बुधवार, 30 अप्रैल 2014

जनहित याचिका के बाद बढ़ी केवल खुराना की मुश्किलें

शंका: खुराना के राजनीतिक संबंधों के चलते  क्या वर्तमान डीजीपी उठा पायेंगे कठोर कदम !

संवाददाता
keval-khurana-sspदेहरादूनबहुगुणा सरकार में सत्ता की मलाई चाटने और बहुगुणा के पुत्र साकेत के साझीदार के रूप में चर्चित देहरादून के कप्तान रहे केवल खुराना इन दिनों एक बार फिर चर्चाओं में हैं। इससे पहले वे बहुणुणा सरकार के दौरान चर्चाओं में थे और उससे पहले वे टिहरी में हुए दरोगा भर्ती मामले में चर्चाओं में रहे थे। चर्चाओं में रहने में माहिर केवल खुराना सबसे ज्यादा तब चर्चाओं मे ंरहे जब राजधानी क्षेत्र का जिला पुलिस कार्यालय भू-मफियाओं की शरणस्थली के रूप में खासे चर्चा में रहा था। इस दौरान राजधानी क्षेत्र के तमाम भूमि विवाद न्यायालयों में निपटाये जाने के बजाय एस.एस.पी आवास व थानाकोतवालियों में सुलझाये अथवा उलझाये जाते थे। अब एक बार फिर केवल खुराना चर्चाओं में हैं इस बार वे उत्तराखण्ड में हुए टिहरी दरोगा भर्ती घोटाले को लेकर चर्चाओं में हैं वह भी तब जब यह मामला उच्च न्यायालय में गूंजा तो शासन व पुलिस मुख्यालय के होश फाख्ता हो गए कि दरोगा भर्ती घोटाले में नियमों को ताक पर रख पूर्व डीजीपी द्वारा आईपीएस केवल खुराना को सिर्फ चेतावनी देकर फाईल का बंद कर दिया गया था। अब न्यायालय ने सरकार से जब जवाब तलब कर शपथ पत्र दाखिल करने का हुक्म दिया तो शासन व पुलिस मुख्यालय में हलचल मच गई और राज्य के डीजीपी ने उत्तराखण्ड गृह सचिव को पत्र लिखा तथा कहा कि जेपी बड़ोनी बनाम राज्य व अन्य के संबंध में प्रकरण पर प्रतिशपथ पत्र तैयार करते समय संज्ञान में आया की प्रकरण में कतिपय त्रुटि हो गई है और चेतावनी का आदेश नियमानुसार नहीं है।
  पुलिस मुख्यालय की ओर से शासन से अनुरोध किया गया है कि आईपीएस केवल खुराना के विरूद्ध आॅल इंडिया सर्विसिस डिसिपलिन रूल 1969 के नियम 6 के अंतर्गत कार्रवाई करें। पुलिस मुख्यालय ने न्यायालय में भी इस शपथ पत्र को दाखिल किया है। जिससे अब आईपीएस केवल खुराना पर गाज गिरने की आशंकाएं काफी प्रबल होती नजर आ रही है। जिस तरह से केवल खुराना के दो साल तक मौज लेने के बाद अब तीन साल बाद दरोगा भर्ती घोटाले का जिन्न बोतल से एक बार फिर बाहर आ गया है, उससे पुलिस के कई बड़े अधिकारियों में हलचल मची हुई है और अब सबकी नजर सरकार पर जा टिकी है कि वह इस मामले में आगे क्या कार्रवाई करने का मन बनाएगी।
     गौरतलब है कि 23 जनवरी 2011 को संपन्न हुई उपनिरीक्षक रैंकर परीक्षा के दौरान परीक्षा केन्द्र जनपद टिहरी गढ़वाल में कतिपय अभियर्थियों द्वारा अनुचित संसाधनों का प्रयोग करने विषयक जांच पुलिस मुख्यालय द्वारा सीबीसीआईडी को सौंपी गई थी। सूत्रों का कहना है कि अपर पुलिस महानिदेशक अपराध अनुसंधान विभाग, उत्तराखण्ड ने अपने पत्र संख्या सीबी-12/2011 दिनांक 7 फरवरी 2012 के द्वारा उक्त प्रकरण से संबंधित सीबीसीआईडी की अंतिम प्रगति आख्या संख्या सीबी-12/2011 दिनांक 16 जून 2011 को पुलिस मुख्यालय को उपलब्ध कराई गई थी। जिसमे आईपीएस केवल खुराना, तत्कालीन पुलिस अधीक्षक टिहरी गढ़वाल के विरूद्ध आॅल इंडिया सर्विसिस डिसिपलिन रूलस 1969 के नियम 6 के अंतर्गत कार्रवाई की संस्तुति की गई थी।
  सूत्रों का कहना है कि तत्कालीन पुलिस महानिदेशक द्वारा केवल खुराना से उक्त संबंध में स्पष्टीकरण प्राप्त कर उन्हें गुणदोष के आधार पर    चेतावनी प्रदान करने का निर्णय लिया गया था। जिसके क्रम में तत्कालीन अपर पुलिस महानिदेशक, प्रशासन ने पत्र संख्या डीजी-1-56-2012(1) दिनांक 28 सितंबर 2012 को केवल खुराना को चेतावनी प्रदान की गई थी। बताया जा रहा है कि जिसकी प्रति तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक, मुख्यालय ने 30 अक्टूबर 2012 के द्वारा शासन को प्रेषित की थी।


