शुक्रवार, 26 सितंबर 2014

देवभूमि मीडिया: आखिर ऋषिकेश और उत्तरकाशी में ट्रामा सेंटर में आखिर...

देवभूमि मीडिया: आखिर ऋषिकेश और उत्तरकाशी में ट्रामा सेंटर में आखिर...: एक्सक्लूसिव स्टोरी ---- अपने-लाभ-के-लिए-खरीद-नीति-ही-बदलने-पर-आमादा-चर्चित-नौकरशाह-‘’राका’’ सीटी स्कैन मशीनों का इंतजार करते ट्राम...

हिमालय क्षेत्र में संतुलित विकास की आवश्यकता

उत्तराखंड में 337 गांव विस्थापन के लिए चिन्हित

राज्य स्तरीय पुनर्वास आधारित जनपैरवी कार्यशाला आयोजित

देव भूमि मीडिया ब्यूरो  

देहरादून । जनदेश स्वैच्छिक संगठन, उत्तराखंड जन कारवां मंच और नदी बचाओ अभियान द्वारा राज्य स्तरीय पुनर्वास आधारित जनपैरवी कार्यशाला आयोजित की गई। कार्यशाला में दिल्ली के वरिष्ठ लेखक और वैज्ञानिक प्रभु नारायण ने कहा कि हिमालय क्षेत्र में निरंतर जलवायु परिर्वतन के कारण सूखा, बाढ़, भू-स्खलन, बादल फटने की स्थिति बनी रहेगी। उन्होंने कहा कि हिमालय क्षेत्र में संतुलित विकास की आवश्यकता है। 
      द्रोण होटल में आयोजित इस कार्यशाला में प्रभु नारायण ने कहा कि यहां पर्यावरणीय पहलू के साथ लोक विज्ञान को महत्व दिया जाना जरूरी है। निरंतर दैवीय आपदा की घटनाओं को देखते हुए यहां के विकास के लिए अलग नीति निर्माण की आवश्यकता है। हिमालय पूरे दुनिया की जलवायु को नियंत्रित करता है। निरंतर बर्फ पिघलने की घटना, सूखा, बाढ़, की स्थिति आने वाले समय बड़ी आपदा का आमंत्रण है। इससे आपदा के न्यूनीकरण जनआधारित पुनर्वास के मुद्दे पर गंभीरता से एक नीति के साथ ढांचागत विकास का विकेंद्रित स्वरूप से विचार रखा। उन्होंने कहा कि हिमालयी राज्यों में सशक्त सूचना तंत्र की प्रणाली विकसित करने की जरूरत है। मौसम विभाग, विज्ञान प्रौद्योगिकी, आपदा सेना, पंचायतों, आपदा प्रबंधन तंत्र के बीच सक्रिय समन्वय बेहद जरूरी है। 
     कार्यशाला में जनदेश संस्था के सचिव लक्ष्मण सिंह नेगी ने कहा कि उत्तराखंड की जन आधारित पुनर्वास नीति नहीं है। आज संपूर्ण उत्तराखंड में 337 गांव विस्थापन के लिए चिन्हित किए गए हैं, जिसमें चमोली में 61, बागेश्वर में 42, पौड़ी में 26, पिथौरागढ़ में 126, टिहरी में 26, अल्मोड़ा में 9, नैनीताल में 6, उत्तरकाशी में 8, देहरादून में 2, रूद्रप्रयाग में 16 और उधमसिंहनगर में 1 गांव पुनर्वास के लिए चिन्हित हैं। इन गांवों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन राज्य बनने के 14 वर्षों बाद भी राज्य की नीतियां नहीं होने के कारण उनका पुनर्वास नहीं हो पा रहा है। राष्ट्रीय आपदा नीति में भी सुधार की आवश्यकता है। ग्राम स्तर पर भी आपदा कोष पंचायत में होना चाहिए, जिसमें 1.50 की रकम होनी चाहिए, इसके अलावा जलनीति, वन नीति, महिला नीति, पंचायत नीति, भू नीति, जनपक्षीय कृषि नीति नहीं होने के कारण भी आपदा पुनर्वास के कार्य नहीं हो रहे हैं। शीघ्र ही सरकार को नीतियां घोषित करनी चाहिए।

     उत्तराखंड जन कारवां के राज्य समन्वयक दुर्गा प्रसाद कंसवाल ने राष्ट्रीय पुनर्वास नीति के बारे में बताया। राज्य आंदोलनकारी बहादुर सिंह रावत ने कहा कि राज्य में कृषि भूमि के वर्तमान में कोई सही आंकड़े नहीं हैं। शीघ्र पैमाइश होनी चाहिए, जिससे सही रूप से पुनर्वास हो सकें। जनदेश के सहसचिव हरीश परमार ने कहा कि वन नीति राज्य की नहीं होने के कारण पुनर्वास जैसी समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है। बीज बचाओ आंदोलन के विजय जड़धारी ने कहा कि शहरों में भी लोग अधिकांश नदी, नालों, के किनारे घर बना रहे हैं, जिससे बारिश के समय भारी नुकसान हो रहा है। गांवों में बुनियादी सुविधा के अलावा लोग असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, जिससे शहर में आ रहे हैं। कार्यशाला में दिनेश लाल, विनीता देवी, गुरुकुली देवी, राकेश अग्रवाल, कल्याण सिंह रावत, सतेश्वरी देवी, शकुंतला देवी आदि ने भी विचार रखे।

आखिर ऋषिकेश और उत्तरकाशी में ट्रामा सेंटर में आखिर क्यों नहीं लग पाई सीटी स्कैन मशीन!

एक्सक्लूसिव स्टोरी ----

अपने-लाभ-के-लिए-खरीद-नीति-ही-बदलने-पर-आमादा-चर्चित-नौकरशाह-‘’राका’’

सीटी स्कैन मशीनों का इंतजार करते ट्रामा सेंटर

मुख्यमंत्री की घोषणा को भी नही तवज्जो

राजेन्द्र जोशी
हर खरीद में कमीशन, हर काम में कमीशन, हर नौकरी में रिश्वत, हर ट्रान्सफर में घूसखोरी, हर भुगतान पर डाका ,न्यायालयों के आदेशों से बेपरवाह और काम के मामले में जमकर हरामखोरी, बिना -लिए दिए यहाँ कोई काम हो हो गया तो समझो आप भाग्यशाली हैं..   यह है उत्तराखंड का सच. जिसको स्वीकार करने में आज किसी भी उत्तराखंडी को शायद कोई हर्ज़ नहीं होगा.....राज्य के एक चर्चित नौकरशाह ने तो इस राज्य को घोटाला प्रदेश बना डाला है आखिर राज्य के निर्माण को लेकर अपनी जान न्योछावर करने वाले शहीद भी स्वर्ग में क्या सोचते होंगे कि क्या इसी प्रदेश के लिए हमने अपने प्राण दिए थे....
  यह मामला राज्य के सबसे ज्यादा आपदा ग्रस्त उत्तरकाशी व ऋषिकेश का है जहाँ पर मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद दो ट्रामा सेंटर बनकर तैयार है लेकिन वहां पिछले छह माह से इंतजार हो रहा है सीटी स्कैन मशीनों का, स्वास्थ्य निदेशालय ने इसके लिए टेंडर भी काफी पहले कर दिए थे ताकि ट्रामा सेंटर बनते ही वहां मशीनें भी लग जाएँ और प्रदेश के जनता सहित देश के लोगों को इस सुविधा का लाभ भी मिलने लगे..लेकिन एक चर्चित अधिकारी ’’राका’’ ने यहाँ भी पेंच फंसा दिया है हालाँकि स्वास्थ्य विभाग उनके पास नहीं है लेकिन वित्त विभाग का सर्वे सर्वा होने के चलते राज्य के लगभग सभी विभागों पर उनकी पकड़ है क्योंकि हर वित्तीय स्वीकृति उन्ही के द्वारा की जाती है .दूसरी भाषा में यदि कहा जाये तो वे उत्तराखंड के कुबेर की भूमिका में हैं.
  सीटी स्कैन की मशीनों का उत्पादन भारत में नहीं होता है यदि होता भी है तो वो केवल एसम्बलिंग का काम,बहुतायत में ऐसी मशीने विदेशों से ही मंगाई जाती हैं जिनका मार्केटिंग विभाग दिल्ली से कार्य करता है और इनकी कीमत भी करोड़ों में होती है तो कमीशन भी लाखों में होता है. राज्य सरकार के स्वास्थ्य बिभाग को लगा कि उत्तरकाशी व ऋषिकेश सहित अल्मोड़ा व पिथोड़ागढ़ में इन मशीनों को लगाया जाना चाहिए. पहले गढ़वाल मंडल के उत्तरकाशी व ऋषिकेश में इन मशीनों को लगाने की योजना बनायीं गयी क्योंकि उत्तरकाशी तो वैसे भी आपदाग्रस्त एरिया में आता है जबकि ऋषिकेश गढ़वाल का बेस सेंटर पड़ता है किसी भी ट्रोमा या एक्सीडेंटल केस में सबसे पहले सिटी स्कैन ही कराया जाता है इसलिए जीवन रक्षक उपकरण होने की वजह से दोनों ही जगह इस मशीन का होना बहुत ही ज़रूरी था , इसलिए वर्ष 2013 -14 वितीय वर्ष में दो सिटी स्कैन की मशीन की खरीद के टेंडर आमंत्रित किये गये.  दो -दो बार टेंडर करने के बाद जब दो कंपनियों ( ERBIS तोशिबा जापान एवं  विप्रो GE USA ) के वितीय दरों का पत्र मार्च 2014 में खोला गया , जिसमे एर्बिस के दर  विप्रो GE  से कम आये स्वास्थ्य महानिदेशालय ने मार्च 2014 में ही निविदा की इस फाइल को स्वीकृति के लिए सचिवालय भेज दिया. चर्चा यह है कि यह फाइल चर्चित अधिकारी की जिद की वजह से वित्त विभाग में ही अटक गई और इस पर बिना सिर पैर की आपतियां लगती रही. अपने इस इंटरेस्ट की वजह से इन्होने कोई भी  ठोस कारण न होते हुए फाइल को न तो स्वीकृत किया और न ही रिजेक्ट ..जबकि इसी फाइल में  दूसरी आइटम फिजियोथेरेपी की भी है पर सिटी स्कैन मशीनों के खरीद में पेंच फंस जाने के कारण वह भी नही हो पा रही है. एक जानकारी के अनुसार इस चर्चित अधिकारी की धींगामुश्ती तो देखिये पहले उन्होंने यह जिद पकड़ी कि स्वास्थ्य महानिदेशालय में तैनात CMSD (केंद्रीय स्टोर निदेशक) निदेशक डॉ आर्य को हटाया जाय तो फिर सीटी स्कैन मशीनों की फाइल स्वीकृत करूँगा लेकिन जब स्वास्थ्य निदेशालय से बिना वजह निदेशक को हटाया गया तो उसके बाद भी यह स्वीकृति नहीं मिली और नतीजा शून्य रहा और अब यह चर्चित अधिकारी इस बात पर अड़े हुए है कि वर्ष 2007 -08  की खरीद नीति पुरानी हो गयी है और यह खरीद नीति गलत है और अब उसको परिवेर्तन करने की जिद पर अड़े है अब नयी खरीद नीति बनाये जाए. जबकि उस खरीद नीति में अब तक कोई भी कमी सामने नहीं आई है और न ही अब तक किस्सी भी विभाग ने इस पर ऐतराज़ ही किया है.
  सारा मामला यह है कि जिस सीटी स्कैन कंपनी को यह चर्चित अधिकारी खरीद का आदेश दिलवाना चाहते हैं वह राज्य सरकार की खरीद नीति के पैमाने पर फिट नहीं बैठती और वह येन-केन-प्रकारेण GE को यह आदेश दिलवाना चाहते हैं.
सबसे मजेदार और हैरान कर देने वाला यह मामला बीते दिन मुख्यमंत्री की विधानसभावार बैठक में जब गंगोत्री के विधायक विजयपाल सजवाण ने यह मामला उठाया तो प्रमुख सचिव स्वाथ्य ने भी यहाँ झूठ बोल दिया और  बताया कि यह मामला काफी पुराना हो गया है अब सिटी स्कैन का नया टेंडर करवाया जायेगा लेकिन वे यह नहीं बता पाए कि आखिर सीटी स्कैन मशीन खरीद में देरी के लिए कौन जिम्मेदार है और क्यों .लेकिन इस मामले में यह भी जानकारी सामने आई है कि राज्य के इन चर्चित अधिकारी को भनक लग गयी थी कि यह मामल उठाना वाला है लिहाज़ा उन्होंने प्रमुख सचिव स्वास्थ्य व अपर सचिव स्वास्थ्य को इस मामले में कुछ भी न बोलने के निर्देश दे दिए थे. इस मामले के बाद यह बात सामने आई है कि राज्य का यह चर्चित अधिकारी अपने से नीचे वाले अधिकारियों और कर्मचारियों को धमका कर और ऊपर वालों को झूठ बोल कर इस देव भूमि को अपनी मन मर्ज़ी से चला कर  तबाह कर रहा है ...   

गुरुवार, 11 सितंबर 2014

राका का खनन का खेल,देखिये किस -किस से है उसका मेल

हरीश रावत जैसे जमीनी नेता पर कहीं उत्तराखंड का ‘’यदुरप्पा’’ का टैग न लग जाए

राजेन्द्र जोशी
राका’’ नए गेम को धरातल में क्रियान्वयन की तैयारी में है इस बार उसका गेम काफी बड़ा लगता है। राका ने प्रदेश के खनिज भंडारों को हथियाने की तैयारी पूरी कर ली है जिसमे उसके कुछ साथी जिनमे एक टी वी चैनल का पत्रकार तथा दूसरा हरियाणा का खनन माफिया जो अभी अभी भाजपा में शामिल चौधरी वीरेन्द्र सिंह का करीबी बताया जाता है तथा खनन विभाग का एक अधिकारी शामिल है। एक जानकारी के अनुसार इस उद्योग पति ने खनन विभाग के कुछ अधिकारियों के साथ मिलकर विगत एक वर्ष में प्रदेश के लगभग सारे खनिज क्षेत्रों की सूक्ष्म जानकारियाँ एकत्रित कर ली है। जिनमे जनपद वागेश्वर के क्षेत्र में 14 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के सोपस्टोन भंडार, चमोली जनपद के घाट इलाके के सोप स्टोन के भंडार, जनपद उत्तरकाशी के सिलिका सेंड भंडार जनपद अलमोड़ा के धातु भंडार तथा जनपद देहारादून,टिहरी के चूना पत्थर भंडार शामिल है। इस गुट ने प्रदेश् में जहां जहां भी जल विधयुत परियोजना निर्माणाधीन है वहाँ कंपनियों से दवाब बना कर उपखनिज की सप्लाई का ठेका लिया जा रहा है। विगत 2011 के बाद से प्रदेश के राजनेतिक स्थिति   डांवाड़ोल चल रही है पहले खंडुरी, फिर बहुगुणा और अब रावत जी आज गए कल गए की स्थिति है। इसी अवसर का लाभ उठा कर ‘’राका’’ अपना काम करता रहा है । उसने कुछ राजनैतिक लोगों व कुछ कथित पत्रकारों को भी साथ मिला रखा है जो गाहे –बगाहे उसके इर्द गिर्द घूमते रहते हैं और उसके काले धंधे में शामिल हैं ।
   “राका” ने अपनी इस गेम प्लान के अंतर्गत दो चार दिन पहले ही खनन विभाग में अधिकारियों की कुर्सिया उसी हिसाब से लगाने का हुक्म सुनाया है, अपने एक खासम खास अधिकारी को उसने दो वरिष्ठ अधिकारियों के विभाग में तैनात रहने के बावजूद स्वतंत्र प्रभार देकर कुछ इशारा दे दिया है। राज नीति में तो यह संभव है कि प्रधान मंत्री, किसी राज्य मंत्री को केबिनेट मंत्री के होते हुए भी उसे नज़र अंदाज कर सीधे प्रधान मंत्री को पत्रावली प्रस्तुत करने का आदेश जारी कर सकता है। किन्तु सरकारी व्यवस्था में यह संभव नहीं है कि दो दो जाइंट डाइरेक्टर के मौजूद होने के बावजूद भी एक उप निदेशक स्तर के अधिकारी को स्वतंत्र प्रभार दिया जाय।
     चर्चा तो यहाँ तक है ‘’राका’’ ने खनन विभाग के पर्वतीय अधिकारियों को दरकिनार कर अन्यत्र के अधिकारियों को राज्य के 9 जिलों का काम दे दिया है, सुनील पंवार, राजपाल लेघा व एस एल पेट्रिक पर मेहरबान ‘’राका’’ के ख़ास इन अधिकारियों के खनन माफियाओं से रिश्ते किसी से छिपे भी नहीं हैं यही कारण है कि एक बार तो ‘’राका’’ ने इनसे सीनियर अधिकारी को इनसे जूनियर बना डाला उसको उसके अधिकार तब मिले जब वाह ‘’राका’’ के निर्णय के खिलाफ न्यायालय से आदेश करा लाया . जानकारी तो यहाँ तक आई है कि इन्ही अधिकारियों के जरिये राज्य में ‘’राका’’ का खनन का खेल चल रहा है. वहीँ सुनने में तो यह भी आया है कि पहले तो राका ने खनन विभाग में अलग से खनन सेग्मेंट बना कर इन्ही मुंह लगे अधिकारियों के सहारे पूरे प्रदेश का खनन प्रशासन चलवाया और अब राज्य के मालदार जिलों का काम भी इनको दे दिया,
    प्रदेश में चल रहे खनन के इस खेल में स्थानीय अधिकारियों को किनारे कर अपने मुंह लगे अधिकारियों को आगे कर ‘’राका’’ का खेल चल रहा है । जहाँ हमारे राज नेता तो अपनी कुर्सी बचाने में ही व्यस्त हैं वहीँ ‘’राका’’ अपना खेल खेलने में व्यस्त है। प्रदेश के बुद्धिजीवियों का कहना है कि समय रहते यदि इस षड्यंत्र का भंडाफोड़ कर इन सब को तितर बितर नहीं किया गया। तो प्रदेश के सारे खनिज भंडारों पर राका की किसी कंपनी का कब्जा हो जाएगा उसके करीबी कुछ राजनेताओं को चवन्नी अठन्नी तो मिल जाएगी लेकिन राज्य वासियों के हाथ बाबा जी का ठुल्लू ही लगेगा । वही यदि मुख्यमंत्री हरीश रावत ने तत्काल इस नेक्सेस को नहीं तोडा तो हरीश रावत जैसा जमीनी नेता पर कहीं उत्तराखंड का ‘’यदुरप्पा’’ का टैग न लग जाए.