बुधवार, 19 जून 2013

कहां हैं उत्तराखण्ड के वन्य जीव प्रतिपालक किसी को नहीं पता !

कहां हैं उत्तराखण्ड के वन्य जीव प्रतिपालक किसी को नहीं पता !
अधिकारी अपने मातहत अधिकारियों के नियंत्रण में नहीं!
राजेन्द्र जोशी
देहरादून । जलागम निदेशालय में विवादित रहे वर्तमान मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक को प्रदेश का वन महकमा पिछले 20 दिनों से ढूंढ रहा है, लेकिन वे उन्हें ढूंढे नहीं मिल रहे हैं। उत्तराखण्ड में ऐसे अधिकारियों की काफी लंबी फेहरिस्त हैं, जो अपने आलाधिकारियों को अपने छुट्टी पर जाने की इत्तला  तक नहीं देते हैं।
    मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक एस.एस. शर्मा की जब प्रमुख वन संरक्षक डा. आर.बी.एस. रावत ने ढूंढ की तो वे उन्हें नहीं मिले। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार वे पिछले काफी लंबे समय से दिल्ली में हैं और अवकाश पर भी बताए गए हैं, लेकिन उन्होंने अपने किस मातहत अधिकारी से अवकाश लिया, इसकी जानकारी न तो वन विभाग के आलाधिकारियों को है और न ही प्रदेश के वन सचिव को। जलागम निदेशालय में विवाद में रहने वाले एसएस शर्मा एक बार फिर विवादों में आ गए हैं। वहीं वन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार एसएस शर्मा के गायब होने के इन दिनों प्रदेश में एक के बाद एक तीन बाघों की मौत हो गए है, लेकिन बाघों की मौत पर कौन जवाब देगा, यह वन महकमा इसलिए तय नहीं कर पा रहा है कि मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक गायब हैं। वन महकमें के अधिकारियों के बीच मची जंग एसएस शर्मा के छुट्टी पर जाने के बाद और खुलकर सामने आ गई है। इससे यह लगता है कि प्रमुख वन संरक्षक डा.  आरबीएस रावत का अधिकारियों पर नियंत्रण नहीं है और वन महकमे के सारे अधिकारी बेलगाम घूम रहे हैं। वहीं एक जानकारी के अनुसार एसएस शर्मा ने कहा है कि वे अवकाश पर हैं और उन्होंने अपने अवकाश की जानकारी प्रमुख वन संरक्षक और प्रमुख सचिव वन एवं पर्यावरण को दे दी है। उन्होंने प्रमुख वन संरक्षक डा. आरबीएस रावत पर आरोप लगाते हुए यह भी कहा जब वे स्वंय कई बार बिना कार्यभार दिए देश से बाहर जा चुके हैं, तो मुझसे ही यह सवाल क्यों किया जा रहा है। अधिकारियों की आपस में खींची तलवारें इस बात का सबूत है कि वन विभाग में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है, मामले में प्रमुख वन संरक्षक का बयान है कि मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक का मोबाईल काफी समय से बंद चल रहा है और वे कहां है, इसकी सूचना उनको नहीं है। उन्होंने यहां तक कहा कि वे बिना अवकाश लिए छुट्टी से गायब हैं, जबकि इस दौरान कई बाघ भी मर चुके हैं। वन विभाग के उच्च अधिकारियों के बीच मचे इस घमासान से यह साफ हो गया है कि अधिकारी अपने मातहत अधिकारियों के नियंत्रण में नहीं हैं।

स्थिति स्पष्ट करे सरकार: उत्तराखण्ड डेमोक्रेटिक एलाइन्स

स्थिति स्पष्ट करे सरकार: उत्तराखण्ड डेमोक्रेटिक एलाइन्स
राजेन्द्र जोशी
देहरादून,15 जून । इधर उत्तराखण्ड की राजनीति भी पल-पल नई करवट ले रही है, उधर मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने 17-18 जून को एक बार फिर नाराज विधायकों को सुनने का मन बनाया है, तो इधर सरकार को समर्थन दे रहे उत्तराखण्ड डेमोक्रेटिक एलाइन्स के नेताओं ने कहा कि प्रदेश सरकार को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए, क्योंकि विधायकों की नाराजगी के चलते प्रदेश में अनिश्चितता का वातावरण बना हुआ है और विकास कार्य ठप्प हो गए हैं। एलाइन्स के सदस्यों का कहना है कि उन्होंने स्थाई और मजबूत सरकार के लिए कांग्रेस को समर्थन दिया है, यदि कांग्रेस स्थिति स्पष्ट नहीं करती है तो उन्हें भी सोचने पर मजबूर होना पड़ेगा।
    गौरतलब हो कि बीते सप्ताह मुख्यमंत्री ने प्रदेश सरकार से नाराज चल रहे पांचों विधायकों को सचिवालय में अपने कार्यालय पर वार्ता के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन विधायक ने उनके प्रस्ताव को ठुकराकर प्रदेश के नियोजन मंत्री को अपनी समस्याओं को पुलिंदा थमा गए थे, जिसके बाद विधायकों द्वारा मुख्यमंत्री को न मिलने को लेकर प्रदेश सरकार की काफी फजीहत भी हुई थी। इसके बाद अब एक बार फिर मिल रही जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री ने 17 व 18 जून को इन विधायकों की समस्याओं को सुनने का मन बनाया है, वहीं दिल्ली स्थित सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश की राजनीतिक स्थिति से असहज मुख्यमंत्री बीते तीन दिन से सोनिया दरबार में मिलने के लिए समय की मंाग कर रहे हैं, लेकिन समाचार लिखे जाने तक उन्हें सोनिया दरबार से कोई न्यौता नहीं मिल पाया था।
    यहां यह भी उल्लेखनीय है कि प्रदेश सरकार में शामिल उत्तराखण्ड डेमोक्रेटिक एलाइन्स के चार मंत्रियों सहित एक दर्जा धारी ने प्रदेश की वर्तमान राजनैतिक स्थिति पर सरकार से स्थिति स्पष्ट करने को कहा है, इन नेताओं का कहना है कि उन्होंने स्थाई और स्वच्छ पारदर्शी सरकार के लिए विजय बहुगुणा को समर्थन दिया था, लेकिन जब कांग्रेस के विधायकों का ही उन पर भरोसा नहीं है, तो वे कैसे उन पर भरोसा कर सकते हैं। उन्होंने सरकार से स्थिति स्पष्ट करने की मांग करते हुए कहा कि प्रदेश का राजनैतिक वातावरण अस्थिर है और राज्य के तमाम विकास कार्य ठप्प पड़े हुए हैं, लिहाजा सरकार को प्रदेश की जनता सहित सरकार को समर्थन दे रहे सहयोगी दलों को अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।

गंगा के रौद्र रूप में छिपे कई राज

गंगा के रौद्र रूप में छिपे कई राज
राजेन्द्र जोशी
देहरादून। ‘‘राम तेरी गंगा मैली हो गई पापियों के पाप धोते-धोते‘‘ गंगा के रौद्र रूप और उसमें बहते गंदले पानी को देखकर बालीवुड के मशहूर फिल्म निर्माता राजकपूर की वह फिल्म ‘‘राम तेरी गंगा मैली‘‘ का यह टाईटल सौंग याद आ जाता है। गौमुख से लेकर गंगा सागर तक महाराजा भगीरथ के अथक प्रयासों से निकाली गई यह गंगा आज भले ही विकराल रूप लेकर बह रही है, लेकिन गंगा की इस विनाशलीला के लिए हम खुद भी जिम्मेदार हैं।
देश के उच्चतम न्यायालय ने वर्षों पहले उत्तर प्रदेश सरकार से लेकर उत्तराखण्ड व गंगा के मार्ग में आने वाले उन तमाम राज्यों को चलाने वाले अधिकारियों से लेकर जनप्रतिनिधियों व मुख्यमंत्रियों को साफ-साफ बता दिया था कि गंगा तट के दोनों ओर 200-200 फीट तक किसी भी तरह का निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए, लेकिन सफेदपोश और ब्यूरोक्रेट्स के साथ भूमाफियाओं के गठजोड़ ने गंगा को इतना संकुचित कर दिया कि उसके पास बहने के लिए स्थान की कमी होने लगी। बीते 72 घण्टो के दौरान उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में गंगा और उसकी सहायक नदियों का जल स्तर इतना बढ़ा की उसने खुद ही गंगा तट से लगभग 200-200 फीट में बने उन तमाम पुलों, सड़कों सहित होटलों, लॉजों और मकानों को लील लिया। गंगा के बहाव क्षेत्र में गौमुख से लेकर हरिद्वार तक अल्कापुरी बांक से लेकर देवप्रयाग तक और अन्य सहायक नदियों ने उसके बहाव में बाधा उत्पन्न कर रहे उन सभी निर्माणों को ध्वस्त कर दिया, जिसे मानव ने प्रकृति के विरूद्ध निर्मित किया था। उत्तराखण्ड की धरती से निकली उपजाऊ मिट्टी और उसके साथ बहकर जा रहे खजिन सम्पदा ने गंगा क्षेत्र की भूमि को उपजाऊ बनाया है।
गंगा में आई बाढ़ से भले ही गौमुख से लेकर हरिद्वार तक लोगों का जीवन मुहाल किया हो, लेकिन गंगा के इस रौद्र रूप ने इस क्षेत्र के लोगों सहित प्रदेश सरकार को यह संदेश भी दिया है कि वे उसके बहाव क्षेत्र में अतिक्रमण न करें अन्यथा उनका वह विनाश कर देगी।
गंगा के इस संदेश को प्रदेश की सरकार और गंगा तटों पर अतिक्रमण कर रहे भूमाफियाओं और सफेदपोश व अफसरशाही के गठजोड़ को समझना होगा कि प्रकृति के न्याय के सामने उनकी ताकत कुछ भी नहीं है और गंगा ने यह संदेश भी दिया है कि प्रकृति से अनावश्यक छेड़छाड़ और गंगा तटों पर उग रहे कंक्रीट के जंगल को अब वह बख्शने वाली नहीं, लिहाजा अब सरकार और अतिक्रमण कारियों को चाहिए कि वह गंगा तटों से दूर हट जाएं। जहंा तक गंगा तटों पर अतिक्रमण कर बनाए गए निर्माण और बहने के बाद उनके मुआवजे की बात है तो यह गेंद अब सरकारों के पाले में है कि वह इस तरह के अवैध निर्माण पर प्रभावित लोगों की जेबें कितनी गरम करती हैं।

नहीं हो पाया राज्य के 233 संवेदनशील गांवों का विस्थापन

नहीं हो पाया राज्य के  233 संवेदनशील गांवों का विस्थापन
राजेन्द्र जोशी
देहरादून  । सरकार ने उत्तराखंड के 233 गांवों को प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से बेहद संवेदनशील गांव के रूप में चिन्हित तो किया है, लेकिन अभी तक इन गांवों के विस्थापन की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। पिथौरागढ़, चमोली और बागेश्वर जिलों में आपदा की दृष्टि से संवेदनशील गांवों की संख्या सर्वाधिक है। अकेले पिथौरागढ़ जिले में 71 संवेदनशील गांव चिन्हित है। इन गांवों का अस्तित्व खतरे में है। बरसात के दिनों में इन गांवों के लोग डर-डर कर जीते हैं।
  चमोली जिले में प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से 49 संवेदशनील गांव, बागेश्वर जिले में 42 संवेदनशील गांव, पिथौरागढ़ जिले में 71 गांव, पौड़ी गढ़वाल में 19 संवेदनशील गांव, अल्मोड़ा जिले में 9 संवेदनशील गांव, नैनीताल जिले में 6 संवेदनशील गांव, टिहरी गढ़वाल जिले में 19 संवेदनशील गांव, उत्तरकाशी जिले में 5 संवेदनशील गांव, रुद्रप्रयाग जिले में 1 गांव, देहरादून जिले में 2 गांव, उधमसिंहनगर में 1 गांव और चंपावत जिले में 9 गांव प्राकृतिक आपदा की दृष्टि से संवेदनशील गांव हैं। पिथौरागढ़ जिले में मुनस्यारी ब्लॉक के अंतर्गत मदकोट-भौराबाड़, बसंतकोट, सुरिंग-गनघरिया, तोमिक-झापुली, डोबरी-नारकी, साणा, कुलथम, जिमिया, नाचनी, सेनर, लाझेकला-गिरगांव-भंडारीगांव, साईपोलू-साईंभाट, बजेता-जिबलाधार-पांगरपानी-कोलि
या, रूडीमोला, मवानी-दवानी, वल्थी-रोपड़, गोल्फा, चंचना-दाफा, पापड़ी-पैकुती, सेरा-सरईधार-कैठीतेली, बरा-बांसबगड़, नई बस्ती-नाचनी, मवानी-दवानी-गढ़ानी, सिरमौला, साईधूरा, होकरा, गिनीगांव, पुरदम, रूई सपाटा, कापा, कोटा गांव को प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से संवेदनशील घोषित किया गया है। बेरीनाग ब्लॉक अंतर्गत योग्यूड़ा-गर्जिला, घनकुराली, कूड़ी-लोहाथल, हलियाडोब-संगोड़ा, कराला महर, आमथल और धारचूला ब्लॉक के जिप्ती तोक गर्वा, स्याकूली, जुम्मा, सुवा, देवल, बगीचा, बिनकाना, माणाखेत, ग्वालगांव, तड़कोट, हाडडाणा, ताकुंल-मांगती, खेला-चैतुलकोट, रैतोली, खुमती-कटौजिया, गर्गुवा, खेतगांव, बेलकोट, छल्मा-छिलासौ, न्यू झिमारगांव, बरमतोम-स्यालधार-मल्लासैम, कनारतोक-टोयला, बुंगबुंग, घट्टाबगड़, जम्कू, घटखोला, लुमती, बलुवाकोट-पोखरी और डीडीहाट ब्लॉक के जौरासी, सिंगाली, कौली हुड़की, नई बस्ती डीडीहाट, कनालीछीना, देवलथल गांव दैवीय आपदा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील हैं। चमोली जिले में दशोली विकासखंड के पिंलग-खोला, सैकोट-नगाड़ी, सैकोट-टैटुणा, रोपा-कोलधार, बछेर-गांधीनगर, पलेठी-भरसेंजी, नैथोली, सरतोली, लासी, लस्यारी-सिन्ना, कनोल, नारंगी, मंजू लगा बेमरु व तल्ला रोपा गांव दैवीय आपादा की दृष्टि से संवेदनशील हैं। पोखरी विकासखंड में गुडम, बुंगा तोक व बंगथल, जोशीमठ ब्लॉक में हनुमान चट्टी तोक में घृत गांव, द्वीप तपोण, करछौ, पल्ला, जखोला, किमांणा, मोल्टा, भैंटा-पिलखी, पाखी-बजूड़ा-अलग्वाड़, ल्यारी थौणा, चाई, गणाई, टंगली मल्ली, टंगणी तल्ली, दाडिमी, डुग्री, भैंटा, पंया चोरमी, खरोड़ी, परसारी व बरोसी गांव संवेदनशील हैं। थराली ब्लॉक में भ्याड़ी, छपाली, त्यूला, नौण, नैना, कर्णप्रयाग ब्लॉक में मैखुरा, नौसारी, चमोली ब्लॉक में भरसंजी, बणद्वारा, नारंगी और गैरसैंण ब्लॉक का देवपुरी गांव संवेदनशील श्रेणी में है। बागेश्वर जिले में बागेश्वर ब्लॉक में देवलचौड़ा, पपोली, बहाली व मटियोली और कपकोट जिले में बघर-तोक डाना, सुमगढ़, कर्मी गांव, स्यालढूंगा, कन्यालीकोट, शामा, कफलानी, बडे़थ, रिखाड़ी, सुडिंग, सलिंग, सौंग, गासी, मुनार, दोबाड़, काफलीकमेड़ा, तोली, किलपारा, कुंवारी, वाछम, लीती, जैंती, स्यूणीदलाड़ी, गोगिना-मोभेरी तल्ला-लोथरे, कीमू-तलगाड़ा, गुण्ठी-कालापैर-कापड़ी, लामाघर, नैकोड़ी, पोथिंग तोक-छोया-भकाना, तोली-रोपाड़ी, बदियाकोट-तोक पटाख, झूनी का गोरा तोक, गासी कुई तोक, मिकिला खलपट्टा-कुलकुटी तोक, हरकोट-पासगांव तोक और कांडा विकासखंड में सेरी, बास्ती व द्वारी गांव को प्राकृतिक आपदाकी दृष्टि से संवेदनशील घोषित किए गए हैं। सरकार ने इन गांवों के सुरक्षित स्थान पर विस्थापन की बात कही थी लेकिन अब तक विस्थापन नहीं हो पाया है। इन गांवों में सबसे अधिक खतरा बरसात के दिनों में बना रहता है। बरसात में भूस्खलन, भू-धंसाव, बाढ़ और बादल फटने की घटनाओं के डर से लोग ठीक ढंग से सो भी नहीं पाते।

राज्य के 1,144 जर्जर स्कूल भवनों का नहीं हो पाया पुनर्निर्माण

राज्य के 1,144 जर्जर स्कूल भवनों का नहीं हो पाया पुनर्निर्माण  

-जर्जर पाठशाला भवन कभी भी ढहा सकते हैं कहर


-अल्मोड़ा में सर्वाधिक 212 व चमोली में 207 जर्जर स्कूल


-शिक्षा विभाग स्कूलो के रखरखाव के प्रति बना है उदासीन
राजेन्द्र जोशी
देहरादून  । शिक्षा विभाग जर्जर विद्यालय भवनों के पुनर्निर्माण और रखरखाव के प्रति उदासीन बना हुआ है। जर्जर हो चुके विद्यालय भवन कभी भी कहर ढहा सकते हैं। उत्तराखंड में विभिन्न जनपदों में 1,144 स्कूल भवन जर्जर हालत में हैं। कुमांऊ मंडल के अल्मोड़ा जिले में सर्वाधिक 212 व गढ़वाल मंडल के चमोली जनपद में 207 जर्जर स्कूल भवन हैं। शिक्षा विभाग द्वारा यह जर्जर विद्यालय भवन चिन्हित तो किए गए लेकिन इनका पुनर्निर्माण कार्य नहीं हो पाया। कई जगह विद्यार्थी खुले आसमान के नीचे बैठकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं तो कहीं कक्षाएं पंचायत भवनों में चल रही हैं, कुछ जगह विद्यार्थी जर्जर भवनों में ही बैठ रहे हैं।   
  राज्य में चमोली जिले में 207, अल्मोड़ा में 212, पिथौरागढ़ में 137, रुद्रप्रयाग में 97, टिहरी में 131, नैनीताल में 75, देहरादून मे 113, चंपावत में 69, पौड़ी में 37, हरिद्वार में 24, उत्तरकाशी में 15, उधमसिंहनगर में 14 और बागेश्वर जिले में 13 विद्यालय जर्जर हालत में है। देहरादून जनपद अंतर्गत चकराता और कालसी विकासखंडों में सर्वाधिक जर्जर विद्यालय भवन हैं। इसके अलावा सहसपुर ब्लॉक, विकासनगर ब्लॉक, रायपुर ब्लॉक व डोईवाला ब्लॉक और देहरादून नगर क्षेत्र में भी कई विद्यालय भवन जर्जर हालत में हैं। चकराता विकासखंड अंतर्गत प्राथमिक विद्यालय सिलामू, प्रावि सेंज, प्रावि चातरा, प्रावि मैंद्रथ, प्रावि जगराड़, प्रावि त्यूणी-प्रथम जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं। कालसी ब्लॉक अंतर्गत प्रावि आरा, प्रावि देऊ, प्रावि कोप्टी, प्रावि रानीगांव, प्रावि जुगाया, प्रावि बिसोई, प्रावि तांगड़ी-हजरा के विद्यालय भवन जर्जर हालत में हैं। विकासनगर और सहसपुर ब्लॉक के अलावा नगर क्षेत्र देहरादून में भी कई विद्यालय भवन बैठने योग्य स्थि िमें नहीं हैं। विद्यालय भवन जब से बने इनके रखरखाव की ओर विभाग ने कोई ध्यान नहीं दिया जिस कारण इनकी हालत अत्यंत दयनीय बनी हुई है। यह जर्जर विद्यालय भवन कभी भी धराशायी हो सकते हैं जिससे कि कोई बड़ा हादसा भी घट सकता है। इन जर्जर हो चुके विद्यालय भवनों की छतें जगह-जगह पर क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं और दीवारों पर दरारें पड़ी हुई हैं। फर्श उखड़ चुकी है और दरवाजे व खिड़कियों को दीमक चाट चुका है। बारीश में छत टपकने लगती हैं, जिस कारण विद्यालय प्रशासन के पास छात्रों की छुट्टी करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह जाता है। इन विद्यालय भवनों में बैठना छात्रों के लिए खतरे से खाली नहीं है। कुछ विद्यालय भवनों की हालत तो इतनी जर्जर हो चुकी है कि छात्र-छात्राओं को पढ़ाई करने के लिए खुले आसमान के नीचे बैठना पड़ता है। विभाग इन विद्यालयों भवनों के प्रति लापरवाह बना हुआ है। क्षेत्र के जनप्रतिनिधि शिक्षा विभाग से कई बार इन जर्जर विद्यालय भवनों का पुनर्निर्माण की मांग कर चुके हैं लेकिन विभागीय अधिकारियों की कानों में जूं तक नहीं रेंगी। एक ओर शिक्षा विभाग विद्यालय भवनों के रखरखाव पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की धनराशि खर्च कर रहा है वहीं, इन जर्जर विद्यालय भवनों की विभागीय अधिकारी सुध नहीं ले रहे हैं। विभाग की अनदेखी से लोगों में रोष व्याप्त है। कई विद्यालय भवनों की हालत इतनी जर्जर हो चुकी है कि वहां छात्र-छात्राओं को खुले आसमान के नीचे बैठकर पढ़ाई करनी पड़ती है।