शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

लापरवाही का खामियाजा भुगतते तीर्थयात्री और स्थानीय!

       लापरवाही का खामियाजा भुगतते तीर्थयात्री और स्थानीय!





राजेन्द्र जोशी
देहरादून : लगातार हो रही लापरवाहियों के बाद भी प्रदेश सरकार ने कोई सबक नहीं सीखा है। पहले मौसम विज्ञान की रिपोर्ट को दरकिनार कर हजारों लोगों की जान लेने का इल्जाम प्रदेश सरकार पर ही लगता है, लेकिन अब अपनों की खोज में दर-दर भटक रहे लोगों को उनके परिजन जिंदा हैं या मर गए, इसकी खबर देने वाला कोई नहीं। यदि कोई पूछता है कि मैरा अपना कहां है, तो सरकार बगलें झांकने लगती हैं। वहीं सरकार के पास विशाल तंत्र होने के बावजूद भी इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि उसने किन-किन लोगों को कहां से रेस्क्यू किया और वर्तमान में उनकी स्थिति क्या है। प्रशासनिक अंधेरगर्दी का इससे बड़ा और का सबूत हो सकता है कि सरकार के पास वह आंकड़े भी नहीं हैं, जिससे की वह परिवार वालों को ढांढस बंधा सके कि उनका अपना जिंदा है और फलां अस्पताल में भर्ती है।
इस आपदा ने प्रदेश सरकार में मानवीयता की जड़ें हिलाकर रख दी हैं, जहां सरकार के पास घटना के दो सप्ताह बाद भी न मरने वालों की स्पष्ट संख्या है और न ही जिंदा बचे लोगों की साफ तस्वीर। कितने राज्य कर्मचारी इस प्रकृति के प्रकोप के शिकार हुए इसकी भी जानकारी प्रदेश सरकार के पास नहीं है। स्थानीय लोगों की सुध लेने का तो सरकार के पास समय ही नहीं है। तीर्थयात्रा में केदारनाथ घाटी गए लोगों के परिजन गौरीकुण्ड से लेकर ऋषिकेश-हरिद्वार तक की खाक छान चुके हैं, वहीं गुप्तकाशी, गौचर, जौलीग्रांट और सहस्त्रधारा हैलीड्रम पर हाथों में अपनों की तस्वीर लिए अपनों को ढूंढ रहे हैं, लेकिन सरकार के पास दो सप्ताह बाद भी ऐसा कोई डाटा नहीं है कि वह अपनों की तलाश में दर-दर भटक रहे लोगों को यह बता पाएं कि अब उनके परिजन सुरक्षित नहीं है अथवा यात्रा मार्ग के किसी अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं।
लापरवाही का इससे बड़ा और नमूना क्या हो सकता है प्रदेश सरकार को घटना के तीसरे दिन पता चलता है कि केदारनाथ, रामबाड़ा, गौरीकुण्ड और सौनप्रयाग तबाह हो चुके हैं। यहां यह भी उल्लेख करना जरूरी है कि जब देश में संचार तंत्र सीमित हुआ करता था और हिंदुस्तान पर अंग्रेजों का शासन था उस समय आज से लगभग 100 साल पूर्व बिरही नदी पर एक पहाड़ गिर गया था और उससे झील बन गई थी और अंग्रेजों को पता था कि एक न एक दिन यह झील जरूर टूटेगी और इससे भारी तबाही हो सकती है, उन्होंने मैदानी क्षेत्र में तबाही को रोकने के लिए लक्ष्मण झूला से सात किलोमीटर आगे गंगा तट पर गरूडचट्टी के पास ऐसा संचार तंत्र विकसित किया था कि झील के पानी के आने की पूर्व सूचना वह ऋषिकेश और मैदानी क्षेत्रों को दे सकें, ताकि गंगा तटों पर होने वाली तबाही से बचा जा सके।
लेकिन हमारी सरकार ने मौसम विभाग की रिपोर्ट को कूड़ेदान में डाल, सैकड़ों लोगों की जान की तोहमत अपने पर ले ली है। वहीं यह भी जानकारी सामने आई है कि वर्ष 1994 में भू-वैज्ञानिकों और ग्लेशियरोलॉजी वैज्ञानिकों ने तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र सरकार को चेता दिया था कि हिमालय क्षेत्र के बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिर ग्लेशियर की जद में हैं और केदारनाथ के उपर स्थित गांधी सरोवर में पानी बढ़ने से केदारनाथ मंदिर को खतरा है। इसके बाद भी न तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार जागी और न वर्तमान उत्तराखण्ड सरकार। इसका परिणाम यह हुआ कि हजारों लोगों को सरकार की लापरवाही का नतीजा भुगतते हुए अपनी जानों से हाथ धोना पड़ा।

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