शुक्रवार, 29 मार्च 2013

उत्तराखंड में अफसरशाही सरकारों पर भारी!

अफसरशाही सरकारों पर भारी!
राजेन्द्र जोशी
देहरादून। उत्तराखण्ड राज्य गठन से लोगों को उम्मीद थी कि उनके अपने पहाड़ी राज्य में भ्रष्टाचार जैसी बीमारी नहीं फैलेगी और प्रदेश के अफसर भी अपने काम में ईमानदारी के साथ प्रदेश की जनता की परेशानियों का निस्तारण करेंगे, लेकिन प्रदेश के प्रदेश की जनता की सोच गलत साबि हुई। उत्तराखण्ड राज्य के 12 साल के इतिहास में अफसरशाही हमेशा से ही यहां की सरकारों पर हावी रही और राज्य में आज भी कई अफसर अपनी मनमानी करते हैं और मंत्रियों व विधायकों के आदेशों को ठंेगा दिखा रहे हैं, इतना ही प्रदेश के मुखिया के सामने कई बार यह मामला उठाया जा चुका है, लेकिन फिर भी अफसरशाही पर सरकार लगाम लगाने में नाकामयाब साबित हो रही है। इतना ही नहीं स्टर्डिया मामले में अधिकारियांे ने तत्कालीन मुख्यमंत्री को गुमराह किया यह तक न्यायालय तक टिप्पणी कर चुका है, लेकिन यह राज्य का दुर्भाग्य ही होना कि जिनके दामन में दाग हैं ऐसे दागदार एक भी अधिकारी के खिलाफ आज तक कोई कार्यवाही नहीं हो पाई है।
राज्य के 12 साल के इस सफर में अधिकांश सरकारी महकमों के बड़े अधिकारियों की सोच व आचरण में कोई बदलाव नहीं आया। विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले पहाड़ी राज्य की जरूरतों को समझते हुए मजबूत इच्छाशक्ति के साथ ही विकास करने की बात हो या सर्विस मैनुअल्स के मुताबिक
अपने आचरण में सुधार की बात, आमजनता का काम न करने के लिए अफसरों ने हर मामलों में अपनी टांग उपर रखी है।
यह अपने आप में एक बड़ा दुर्भाग्य है कि स्वयं पार्क अधिकारियों द्वारा राजाजी नेशनल पार्क के कोर जोन कासरो में परिवार समेत होली मिलन समारोह मनाने के सनसनीखेज खुलासे ने अधिकारियों की हिटलरशाही की पद्रेश की जनता के सामने पोल खोल दी है, जबकि इस जोन में वन एवं वन्यजीवों को सुरक्षित रखने के लिए सरकार ने नियम कानून बना रखे हैं। प्रदेश के इतिहास में कई मंत्री और विधायक ने अपनी ही सरकार में बेलगाम होती अफसरशाही से खासे नाराज पाए गए और उन्होंने अपने दुख को लगातार प्रदेश के मुख्यमंत्री के सामने रखा। कांग्रेस व भाजपा सरकारों के शासनकाल में कई बड़े ऐसे अधिकारियों पर लगातार भ्रष्टाचार के आरोप लगते आए हैं, लेकिन किसी भी सरकार के मुखिया ने इन अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करने का दम नहीं दिखाया और नही वह इन भ्रष्ट अधिकारी को जेल की सलाखों के पीछे डाल सके। मौजूदा समय में भाटी आयोग की जांच में टीडीसी में तैनात रहे दो बड़े अधिकारियों को दोषी ठहराया गया। लेकिन सरकार ने इन अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर करने तक का दम नहीं दिखाया और केवल नाटक कर अधिकारियों पर लगे आरोपों की जांच मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव करेंगे।

गुरुवार, 28 मार्च 2013

सिडकुल के बाद अब आईटी पार्क की ज़मीन बेचने की तैयारी में सरकार !! !

