मंगलवार, 4 नवंबर 2014

पद्म पुरस्कार के लिए जागर गायक बसंती बिष्ट व जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण पर छिड़ी जंग

लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी का नाम सूची से गायब होने पर राज्यवासी नाराज 

पद्मभूषण के लिए हिमालयन इंस्टिट्यूट के संस्थापक  डॉ .स्वामी राम 

पद्म श्री के लिए स्वास्थ्य के क्षेत्र में न्यूरो सर्जन महेश कुडियाल 

राजेन्द्र जोशी 
देहरादून : आगामी 26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर दिए जाने वाले पदम पुरस्कारों के लिए उत्तराखंड सरकार ने सात नामों की सूची केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजी है लेकिन नाम भेजने से पहले ही इस सूची पर विवाद की काली छाया पड़ गयी है ,सबसे बड़ी चौकाने वाली बात तो यह है उत्तराखंड के प्रसिद्द लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी का नाम इस सूची से गायब है जिन्होंने अपने जीवन के 50 से ज्यादा वर्ष उत्तराखंड की खासकर गढ़वाल की संस्कृति व संगीत के संवर्धन व संरक्षण को दिए हैं. इतना ही नही गढ़वाली व कुमायूनी लोकगीतों को देश व विदेश तक उन्होंने पहुंचाए हैं लेकिन राज्य की नौकरशाही के आगे पीछे न घुमने के चलते उनको इस सम्मान से वंचित रखने का कुत्सित प्रयास राज्य सरकार द्वारा किया गया है.इसकी जितनी भी भर्त्सना की जाये वह कम है. 
   संस्कृति व कला के क्षेत्र में बसंती देवी बिष्ट और प्रीतम भरतवाण का नाम भेजा गया है। उत्तराखंड के लोक संगीत व वाद्य यंत्रों पर शोध करने वाले डॉ. वीरेन्द्र बर्तवाल के अनुसार इनमें समानता यह है कि दोनों जागर गायन में प्रसिद्ध हैं, लेकिन दोनों में बहुत बड़ी असमानता भी है। प्रीतम भरतवाण जागर गायन विधा के साथ ही लोेकगीत गायन में भी ख्यात हैं। उन्हें ढोल सागर का ज्ञाता और ढोल वादन में प्रवीण माना जाता है। विदेश के कई विश्वविद्यालयों में वे ढोल वादन विद्या सिखा चुके हैं और करीब एक दर्जन देशों में उत्तराखंड की संस्कृति की पताका फहरा चुके हैं। उन्हें हुड़का समेत उत्तराखंड के करीब आधा दर्जन वाद्य यंत्र बजाने आते हैं। जागर गायन में उनकी निष्णातता का एक प्रमुख का कारण यह है कि उनका यह पैतृक व्यवसाय रहा है। उन्होंने नरसिंग, नागराजा, घंटाकर्ण, नंदा, आछरी, गोरील समेत कई देवी—देवताओं को अपनी अलबमों में स्थान दिया है। इधर, बसंती बिष्ट के बारे में बात करें तो जहां तक मुझे जानकारी है, उन्होंने मांगल और नंदा के इतर अधिक जागर गायन नहीं किया है। जिसने ये नाम प्रस्तावित किए और जिसने ये नाम केंद्र को प्रस्तावित किए, उसे भी इन बातों पर गहराई से विचार करना चाहिए था। इन बातों पर पक्षपात समाज और संस्कृति के लिए घातक होता है। यह इस विधा और संबंधित कलाकार के साथ भी विश्वासघात है। बसंती बिष्ट अगर फ्योंली,जसी,रामा धरणी, रणू—झंक्रू और मालू राजूला में से किसी दो गाथाओं का कथानक भी बता दें तो मान जाउंगा उन्हें। बसंती जी से मेरा कोई दुराग्रह और प्रीतम जी से कोई बहुत बड़ा संबंध नहीं, लेकिन बात कला को परखने की, योग्यता की तुलना की है। प्रीतम के साथ 'छोरा—छापर' वाला व्यवहार होता आया है, इसे मैं कई बार महसूस कर चुका हूं। मेरे पास प्रमाण भी है,जबकि इस व्यक्ति ने उत्तराखंड की जागर विधा को संजीवनी दी है।
  वहीँ एक जानकारी के अनुसार स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा का नाम पदम विभूषण के लिए भेजा गया है। स्व. बहुगुणा अविभाजित यूपी के मुख्यमंत्री रहने के अलावा कद्दावर राजनीतिज्ञों में रहे हैं और केंद्र में भी महत्वपूर्ण मंत्रालयों के मंत्री रहे हैं। उन्हें राजनीतिक क्षेत्र में दिए गए योगदान के लिए यह पुरस्कार दिए जाने की संस्तुति की गई है।
   इसके अलावा हेल्थ सेक्टर में किए गए सराहनीय कार्यों के लिए स्व. बृज किशोर धस्माना (स्वामी राम) का नाम पदम भूषण के लिए भेजा गया है। इसके अलावा पदमश्री के लिए पांच नाम भेजे गए हैं। संस्कृति व कला के क्षेत्र में बसंती देवी बिष्ट और प्रीतम भरतवाण का नाम भेजा गया है। इसके अलावा हेल्थ सेक्टर में काम करने के लिए डॉ. महेश कुडियाल के नाम की संस्तुति की गई है । साहित्य के क्षेत्र में पूर्व आईपीएस चमनलाल प्रद्योत का नाम पदमश्री के लिए भेजा गया है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें