शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

अपनों से अपनों के अंतिम संस्कार का हक भी छीन रही सरकार



अपनों से अपनों  के अंतिम संस्कार का हक भी छीन रही सरकार



राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 27 जून । देश में आजादी के बाद से लेकर केदारनाथ में व्यापक तबाही तक कई बड़े-बड़े हादसे हुए हैं जिनमें गुजरात में आये भूकंप से भुंज तक बर्वाद हो गया था वहीं गोधरा जैसे कांड भी देश में हुए हैं इतना ही नहीं देश में आज तक जितने भी सामुहिक हादसे हुए हैं उन सब में वहां की राज्य सरकारों ने मरे हुए लोगों के अंतिम संस्कार के अधिकार को उनके अपनों से नहीं छीना और जिन्दा बचे लोगों ने अपने परिजनों व रिश्तेदारों के अंतिम संस्कार किये, लेकिन उत्तराखण्ड सरकार ने अपनों से अपने लोगों के दाह संस्कार का हक तो छीन ही लिया साथ ही जो अपनों का दाह संस्कार करना चाहते थे उन्हे केदारनाथ जाने से ही रोक दिया। इसे मृतकों के परिजनों के साथ अमानवीयता न कहा जाय तो और क्या कहा जा सकता है।
  
गौरतलब हो कि उत्तराखण्ड में 16 17 जून को आयी महाप्रलय में हजारांे लोगों को जहां अपने घरों से बेघर होना पड़ा है वहीं हजारों श्रद्धालुओं को भी प्रकृति के कहर का प्रकोप झेलना पड़ा है। उत्तराखण्ड राज्य सरकार की शवों के सामुहिक दाह संस्कार की बात न तो स्थानीय लोगों को ही पच रही है और न ही तीर्थ यात्रा में प्राण गंवा चुके श्रद्धालुओं के परिजनों या रिश्तेदारों को। सरकार का तुर्रा है कि इन शवों से दुर्गन्ध आने लगी है और शव सड़ने व गलने लगे हैं लेकिन शवों की शिनाख्त पर राज्य सरकार मौन है। प्रदेश सरकार का दावा है कि वह जितने भी आपदा में मरे लोग हैं वह उनका डीएनए संरक्षित तक उसका डेटा बेस तैयार करेगी। जबकि एक जानकारी के अनुसार अपने देश में शरीर को संरक्षित करने के कई और तरीके भी हैं जिसके बाद न तो शरीर से दुर्गंध आती है और नहीं शरीर खराब होता है सेना युद्ध के दौरान मारे गये सैनिकों पर एक विशेष रसायन का लेप चढाती है जिससे सैनिकों के शव 10 से 15 दिन तक खराब नहीं होते हैं और इस दौरान उनकी शिनाख्त हो सकती है। लोगों का कहना है कि सरकार की शवों का सामुहिक रूप  से दाह संस्कार में जल्दबाजी उनके गले नहीं उतर रही है। उनका कहना है कि सरकार की जल्दबाजी से लगता है कि दाल में कुछ काला जरूर है और सरकार मृतकों की सही संख्या क्यों छिपाना चाह रही है यह उनकी समझ से परे हैं।
   
उल्लेखनीय है कि प्रदेश सरकार 16-17 जून को केदारनाथ में हुए जलप्रलय के शुरू के दिन से लेकर अब तक सरकार इस त्रासदी का शिकार हुए लोगों संख्या नहीं बता पाई है। इन 12 दिनों में पीड़ितों के परिजन हजारों की संख्या में अपनों को खोज रहे और सरकार का आकड़ा अभी तक एक हजार तक ही पहुंच पाया है, जबकि जिले के केदारघाटी क्षेत्र के अस्सी से अधिक गांव के करीब दो हजार लोग त्रासदी के बाद से लापता हैं। वहीं बदरीकेदार मंदिर समिति के अध्यक्ष ने गुरूवार को एक मुलाकात में बताया कि मरने वालों की संख्या पांच हजार से ज्यादा हो सकती है लेकिन केदारनाथ आपदा में अपनी जान बचा पाने वालों ने यह आंकडा 10 हजार से ज्यादा का बताया है। वहीं केवल केदारनाथ, रामबाड़ा, गौरीकुण्ड से लापता हुए स्थानीय लोगों का आंकड़ा दो हजार से अधिक बताया जा रहा है। जबकि त्रिजुगीनाराण, लमगौड़ी, ल्वारा, डुंगर, सेमला गांवों से ही पांच सौ से अधिक लोग लापता बताये गये हैं। वहीं ऊखीमठ व अगस्त्मुनि ब्लाक के साथ ही चमोली, टिहरी, पौड़ी जिले से भी कई लोग यहां व्यापार करते आते हैं। जिले के सत्तर से अधिक गांवों सेें लापता लोगों की संख्या दो हजार से अधिक बताई जा रही है। जबकि दर्शन करने पहुंचे यात्रियों की बात करें तो उस दिन वहां अनुमानित दस हजार से ज्यादा यात्री मौजूद थे।
   
कानूनविदो के अनुसार प्रदेश सरकार इस तरह से आपदा के बाद जगह-जगह से मिले शवों के सामुहिक दाह संस्कार कर उनके परिजनों का मौलिक अधिकार उनसे छीन रही है। लोकतंत्र में व्यवस्था है कि किसी भी व्यक्ति को अपने परिजन के अंतिम संस्कार का अधिकार है बशर्ते कि वह आतंकवादी या देश द्रोही न हो क्योंकि ऐसे मामलों में न्यायालय ही निर्णय कर सकता है। वहीं सरकार अब तक लावारिश लोगों का ही अंतिम संस्कार करती रही है

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