जेपी बड़ोनी ने नैनीताल उच्च न्यायालय में टिहरी दरोगा भर्ती घोटाले प्रकरण में की थी  जनहित याचिका दायर 
    
 lettergovt उल्लेखनीय है कि जेपी बड़ोनी नामक एक व्यक्ति ने नैनीताल उच्च न्यायालय में टिहरी दरोगा भर्ती घोटाले प्रकरण में जनहित याचिका दायर की थी। इस मामले में न्यायालय ने राज्य सरकार से जब इस मामले के बारे में शपथ पत्र मांगा तो 2 अप्रैल 2014 को उत्तराखण्ड के डीजीपी बी0एस0 सिद्धू ने गृह सचिव को एक पत्र लिखा जिसमे कहा गया है कि इस प्रकरण पर प्रतिशपथ तैयार करते समय संज्ञान में आया कि प्रकरण में कतिपय त्रुटी रह गई है और पूर्व डीजीपी द्वारा दे गई चेतावनी नियमानुसार नहीं है। पत्र में कहा गया है कि 28 मार्च 2014 को प्रकरण में समय विचारोंपरांत यह निर्णय लिया गया की सीबीसीआईडी की अंतिम प्रगति आख्या को अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी होने के कारण नियम 1969 के नियम 6 के अंतर्गत कार्रवाई हेतु शासन को प्रेषित किया जाए। डीजीपी द्वारा गृह विभाग को लिखे पत्र में साफ तौर पर कहा गया है कि आईपीएस केवल खुराना के विरूद्ध नियम 6 के अंतर्गत कार्रवाई की जाए। डीजीपी द्वारा शासन को लिखे गए पत्र व उच्च न्यायालय में दाखिल किए गए शपथ पत्र से यह आभास हो रहा है कि आईपीएस केवल खुराना के खिलाफ सरकार कोई सख्त कदम भी उठा सकती है।
    
पुलिस महकमे के अंदर दो बार हुआ दरोगा भर्ती घोटाला लेकिन किसी बड़े अधिकारी पर नहीं गिरी इन घोटालों की गाज

  उत्तराखण्ड में 13 सालों से सरकारें भ्रष्टाचार व घोटालों को लेकर प्रदेश में भाजपा व कांग्रेस सरकारें एक दूसरे के खिलाफ चुनावी जंग जीतती आई है लेकिन आज तक किसी भी बड़े अधिकारी के खिलाफ किसी भी सरकार ने कोई कार्रवाई करने का दम नहीं दिखाया। कितनी अजीब बात है कि इन 13 सालों में पुलिस महकमे के अंदर दो बार दरोगा भर्ती घोटाला हो गया लेकिन किसी बड़े अधिकारी पर इन घोटालों की गाज नहीं गिरी। तीन साल पूर्व टिहरी में हुए दरोगा रैंकर भर्ती घोटाले की सीबीसीआईडी ने जांच की तो उसमे वहां के तत्कालीन पुलिस कप्तान का इस घोटाले में नाम सामने आ गया और सीबीसीआईडी ने आईपीएस के खिलाफ मेजर पेनल्टी देने के लिए डीजीपी के पास फाईल भेजी थी लेकिन तत्कालीन डीजीपी विजय राघव पंत ने अपने आपको शासन से बड़ा साबित करने के लिए दरोगा भर्ती घोटाले में फंसे आईपीएस केवल खुराना की फाईल को शासन के पास न भेजकर खुद ही उन्हें नोटिस जारी कर उनका जवाब लेने के बाद फाईल पर चेतावनी की टिप्पणी लिखकर उसे सीन कर दिया था। हालांकि अब न्यायालय में मामला गूंजने पर तत्कालीन डीजीपी द्वारा आईपीएस केवल खुराना को नियमों के विरूद्ध जाकर उसे क्लीन चिट देने की गूंज अब न्यायालय व शासन तक भी पंहुच चुकी है। 24 दिन पूर्व केवल खुराना के खिलाफ कार्रवाई किए जाने को लेकर पुलिस मुख्यालय ने शासन को पत्र लिखा था लेकिन सरकार ने घोटाले में शामिल केवल खुराना के खिलाफ कोई कार्रवाई करने की आज तक पहल नहीं की। जिससे सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े हो रहे है कि एक ओर तो सरकार के निजाम दावा कर रहे है कि राज्य में भ्रष्टाचार व घोटाले करने वालों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा। वहीं राज्य के तत्कालीन डीजीपी व केवल खुराना द्वारा दरोगा भर्ती घोटाले में किए गए खेल पर भी अब तक सरकार क्यों खामोश है, यह सवाल अब राज्य के गलियारों में भी तेजी के साथ गूंजने लगा।

पुलिस मुख्यालय एक बार फिर चर्चाओं में   


 उत्तराखण्ड का पुलिस मुख्यालय एक बार फिर चर्चाओं में है। इस बार पूर्व डीजीपी विजय राघव पंत की कार्यशैली पर सवाल उठे हैं तथा यह बात उभर कर सामने आ रही है कि जिस मामले में डीजीपी को नोटिस जारी करने का अधिकार ही नहीं था तो उन्होंने कैसे इस मामले में शासन को गुमराह करते हुए आईपीएस केवल खुराना को दरोगा रैंकर भर्ती घोटाले में अपने स्तर से ही चेतावनी देकर उन्हें क्लीन चिट दे डाली थी। सवाल तैर रहे हैं कि अगर यह मामला न्यायालय में न पंहुचता तो यह तय था कि दरोगा रैंकर भर्ती घोटाला हमेशा के लिए फाईल में ही दफन होकर रह जाता। अब देखना है कि सरकार पूर्व डीजीपी के खिलाफ क्या कार्रवाई करने का निर्णय लेती है और सीबीसीआईडी की जांच रिपोर्ट के आधर पर सरकार केवल खुराना के खिलाफ क्या और कब तक एक्शन लेने के लिए आगे आएगी।
  
सन् 2011 में हुआ था टिहरी दरोगा रैंकर भर्ती घोटाला, पूर्व डीजीपी विजय राघव पंत की संदिग्ध भूमिका पर उठे सवाल 
 
    सन् 2011 में टिहरी दरोगा रैंकर भर्ती घोटाला हुआ था। उस समय के डीजीपी ज्योति स्वरूप पांडे ने मामले की जांच सीबीसीआईडी को सौंप दी थी। सीबीसीआईडी ने अपनी जांच में केवल खुराना को दरोगा भर्ती घोटाले का दोषी पाया और उन्होंने खुराना के खिलाफ शासन को मेजर पेनल्टी देने के लिए संस्तुति की थी। हालांकि पूर्व डीजीपी विजय राघव पंत ने अपने आपको शासन से बड़ा साबित करने के लिए सीबीसीआईडी द्वारा केवल खुराना के खिलाफ कार्रवाई के लिए की गई संस्तुति वाली फाईल को अपने पास रख लिया था और उन्होंने सारे नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए अपने स्तर से ही केवल खुराना को नोटिस जारी किया और केवल खुराना का जवाब लेने के बाद उनकी फाईल पर चेतावनी की टिप्पणी लिखकर उसे सीन कर दिया था।  फाईल को देख लेेने के बाद विजय राघव पंत ने जिस तरह से केवल खुराना को बचाने का खेल खेला उससे अब यह सवाल खड़े होने लगे है कि आखिरकार किस उद्देश्य से खुराना को दरोगा भर्ती घोटाले में बचाने के लिए विजय राघव पंत ने शासन को गुमराह किया था। अब सवाल उठ रहे है कि क्या सरकार विजय राघव पंत के खिलाफ भी कोई सख्त कदम उठाने की पहल करेगी या उन्हें वह अभयदान दे देगी।  हालांकि पुलिस मुख्यालय ने 24 दिन पूर्व खुराना के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए शासन को पत्र भेजा था लेकिन आज तक इस मामले में सरकार की खामोशी से कई सवाल खड़े होने शुरू हो गए है।

