बुधवार, 4 सितंबर 2013

आसुमल से संत आसाराम बनने तक का सफ़र

आसुमल से संत आसाराम बनने तक का सफ़र




यौन शोषण से लेकर जमीन के अतिक्रमण तक के आरोपों से घिरे आसाराम का असली चेहरा क्या है? जवाब तलाशना शुरू किया तो सामने आया आसुमल का अतीत। आसुमल ने चाय की दुकान चलाने से लेकर दूध की दुकान तक पर नौकरी की। आसाराम के इस अतीत को जानने वालों के मुताबिक आसुमल और आसाराम में एक समानता भी है। आसाराम भी संगीन आरोपों से घिरे हैं और आसुमल पर भी कई संगीन आरोप लगे थे। 17 अप्रैल 1942 को बरानी गांव, नवाबशाह (आज का पाकिस्तान) में पेशे से व्यापारी थिउमल सिरुमलानी और मेंहगी बा के घर एक बच्चे का जन्म हुआ। मां-बाप ने बेटे का नाम रखा आसुमल। आसुमल का थोड़ा ही वक्त पाकिस्तान में बीता। बंटवारे के वक्त उजड़ने वाले लाखों परिवारों में थिउमल का परिवार भी था। बेटे आसुमल को लेकर ये परिवार अहमदाबाद के पास मणिनगर आ बसा, लेकिन थिउमल परिवार का साथ लंबे वक्त तक नहीं दे सके और चल बसे। थिउमल के देहांत के बाद बचपन में ही परिवार की जिम्मेदारी आसुमल के कंधे पर आ गई। आसुमल मेहसाणा के वीजापुर चले आए जो उस वक्त बृहद मुंबई हुआ करता था। गुजरात भी इसी राज्य का हिस्सा था।  । बात 1958-59 की है लेकिन मजिस्ट्रेट दफ्तर के बाहर एक चाय की दुकान आज भी है। आसुमल को जानने वालों का कहना है कि कभी इसी दुकान पर आसुमल बैठा करता था। ये दुकान आसुमल के रिश्तेदार सेवक राम की थी।
   जानने वाले कहते हैं कि आसुमल ने लंबे वक्त तक चाय की दुकान चलाई। वो उसी वक्त लंबी दाढ़ी रखने लगे थे। रिटायर हो चुके होमगार्ड जवान रसिक भाई उस दौर को नहीं भूले हैं। दरअसल, रसिक भाई भी उसी मजिस्ट्रेट दफ्तर के बाहर होमगार्ड के तौर पर तैनात हुआ करते थे, जहां वो दुकान है जिसे आसुमल की बताया जाता है। अतीत जानने वालों का यकीन करें तो आसाराम का विवादों से नाता पुराना है। स्थानीय लोगों के मुताबिक 1959 में आसुमल और उसके रिश्तेदारों पर शराब के नशे में हत्या का आरोप भी लगा। लेकिन सबूत न मिलने की वजह से आसुमल बरी हो गए। रसिक भाई कहते हैं कि उस दिन उन्होंने खूब शराब पी थी। कुछ लोगों से उनका झगड़ा हुआ तो धारदार हथियार से एक शख्स को मार दिया। कहते हैं हत्या के आरोप से बरी होने के बाद आसुमल ने वीजापुर छोड़ दिया और अहमदाबाद के सरदारनगर इलाके में आ बसे। वो 60 का दशक था। यहां भी आसाराम को जानने का दावा करने वालों ने आसुमल के अतीत के बारे में हैरान करने वाली बातें ही बताईं। काडूजी ठाकोर का दावा है कि कभी वो और आसुमल दोस्त हुआ करते थे। काडूजी का कहना है कि आसुमल तब शराब का धंधा करते थे। इस धंधे में आसुमल के चार साझीदार भी थे। नाम था जमरमल, नाथूमल, लचरानी और किशन मल। काडूजी के मुताबिक ये सभी उनकी दुकान से ही शराब खरीदते थे, जिसे बाजार में बेचकर आसुमल मोटा मुनाफा कमाते थे।
