रविवार, 22 दिसंबर 2013

मराठा की वीरभूमि से उत्तराखण्ड की देवभूमि में कार्यरत एक देवदूत है दलीप जावलकर


मराठा की वीरभूमि से उत्तराखण्ड की देवभूमि में कार्यरत एक देवदूत है दलीप जावलकर
राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 14 सितम्बर । केदारनाथ में 11 सितम्बर की पूजा को सफल मानने वाली प्रदेश सरकार भले ही अपनी पीठ क्यों न थपथपाए, लेकिन इस चुनौतीपूर्ण कार्य को करने वाला शख्स अभी भी पर्दे के पीछे है, जिसकी मेहनत और लगन से सरकार सुर्खियां बटोर रही है। बात आपदाकाल के दौरान की, की जाए तो आपदा के दौरान रूद्रप्रयाग जिले के जिलाधिकारी का कार्य देने के लिए प्रदेश सरकार ने तमाम प्रशासनिक अधिकारियों को इस चुनौती को लेने को कहा, लेकिन कोर्इ भी अधिकारी तैयार नहीं हुआ। अंतत: दलीप जावलकर ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए आपदाग्रस्त रूद्रप्रयाग जिले की ओर रूख किया। उस समय वहां की सिथति भयावह थी, हर तरफ हाहाकार मचा था, किसी में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह केदारनाथ में इसी साल पूजा कराने की सोच भी सकता हो। इसके अलावा आपदा के बाद राहत एवं बचाव कार्य सहित पुर्नवास एवं पुर्ननिर्माण का कार्य भी एक चुनौती बनकर सामने खड़ा है। इतना ही नहीं केदारनाथ के महाप्रलय में जान गंवाने वाले श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों के मृत्यु प्रमाण पत्र की चुनौती भी अब दलीप जावलकर को लेनी होगी।
    16-17 जून की भयावह महाप्रलय ने पूरे उत्तराखण्ड को ही नहीं, बलिक समूचे देश को हिलाकर रख दिया। इतना ही नहीं विदेशों तक में इस महाप्रलय की गूंज सुनार्इ दी। 16-17 जून की महाप्रलय के बाद रूद्रप्रयाग के तत्कालीन जिलाधिकारी विजय ढौंडि़याल एक प्रशासनिक अधिकारी होने के बावजूद वहां की सिथति देखकर सदमें में चले गए और उनके स्थान पर पंकज पाण्डे को जिलाधिकारी रूद्रप्रयाग का अस्थार्इ तौर पर जिम्मा सौंप दिया गया। उत्तराखण्ड शासन में इस दौरान उहापोह की सिथति थी कि आखिरकार रूद्रप्रयाग जिले में स्थायी जिलाधिकारी का दायित्व किसे दिया जाए। पांच दिन की कशमकश के बाद दलीप जावलकर ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए रूद्रप्रयाग जिले के जिलाधिकारी का दायित्व संभाला। प्रशासनिक अधिकारी होने के नाते कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि प्रशासनिक अधिकारी का यह दायित्व है, लेकिन आज की भोग विलासिता का जीवन छोड़कर आखिर प्रकृति के महाप्रलय से उजाड़ हो चुके, उस क्षेत्र में जहां हर ओर हाहाकार, विलाप और लाशों का अंबार पड़ा हो कौन जाना चाहेगा। दलीप जावलकर इस पूरे समयन्तराल में जहां प्रभावित पर्वतीय क्षेत्र के लोगों के लिए देवदूत बनकर उभरे हैं, वहीं असहाय हो चुकी उन मां-बहनों के लिए एक सहारा। मराठाओं की वीरभूमि से निकला यह सपूत उत्तराखण्ड की देवभूमि और वीरभूमि में निस्वार्थ सेवा में लगा है। कर्इ बार सोनप्रयाग व दूसरे पैदल रास्तों से केदारनाथ पहुंचने वाला शायद यह पहला प्रशासनिक अधिकारी होगा, जिसने इस आपदा के दौरान इन सड़कों को अपने पांवों से नापा है।
    प्रदेश में प्रशासनिक पदों पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाने वाले दलीप जावलकर इस आपदा की घड़ी में क्षेत्र के लोगों के लिए मसीहा बनकर उभरे हैं। उत्तराखण्ड शासन में जहां उन्हें तेज तर्रार व कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी के रूप में जाना जाता है, वहीं उनका सरल स्वभाग, लगनशीलता और र्इमानदारी के साथ उनकी कार्यकुशलता उनके व्यकितत्व पर चार चांद लगा देती है। 11 सितम्बर की पूजा के दौरान जहां उनके सामने पंडित और रावल के बीच चल रहे द्वंद से बीच का रास्ता निकालना था, वहीं कांग्रेस सरकार की पूजा कराने की जिद को भी पूरा करने का दायित्व उन पर ही था। इतना ही नहीं राजनैतिक तौर पर भाजपा के विरोध का भी सामना उनको ही करना था, इस पूजा को लेकर तरह-तरह के विवाद, इसकी तारीख को लेकर नेताओं में बयानबाजी और स्थानीय पुरोहितों और हक-हकूक धारियों के बढ़ते दबाव का सामना भी इन्हीं को करना था। कुल मिलाकर आपदाकाल के तुरंत बाद से लेकर 11 सितम्बर तक की पूजा का श्रेय यदि देना है तो जिलाधिकारी रूद्रप्रयाग दलीप जावलकर को दिया जाना चाहिए। नेताओं को श्रेय देने के चलते कहीं ऐसा न हों कि इस महत्वपूर्ण कार्य के मुख्य नायक को ही हम भूल जाएं

सोमवार, 2 दिसंबर 2013

कुर्सी बचाने को मुख्यमंत्री चढ़े 500 सीढ़ीयां!

राजेन्द्र जोशी
देहरादून: उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को आखिर अपनी कुलदेवी के दर्शन करने अपने पैतृक गांव बुघाणी क्यों जाना पड़ा, यह बात अब धीरे-धीरे सामने आ रही है। जानकारी के अनुसार प्रदेश में बीते कुछ महीने से मुख्यमंत्री पद को लेकर चल रही उथल-पुथल को मुख्यमंत्री के पण्डितों ने कुल देवी का रूष्ट होना बताया है। यही कारण है कि लगातार हैलीकाप्टर से यात्रा करने वाले मुख्यमंत्री को 500 सीढ़ीयां चढ़कर अपनी कुलदेवी गौरा के दर्शन करने पड़े।
एक जानकारी के अनुसार बीते कई महीनों से प्रदेश में राजनैतिक उथल-पुथल के चलते जब मुख्यमंत्री ने अपने कुल पुरोहित को समस्या के निराकरण के लिए कहा तो कुल पुरोहित ने उनको कुल देवी गौरा के नाराज होने का प्रकोप बताया। इस पर मुख्यमंत्री परिवार के साथ बुघाणी गांव गए और अपनी कुल देवी के दर्शन के लिए 500 सीढ़ीयां चढ़ देवी से नाराजगी पर माफी मांगी और वहीं उन्होंने देवी से अपनी कुर्सी बचाने की मन्नत भी मांगी। राजनैति हलकों में मुख्यमंत्री की इस यात्रा को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं, लोगों का कहना है कि एक कदम भी पैदल न चलने वाले मुख्यमंत्री को आखिरकार उस महाशक्ति के सामने नतमस्तक होना पड़ा, जिसको वह कभी मानने से भी कतराया करता था। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री की बुघाणी यात्रा को लेकर बुघाणी, सुमाड़ी और देवलगढ़ गांवों में खासी चर्चा रही। ग्रामीणों का कहना था कि उनकी कुल देवी में इतनी शक्ति है कि वह मुख्यमंत्री को भी अपने चरणों में नतमस्तक करा देती है। बुजुर्ग ग्रामीणों का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री रहे स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा का अपनी कुल देवी से खासा लगाव था और वे साल में एक बार उनकी पूजा-अर्चना करने स्वंय ही आते थे, यदि व्यस्तता होती थी तो, वे देवी के मंदिर में हर बार कुछ न कुछ अवश्य चढ़ावा भेजा करते थे। यही कारण है कि उनकी कुलदेवी गौरा का उन पर जीवन परयन्त आर्शीवाद रहा।