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2014

उत्तराखंड में हुए एनआरएचएम घोटाले की सीबीआई जांच की संस्तुति


राजेन्द्र जोशी


National-Rural-Health-Mission-Recruitment-2014देहरादून  । उत्तरप्रदेश की तरह उत्तराखंड में हुए एन आर एच एम घोटाले  की सीबीआई जांच की सिफारिश के बाद  भाजपा की मुश्किले बढ़ती नजर आ रही हैं वहीं इस मामले पर भाजपा ने इसे कांग्रेस का राजनैतिक कदम  करार दिया और कहा कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव की हार से पहले अपनी झटपटाहट दिखा रही है उत्तराखंड के साथ साथ देश के कई राज्यो में केंद्र सरकार से नेशनल रूरल हैल्थ मिशन के तहत करोड़ो रूपए की धनराशि दी गयी थी जिस पर घोटाला होने की जानकारी उजागार हुई।
   उल्लेखनीय है कि इस मामले में राज्य सूचना आयोग के सदस्य अनिल शर्मा को कई बार जान से मारने की धमकी दी जा चुकी है क्योंकि उन्होने इस मामले पर राज्य सूचना आयोग में हरिद्वार निवासी रमेेश चन्द्र शर्मा द्वारा की गयी शिकायत के बाद लम्बी सुनवायी कर प्रदेश सरकार कोे इस समूचे प्रकरण की 21 नवम्बर 2011 को सीबीआइ जांच की अनुशंसा की थी जांच के दौरान कोर्ट ने पाया कि एनआरएचएम के तहत 2008 मे 14,70 करोड़ की निःशुल्क वितरण के लिए खरीदी गयी दवाओं में करोड़ो रूपये का घोटाला हुआ है यहीं नहीं खरीदी गयी दवाओं  से जुड़े दस्तावेज भी गायब हैं। स्वास्थ्य महानिदेशक ने कोर्ट मे खुद आ कर विभागीय जांच और दस्तावेजों को उपलब्ध कराने में आयोग के समक्ष असमर्थता जाहिर की थी। महानिदेशक के असमर्थता के बाद राज्य सूचना आयुक्त अनिल कुमार शर्मा की कोर्ट ने मुख्य सचिव को पूरे प्रकरण पर सीबीआई जांच की संस्तुति की थी । तब से लेकर अब तक यह फाइल सचिवालय में जांच की अन्य फाइलों की तरह धूल फांक रही थी। जिसपर मुख्यमंत्री हरीश रावत ने धूल हटाने की कोशिश की है। अब देखना होगा कि राज्य निर्माण से लेकर आज तक की जांच का मुंह ताक रही तमाम वो फाइलों भी बाहर निकल कर आती भी हैं अथवा ऐसे ही पड़ी रहती है।
   गौरतलब हो कि उत्तर प्रदेश के अंदर इस घोटाले को लेकर एक सीएमओ का मर्डर तक कर दिया गया था और कई कर्मचारी अभी भी जेल की हवा ले रहे है ंजिस के बाद इस मामले का खुलासा अन्य राज्यों में भी हुआ था जिस में कई अधिकारी दोषी पाये गए है और अब उत्तराखंड में इस घोटले की जांच राज्य सरकार ने सीबीआइ से करवाने की संस्तुति कर दी है जिस ने उन राजनैतिक लोगों के साथ साथ अधिकारियों की भी नींद उड़ा कर रख दी है जिन के हाथ इस घोटले की खान में काले हो रखे है उत्तराखंड में स्वास्थ्य महकमे के अंदर हुए  प्राप्त जानकारी के अनुसार यह मामला भाजपा के शासनकाल का है यही भाजपा की चिंता भी है कि वह जांच की आंच मे न फंस जाये । वहीं इस घोटाले को अंजाम देने वाला एक प्रदेश प्रशासनिक सेवा का एक चर्चित अधिकारी  वर्तमान में उत्तराखंड से अपने मूल कैडर उत्तरप्रदेश जा चुका है।  वहीं भाजपा के एक वर्तमान विधायक पर भी कार्रवाही हो सकती है कुल मिलकर इस घोटाले की जांच के बाद कई लोगों के ऊपर से नकाब उतर सकता है जो उनकी राजनैतिक जमीं के लिए ठीक नहीं इस मामले को कांग्रेस के कुछ विधयाकों द्वारा भी पूर्व में विधानसभा में उठाया जा चुका है अब इस मामले पर भाजपा किस तरह खुद का बचाव करती है ये देखने वाली बात होगी क्योंकि कांग्रेस इस मामले को जनता के बीच ले जाने में जुट गयी है माना जा रहा है कांग्रेस भाजपा शासनकाल में हुए कई दूसरे मामलांे को भी जल्द जांच के बाद सीबीआई को देने पर मंथन करती हुई देखी जा रही है।

गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

दोनों राष्ट्रीय दल परेशान : आपदा राहत कार्य बनता जा रहा है बड़ा चुनावी मुद्दा

राजेन्द्र जोशी
  aapda लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बहुगुणा को इसलिए हटाया ताकि जनता में यह सन्देश जाये कि आपदा राहत कार्यों में लापरवाही करने वाले को कांग्रेस नेतृत्व नहीं बख्शेगा लेकिन हवाई यात्रा करने वाले अधिकारियों पर कांग्रेस सरकार की नरमी मतदान के रूप मे भारी पड़ने वाली लगती है क्योंकि यदि हरीश रावत को छोड़ दिया जाये तो पूर्वमुख्यमंत्री विजय बहुगुणा का यमुना व गंगा  घाटी मे जिस तरह मुख्यमंत्री पद से हटाये जाने के बाद उनके दौरे के दौरान जो विरोध स्थानीय निवासियों ने किया उससे तो कम से कम यही सन्देश जाता है कि कांग्रेस के पक्ष मे आपदा प्रभावित इलाकों के लोग बिलकुल भी मतदान नहीं करने वाले. ऐसा नहीं आपदा प्रभावित इलाकों के लोगों के विरोध का सामना केवल कांग्रेस पार्टी के लोग ही कर रहे हों ,आपदा के दौरान सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाली केदार घाटी के लोगों ने बीते दिनों भाजपा के गढ़वाल प्रत्याशी व पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूरी का भी फाटा मे विरोध किया. स्थानीय लोगों का सरकार पर आरोप है कि वह केवल तीर्थ यात्रियों की सुविधा के लिए ऋषिकेश से गौरीकुंड व गौरी कुंद से केदारनाथ तक के पैदल मार्ग की दशा सुधारने पर जुटी है जबकि प्रभावित ग्रामीण इलाकों के लोगों को सरकार ने आज भी अपने भाग्य के भरोसे छोड़ा हुआ है. स्थानीय निवासियों का कहना है कि उनके परिजन आज भी  भारी ठण्ड झेलने के बाद अब गर्मी व आने वाली बरसात की कल्पना कर सिहर जाते हैं 
    गौरतलब हो कि करीब एक साल पहले 15-16 जून को उत्तराखंड में आई आपदा ने कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को इस तरह से झकझोर कर रख दिया था उसी का परिणाम था कि कांग्रेस को  विजय बहुगुणा को हटा कर हरीश रावत को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाना पड़ा , रावत के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के तुरंत बाद सबसे पहले आपदा प्रभावित इलाकों का दौरा ही नहीं किया बल्कि केदारनाथ मार्ग सहित राज्य के चारधाम मार्गों की दशा को सुधरने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय भी किये. बावजूद इसके बही तक  आपदा से पीड़ित लोगों की पीड़ा कम नहीं हो पाई है. लोकसभा चुनाव के से ठीक पहले कांग्रेस  नेतृत्व ने बहुगुणा को सीएम पद से इसलिए हटाया था कि जनता मे यह सन्देश जाये कि आपदा राहत कार्यों में हीलाहवाली करने वालों को कांग्रेस  माफ नहीं करेगी , जिस तरह से हरीश रावत ने आपदा कार्य संचालित किये उसके बाद भी लोगों में हरीश रावत के नहीं बल्कि कांग्रेस के खिलाफ आक्रोश है उसी का परिणाम था जो विजय बहुगुणा का गंगा व यमुना घाटियों में जबरदस्त विरोध हुआ  और आपदा का मुद्दा 16वीं लोकसभा के लिए चुनावी मुद्दा बन गया .यही कारण है कि आपदा प्रभावित इलाकों के लोग राहत कार्यों में हीलाहवाली को लेकर कांग्रेस से ही नहीं  बल्कि तक से भाजपा जवाब मांग रहे हैं.  
  वहीँ आपदा के दौरान मारे गए लोगों को दिए जाने वाले मुआवजे की राशि में भी अंतर का मामला कांग्रेस के लिए जी का जंजाल बन गया है गौरतलब हो कि बहुगुणा सरकार ने राज्य के बाहर के प्रदेशों के लोगों के लिए साढ़े तीन लाख रुपये व उत्तराखंड राज्य के लोगों के लोए मुआवजे की राशि पांच लाख रुपये निर्धारित की थी यही कारण है न तो भाजपा के लोग ही इस बात को उत्झा रहे है और न ही कांग्रेस के लोग ही क्योंकि भाजपा को इस बात का खतरा है कि जब राज्यसरकार मुआवजे की राशि को लेकर मंथन कर रही थी तो उसने राशि कम होने की बात को क्यों नहीं उठाया और कांग्रेस इस बात से परेशान है कि यदि इसे वो खुद उठती है तो बाहरी प्रदेशों मे इसका नकारात्मक सन्देश जायेगा कि कांग्रेस सरकार ने मरे हुए लोगों के साथ भी राशि को लेकर भेदभाव किया .लेकिन प्रदेश की जनता खुद भी तत्कालीन बहुगुणा सरकार के इस निर्णय से खुश नहीं है क्योंकि लोगों का मानना है कि कई ऐसे लोग काल कलवित हो गए जो केवल उनके परिवारों के पोषण कर्ता थे ऐसे मे मात्र पांच लाख रुपये मे आखिर वे कितने समय तक अपने परिवारों का लालन पालन कर पाएंगे ? 
  उल्लेखनीय है कि  सरकारी आकड़ों के अनुसार आपदा के दौरान लापता हुए लोगों की कुल संख्या 4119 बताई गई है.उत्तराखंड को छोड़ अन्य  प्रांतों के कुल 3175 लोगों को प्रदेश सरकार ने लापता माना है. इसमें 1587 पुरुष,1335 महिलाएं एवं 253 बच्चे शामिल हैं. वहीं राज्य सरकार ने संबंधित राज्यों को 2,722 लापता लोगों के अब तक मृत्यु प्रमाणपत्र दिए  हैं.प्रदेश  सरकार द्वारा अभी 453 लापता लोगों के परिजनों को मृत्यु प्रमाणपत्र जारी होने बाकी हैं. प्रदेश सरकार इन प्रमाण पत्रों के साथ साढ़े तीन लाख रुपये का चेक भी भेज रही है   यदि आपदा के दौरान जन गंवाने वाले लोगों को दी जाने वाली मुआवजा राशि की बात की जाये तो इसमे प्रधानमंत्री राहत कोष के दो लाख, केंद्रीय आपदा के तहत 1.50 लाख और मुख्यमंत्री राहत कोष के तहत 1.50 लाख रुपये  दिए जाने का प्रावधान है. लेकिन अन्य प्रान्तों के लोगों को जो राशि भेजी जा रही है उसमे मुख्यमंत्री राहत कोष का पैसा नहीं भेजा जा रहा है.  15-16 जून को आई आपदा के दौरान  22 राज्यों के श्रद्धालु लापता हुए हैं. इनमें उत्तर प्रदेश के 1150, मध्य प्रदेश के 542, राजस्थान के 511, दिल्ली के 216, महाराष्ट्र के 163, गुजरात के 129, हरियाणा के 112, आंध्र प्रदेश के 86, बिहार के 58, झारखंड के 40, पंजाब के 33, पश्चिम बंगाल के 36, छत्तीसगढ़ के 28, उड़ीसा के 26, तमिलनाडु के 14, कर्नाटक के 14, मेघालय के छह, चंडीगढ़ के चार, जम्मू-कश्मीर के तीन, केरल के दो, पांडिचेरी के एक और असम का एक व्यक्ति बताया गया हैं जबकि  नेपाल के कुल 92 लोग लापता हैं, जिनमें 79 पुरुष, 11 महिलाएं एवं दो बच्चे हैं वहीँ उत्तराखंड के कुल 852 लोग लापता हुए हैं. इनमें 647 पुरुष, 37 महिलाएं और 168 बच्चे हैं. करीब 20 सरकारी कर्मचारी भी लापता है. इन सभी को राज्य सरकार ने पांच-पांच लाख रुपये दिये हैं.