सिडकुल के बाद अब आईटी पार्क की ज़मीन बेचने की तैयारी!
राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 23 मार्च। सिडकुल की रूद्रपुर और हरिद्वार की जमीनों को कौड़ियों के भाव बेचने के बाद अब राज्य सरकार देहरादून स्थित आईटी पार्क की वह जमीन बेचने जा रही है जिस पर कांग्रेस के ही मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने बेरोजगारों को रोजगार दिलाने का सपना देखा था।
पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी जिन्हें भविष्यदृष्टा के रूप में जाना जाता है का सपना था कि रूद्रपुर,सितारगंज,भगवानपुर,हरि
द्वार, रोशनाबाद, सेलाकुई,कोटद्वार तथा काशीपुर में औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना कर राज्य के बेरोजगार युवकों को रोजगार उपलब्ध कराने में इन क्षेत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका हो ताकि राज्य से पलायन को रोकने के साथ ही स्थानीय लोगों को उनके पास ही रोजगार उपलब्ध हो सके। तिवारी शासनकाल में इन औद्योगिक क्षेत्रों की ओर औद्योगिक घरानों ने रूख भी किया। लेकिन सरकार की थकाऊ कार्यप्रणाली से आजीज आ चुके कई उद्योग समूह यहां के अधिकारियों व नेताओं का गैर सहयोगी व्यवहार देखते हुए वापस चले गए। परिणामस्वरूप किसानों को उजाड़ कर औद्योगिक क्षेत्रों में सरकार द्वारा खरीदी गई सैकड़ों एकड़ भूमि बंजर हो गई। बहुगुणा सरकार के आने के बाद राज्य के कुछ नौकरशाहों और बड़े नेताओं की नजरे इन जमीनों पर जा टिकी और उन्होंने इन जमीनों पर कंक्रीट के बहुमंजिले भवनों का सपना देखना शुरू कर दिया और इन जमीनों को बेचने के लिए मुफीद भूूमाफियों की तलाश शुरू कर दी। इसी तलाशी के दौरान उन्हें वह बिल्डर मिल गया जो उनकी हर ख्वाहिश पूरी कर सकता था और राज्य सरकार ने उसे औने -पौने दामों पर बेच भी डाला।
ठीक इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने राजधानी के सहस्त्रधारा रोड़ पर आईटी पार्क की स्थापना कर राज्य के बेरोजगारों को रोजगाार का सपना देखा था। लेकिन सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार राज्य सरकार के कुछ अधिकारियों और बड़े नेताओं की गिद्ध दृष्टि इस जमीन पर भी पड़ गई है। सूत्रों ने बताया कि राज्य सरकार के कुछ बडे़ अधिकारी इस जमीन को किसी बिल्डर को बेचने जा रहे हैं। जिसके लिए अखबारों में दिखावे के लिए विज्ञापन भी प्रकाशित किए जा चुके हैं। जिस भूमि को आईटी पार्क के लिए खरीदा गया था और जिस पर अंर्तराष्ट्रीय स्तर की आईटी कम्पनियों को अपने संस्थान खोलने से वह भूमि भी सिडकुल की भूमि की तरह बिकने को तैयार है ऐसे में अब यह सवाल उठता है कि राज्य की बेशकीमती जमीनों को यदि इसी तरह खुर्द -बुर्द किया जाता रहा तो भविष्य में राज्य में सिडकुल और आईटी पार्क जैसे आस्थानों के लिए भूमि ही नहीं बचेगी।

अपने पर छींटे पड़ते देख पीछे हटे भाटी!

अपने पर छींटे पड़ते देख पीछे हटे भाटी!
अपने एससी त्रिपाठी को दी गई कमान
सत्य के सामने इस सरकार को झुकना पड़ा: रावत
राजेन्द्र जोशी
देहरादून। भाजपा शासनकाल में हुई गड़बड़ियों को लेकर कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए भाटी आयोग के अध्यख केवल राम भाटी ने स्वंय पर पड़ रहे छींटों के बाद आखिरकार सोमवार देर शाम अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री को सौंप दिया। पूर्व आईएएस अधिकारी केवल राम भाटी की जगह पूर्व आईएएस अधिकारी एससी त्रिपाठी की अध्यक्षता में नया आयोग गठित किया गया है। यह आयोग 2007 से लेकर 2012 के बीच भाजपा शासनकाल के दौरान की अनियमितताओं की जांच करेगा। भाटी आयोग द्वारा प्रदेश सरकार को जांच रिपोर्ट सौंपने के बाद भाटी पर आरोप लगे थे कि उन्होंने कांग्रेस से मिली भगत कर आयोग की रिपोर्ट को जहां मनगडण्त रूप से तैयार की, वहीं उनके और सरकार के द्वारा इस रिपोर्ट को विधानसभा में रखे जाने से पहले लीक कर दिया गया। इतना ही नहीं भाजपा के पूर्व मंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने केवल राम भाटी पर आरोप लगाया था कि उनके और कांग्रेस के बीच सांठ-गांठ है, इसी के चलते केवल राम भाटी ने डिफेंस कॉलोनी स्थित अपना आवास वर्ष 2008 में मुख्यमंत्री के करीबी विधायक सुबोध उनियाल को दिया था, जिस पर विधायक और प्रदेश के महाधिवक्ता रहते हैं। इतना ही नहीं बीज एवं तराई विकास निगम (पीडीसी) के पूर्व अध्यक्ष हेमंत द्विवेदी ने भाटी आयोग की रिपोर्ट को नैनीताल उच्च न्यायालय में चुनौति देते हुए भाटी को ही पक्षकार बना डाला था, जिससे भाटी के सामने और समस्या खड़ी हो गई थी। इतना ही नहीं राजनैतिक दलों के बीच में फंसे भाटी को यह डर भी सताने लगा था कि यदि भविष्य में प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी तो वह उनसे गिन-गिन कर बदला लेगी। यही कारण है कि इन झमेलों में फंसने के बजाए भाटी ने बीती दिन देर शाम मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा सौंप दिया। 13 अप्रैल 2012 को भाटी आयोग के गठन को नोटिफिकेशन जारी हुआ था, वहीं 10 मई 2012 को आयोग को सौंप सौंपने का नोटिफिकेशन किया गया, पांच मार्च 2013 को भाटी आयोग द्वारा पीडीसी पर पहली जांच रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी गई और 19 मार्च 2013 को सरकार ने यह रिपोर्ट विधानसभा में रखी।
    भाटी आयोग पर पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का कहना है कि भाटी जांच आयोग पर दबाव बनाकर प्रदेश में काबिज कांग्रेस सरकार ने बंद कमरे में रिपोर्ट तैयार कराई, इतना ही नहीं जांच आयोग ने अधिनियम के सेक्शन आठ-बी का भी उल्लंघन किया। उनके अनुसार आरोपियों का पक्ष भी जांच रिपोर्ट में आना चाहिए था, जो कि नहीं आया। भाटी जांच आयोग की रिपोर्ट और सिडकुल घोटाले को लेकर बीती 14 मार्च से आहुल विधानसभा सत्र मात्र पांच दिन ही चल पाया, जिसमें जहंा भाजपा ने सिडकुल घोटाले को हथियार बनाकर विधानसभा की कार्यवाही नहीं चलने दी, वहीं कांग्रेस ने भाटी आयोग का डर दिखाकर भाजपा पर दबाव बनाने की कोशिश की। अंततः चार दिन पूर्व भाटी आयोग की रिपोर्ट को एफआईआर मानते हुए कृषि अनुभाग के महावीर सिंह नेगी द्वारा कोतवाली में बेनामी रिपोर्ट दर्ज करा दी गई, जिसके बाद से भाजपा का पारा सातवें आसमान पर था।
    राजनैतिक हलकों में अभी यह मामला चल ही रहा था कि बीती शाम के.आर. भाटी ने मुख्यमंत्री को इस्तीफा सौंप दिया और प्रदेश सरकार ने यू.पी. कॉडर के रिटायर्ड आईएएस ऑफिसर सुशील चंद त्रिपाठी की अध्यक्षता में एक सदस्यी जांच आयोग का गठन कर डाला। अब भाटी आयोग द्वारा उत्तराखण्ड बीज एवं तराई विकास निगम की रिपोर्ट सरकार को सौंपे जाने के बाद त्रिपाठी आयोग के पास स्टर्जिया बायो कैमिकल, सूक्ष्म एवं लद्यु जल विद्युत परियोजनाओं के आवंटन में धांधली, महाकुंभ घोटाला, आपदा राहत घोटाला और वर्ष 2007 से 2012 के बीच केंद्र पोषित योजनाओं में अनियमितताओं की जांच के साथ ही 2010 में ढेंचा बीज घोटाला और कार्बेट नेशनल पार्क में भूमि के विक्रय हस्तांतरण की जांच की जिम्मेदारी अब त्रिपाठी आयोग पर है। त्रिपाठी आयोग के गठन पर भाजपा नेता व पूर्व कृषि मंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत का कहना है कि सरकार द्वारा भाजपा पर दबाव बनाने की नियत से रिटायर्ड आईएएस अधिकारियों के नेतृत्व में आयोग का गठन किया जा रहा है, जो कि सरासर गलत है। उन्होंने कहा कि यदि कांग्रेस सरकार में थोड़ी भी ईमानदारी बची है तो उसे वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों के नेतृत्व में आयोग गठित करने की जगह किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश से जांच करानी चाहिए।
वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत ने कहा कि भाटी आयोग के चेयरमैन के0आर0 भाटी के त्यागपत्र पर कांग्रेस का यह कहना कि राजनीति में सुचिता के लिए यह त्यागपत्र हुआ है। कांगेस्र का यह कहना कि यह त्यागपत्र लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा और आयोग की सुचिता बनाये रखने के लिए किया गया है, पूर्णतः असत्य है क्यों कि यह सर्वविदित है कि जिस प्रकार से भाटी आयोग ने अनान-फानन में अपनी रिपोर्ट दी और बिना किसी ठोस सबूत पर लोगांे पर दोष मढे, ऐसा आज तक भारत के इतिहास में कहीं नही हुआ। तीरथ सिंह रावत ने अपने सभी विधायक, नेता प्रतिपक्ष को बधाई देते हुए कहा कि जिस प्रकार से सदन के अंदर लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए संघर्ष किया गया वह प्रदेश की जनता के लिए और जन लोकतंत्र की रक्षा के लिए आवश्यक था और सत्य के सामने इस सरकार को झुकना पड़ा। उन्होंने कहा कि सिड़कलु घोटाला जो कि हजारों, करोड़ों रूपये का है, पर भारतीय जनता पार्टी का संर्घष सदन के अन्दर और बाहर जारी रहेगा। त

कांग्रेस में किसी बड़े परिवर्तन की संभावना!

कांग्रेस में किसी बड़े परिवर्तन की संभावना!
राजेन्द्र जोशी
देहरादून  । राहुल गांधी के दौरे के बाद प्रदेश की राजनीति में परिवर्तन की उम्मीदें जगने लगी थी। क्योंकि कार्यकर्ताओं से फीडबैक के बाद राहुल गांधी को यह कहना पड़ा था कि राज्य में कोई बड़ा परिवर्तन हो सकता है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बहुत जल्द प्रदेश में कांग्रेस संगठन का नेतृत्व जहंा सतपाल महाराज के हाथ आने की उम्मीद बतायी जा रही है वहीं प्रदेश में सत्ता नेतृत्व में भी परिवर्तन के आसार नजर आने लगे हैं। इतना ही नहीं जानकारी के अनुसार कांग्रेस में सत्ता, संगठन और सरकार में आमूल चूल परिवर्तन की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता।
     राज्य के अस्तित्व में आने के दिन से लेकर आज तक प्रदेश में राजनैतिक अस्थिरता व्याप्त रही है, प्रदेश में चाहे भाजपा की सरकार सत्तासीन रही हो अथवा कांग्रेस की दोनों ही दल प्रदेश को स्थायी नेतृत्व देने में नाकामयाब ही रहे हैं। कहने को तिवारी सरकार ने ही पूरे पांच साल तक सत्ता तो चलाई लेकिन उनकी भी पूरे पांच साल तक टांग ख्ंिाचाई रही अन्तः उन्होने चुनाव की घोषणा के बाद अपने के मुख्यमंत्री आवास के भीतर ही रखा और चुनाव प्रचार में भाग नहीं लिया। राजनैतिक दिग्गज बताते हैं कि यदि तिवारी बाहर निकल चुनाव में थोड़ा भी समय देते तो 2007 में प्रदेश में भाजपा की जगह एक बार फिर कांग्रेस की सरकार होगी। कमोवेश इस बार भी ऐसा ही हो रहा है कांग्रेस के नेता हरीश रावत के काफी मेहनत-मशक्कत के बाद प्रदेश में कांग्रेय की सरकार बन तो गयी लेकिन कांग्रेस ने सत्ता विजय बहुगुणा के हाथों सौंप दी। बस तब से ही सत्ता संघर्ष जारी है।
होली के माहौल के बीच कांग्रेस संगठन और सत्ता में फेरबदल की खबरें सोमवार को चर्चाओं के केन्द्र में रही। जहां एक ओर दिल्ली कांग्रेस आलाकमान द्वारा नये प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा को लेकर कांग्रेसी नेताओं को आपस में चर्चा करते हुए देखा गया वहीं निगम चुनावों को लेकर होने वाले आरक्षण का मुद्दा भी चर्चाओं के केन्द्र में है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य को बदले जाने की कवायद लंबे समय से जारी है लेकिन बीते दिनों उनके विरोधी खेमे द्वारा कांग्रेस संगठन का कामकाज ठीक न चलने और एक व्यक्ति एक पद को आधार बनाकर उन्हें इस पद से हटाये जाने की मांग की जा रही है। यह मुद्दा अब तक टिहरी लोकसभा उपचुनाव के कारण लटका रहा था और अब वर्तमान समय में होने वाले निकाय और पंचायत चुनावों के मद्देनजर इससे टाले जाने की खबरें थी लेकिन दिल्ली के सूत्रों के अनुसार अब इससे और अधिक समय तक नहीं टाला जायेगा और संभावत जल्द ही नये प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा की जा सकती है। हालांकि अभी कुछ कांग्रेसी नेताओं का यह भी कहना है कि अब जो कुछ होगा वह होली के बाद ही होगा। प्रदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य वर्तमान में राज्य कैबिनेट में मंत्री भी है उन्हें मंत्री बनाए जाने के बाद से ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की बागडोर युवा हाथों में सौंपने की मांग की जा रही थी साथ ही कैबिनेट मंत्री होने की वजह से संगठन का कामकाज ठीक से न चला पाने का आरोप लगाया जा रहा था। कांग्रेस में एक व्यक्ति एक पद की पंरपरा का भी तर्क कुछ कांग्रेसियों द्वारा दिया जा रहा है राहुल गांधी के दून दौरे में भी नये अध्यक्ष की घोषणा का मुद्दा चर्चाओं में था।
   यहां यह भी उल्लेखनीय है कि नये प्रदेश अध्यक्ष के लिए अब तक कई नाम सामने आ चुके है जिनमें संासद प्रदीप टम्टा से लेकर सांसद सतपाल महाराज के नाम शामिल है। वर्तमान समय में यह भी चर्चा आम है कि इस दौड़ में सतपाल महाराज सबसे आगे है और हरीश रावत भी उनके नाम पर सहमति जता चुके है। उधर निगम के मेयर पद को लेकर भी दिग्गज नेताओं की लंबी कतार है। हालांकि निर्वाचन आयोग द्वारा परिसीमन और आरक्षण के बारे में अभी निर्णय लिया जाना है लेकिन चर्चा है कि देहरादून निगम में मेयर का पद दलित महिला अथवा अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित किया जा रहा है। इस खबर के बाद कई कांग्रेसी दिग्गज नेताओं के सपने तार-तार हो सकते हैं। कई स्तर पर कांग्रेस में फेरबदल की तैयारियां जारी है और इस फेरबदल के बीच कांग्रेसियों के बीच चर्चाएं जोरों पर है। सत्ता से लेकर संगठन तक में होने वाले इस फेरबदल को लेकर कांग्रेस में खासी हलचल दिखाई दे रही है।

मंगलवार, 26 मार्च 2013

29 साल पहले मरे व्यक्ति से खरीदी आईपीएस सिद्धू ने जमीन

29 साल पहले मरे व्यक्ति से खरीदी आईपीएस सिद्धू ने जमीन
वन भूमि पर बढ़ रहे हैं बेतहाशा कब्जे, वन विभाग की चुप्पी पर सवालिया निशान!
राजेन्द्र जोशी

देहरादून। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से सटे जंगलों में राजधानी में तैनात कई अधिकारी वन भूमि को कब्जाने पर लगे हैं। इसका ताजा उदाहरण राजपुर क्षेत्र में एक आईपीएस अधिकारी द्वारा खरीदी गई उस विवादास्पद जमीन का है जिसका मालिक 1983 में स्वर्ग सिधार गया था और बीते महीने इस आईपीएस अधिकारी ने उससे जमीन का सौदा कर जमीन अपने नाम करा दी। ठीक इसी तरह राजधानी क्षेत्र के कई और स्थानों पर भी वन भूमि पर कब्जा करने की नियत से जंगलो का सफाया आज भी जारी है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पुलिस के इस अधिकारी के मातहत पुलिस कर्मी अब वन अधिकारियों को धमकानें पर जुट गये हैं कि वे इस मामले में चुप्पी साध लें।  

पुलिस मुख्यालय में तैनात इस आईपीएस अधिकारी ने राजपुर क्षेत्र के वीरगिर वाली गांव के जगंल की जमीन पर बीते दिन 25 हरे साल के पेड़ कटवा डाले। इस जमीन पर यह अधिकारी फार्म हाऊस बनाना चाहता है ऐसा सूत्रों ने बताया है। इतना ही नहीं 7450 वर्ग मीटर इस जमीन पर लगभग तीन 100 से ज्यादा साल के हरे वृक्ष खड़े हैं। जिनमें से लगभग 25 पेड़ों को बीते दिन काट दिया गया है। एक जानकारी के अनुसार आईपीएस सिद्धू ने जिस जमीन की रजिस्ट्री अपने नाम करवाई है उस जमीन पर 55 साल पुराना मकान दिखाया गया है जबकि मौके पर वहां मकान का एक खंडर ही मौजूद है। इतना ही नहीं आईपीएस अधिकारी द्वारा जमीन की रजिस्ट्री को लेकर भी तरह-तरह के सवाल उठने लगे हैं। सूत्रों ने बताया है कि जिस नत्थूराम पुत्र मटकूमल्ल से आईपीएस ने जमीन खरीदी है उसकी मौत 1983 में हो चुकी है। 29 साल पहले मर चुके नत्थूराम से आईपीएस अधिकारी ने राजस्व अभिलेखों के अनुसार खसरा नम्बर एक (क) पुराना नम्बर 1/1 खतौनी संख्या 6 की 1.490 हेक्टेयर जमीन खरीदी है। जिसके एवज में नत्थूराम को एक करोड़ 20 लाख रूपये दिये गये जिस पर 35 लाख की स्टांप डियूटी भी चुकायी गई जबकि इस जमीन का दाम सरकारी दरों के हिसाब से लगभग साढ़े छह करोड़ बताया गया है। एक जानकारी के अनुसार नत्थूराम के पोते शरदसूद ने वन विभाग के अधिकारियों के बताया कि उसके दादा के नाम से किसी ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर भूमि बेच डाली है। जबकि उनका कहना है कि उसके दादा नत्थू राम के मृत्यु आज से 29 साल पहले हो चुकी है और यह जमीन हमारे परिजनों यशपाल,सत्यपाल, राजपाल, विजयपाल तथा मेरे दादा नत्थू राम के नाम दर्ज है, 
    राजधानी से लगे तमाम इलाको में वन भूमि पर कब्जे को लेकर कमोवेश यही स्थिति है। जोहड़ी गांव के जंगल से लगी वन भूमि में भी बीते दिन 20 पेड़ों को काट वन भूमि को हड़पने की कोशिश का मामला सामने आया है। वहीं भगवंतपुर, पुरकुल, सहस्त्रधारा, नवादा, दुधली, सहसपुर, ऋषिकेश, विकासनगर आदि क्षेत्रांे में भी वन भूमि कब्जाने का मामला लगातार सुर्खियों में रहा है, लेकिन कभी पुलिस के बड़े अधिकारियों, कभी राजस्व के बड़े अधिकारियों और कभी आला प्रशासनिक अधिकारियों और नेताओं द्वारा वन भूमि पर कब्जे को लेकर मामले तो दर्ज हुए लेकिन इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है। परिणामस्वरूप वन भूमि पर कब्जे करने वालों के हौसले बुलंद हैं और वन विभाग की चुप्पी पर सवालिया निशान।

सोमवार, 25 मार्च 2013

सिडकुल के बाद अब आईटी पार्क की ज़मीन बेचने की तैयारी!

सिडकुल के बाद अब आईटी पार्क की ज़मीन बेचने की तैयारी!
राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 23 मार्च। सिडकुल की रूद्रपुर और हरिद्वार की जमीनों को कौड़ियों के भाव बेचने के बाद अब राज्य सरकार देहरादून स्थित आईटी पार्क की वह जमीन बेचने जा रही है जिस पर कांग्रेस के ही मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने बेरोजगारों को रोजगार दिलाने का सपना देखा था।
पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी जिन्हें भविष्यदृष्टा के रूप में जाना जाता है का सपना था कि रूद्रपुर,सितारगंज,भगवानपुर,हरि
द्वार, रोशनाबाद, सेलाकुई,कोटद्वार तथा काशीपुर में औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना कर राज्य के बेरोजगार युवकों को रोजगार उपलब्ध कराने में इन क्षेत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका हो ताकि राज्य से पलायन को रोकने के साथ ही स्थानीय लोगों को उनके पास ही रोजगार उपलब्ध हो सके। तिवारी शासनकाल में इन औद्योगिक क्षेत्रों की ओर औद्योगिक घरानों ने रूख भी किया। लेकिन सरकार की थकाऊ कार्यप्रणाली से आजीज आ चुके कई उद्योग समूह यहां के अधिकारियों व नेताओं का गैर सहयोगी व्यवहार देखते हुए वापस चले गए। परिणामस्वरूप किसानों को उजाड़ कर औद्योगिक क्षेत्रों में सरकार द्वारा खरीदी गई सैकड़ों एकड़ भूमि बंजर हो गई। बहुगुणा सरकार के आने के बाद राज्य के कुछ नौकरशाहों और बड़े नेताओं की नजरे इन जमीनों पर जा टिकी और उन्होंने इन जमीनों पर कंक्रीट के बहुमंजिले भवनों का सपना देखना शुरू कर दिया और इन जमीनों को बेचने के लिए मुफीद भूूमाफियों की तलाश शुरू कर दी। इसी तलाशी के दौरान उन्हें वह बिल्डर मिल गया जो उनकी हर ख्वाहिश पूरी कर सकता था और राज्य सरकार ने उसे औने -पौने दामों पर बेच भी डाला।
ठीक इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने राजधानी के सहस्त्रधारा रोड़ पर आईटी पार्क की स्थापना कर राज्य के बेरोजगारों को रोजगाार का सपना देखा था। लेकिन सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार राज्य सरकार के कुछ अधिकारियों और बड़े नेताओं की गिद्ध दृष्टि इस जमीन पर भी पड़ गई है। सूत्रों ने बताया कि राज्य सरकार के कुछ बडे़ अधिकारी इस जमीन को किसी बिल्डर को बेचने जा रहे हैं। जिसके लिए अखबारों में दिखावे के लिए विज्ञापन भी प्रकाशित किए जा चुके हैं। जिस भूमि को आईटी पार्क के लिए खरीदा गया था और जिस पर अंर्तराष्ट्रीय स्तर की आईटी कम्पनियों को अपने संस्थान खोलने से वह भूमि भी सिडकुल की भूमि की तरह बिकने को तैयार है ऐसे में अब यह सवाल उठता है कि राज्य की बेशकीमती जमीनों को यदि इसी तरह खुर्द -बुर्द किया जाता रहा तो भविष्य में राज्य में सिडकुल और आईटी पार्क जैसे आस्थानों के लिए भूमि ही नहीं बचेगी।