेकर उत्तराखण्ड व गंगा के मार्ग में आने वाले उन तमाम राज्यों को चलाने वाले अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों व मुख्यमंत्रियों को साफ-साफ बता दिया था कि गंगा तट के दोनों ओर 200-200 फीट तक किसी भी तरह का निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए, लेकिन सफेदपोश और ब्यूरोक्रेट्स के साथ भूमाफियाओं के गठजोड़ ने गंगा को इतना संकुचित कर दिया कि उसके पास बहने के लिए स्थान की कमी होने लगी। बीते 72 घण्टो के दौरान उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में गंगा और उसकी सहायक नदियों का जल स्तर इतना बढ़ा की उसने खुद ही गंगा तट से लगभग 200-200 फीट में बने उन तमाम पुलों, सड़कों सहित होटलों, लॉजों और मकानों को लील लिया। गंगा के बहाव क्षेत्र में गौमुख से लेकर हरिद्वार तक अल्कापुरी बांक से लेकर देवप्रयाग तक और अन्य सहायक नदियों ने उसके बहाव में बाधा उत्पन्न कर रहे उन सभी निर्माणों को ध्वस्त कर दिया, जिसे मानव ने प्रकृति के विरूद्ध निर्मित किया था। उत्तराखण्ड की धरती से निकली उपजाऊ मिट्टी और उसके साथ बहकर जा रहे खजिन सम्पदा ने गंगा क्षेत्र की भूमि को उपजाऊ बनाया है।
गंगा में आई बाढ़ से भले ही गौमुख से लेकर हरिद्वार तक लोगों का जीवन मुहाल किया हो, लेकिन गंगा के इस रौद्र रूप ने इस क्षेत्र के लोगों सहित प्रदेश सरकार को यह संदेश भी दिया है कि वे उसके बहाव क्षेत्र में अतिक्रमण न करें अन्यथा उनका वह विनाश कर देगी।
गंगा के इस संदेश को प्रदेश की सरकार और गंगा तटों पर अतिक्रमण कर रहे भूमाफियाओं और सफेदपोश व अफसरशाही के गठजोड़ को समझना होगा कि प्रकृति के न्याय के सामने उनकी ताकत कुछ भी नहीं है और गंगा ने यह संदेश भी दिया है कि प्रकृति से अनावश्यक छेड़छाड़ और गंगा तटों पर उग रहे कंक्रीट के जंगल को अब वह बख्शने वाली नहीं, लिहाजा अब सरकार और अतिक्रमण कारियों को चाहिए कि वह गंगा तटों से दूर हट जाएं। जहंा तक गंगा तटों पर अतिक्रमण कर बनाए गए निर्माण और बहने के बाद उनके मुआवजे की बात है तो यह गेंद अब सरकारों के पाले में है कि वह इस तरह के अवैध निर्माण पर प्रभावित लोगों की जेबें कितनी गरम करती हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें