मंगलवार, 4 नवंबर 2014

रॉबर्ट वाड्रा के ज़मीन सौदे की पूरी कहानी

नई दिल्ली: चेहरे पर रोबीली मूँछें, आंखों पर चश्मा और तनी हुई मांसपेशियों वाला गठीला बदन. ये चेहरा कभी कभार ही मीडिया के कैमरों पर चमकता है लेकिन इसका शुमार देश की मशहूर और रसूखदार शख्सियतों के बीच होता है क्योकि ये हैं देश के सबसे ताक़तवर राजनीतिक घराने गांधी परिवार के दामाद हैं रॉबर्ट वाड्रा. सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी के बाद गांधी परिवार के चौथे स्तंभ माने जाते हैं रॉबर्ट वाड्रा. इसीलिए रॉबर्ट वाड्रा पर भी इल्जामों के तीर बरसते रहे हैं. रॉबर्ट वाड्रा हरियाणा में जमीन के सौदों को लेकर विवादों में रहे हैं उन पर हेराफेरी और चार सौ बीसी के भी संगीन इल्जाम लगते रहे हैं. और इन्हीं इल्जामों को लेकर जब शनिवार रात उनसे सवाल पूछा गया तो कुछ इस तरह गुस्से से उबल पड़े कि उन्होंने रिपोर्टर के माइक पर को झटक दिया.
   व्यक्ति विशेष में आज हम आपको बताएंगे आखिर क्यों और किस बात पर आ रहा है रॉबर्ट वाड्रा को इतना गुस्सा. साथ ही पड़ताल इस बात की भी करेंगे कि दिल्ली और हरियाणा में बीजेपी की सरकार बनने के बाद क्या अब जेल जाएंगे सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा.
   शनिवार रात को दिल्ली के अशोक होटल में जैसे ही सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा से रिपोर्टर ने सवाल पूछा तो उन्होंने गुस्से से भर कर रिपोर्टर के माइक को झटक दिया. रॉबर्ट वाड्रा यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने रिपोर्टर पर जी भर कर भड़ास निकाली और उसे अपशब्द भी कहे. वीडियो में साफ नजर आ रहा है कि पहले तो रॉबर्ट वाड्रा रिपोर्टर के सवालों का जवाब बडे ही इत्मिनान से देते रहे लेकिन जब रिपोर्टर ने उनके हरियाणा में जमीन सौदे से जुड़ा सवाल पूछा तो रॉबर्ट वाड्रा को जैसे करंट मार गया और उन्होंने तैश में आकर रिपोर्टर का माइक झटक दिया, फुटेज डिलीट कराने को कहा और रिपोर्टर की जमकर लानत मलामत कर डाली.
दरअसल हरियाणा में जमीन के सौदे को लेकर प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा विवादों में रहे हैं. इसको लेकर बीजेपी लगातार चुनावों में गांधी परिवार को घेरती रही हैं. लेकिन शनिवार रात वाड्रा ने मीडिया के साथ जो सलूक किया उससे वो एक बार फिर सुर्खियों में आ गए हैं.

नई सरकार आने के बाद मुश्किल

सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा पर एक बार फिर राजनीति गर्म है. दरअसल जमीन सौदों को लेकर रॉबर्ट वाड्रा इसलिए भी परेशान चल रहे हैं क्योंकि हरियाणा में नई बीजेपी सरकार ने वाड्रा के जमीन सौदों की जांच कराने की बात कही है. जमीन सौदों पर सीएजी की वो ड्राफ्ट रिपोर्ट भी रॉबर्ट वाड्रा की मुश्किल बढ़ा सकती है जिस रिपोर्ट पर टाइम्स ऑफ इंडिया ने खबर छापी है. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, सीएजी ने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में कहा है कि वाड्रा की स्काईलाइड हॉस्पिटिलिटी प्राइवेट लिमिटेड को कमर्शियल कॉलोनी डेवलप करने की इजाजत तब दी गई जब उसके पास सिर्फ एक लाख रुपये थे. हरियाणा के टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग ने कंपनी की वित्तीय क्षमताओं की अनदेखी की. वाड्रा की कंपनी गुड़गांव के शिकोहपुर में कॉलोनी बनाने वाली थी.

खेमका का खेल
  वाड्रा की कंपनी ने डीएलएफ को 58 करोड़ में जमीन बेचकर खुद 43 करोड़ 66 लाख का मुनाफा कमाया. हरियाणा सरकार औऱ वाड्रा की कंपनी स्काईलाइट के बीच जो समझौता हुआ था उसके मुताबिक क़ॉलोनी बनाने के बाद कंपनी को सिर्फ 2 करोड़ 15 लाख रुपये रखने थे. बाकी रकम सरकारी खजाने में जानी चाहिए थी. वाड्रा की कंपनी ने शिकोहपुर में जमीन खरीदने में साढ़े सात लाख रुपये और लाइसेंस फीस जैसे मद में 6 करोड़ 84 लाख रुपये खर्च किए. सीएजी का मानना है कि हरियाणा सरकार को वाड्रा की कंपनी से 41 करोड़ 50 लाख रुपये वसूल करने चाहिए थे.
सीएजी ने उसी जमीन सौदे की जांच की है जिसके म्युटेशन हरियाणा के आईएएस अफसर अशोक खेमका ने रद्द कर दिया था.
सीएजी ने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट 22 सितंबर को हरियाणा की कांग्रेस सरकार को भेज दी थी तब मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा थे लेकिन अब बीजेपी सरकार को सीएजी की ड्राफ्ट रिपोर्ट पर अपनी राय देनी है. हरियाणा के सीएम अब सीएम मनोहर लाल खट्टर हैं जो वाड्रा जमीन सौदे की जांच की बात पहले ही कह चुके हैं.



सीएजी रिपोर्ट के बाद मुश्किल
रॉबर्ट वाड्रा के जमीन सौदे पर सीएजी की ड्राफ्ट रिपोर्ट की इस नई कहानी के बाद अब बात उन आरोपों की जो चुनावी सभाओं में रॉबर्ट वाड्रा के बहाने विरोधी दल नेहरु - गांधी परिवार पर लगाते रहे है.
दरअसल रॉबर्ट वाड्रा पर हरियाणा में जमीन सौदों को लेकर दस्तावेजों में हेराफेरी के आरोप लगते रहे हैं. मशहूर रियलटी कंपनी डीएलएफ के साथ जमीन विवाद को लेकर भी वाड्रा पर आरोप लगे हैं और इन्हीं इल्जामों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चुनावी रैलियों में रॉबर्ट वाड्रा पर निशाना साधते रहे हैं लेकिन वाड्रा पर इल्जामों की बौछार सबसे पहले आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने की थी.
केजरीवाल का कहना है, पहले तो 65 करोड़ दे दिए. औऱ फिर कहा कि इन 65 करोड़ से तुम हमारी प्रापर्टी खरीद लो. औऱ वो अपनी प्रापर्टी उन्होंने इतने सस्ते में दे दी कि पांच करोड में 35 करोड़ की प्रापर्टी दे दी. तो इसमें डीएलएफ को क्या फायदा हुआ डीएलएफ ने ऐसा क्या किया रॉबर्ट वाड्रा ने डीएलएफ को क्या फायदा पहुंचाया ये कई सारे प्रश्न हैं.



वाड्रा का बिजनेस

राजनीति से दूर और बिजनेस में मशगूल रहने वाले रॉबर्ट वाड्रा ने साल 2007 और 2008 में पचास लाख की पूंजी से पांच कंपनियां शुरु की. और रीयल एस्टेट के धंधे में उतर गए थे लेकिन अरविंद केजरीवाल ने स्काई लाइट हास्पिटालिटी प्राइवेट लिमिटेड समेत रॉबर्ट वाड्रा की पांच कंपनियों के बही खातों पर सवाल खडे किए थे और जमीनों से जुड़े यही इल्जाम आज भी रॉबर्ट वाड्रा का पीछा कर रहे हैं.
रियल स्टेट कंपनी डीएलएफ के साथ जिस जमीन सौदे को लेकर रॉबर्ट वाड्रा फिर सुर्खियों में हैं उस जमीन सौदे को आईएएस ऑफिसर अशोक खेमका ने रद्द कर दिया था. हरियाणा सरकार को उन्होंने अपनी जो रिपोर्ट सौंपी थी उसमें भी कहा गया था कि रॉबर्ट वाड्रा ने जमीन सौदे के लिए दस्तावेज में हेराफेरी की थी.
अशोक खेमका का कहना है कि देखिए एक दिन में सात करोड़ अगर 58 करोड़ बन जाए तो मुझे बताइए कि किस नैतिकता से किस कानून नीति के आधार पर कि सिर्फ सरकार के एक लाइसेंस से साढ़े साल 58 करोड़ बन जाए वो कैसे सही हो सकता है. फरवरी में जमीन खरीदी गई साढ़े सात करोड़ की सौदा तुरंत कट गया 58 करोड़ का तो साढ़े सात का 58 होना आपको नहीं लगता कि इसमें कुछ गलती है कुछ प्रॉबलम है.
रॉबर्ट वाड्रा और डीएलएफ के बीच जमीन सौदे की जांच के आदेश देने वाले आईएएस अफसर अशोक खेमका का तबादला 11 अक्टूबर 2012 को सीड विकास निगम में कर दिया गया था. लेकिन उन्होंने जाते-जाते रॉबर्ट वाड्रा औऱ डीएलएफ के बीच हुई डील में ही पेंच डाल दिया था. खेमका ने खुलासा किया था कि 12 फरवरी 2008 को रॉबर्ट वाड्रा की कंपनी ने गुडगांव जिले के शिखोहपुर में 3.5 एकड़ जमीन 7.5 करोड़ रुपये में खरीदी थी जिसे इसी साल 18 सितंबर को डीएलएफ को 58 करोड़ में दोबारा बेच दिया गया.
आरोप है कि म्यूटेशन प्रक्रिया में नियमों की अनदेखी की गई और म्यूटेशन ऐसे अधिकारी ने किया जिसके पास इसका अधिकार ही नहीं था. लेकिन वाड्रा- डीएलएफ के बीच जमीन के इस सौदे के पीछे का खेल कुछ और भी है.


कैसे साढे सात करोड महज दो महीने में 58 करोड़ बन गए समझिए खुद खेमका की ज़ुबानी जमीन सौदे के इस खेल की ये कहानी.
अशोक खेमका का कहना है कि कृषि भूमि का जो भूमि परिवर्तन दिया जाता है या लाइसेंस दिया जाता है कालोनाइजेशन के लिए उसमें भी सस्ते घर नहीं बनते. क्योंकि भूमि अधिग्रहण होते हैं. लोगों को सस्ते घर नहीं मिलते और ना ही सरकार को अपना पूरा राजस्व मिलता है. तो ऐसी नीति होनी चाहिए कि जिसमें की लाइसेंसिंग ऐसी होनी चाहिए कि उसका जो प्रीमियम है वो कम से कम हो और उसका जो पूरा फायदा है जो कृषि योग्य भूमि से नान एग्रीकल्चर यूज में जो कनवर्ट होती है उसका जो पूरा प्रीमियम है या पूरा फायदा जो है वो या तो उपभोक्ता को मिले या फिर सरकार के राजस्व में जाए बिचौलियों को जो मुनाफा मिलता है वो कम से कम होना चाहिए. हमें इस सारी डील से बस एक ही सीख यही मिलती है.
अशोक खेमका जो बात कही वो सीधे रॉबर्ट वाड्रा और डीएलएफ के बीच हुई डील की गहराई तक पहुंचती है. दरअसल खेमका ने अपनी रिपोर्ट में भी कहा था कि रॉबर्ट वाड्रा ने शिखोहपुर की जमीन पर हाउसिंग कालोनी बनाने का जो लाइसेंस टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग से लिया था वो बिक नहीं सकता था लेकिन वो लाइसेंस जमीन के साथ ही डीएलएफ को बेच दिया गया.
अशोक खेमका का कहना है कि लाइसेंस लेना या फिर उसे रिनिव्यू कराना या फिर उसे आगे बेचना एक दूसरे एक्ट से गवर्न है जो टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट का है. लेकिन अगर कोई लाइसेंस लेता है तो वो एक एप्लीकेशन देता है कि मैं एक कालोनी बनाउंगा और इसके लिए मेरे पास वित्तीय संसाधन हैं. तो अगर वो अपने वादे के मुताबिक आचरण ना करे तो कार्रवाई होनी चाहिए. और अगर विभाग ने बगैर ऐसे किसी वादे के लाइसेंस दिया है तो विभाग के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए.
टाउन एंड कंट्री प्लानिंग के जीडी टी सी गुप्ता का कहना है कि उन्होंने जो अपने आर्डर के अंदर जो टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेटं के बारे में टिप्पणी की है. वो तथ्यों से परे है उसके अंदर बिल्कुल तथ्य गलत लिखे हुए हैं. उसके अंदर कानूनी रुप से बहुत खामियां है तथा ये एडमिनस्ट्रेटिव प्रोप्राइटी का उलंघन है. इसीलिए मैंने मुख्य सचिव महोदय को जो सारी चीजें है जो फैक्ट हैं जो लीगल पोजीशन है वो सारी चीज लिखकर ये अनुरोध किया है कि उनहोंने जो आरोप लगाए है उसके जांच के लिए जो समिति बनाई है उसी समिति के पास में हमारा ये लेटर भेज दिया जाए हमारे सारे रिकार्ड देख लिए जाएं.
दरअसल वाड्रा को शिखोहपुर की जमीन पर हाउसिंग कालोनी बनाने के लिए मार्च 2008 में ही हरियाणा के टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग से लाइसेंस मिल गया था. लेकिन लाइसेंस मिलने के 65 दिन बाद ही उन्होंने डीएलएफ को 58 करोड में ये जमीन बेच दी जिसका जून 2008 में ही उन्हें पांच करोड बयाना भी मिला. और जब जुलाई 2012 में वाड्रा को डीएलएफ ने पूरी रकम चुका दी तो सितंबर 2012 में उन्होनें जमीन डीएलएफ के नाम ट्रांसफर करा दी.
अशोक खेमका का कहना है कि सरकार के पास लाइसेंस देने का एक राइट है तो आप जमीन खरीदिए. या जमीन सरकार से ट्रांसफर कराइए, लाइसेंस लीजिए औऱ उसको पैकेज के रुप में बिजनेस माडल बनाकर आगे बेचें तो मुनाफा किसने खाया. उपभोक्ता को तो नहीं मिला मुनाफा सस्ते घर के रुप में. कितने लोग हैं जो झुग्गी झोपडी में रहते हैं. कोई ऐसा लाइसेंस पचास करोड़ के पैंट हाउस के लिए भी नहीं होता, कोई हाउसिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर थोडे ना है. हाउसिंग इनफ्रास्ट्रेक्चर होता है इडब्ल्यूएस हाउजिंग. गरीब लोगों के लिए हासिंग होती है अगर सरकार जमीन दे लाइसेंस दे तो आप गरीबों के लिए हाउसिंग बनाइए.
पंद्रह अक्टूबर 2012 को अशोक खेमका ने रॉबर्ट वाड्रा और डीएलएफ के बीच 3.53 एकड़ जमीन का सौदा रद्द कर दिया था. आईएएस अफसर अशोक खेमका ने वाड्रा की कंपनी के उस साढ़े सात करोड़ की रकम पर भी सवाल उठाए थे जिससे साढ़े तीन एकड़ जमीन खरीदी गई थी. खेमका का सवाल था कि कंपनी के पास जमीन खरीदने के लिए साढ़े सात करोड़ कहां से आए थे. खेमका को शक था कि कंपनी ने अपने पैसे से जमीन नहीं खरीदी थी. खेमका की आपत्तियों पर अब सीएजी ड्राफ्ट रिपोर्ट की मुहर लगती है. और इसीलिए रॉबर्ट वाड्रा का हरियाणा जमीन सौदे को लेकर पूछे गए सवाल पर ऐसा रिएक्शन उनकी बढती परेशानी को बयान कर रहा है.

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