मंगलवार, 9 जुलाई 2013

आंकड़ों पर भी नहीं है एजेंसी और अफसरों में तालमेल

आंकड़ों पर भी नहीं है एजेंसी और अफसरों में तालमेल


देहरादून। उत्तराखंड त्रासदी को 18 दिन बीत चुके हैं। अभी तक सरकारी मशीनरी को कुल लापता बच्चों के आंकड़े तक नहीं पता। सरकार ने गुमशुदा बच्चों की जानकारी के लिए एक सेल तो बनाया है। लेकिन ये सेल अभी खुद आंकड़ों को लेकर असमंजस की हालत में है। वहीं विपक्ष त्रासदी के बाद सरकारी प्रबंधों को लेकर सीधे मुख्यमंत्री को कठघरे में खड़ा कर रहा है।
आईसीडीएस की प्रमुख सचिव राधा रतूड़ी कहती हैं कि हमारे पास फिगर हैं लेकिन वो एडजेक्ट नहीं हैं। रतूड़ी गुमशुदा बच्चों के आंकड़े को लेकर खुद ही उलझन में दिख रही हैं। दरअसल गुमशुदा बच्चों की तलाश के लिए बुधवार को देहरादून में राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग और राज्य प्रशासन के आला अधिकारियों के बीच बैठक हुई। इस बैठक में लापता बच्चों को ढूंढने के उपाय पर चर्चा हुई।
बच्चों की तलाश के लिए सरकार ने गुमशुदा तलाश केंद्र बनाया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक उत्तराखंड में अभी 1,227 बच्चे लापता हैं। इनमें उत्तराखंड घूमने आए बच्चों के साथ स्थानीय बच्चे भी शामिल हैं। बैठक के दौरान प्रेस रिलीज में गुमशुदा बच्चों से जुड़े आंकड़े खुद आईसीडीएस ने दिए थे लेकिन इनकी प्रमुख सचिव राधा रतूड़ी ने खुद माना कि ये आंकड़े पूरे तौर पर सही नहीं भी हो सकते हैं।
राधा रतूड़ी ने कहा कि इसमें लगभग 824 बच्चों की बात सामने आई है लेकिन ये लगभग है, लगभग 1227 बच्चों की सूचना मिसिंग में आ रही है, मिसिंग सेल में देश भर से बच्चों के मिस होने की मेल और एसएमएस आ रहे हैं जिसकी चेकिंग चल रही है। इसमें डबलिंग भी हो सकती है।
बच्चों के अलावा अगर गुमशुदा लोगों की भी बात की जाए तो सरकार के अलग-अलग अधिकारियों के बयान में पहले भी विरोधाभास दिखा है। ऐसा लग रहा है मानो राज्य सरकार की आपदा प्रबंधन टीम इस त्रासदी के बाद लड़खड़ा गई है। दूसरी तरफ विपक्ष इस मामले में सीधे-सीधे मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को ही कठघरे में खड़ा कर रहा है। विपक्ष का आरोप है कि मुख्यमंत्री को अभी तक के नुकसान, बाकी आंकड़ों और खासतौर पर राहत कार्य के बारे में पक्की जानकारी ही नहीं है।
दूसरी तरफ मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के मुताबिक सरकारी राहत कार्य से जुड़े आंकड़े उनके पास मौजूद हैं। लेकिन निजी संस्थाओं या लोगों की तरफ से दी गई राहत के बारे में उनके पास जानकारी नहीं है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राज्य के 250 से ज्यादा गांव पूरी तरह तबाह हो गए हैं और 382 गांवों में बिजली की व्यवस्था बर्बाद हो चुकी है। 1,635 सड़कें पूरी तरह से खराब हो गई हैं जबकि 2,000 किलोमीटर सड़कों का नामोनिशान ही मिट गया है। 12 विद्युत परियोजनाओं पर असर पड़ा है और इसके चलते करीब 750 मेगावाट बिजली उत्पादन प्रभावित हुआ है। 300 स्कूल, कॉलेज और अस्पताल तक जमींदोज हो गए हैं।
सरकार का दावा है कि राहत कार्य जारी हैं लेकिन जिस रफ्तार से ये चल रहे हैं, उस लिहाज से ये कहना मुश्किल नहीं है कि राज्य में व्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने में अभी लंबा वक्त लग सकता है। वहीं अहम सवाल ये भी है कि क्या आंकड़ों को लेकर सूबे की सरकार और एजेंसियों के बीच तालमेल की कमी है।

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