मंगलवार, 4 नवंबर 2014

गढ़वाल मण्डल विकास निगम में पर्यावरण अध्ययन के नाम पर करोड़ों का वित्तीय घोटाला

एक ही प्रकृति के दो कार्यों के लिए अलग -अलग दरें वह भी करोड़ों में 

राजेन्द्र जोशी
  उत्तराखंड ही शायद देश का एक मात्र ऐसा राज्य होगा जहाँ राज्य सरकारों के विभागों में तालमेल की भारी कमी है वह भी एक जैसे प्रकृति के कार्यों पर जहाँ एक विभाग करोड़ों खर्च करता है तो उसकी काम के लिए दूसरा विभाग भी उस पर करोड़ों उड़ा डालता है जबकि यदि इनमे आपसी तालमेल होता तो एक ही विभाग के पैसे से दोनों का काम चल सकता था लेकिन मितव्यता ही और किसी का ध्यान नहीं गया.
उल्लेखनीय है कि विभिन्न सरकारी एजेंसियो द्वारा नदी तल उपखनिज लाटों के पर्यावरणीय स्वीकृतिया प्राप्त होने के उपरांत  खनन शुरू कराया गया है । नियमों के अनुसार प्रत्येक छः माह की कमप्लायन्स  रिपोर्ट तैयार कर पर्यावरण के संबन्धित कार्यालयों को भेजनी पड़ती है।
  एक जानकारी के अनुसार विगत वर्ष 2013  वन विकास निगम ने अपने स्वीकृत 18 खनन लाटों के लिए कमप्लायन्स  रिपोर्ट तैयार करने हेतु कंसल्टेंट का चयन करने हेतु टेंडर प्रक्रिया अपनाते हुए मैसर्स ज़ी आर सी (रि एंड क्री) प्रा॰ लि॰ नोएडा का चयन किया था जिसे  विभिन्न जिलों  में  स्थित 18 खनन लाटों  के  कमप्लायन्स  रिपोर्ट तैयार करने के लिए डेढ़ लाख रुपये प्रति लाट प्रति वर्ष  की दर से  तीन वर्षों के लिए लगभग 81 लाख में ठेका दे दिया गया।
 वहीँ वर्ष 2014 में सरकार की ही दूसरी एजेंसी गढ़वाल मण्डल विकास निगम द्वारा भी समान कार्य के लिए अपने स्वीकृत 102 लाटों के लिए कमप्लायन्स  रिपोर्ट तैयार करने हेतु कंसल्टेंट का चयन करने हेतु  शॉर्ट टर्म टेंडर प्रक्रिया अपनायी  जिसमे तीन कंपनियो ने भाग लिया. इस टेंडर प्रक्रिया में दो कंपनियो के निविदाओं में न तो टेंडर फीस थी और न ही धरोहर राशि जमा की गयी थी अतः दोनों कंपनियों के टेंडर प्रथम चरण में ही निरस्त हो गए थे मात्र एक टेंडर  से ही सारी प्रक्रिया सम्पन्न कर ली गयी और  मै॰ ज़ी आर सी (रि एव क्री) प्रा॰ लि॰ नोएडा का चयन किया गया  जिसे  पाँच हेक्टेयर  से कम के लाटों के लिए 2.40 लाख रुपये प्रति वर्ष व पाँच हेक्टेयर से पचास हेक्टयर तक के लाटों के लिए 3.04 लाख रुपये वर्ष एवं पचास हेक्टेयर से अधिक  के लाटों के लिए 3.40 लाख रुपये प्रति वर्ष  की दर से पाँच वर्षों के लिए लगभग 15.0 करोड़ रुपये  में कांट्रैक्ट किया गया।
 इन निविदाओं के बाद यह बात आमने आई कि एक ही प्रकृति के कार्यों के लिए आमंत्रित निविदाओ में आखिर निविदा दरों में इतना बड़ा अन्तर कैसे हो गया जबकि यह कार्य गढ़वाल मण्डल विकास निगम यदि वन विकास निगम  की दरों के हिसाब से मात्र रु 1.53 करोड़ रुपये वर्ष की दर से  पाँच वर्ष के लिए मात्र 7.65 करोड़ रूपए में करा सकता था। इससे यह साफ़ है कि  इस कार्य में लगभग 7.35 करोड़ का घोटाला किया गया है।
 वहीँ सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब सामान प्रकृति के कार्य जब वन विकास निगम व गढ़वाल मंडल विकास निगम द्वारा करवाए जा रहे थे तो गढ़वाल मंडल विकास निगम ने वन निगम की दरों का संज्ञान क्यों नही लिया जबकि यदि संज्ञान लिया जाता तो करोड़ों रुपये बचाए जा सकते थे. यहाँ सबसे चौकांने वाली बात तो यह है कि वन विकास निगम के लाटों का क्षेत्रफल गढ़वाल मण्डल विकास निगम के लाटों के क्षेत्रफल से बहुत अधिक है फिर भी वन विकास निगम  कि दरें कम है जबकि गढ़वाल मण्डल विकास निगम दरें अविश्वसनीय रूप से दुगनी या उससे भी अधिक है इससे यह साफ़ है कि इस प्रक्रिया में बड़ा घोटाला किया गया है वह भी जानबूझकर. इतना ही नहीं यह बात भी समझ से परे है जब एक ही प्रकृति के कार्य एक की निविदादाता से करवाया गया तो फिर भी समान कार्य के लिए दरों में इतना भारी अंतर क्यों ? इसका गढ़वाल मण्डल विकास निगम के पास कोई जवाब नही है.
 मामले में घोटाले की बू तब साफ़ आती है जब गढ़वाल मण्डल विकास निगम द्वारा अपनायी गयी टेंडर प्रक्रिया में जब दो कंपनियों के टेंडर प्रथम चरण में ही निरस्त हो गए थे तो केवल एक टेंडर को खोलने के बजाय टेंडर प्रक्रिया निरस्त क्यों नहीं कि गयी. इसमी यह शंका भी साफ़ है कि कहीं ऐसा तो नहीं था कि निविदा में शामिल अन्य दो कंपनीयों को केवल दिखावे के लिए अथवा कागजी खानापूर्ति के लिए तो नहीं रखा गया था क्योंकि यह कैसे संभव है कि कोई कंपनी टेंडर प्रक्रिया में भाग ले और  धरोहर राशि  और यहाँ तक कि टेंडर फीस  तक जमा करना भूल जाए। इस निविदा प्रक्रिया में भाग लेने वाले संस्थान की निविदा दरें एक विभगा के लिए कुछ और, और दूसरे विभाग के लिए कुछ और यानि गढ़वाल मण्डल विकास निगम में निविदा के बाद स्वीकृत दरें ही सारी कहानी खुद बयान कर रही है कि मामले में कोई बड़ा घोटाला हुआ है। इस सारी प्रक्रिया के बाद अब मांग उठने लगी है कि सरकार इस सम्पूर्ण निविदा प्रक्रिया को निरस्त कर घोटाले की उच्च स्तरीय जांच करे तथा दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही करे।

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