    काडूजी का कहना है कि वो आसुमल के इस अतीत को भूल नहीं सकते। आसुमल सफेद बनियान और नीली निकर पहनकर उनकी दुकान में शराब लेने आते थे। शराब का पूरा गैलन अकेले कंधे पर लादकर ले जाते थे। उन्हें जानने वालों के मुताबिक तीन-चार साल तक शराब का धंधा करने के बाद आसुमल ने ये काम छोड़ दिया। आसुमल एक दूध की दुकान पर महज तीन सौ रुपये में नौकरी करने लगा लेकिन कुछ वक्त बाद आसुमल गायब हो गया। इसके कई साल बाद दुनिया के सामने आसुमल नहीं आसाराम आए। वो आसाराम जो प्रवचन देते हैं, जो भक्तों की नजर में आध्यात्मिक गुरु हैं। सवाल ये कि आसुमल एक आम शहरी से आध्यात्मिक गुरु आसाराम कैसे बन गया? ये कहानी शुरू होती है सत्तर के दशक में। कहते हैं आध्यात्म की तरफ मुड़ने से पहले आसुमल ने कई तरह के धंधों में हाथ आजमाया। लेकिन सवाल ये भी है कि आखिर आसुमल ने आध्यात्म की तरफ मुड़ने का फैसला क्यों किया। दरअसल, आसुमल की मां आध्यात्मिक प्रवृत्ति की थीं। कहते हैं मां का प्रभाव ही उन्हें आध्यात्म की तरफ खींच ले गया। आसुमल पहले कुछ तांत्रिकों के संपर्क में आए। उन तांत्रिकों से आसुमल ने सम्मोहन की कला भी सीखी। वो प्रवचन भी देने लगे लेकिन तब तक वो इस कला में पूरी तरह माहिर नहीं हुए थे। अब उनकी दौड़ अध्यात्म की ओर थी। वे इस लाइन में खुद को सहज पा रहे थे। इस दौड़ ने उन्हें बापूजी की उपमा दे दी। आसुमल को आध्यात्म की तरफ मुड़ता देखकर उनके परिवार को चिंता हुई। आसुमल की शादी तय कर दी गई। आसाराम की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक शादी से बचने के लिए आसुमल घर से भाग गए। परिवारवालों को आठ दिन बाद वो भरूच के एक आश्रम में मिले। आखिरकार परिवार के सामने आसुमल को झुकना पड़ा। लक्ष्मी देवी से उनकी शादी हो गई। मगर, आध्यात्म में आसुमल की दिलचस्पी कम नहीं हुई। आसुमल को गुरु की तलाश थी। कहते हैं ये तलाश पूरी हुई गुजरात के बनासकांठा जिले में। आसुमल को लीला शाह बापू के रूप में गुरु मिल गए। आसुमल का अतीत जानने वालों के मुताबिक वो लीलाशाह बापू के पास कुछ वक्त तक रहे। यहीं उनका नाम आसुमल से बदलकर आसाराम हो गया। एक नए नाम और नई पहचान के साथ आखिरकार आसाराम अहमदाबाद के मोटेरा आ गए। साबरमती नदी किनारे आसाराम ने कच्चा आश्रम बनाया। धीरे-धीरे अपने प्रवचनों से आसाराम लोकप्रिय होने लगे। उनके साथ भक्तों का हुजूम जुड़ने लगा। फिर वो दौर भी आया जब आसाराम टेलीविजन पर भी नजर आने लगे। टेलीविजन पर आने वाले उनके प्रवचन लोकप्रिय होने लगे। देश भर में भक्तों की तादाद बढ़ने लगी। देश भर में फैले आश्रमों की तादाद भी चार सौ तक पहुंच गई। आसाराम देश के बड़े आध्यात्मिक गुरुओं की जमात में शामिल हो गए।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें