लोकसभा चुनाव के खेवनहार होंगे बहुगुणा अथवा नहीं !
राजेन्द्र जोशी
देहरादून,9 जनवरी । मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को लोकसभा चुनाव की कमान सौंपी जाएगी भी अथवा नहीं, राजनैतिक गलियारों में इस बात को लेकर कयासबाजियों का दौर जारी है। वहीं राजनैतिक परिवेक्षकों का भी मानना है कि तमाम सत्ता संसाधन होने के बावजूद, जो टिहरी लोकसभा उपचुनाव कांग्रेस की झोली में न डाल पाया हो उससे क्या उम्मीद की जा सकती है। वहीं कांग्रेस आलाकमान को यह सोचने पर मजबूर होना पड़ा है कि क्या विजय बहुगुणा उत्तराखण्ड में कांग्रेस की नैय्या को पार लगा पाएंगे अथवा कांग्रेस को किसी नए खेवनहार की लोकसभा चुनाव से पहले खोज करनी होगी।
राजनैतिक परिवेक्षकों का मानना है कि राज्य में होने वाले स्थानीय निकाय व पंचायत चुनाव कांग्रेस की लोकप्रियता को साबित करेंगे कि कांग्रेस सरकार कि जमीनी हकिकत क्या है। हालांकि सूत्रों का यह भी कहना है कि मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा प्रदेश में होने वाले स्थानीय निकाय व पंचायत चुनाव को लोकसभा चुनाव के बाद संपन्न करवाने के पक्ष में है। इसके पीछे राजनैतिक जानकारों का कहना है कि बहुगुणा सरकार किसी भी मोर्चे पर अपने को यह साबित नहीं कर पाई है कि वह किसी भी अग्नि परिक्षा के लिए तैयार है। वहीं राज्य में बार-बार यह भी देखने में आया है कि कांग्रेस के नेताओं में आपसी समन्वय की कमी तो कई बार नजर आई, वहीं कांग्रेसी सदस्य आपसी द्वंद में फंसे नजर आए। वहीं हरीश रावत गुट गाहे-बगाहे मुख्यमंत्री पर हमला करता भी नजर आया। इतना ही नहीं विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने तो अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए जहां पर्वतीय क्षेत्रों के विकास का मुद्दा उठाया, वहीं उन्होंने पर्वतीय क्षेत्र में विकास की मद में आए धन को ठीक से खर्च न करने के आरोप भी लगाए। वहीं गैरसैंण राजधानी को लेकर भी कांग्रेसी सदस्यों में एकमतता नहीं दिखाई दी। कोई सदस्य गैरसैंण में राजधानी पर चिंता करते नजर आया तो किसी ने गैरसैंण में राजधानी को सबसे बड़ा झूठ करार दिया। वहीं मूल निवास प्रमाण पत्र को लेकर उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में जनता इसलिए आंदोलनरत है कि कांग्रेस सरकार ने राज्य में मूल निवासी होने की तारिख राज्य के अस्तित्व में आने के दिन को तय कर दिया, जबकि के राज्य के पर्वतीय व मैदानी क्षेत्रों में वर्षों से रह रहे लोगों का मानना है कि संविधान सम्मत 1950 को राज्य में स्थाई निवासी व मूल निवासी के लिए तय होना चाहिए। इसको लेकर राज्य की जनता आज भी आंदोलनरत है। वहीं प्रशासनिक पकड़ को लेकर भी राजनैतिक परिवेक्षक बहुगुणा सरकार को कमजोर मानती है। उनका कहना है कि राज्य में आए दिन कर्मचारियों की हड़ताल से आम जन परेशान हैं, लेकिन सरकार कि हीला-हवाली के चलते सरकार कर्मचारियों के मामलों को सुलझाने में नाकाम साबित हुई है, इनका मानना है इस हड़ताल से आम जन छोटे-छोटे प्रमाणपत्रों को बनवाने के चक्कर में अपने जूते घिसने को मजबूर हैं।
राजनैतिक जानकारों का कहना है कि आर्थिक संकट से जूझ रहे उत्तराखण्ड के नेताओं पर मुख्यमंत्री की कोई पकड़ नहीं है, आए दिन मंत्री और अधिकारी विदेशी दौरों पर फिजूल खर्ची कर सरकार को चूना लगाने पर लगे हैं। हद तो तब हो गई, जब राज्यवासी आपदा से कराह रहे थे और बहुगुणा मंत्रिमण्डल के सदस्य व विधायक लंदन की यात्रा पर रवाना हो रहे थे। इतना ही नहीं बीते दिनों में भी मुख्यमंत्री सहित कई मंत्री विदेशी सैर सपाटा कर चुके हैं और कुछ अब जाने की तैयारी में है। ऐसे में करोड़ों रूपया विदेशी यात्राओं पर खर्च करने के बाद राज्य को इन यात्राओं का कोई लाभ मिल भी पाएगा अथवा नहीं इसमें संदेह है। क्योंकि राज्य के अस्तित्व में आने से लकर आज तक जितने भी मंत्रियों और अधिकारियों ने विदेश यात्राएं की उनका कोई लाभ इस राज्य को मिला हो ऐसा तो कहीं भी नहीं लगता। वहीं विवादास्पद और चर्चित लोगों से घिरे रहने वाले मुख्यमंत्री से खांटी कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की दूरी भी राजनैतिक हलचल का कारण है। चर्चा है कि मुख्यमंत्री दरबार में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का स्थान बिचौलिऐ और दलाल किस्म के लोगों ने ले लिया है। ऐसे में इनके बीच कांग्रेसी कार्यकर्ता वहां जाना अपनी तौहीन समझता है।
2014 में देश में लोकसभा चुनाव होने हैं, सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कांग्रेस की कोर कमेटी इस बात पर विचार कर रही है कि राज्य में अपनी सरकार होने के बावजूद मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा लोकसभा उपचुनाव न जिता पाए, वह भी अपने पुत्र को। क्यांेकि कांग्रेस आलाकमान का मानना है कि उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री ने उन्हें आश्वस्त किया था कि वे अपने पुत्र को लोकसभा टिकट मिलने की एवज में टिहरी लोकसभा के लिए होने वाले उपचुनाव में कांग्रेस की झोली में यह सीट देंगे। सूत्रों का कहना है कि बहुगुणा अपनी शर्त पर जब खरे नहीं उतर पाए, तो वे आगे राज्य की पांच लोकसभा सीटों को लेकर मुख्यमंत्री के आश्वासन पर भरोसा नहीं कर सकते। ऐसे में अब यह सवाल उठता है कि क्या लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस बहुगुणा को हटाकर किसी अन्य चेहरे पर लोकसभा चुनाव का दांव लगाएगी। वहीं यह सवाल भी लाख टके का है कि महंगाई व भ्रष्टाचार की मार झेल रही जनता कांग्रेस पर कितना विश्वास करेगी, यह तो आना वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन यह तय है कि राज्य में विजय बहुगुणा की राह अब उतनी आसान नहीं है, जितनी की वे समझ रहे हैं।
राजेन्द्र जोशी
देहरादून,9 जनवरी । मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को लोकसभा चुनाव की कमान सौंपी जाएगी भी अथवा नहीं, राजनैतिक गलियारों में इस बात को लेकर कयासबाजियों का दौर जारी है। वहीं राजनैतिक परिवेक्षकों का भी मानना है कि तमाम सत्ता संसाधन होने के बावजूद, जो टिहरी लोकसभा उपचुनाव कांग्रेस की झोली में न डाल पाया हो उससे क्या उम्मीद की जा सकती है। वहीं कांग्रेस आलाकमान को यह सोचने पर मजबूर होना पड़ा है कि क्या विजय बहुगुणा उत्तराखण्ड में कांग्रेस की नैय्या को पार लगा पाएंगे अथवा कांग्रेस को किसी नए खेवनहार की लोकसभा चुनाव से पहले खोज करनी होगी।
राजनैतिक परिवेक्षकों का मानना है कि राज्य में होने वाले स्थानीय निकाय व पंचायत चुनाव कांग्रेस की लोकप्रियता को साबित करेंगे कि कांग्रेस सरकार कि जमीनी हकिकत क्या है। हालांकि सूत्रों का यह भी कहना है कि मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा प्रदेश में होने वाले स्थानीय निकाय व पंचायत चुनाव को लोकसभा चुनाव के बाद संपन्न करवाने के पक्ष में है। इसके पीछे राजनैतिक जानकारों का कहना है कि बहुगुणा सरकार किसी भी मोर्चे पर अपने को यह साबित नहीं कर पाई है कि वह किसी भी अग्नि परिक्षा के लिए तैयार है। वहीं राज्य में बार-बार यह भी देखने में आया है कि कांग्रेस के नेताओं में आपसी समन्वय की कमी तो कई बार नजर आई, वहीं कांग्रेसी सदस्य आपसी द्वंद में फंसे नजर आए। वहीं हरीश रावत गुट गाहे-बगाहे मुख्यमंत्री पर हमला करता भी नजर आया। इतना ही नहीं विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने तो अपनी ही सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए जहां पर्वतीय क्षेत्रों के विकास का मुद्दा उठाया, वहीं उन्होंने पर्वतीय क्षेत्र में विकास की मद में आए धन को ठीक से खर्च न करने के आरोप भी लगाए। वहीं गैरसैंण राजधानी को लेकर भी कांग्रेसी सदस्यों में एकमतता नहीं दिखाई दी। कोई सदस्य गैरसैंण में राजधानी पर चिंता करते नजर आया तो किसी ने गैरसैंण में राजधानी को सबसे बड़ा झूठ करार दिया। वहीं मूल निवास प्रमाण पत्र को लेकर उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में जनता इसलिए आंदोलनरत है कि कांग्रेस सरकार ने राज्य में मूल निवासी होने की तारिख राज्य के अस्तित्व में आने के दिन को तय कर दिया, जबकि के राज्य के पर्वतीय व मैदानी क्षेत्रों में वर्षों से रह रहे लोगों का मानना है कि संविधान सम्मत 1950 को राज्य में स्थाई निवासी व मूल निवासी के लिए तय होना चाहिए। इसको लेकर राज्य की जनता आज भी आंदोलनरत है। वहीं प्रशासनिक पकड़ को लेकर भी राजनैतिक परिवेक्षक बहुगुणा सरकार को कमजोर मानती है। उनका कहना है कि राज्य में आए दिन कर्मचारियों की हड़ताल से आम जन परेशान हैं, लेकिन सरकार कि हीला-हवाली के चलते सरकार कर्मचारियों के मामलों को सुलझाने में नाकाम साबित हुई है, इनका मानना है इस हड़ताल से आम जन छोटे-छोटे प्रमाणपत्रों को बनवाने के चक्कर में अपने जूते घिसने को मजबूर हैं।
राजनैतिक जानकारों का कहना है कि आर्थिक संकट से जूझ रहे उत्तराखण्ड के नेताओं पर मुख्यमंत्री की कोई पकड़ नहीं है, आए दिन मंत्री और अधिकारी विदेशी दौरों पर फिजूल खर्ची कर सरकार को चूना लगाने पर लगे हैं। हद तो तब हो गई, जब राज्यवासी आपदा से कराह रहे थे और बहुगुणा मंत्रिमण्डल के सदस्य व विधायक लंदन की यात्रा पर रवाना हो रहे थे। इतना ही नहीं बीते दिनों में भी मुख्यमंत्री सहित कई मंत्री विदेशी सैर सपाटा कर चुके हैं और कुछ अब जाने की तैयारी में है। ऐसे में करोड़ों रूपया विदेशी यात्राओं पर खर्च करने के बाद राज्य को इन यात्राओं का कोई लाभ मिल भी पाएगा अथवा नहीं इसमें संदेह है। क्योंकि राज्य के अस्तित्व में आने से लकर आज तक जितने भी मंत्रियों और अधिकारियों ने विदेश यात्राएं की उनका कोई लाभ इस राज्य को मिला हो ऐसा तो कहीं भी नहीं लगता। वहीं विवादास्पद और चर्चित लोगों से घिरे रहने वाले मुख्यमंत्री से खांटी कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की दूरी भी राजनैतिक हलचल का कारण है। चर्चा है कि मुख्यमंत्री दरबार में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का स्थान बिचौलिऐ और दलाल किस्म के लोगों ने ले लिया है। ऐसे में इनके बीच कांग्रेसी कार्यकर्ता वहां जाना अपनी तौहीन समझता है।
2014 में देश में लोकसभा चुनाव होने हैं, सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार कांग्रेस की कोर कमेटी इस बात पर विचार कर रही है कि राज्य में अपनी सरकार होने के बावजूद मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा लोकसभा उपचुनाव न जिता पाए, वह भी अपने पुत्र को। क्यांेकि कांग्रेस आलाकमान का मानना है कि उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री ने उन्हें आश्वस्त किया था कि वे अपने पुत्र को लोकसभा टिकट मिलने की एवज में टिहरी लोकसभा के लिए होने वाले उपचुनाव में कांग्रेस की झोली में यह सीट देंगे। सूत्रों का कहना है कि बहुगुणा अपनी शर्त पर जब खरे नहीं उतर पाए, तो वे आगे राज्य की पांच लोकसभा सीटों को लेकर मुख्यमंत्री के आश्वासन पर भरोसा नहीं कर सकते। ऐसे में अब यह सवाल उठता है कि क्या लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस बहुगुणा को हटाकर किसी अन्य चेहरे पर लोकसभा चुनाव का दांव लगाएगी। वहीं यह सवाल भी लाख टके का है कि महंगाई व भ्रष्टाचार की मार झेल रही जनता कांग्रेस पर कितना विश्वास करेगी, यह तो आना वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन यह तय है कि राज्य में विजय बहुगुणा की राह अब उतनी आसान नहीं है, जितनी की वे समझ रहे हैं।
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