  कुलमिलाकर आपदा राहत कार्यों व आपदा राशि को लेकर स्थानीय लोग हों अथवा बहरी प्रदेशों के दोनों ही स्थानों के लोगों में सरकार के प्रति नाराजगी है स्थानीय लोग तो इस बात से भी नाराज है कि उनको अभी तक सुरक्षित स्थान तक सरकार उपलब्ध नही करा पाई है और जो लोग इधर उधर किराये के मकानों में रह रहे है और सरकार जो उनका किराया de रही है लेकिन अब उसकी समयावधि भी समाप्त होने जा रही है ऐसे मे उनके सामने आगे कुंआ पीछे खायी वाली कहावत चरितार्थ हो रही है क्योंकि आपदा के बाद से लेकर अब तक ना तो वे अपना घर ही बना पाए हैं और न सरकार ने ही उनको घर बनाने की पूरी सहायता ही उपलब्ध करायी है.

उत्तराखण्ड को जरूरत है नये भूमि सुधार कानून की !

n18उत्तराखण्ड अपने आप में देश का ऐसा पहला राज्य होगा जिसका अपना कोई एक भू-सुधार कानून नहीं है ? राज्य बनने के 14 वर्ष बीत जाने के बाद भी हमारे द्वारा अब तक की निर्वाचित सरकारें राज्य का अपना एक नया भू-सुधार कानून बनाने के प्रति कहीं से भी चिंतित नहीं दिखाई दे  रही हैं l अभी भी हमारे राज्य में “उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम-1950 ” ही लागू है l पर्वतीय क्षेत्र के जिलों में सन् 1960 में बना “कुमाऊं जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम” (कुजा एक्ट) लागू है l इस तरह राज्य के मैदानी और पर्वतीय क्षेत्र  के लिए अलग-अलग भू-सुधार कानून अब भी चलन में हैं, जिन्हें पूर्ववर्ती उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने हिसाब से तब की परिस्थितियों के अनुरूप बनाया था l   
सन् 1865 में अंग्रेजों ने वन विभाग महकमें का गठन कर क्षेत्र के वनों को सरकारी वन घोषित कर दिया था l  इससे यहाँ की जनता में उपजे असंतोष के बाद अंग्रेजों ने संयुक्त प्रांत में अपने अधीन के पर्वतीय क्षेत्र के लिये सन् 1874 में “शेड्यूल डिस्ट्रिक्ट एक्ट” बनाया था l इसके तहत पर्वतीय क्षेत्र के लोगों को एक विशेष श्रेणी देकर कई सहूलियतें भी दी जाती थी l सन् 1931 में लागू “ पंचायती वन नियामावली” को भी अंग्रेजों ने सन् 1927 में बन चुके वन कानून से बाहर “शेड्यूल डिस्ट्रिक्ट एक्ट” के अधीन रखा जिसके कारण हमारी वन पचायतें वन कानून के दायरे से बाहर रही l इसके अलावा सरकारी वनों से गाँव वालों को वर्ष में एक पेड़ “हक” के रूप में दिया गया l
उपरोक्त से पूर्व सन् 1893 में अंग्रेजों ने बेनाप बंजर भूमि को “रक्षित वन भूमि” घोषित करने के लिये एक शासनादेश जारी किया था, मगर किसानो के भारी विरोध के बाद उन्हें एक नया कानून “गवर्नमेंट ग्रांट्स एक्ट 1895” को अस्तित्व में लाना पड़ा था, जिसके तहत कमिश्नर को बेनाप भूमि को पट्टे पर आवंटित करने का अधिकार दिया गया l इसी तरह सन् 1911 के वन बंदोबस्त के बाद किसानो द्वारा विरोध स्वरूप सरकारी वनों को लगातार आग के हवाले करने के कारण, विरोध को कम करने के लिये अंग्रेजों को पर्वतीय अंचल में वन पंचायतों का गठन करने को मजबूर होना पड़ा था l
शेड्यूल डिस्ट्रिक्ट एक्ट के तहत ही सन् 1948 में इस क्षेत्र के लिए “कुमाऊं नयाबाद एंड वेस्ट लैंड एक्ट” लाया गया, जिसके तहत तब तक बेनाप भूमि में विस्तारित हो चुकी आबादी और कृषि क्षेत्र को कानूनी मान्यता दी गयी l यह एक्ट सन् 1973 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने निरस्त कर दिया और इसकी जगह गवर्नमेंट ग्रांट्स एक्ट 1895 लागू कर जिलाधिकारियों को बेनाप भूमि के पट्टे करने के अधिकार दे दिये गए एवं पट्टे पर दी गयी भूमि पर स्वामित्व राज्य सरकार का ही रहा l अंतिम बदोबस्त के उपरान्त सन् 1964 में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने “शेड्यूल डिस्ट्रिक्ट एक्ट” को समाप्त कर दिया और बाद में सन् 1976 में नई वन पंचायत नियमावली लाकर वन पंचायतों को सन् 1927 के वन कानून के अंतर्गत ला दिया l
आजादी के बाद हुए एक मात्र बंदोबस्त के बीच सन् 1960 में ही उत्तर प्रदेश सरकार ने तत्कालीन 9 पर्वतीय जिलों के लिए अलग से “कुमाऊं उत्तराखंड जमींदारी विनास एवं भूमि सुधार कानून (कुजा एक्ट) बनाकर लागू कर दिया था l उत्तर प्रदेश जमींदारी विनास एवं भूमि सुधार कानून में पंचायतों को बेनाप–बंजर–परती–चारागाह–पनघट–पोखर–तालाब–नदी आदि जमीनों के प्रबंध व वितरण का अधिकार दिया गया था l यह अधिकार देश के एनी अन्य राज्यों में भी पंचायतो को हासिल हैं, ये जमीने पंचायतों के नाम दर्ज होती हैं और ग्राम पंचायतों की “भूमि प्रबंध कमेटी” के माध्यम से इस प्रकार की भूमि का प्रबंध और वितरण करती है l
मगर तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा कुजा एक्ट से इस प्रावधान को साजिशन हटा दिया गया और हमारी पंचायतों को इस भूमि के प्रबंध और वितरण का अधिकार नहीं दिया गया, नतीजे के तौर पर इन पचास वर्षों में जहाँ अन्य राज्यों में कृषि के क्षेत्र में काफी विस्तार हुआ, वहीं “कुजा एक्ट” के माध्यम से इन पर्वतीय जिलों में कृषि क्षेत्र के विस्तार पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने के साथ ही, इसकी भविष्य की संभावना की भी पूर्णत: ह्त्या कर दी गयी l यही नहीं स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, डाकघर, क्रीडास्थल, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा संस्थान, पंचायत भवन, सड़कों   आदि के लिए किसानों की नाप भूमि निशुल्क सरकार के खाते में स्थानांतरित करने की शर्तें लगा दी गयी l यह ऐसी स्थिति थी कि जिन निर्वाचित सरकारों ने भूमिहीन-आवासहीन और गरीब किसानों को निशुल्क जमीनें बांटनी थी, वही सरकारें विकास की कीमत वसूली के रूप में गरीब किसानों की जमीनें निशुल्क लेकर उन्हें भूमिहीन बनाती गयी और पहाड़ के कृषि क्षेत्र को लगातार घटाते गयी l
सन् 2000 के आकडों पर नजर डालने से पता चलता है कि उत्तराखण्ड राज्य की कुल 8,31,227 हेक्टेयर कृषि भूमि 8,55,980 परिवारों के नाम दर्ज थी l इनमें 5 एकड़ से 10 एकड़, 10 एकड़ से 25 एकड़ और 25 एकड़ से उपर की तीनों श्रेणियों की जोतों की संख्या 1,08,863 थी l इन 1,08,863 परिवारों के नाम 4,02,22 हेक्टेयर कृषि भूमि दर्ज थी, यानी राज्य की कुल कृषि भूमि का लगभग आधा भाग ! बाकी 5 एकड़ से कम जोत वाले 7,47,117 परिवारों के नाम मात्र 4,28,803 हेक्टेयर भूमि दर्ज थी l उपरोक्त आँकड़े दर्शाते हैं कि, किस तरह राज्य के लगभग  12 % किसान परिवारों के कब्जे में राज्य की आधी कृषि भूमि है और बची 88 % कृषक आबादी भूमिहीन की श्रेणी में पहुँच चुकी है l
राज्य में एक नया भू सुधार कानून बनाने की मांग हम समय समय पर लगातार उठाते आये हैं l भयानक भूमि संकट से के मुहाने पर खड़े इस राज्य में कृषि भूमि के गैर कृषि उपयोग (आर जोन घोषित करने पर) पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगाने, कृषि क्षेत्र के विस्तार के लिए भूमि चिन्हित कर कम से कम 40 % भूमि कृषि क्षेत्र के लिए सुरक्षित रखने और सीलिंग की सीमा को घटाकर उपरोक्त भूमि असंतुलन को ठीक करने की जरुरत है l इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश की तर्ज पर प्रदेश में बाहरी राज्य के लोगो के कृषि भूमि भूमि खरीदने पर पूर्णत: रोक लगाने की जरुरत है, नये भूमि सुधार कानून में इन बुनियादी सवालों को प्रमुखता मिलनी चाहिए l
मगर वस्तुस्थिति यह है कि राज्य बनने के बाद यहाँ सत्तासीन हुई भाजपा-काँग्रेस की सरकारें कॉर्पोरेट घरानों, बड़े पूंजीपतियों, भू-माफियाओं व बिल्डरों के हित में एक के बाद एक भू-अध्यादेश तो लाती रही मगर राज्य की 75 % ग्रामीण आबादी की खुशहाली के लिए नया भूमि सुधार कानून उनके एजेंडे में कभी भी नहीं आया l जन विरोधी कुजा एक्ट का खात्मा कर पुरे राज्य के लिए एक नया भूमि सुधार कानून लाना किसी भी जन सरोकारी राज्य सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए थी, पर लगता है उत्तराखण्ड में बनी अब तक की किसी भी दल की  सरकार के एजेंडे में राज्य के आम आदमी को कम भू-माफिया और बिल्डर तथा पूंजीपतियों के हितों को ज्यादा तरजीह दी जाती रही है, तभी तो राज्य गठन के 12 सालों में राज्य का कृषि क्षेत्र दिन पर दिन कम होता जा रहा है और हमारी सरकारें  विकास के ढोल पीटे  जा रही है l

