गुरुवार, 11 जुलाई 2013

विधान सभा की नाक के नीचे हुए अतिक्रमण की सच्चाई पर प्रश्न वाचक चिन्ह

विधान सभा की नाक के नीचे हुए अतिक्रमण की सच्चाई पर प्रश्न वाचक चिन्ह


नदी से नाले में तब्दील रिस्पना को किसी ने नहीं देखा
मनोज इष्टवाल
देहरादून, 9 जुलाई। दैवीय आपदा पर आजकल पूरे देश में राजनीति और चर्चाओं का बाज़ार गर्म है। उत्तराखंड की इस भीषण त्रासदी को देखते हुए सरकार अब नदी नालों के किनारे बसी बस्तियों पर अपना ध्यान केन्द्रित कर रही है, लेकिन ठेठ विधान सभा की नाक के नीचे नदी से गंदे नाले में तब्दील हुयी रिस्पना नदी को किसी ने नहीं देखा जिसकी वास विधान सभा में बैठे प्रदेश के नेताओं और थिंक टैंक के नथूनों तक पहुँचती है।
सन साठ के दशक में लगभग 300-250 मीटर चौडाई के साथ बहाने वाली इस नदी ने आज़ादी के साथ जहाँ धरातल में गुम होना शुरू कर दिया था वहीँ राज्य निर्माण के बाद इसके सीने में गैंती फावड़ों की मार ने इसे कहीं 50 मीटर तो कहीं 10 मीटर बना दिया है। आज रिस्पना नदी एक गंदे नाले के रूप में प्रदेश की विधान सभा के पिछले भाग से सढान्ध फैलाती सारे प्रदेश के राजनीतिज्ञों का मखौल उड़ा रही है। रिस्पना में सबसे ज्यादा कब्ज़ा भी इस क्षेत्र के एक बाहुबली कांग्रेसी विधायक ने किया है। उसनें अपने वकील भाई की मदद से राजीव नगर डांडा से लेकर सुसवा नदी तक कई किलोमीटर दायरे में सैकड़ों एकड़ नदी छोर की जमीन पर अवैध बस्ती का निर्माण करवाकर जान बूझकर एक ऐसा कोकस बनाया जिस से वह इन लोगों के बीच गरीबों का मसीहा बनकर रहे। उसने औने पौने दामों पर पूरी रिस्पना नदी के दोनों छोरों को बेचकर करोड़ों की कमाई की लेकिन मजाल क्या है कि किसी राजनेता ने चूं तक की हो।
पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के शासन काल में जब तिवारी चीन यात्रा से लौटकर आये थे तब उन्होंने रिस्पना नदी का कायाकल्प करने की बतौर घोषणा की थी और करोड़ों की लागत से इस नदी को पुनः नदी जैसा जीवन देकर इसे पर्यटन के रूप में विकसित कर नदी के उद्गम से लेकर सुसवा नदी में विसर्जन तक इसे स्वच्छ जल से आच्छादित करने व नदी के छोरों पर स्वीपिंग पुल बनाने की विधिवत घोषणा भी कर दी थी। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि नदी के दोनों छोरों पर एक ड्राइव वे बनेगा जिस से शहर का यातायात भी घटेगा और नदी का एक खूबसूरत तटबंध भी बन जाएगा। अपनी दबंगई के लिए मशहूर यह कांग्रेसी नेता तब विधायक भी नहीं हुआ करता था। इस घोषणा के तुरंत बाद उसने जाने क्या ऐसी बूटी सुंघाई कि पंडित नारायण दत्त तिवारी जैसा राजनीतिज्ञ भी इस प्रकरण पर चुप्पी साधे बैठ गए। तब से अब तक लगातार इस नदी का बेहिसाब दोहन होता रहा. एकछत्र रिस्पना नदी पर राज करने वाले इस कांग्रेसी विधायक ने वक्त-बेवक्त जब चाहा तब इस पर अतिक्रमण किया. राजीव नगर डांडा, लोअर राजीव नगर, दीप नगर, गोरखपुर जैसी बस्तियों में फर्जी पट्टों पर जमीन बिकती रही और आवाज़ उठाने वालों के मुंह में नोटों की गड्डी ठुन्सती रही. वर्तमान में आलम यह है कि आपदा का नाम आते ही नदी के आस-पास बसे घरों को खाली करा दिया जाता है। हरे पुल जिसकी लम्बाई अब मात्र 10-15 मीटर रह गयी है के पास लगभग सौ मीटर की दूरी पर बना शिव मंदिर 16 जून की बरसात में बह गया. कई लोग अपना घर छोड़कर अन्यत्र शरण लेने गए भले ही फिर लौट आये। लेकिन आज उनकी नींदे गायब हैं। सरकारी नुमाइंदे रिस्पना के इस अतिक्रमण को आँखे मूंदे देख रहे हैं लेकिन किसी की मजाल नहीं जो आवाज बुलंद कर सके। नदी से नाले में तब्दील हुई रिस्पना कभी अपने स्वच्छ जल के लिए जानी जाती थी आज मल की बदबू लिए बह रही रिस्पना के आंसू पोछने वाला कोई नहीं बचा है जिसे यह चिंता हो कि आखिर यह तरक्की किस काम की। यही हाल बिंदाल नदी, सुसवा नदी, तमसा (टपकेश्वर के पास से बहने वाली) नदियों का भी है, जिनके तटों पर आये दिन अतिक्रमण होता ही जा रहा है। अब जबकि नैनीताल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश बरीन घोष और न्यायमूर्ति सर्वेश कुमार गुप्ता की संयुक्त पीठ ने वर्ष 2008 में हाईकोर्ट में प्रस्तुत बिना बहुगुणा की जनहित याचिका पर यह फैसला दिया है कि ‘‘नदी की जमीनों पर बने भवनों को सरकार 60 दिन के भीतर ध्वस्त करे और इस तरह की जमीनों में किए गए आवंटनों को सरकार सात दिनों के भीतर ध्वस्त करे‘‘, ऐसे में सरकार के आगे सबसे बड़ी मुसीबत के रूप में कई सरकारी निदेशालय और बड़े-बड़े शिक्षण संस्थान बने हुए हैं। गौरतलब हो कि राज्य का विधानभवन सहित उत्तरांचल टैक्नीकल यूनिवर्सिटी, जेल लॉ कॉलेज आदि कई अन्य निदेशालय जो कि करोड़ों रूपये की लागत के भवन हैं या तो नदी-नालों के बहाव क्षेत्र की भूमि में स्थित हैं अथवा इनके तटों पर। वहीं हरिद्वार और ऋषिकेश जैसी तीर्थनगरियों में गंगा तट पर साधु-संतों ने सबसे ज्यादा कब्जा जमाया हुआ है। ऐसे में क्या सरकार नैनीताल उच्च न्यायालय के आदेशों का यथावत अनुपालन कर पाएगी या यह अनुपालन फिर गरीबों पर कहर बनकर बरपेगा, क्योंकि इन सरकारी भवनों के अलावा समस्त राजधानी की नदियों के दोनों छोरों पर सफेदपोशों, भूमाफियाओं और एमडीडीए के भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से हजारों की संख्या में आवास निर्मित हैं, जिन्हें ध्वस्त करना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना जैसा है। यदि नैनीताल उच्च न्यायालय का निर्देश मानकर इन बस्तियों पर डोजर चलते हैं, तब कांग्रेस को मिलने वाला उनका एक बहुत बड़ा वोट बैंक उन्हीं के खिलाफ खड़ा हो जाएगा।
डर है कि आगामी समय में यदि पहाड़ में बादल फट गया तब कहीं शांत चित रिस्पना नदी और शहर की अन्य नदियों ने भी ने भी अगर मन्दाकिनी की तरह रौद्र रूप ले लिए तो देहरादून में इन नदियों के तटों पर अवैध पट्टों की ये अवैध बस्तियां कहीं स्वाहा न हो जाएँ. और प्रदेश में एक और ऐसी ही त्रासदी को जन्म न दे दें।

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