बुधवार, 30 अप्रैल 2014

जनहित याचिका के बाद बढ़ी केवल खुराना की मुश्किलें

शंका: खुराना के राजनीतिक संबंधों के चलते  क्या वर्तमान डीजीपी उठा पायेंगे कठोर कदम !

संवाददाता
keval-khurana-sspदेहरादूनबहुगुणा सरकार में सत्ता की मलाई चाटने और बहुगुणा के पुत्र साकेत के साझीदार के रूप में चर्चित देहरादून के कप्तान रहे केवल खुराना इन दिनों एक बार फिर चर्चाओं में हैं। इससे पहले वे बहुणुणा सरकार के दौरान चर्चाओं में थे और उससे पहले वे टिहरी में हुए दरोगा भर्ती मामले में चर्चाओं में रहे थे। चर्चाओं में रहने में माहिर केवल खुराना सबसे ज्यादा तब चर्चाओं मे ंरहे जब राजधानी क्षेत्र का जिला पुलिस कार्यालय भू-मफियाओं की शरणस्थली के रूप में खासे चर्चा में रहा था। इस दौरान राजधानी क्षेत्र के तमाम भूमि विवाद न्यायालयों में निपटाये जाने के बजाय एस.एस.पी आवास व थानाकोतवालियों में सुलझाये अथवा उलझाये जाते थे। अब एक बार फिर केवल खुराना चर्चाओं में हैं इस बार वे उत्तराखण्ड में हुए टिहरी दरोगा भर्ती घोटाले को लेकर चर्चाओं में हैं वह भी तब जब यह मामला उच्च न्यायालय में गूंजा तो शासन व पुलिस मुख्यालय के होश फाख्ता हो गए कि दरोगा भर्ती घोटाले में नियमों को ताक पर रख पूर्व डीजीपी द्वारा आईपीएस केवल खुराना को सिर्फ चेतावनी देकर फाईल का बंद कर दिया गया था। अब न्यायालय ने सरकार से जब जवाब तलब कर शपथ पत्र दाखिल करने का हुक्म दिया तो शासन व पुलिस मुख्यालय में हलचल मच गई और राज्य के डीजीपी ने उत्तराखण्ड गृह सचिव को पत्र लिखा तथा कहा कि जेपी बड़ोनी बनाम राज्य व अन्य के संबंध में प्रकरण पर प्रतिशपथ पत्र तैयार करते समय संज्ञान में आया की प्रकरण में कतिपय त्रुटि हो गई है और चेतावनी का आदेश नियमानुसार नहीं है।
  पुलिस मुख्यालय की ओर से शासन से अनुरोध किया गया है कि आईपीएस केवल खुराना के विरूद्ध आॅल इंडिया सर्विसिस डिसिपलिन रूल 1969 के नियम 6 के अंतर्गत कार्रवाई करें। पुलिस मुख्यालय ने न्यायालय में भी इस शपथ पत्र को दाखिल किया है। जिससे अब आईपीएस केवल खुराना पर गाज गिरने की आशंकाएं काफी प्रबल होती नजर आ रही है। जिस तरह से केवल खुराना के दो साल तक मौज लेने के बाद अब तीन साल बाद दरोगा भर्ती घोटाले का जिन्न बोतल से एक बार फिर बाहर आ गया है, उससे पुलिस के कई बड़े अधिकारियों में हलचल मची हुई है और अब सबकी नजर सरकार पर जा टिकी है कि वह इस मामले में आगे क्या कार्रवाई करने का मन बनाएगी।
     गौरतलब है कि 23 जनवरी 2011 को संपन्न हुई उपनिरीक्षक रैंकर परीक्षा के दौरान परीक्षा केन्द्र जनपद टिहरी गढ़वाल में कतिपय अभियर्थियों द्वारा अनुचित संसाधनों का प्रयोग करने विषयक जांच पुलिस मुख्यालय द्वारा सीबीसीआईडी को सौंपी गई थी। सूत्रों का कहना है कि अपर पुलिस महानिदेशक अपराध अनुसंधान विभाग, उत्तराखण्ड ने अपने पत्र संख्या सीबी-12/2011 दिनांक 7 फरवरी 2012 के द्वारा उक्त प्रकरण से संबंधित सीबीसीआईडी की अंतिम प्रगति आख्या संख्या सीबी-12/2011 दिनांक 16 जून 2011 को पुलिस मुख्यालय को उपलब्ध कराई गई थी। जिसमे आईपीएस केवल खुराना, तत्कालीन पुलिस अधीक्षक टिहरी गढ़वाल के विरूद्ध आॅल इंडिया सर्विसिस डिसिपलिन रूलस 1969 के नियम 6 के अंतर्गत कार्रवाई की संस्तुति की गई थी।
  सूत्रों का कहना है कि तत्कालीन पुलिस महानिदेशक द्वारा केवल खुराना से उक्त संबंध में स्पष्टीकरण प्राप्त कर उन्हें गुणदोष के आधार पर    चेतावनी प्रदान करने का निर्णय लिया गया था। जिसके क्रम में तत्कालीन अपर पुलिस महानिदेशक, प्रशासन ने पत्र संख्या डीजी-1-56-2012(1) दिनांक 28 सितंबर 2012 को केवल खुराना को चेतावनी प्रदान की गई थी। बताया जा रहा है कि जिसकी प्रति तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक, मुख्यालय ने 30 अक्टूबर 2012 के द्वारा शासन को प्रेषित की थी।


जेपी बड़ोनी ने नैनीताल उच्च न्यायालय में टिहरी दरोगा भर्ती घोटाले प्रकरण में की थी  जनहित याचिका दायर 
    
 lettergovt उल्लेखनीय है कि जेपी बड़ोनी नामक एक व्यक्ति ने नैनीताल उच्च न्यायालय में टिहरी दरोगा भर्ती घोटाले प्रकरण में जनहित याचिका दायर की थी। इस मामले में न्यायालय ने राज्य सरकार से जब इस मामले के बारे में शपथ पत्र मांगा तो 2 अप्रैल 2014 को उत्तराखण्ड के डीजीपी बी0एस0 सिद्धू ने गृह सचिव को एक पत्र लिखा जिसमे कहा गया है कि इस प्रकरण पर प्रतिशपथ तैयार करते समय संज्ञान में आया कि प्रकरण में कतिपय त्रुटी रह गई है और पूर्व डीजीपी द्वारा दे गई चेतावनी नियमानुसार नहीं है। पत्र में कहा गया है कि 28 मार्च 2014 को प्रकरण में समय विचारोंपरांत यह निर्णय लिया गया की सीबीसीआईडी की अंतिम प्रगति आख्या को अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी होने के कारण नियम 1969 के नियम 6 के अंतर्गत कार्रवाई हेतु शासन को प्रेषित किया जाए। डीजीपी द्वारा गृह विभाग को लिखे पत्र में साफ तौर पर कहा गया है कि आईपीएस केवल खुराना के विरूद्ध नियम 6 के अंतर्गत कार्रवाई की जाए। डीजीपी द्वारा शासन को लिखे गए पत्र व उच्च न्यायालय में दाखिल किए गए शपथ पत्र से यह आभास हो रहा है कि आईपीएस केवल खुराना के खिलाफ सरकार कोई सख्त कदम भी उठा सकती है।
    
पुलिस महकमे के अंदर दो बार हुआ दरोगा भर्ती घोटाला लेकिन किसी बड़े अधिकारी पर नहीं गिरी इन घोटालों की गाज

  उत्तराखण्ड में 13 सालों से सरकारें भ्रष्टाचार व घोटालों को लेकर प्रदेश में भाजपा व कांग्रेस सरकारें एक दूसरे के खिलाफ चुनावी जंग जीतती आई है लेकिन आज तक किसी भी बड़े अधिकारी के खिलाफ किसी भी सरकार ने कोई कार्रवाई करने का दम नहीं दिखाया। कितनी अजीब बात है कि इन 13 सालों में पुलिस महकमे के अंदर दो बार दरोगा भर्ती घोटाला हो गया लेकिन किसी बड़े अधिकारी पर इन घोटालों की गाज नहीं गिरी। तीन साल पूर्व टिहरी में हुए दरोगा रैंकर भर्ती घोटाले की सीबीसीआईडी ने जांच की तो उसमे वहां के तत्कालीन पुलिस कप्तान का इस घोटाले में नाम सामने आ गया और सीबीसीआईडी ने आईपीएस के खिलाफ मेजर पेनल्टी देने के लिए डीजीपी के पास फाईल भेजी थी लेकिन तत्कालीन डीजीपी विजय राघव पंत ने अपने आपको शासन से बड़ा साबित करने के लिए दरोगा भर्ती घोटाले में फंसे आईपीएस केवल खुराना की फाईल को शासन के पास न भेजकर खुद ही उन्हें नोटिस जारी कर उनका जवाब लेने के बाद फाईल पर चेतावनी की टिप्पणी लिखकर उसे सीन कर दिया था। हालांकि अब न्यायालय में मामला गूंजने पर तत्कालीन डीजीपी द्वारा आईपीएस केवल खुराना को नियमों के विरूद्ध जाकर उसे क्लीन चिट देने की गूंज अब न्यायालय व शासन तक भी पंहुच चुकी है। 24 दिन पूर्व केवल खुराना के खिलाफ कार्रवाई किए जाने को लेकर पुलिस मुख्यालय ने शासन को पत्र लिखा था लेकिन सरकार ने घोटाले में शामिल केवल खुराना के खिलाफ कोई कार्रवाई करने की आज तक पहल नहीं की। जिससे सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े हो रहे है कि एक ओर तो सरकार के निजाम दावा कर रहे है कि राज्य में भ्रष्टाचार व घोटाले करने वालों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा। वहीं राज्य के तत्कालीन डीजीपी व केवल खुराना द्वारा दरोगा भर्ती घोटाले में किए गए खेल पर भी अब तक सरकार क्यों खामोश है, यह सवाल अब राज्य के गलियारों में भी तेजी के साथ गूंजने लगा।

पुलिस मुख्यालय एक बार फिर चर्चाओं में   


 उत्तराखण्ड का पुलिस मुख्यालय एक बार फिर चर्चाओं में है। इस बार पूर्व डीजीपी विजय राघव पंत की कार्यशैली पर सवाल उठे हैं तथा यह बात उभर कर सामने आ रही है कि जिस मामले में डीजीपी को नोटिस जारी करने का अधिकार ही नहीं था तो उन्होंने कैसे इस मामले में शासन को गुमराह करते हुए आईपीएस केवल खुराना को दरोगा रैंकर भर्ती घोटाले में अपने स्तर से ही चेतावनी देकर उन्हें क्लीन चिट दे डाली थी। सवाल तैर रहे हैं कि अगर यह मामला न्यायालय में न पंहुचता तो यह तय था कि दरोगा रैंकर भर्ती घोटाला हमेशा के लिए फाईल में ही दफन होकर रह जाता। अब देखना है कि सरकार पूर्व डीजीपी के खिलाफ क्या कार्रवाई करने का निर्णय लेती है और सीबीसीआईडी की जांच रिपोर्ट के आधर पर सरकार केवल खुराना के खिलाफ क्या और कब तक एक्शन लेने के लिए आगे आएगी।
  
सन् 2011 में हुआ था टिहरी दरोगा रैंकर भर्ती घोटाला, पूर्व डीजीपी विजय राघव पंत की संदिग्ध भूमिका पर उठे सवाल 
 
    सन् 2011 में टिहरी दरोगा रैंकर भर्ती घोटाला हुआ था। उस समय के डीजीपी ज्योति स्वरूप पांडे ने मामले की जांच सीबीसीआईडी को सौंप दी थी। सीबीसीआईडी ने अपनी जांच में केवल खुराना को दरोगा भर्ती घोटाले का दोषी पाया और उन्होंने खुराना के खिलाफ शासन को मेजर पेनल्टी देने के लिए संस्तुति की थी। हालांकि पूर्व डीजीपी विजय राघव पंत ने अपने आपको शासन से बड़ा साबित करने के लिए सीबीसीआईडी द्वारा केवल खुराना के खिलाफ कार्रवाई के लिए की गई संस्तुति वाली फाईल को अपने पास रख लिया था और उन्होंने सारे नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए अपने स्तर से ही केवल खुराना को नोटिस जारी किया और केवल खुराना का जवाब लेने के बाद उनकी फाईल पर चेतावनी की टिप्पणी लिखकर उसे सीन कर दिया था।  फाईल को देख लेेने के बाद विजय राघव पंत ने जिस तरह से केवल खुराना को बचाने का खेल खेला उससे अब यह सवाल खड़े होने लगे है कि आखिरकार किस उद्देश्य से खुराना को दरोगा भर्ती घोटाले में बचाने के लिए विजय राघव पंत ने शासन को गुमराह किया था। अब सवाल उठ रहे है कि क्या सरकार विजय राघव पंत के खिलाफ भी कोई सख्त कदम उठाने की पहल करेगी या उन्हें वह अभयदान दे देगी।  हालांकि पुलिस मुख्यालय ने 24 दिन पूर्व खुराना के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए शासन को पत्र भेजा था लेकिन आज तक इस मामले में सरकार की खामोशी से कई सवाल खड़े होने शुरू हो गए है।

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