(साभार: समानान्तर से श्री पुरुषोत्तम शर्मा जी का लेख, शर्मा जी किसान महासभा, उत्तराखण्ड के प्रभारी हैं तथा आप कई किसान आन्दोलनों में भाग ले चुके हैं )

बुधवार, 23 अप्रैल 2014

हरीश रावत पर भरोसा कर हजारों ने थामा कांग्रेस का दामन


सुबोध राकेश व आदित्य ब्रजवार ने समर्थकों सहित थामा कांग्रेस का दामन

80 ग्राम प्रधान व 60 क्षेत्र पंचायत सदस्य भी कांग्रेस में शामिल


राजेन्द्र जोशी
harish21देहरादून  । बसपा विधायक सुरेन्द्र राकेश और हरिदास को बसपा सुप्रीमो ने पार्टी विरोधी गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप में पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था।
     इन दोनों विधायकों के कांग्रेस की जाने की चर्चाओं को बसपा प्रदेश नेतृत्व ने पार्टी सुप्रीमो तक पहंुचाया जिसके बाद इनका  निलंबन हुआ। जिससे वे न तो कांग्रेस में जा सके और न ही कांग्रेस के प्रत्याशियों के लिए चुनाव प्रचार कर सके। ऐसे में इन विधायकों की तो कांग्रेस में एण्ट्री नहीं हो सकी है, लेकिन हरिदास के बेटे आदित्य व सुरेन्द्र राकेश के भाई सुबोध राकेश ने सोमवार को अपने सैकड़ों समर्थकों के साथ कांग्रेस की सदस्यता ली। इनके साथ ही 80 ग्राम प्रधानों व 60 क्षेत्र पंचायत सदस्यो ंने भी कांग्रेस का दामन थाम लिया।
सोमवार को कांग्रेस भवन में आयोजित कार्यक्रम मे बसपा विधायक सुरेन्द्र राकेश के भाई सुबोध राकेश व हरिदास के बेटे आदित्य ब्रजवार ने अपने कई समर्थकों के साथ मुख्यमंत्री हरीश रावत की मौजूदगी में कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। कांग्रेस के कुनबे के लगातार बढ़ने से जहां कांग्रेसियों के चेहरे खिले हुए हैं वहीं सोमवार को बसपा के इतने कार्यकर्ताओं द्वारा कांग्रेस का दामन थामने से इस दौरान उनके साथ सहकारिता बैंक के चेयरमेन सुशील चैधरी, भगवानपुर ब्लाॅक प्रमुख मुनेश सैनी के साथ ही अन्य जिला पंचायत सदस्यों व ग्राम प्रधानों ने कांग्रेस का हाथ थामा। इस दौरान मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कांग्रेस में शामिल होने वाले सभी सदस्यों को मालाएं पहनाकर उनका अभिनंदन किया।
भले ही विधायक सुरेन्द्र राकेश और हरिदास कांग्रेस में शामिल न हो पायें हों लेकिन इन लोगों बसपा के इतने प्रतिनिधियों को कांग्रेस में शामिल करवा कर बसपा प्रदेश नेतृत्व और सुप्रीमो को यह संदेश दे दिया है कि वे केवल उन तक ही अपनी कार्यवाही कर सकते हैं लेकिन उनके समर्थक वही करेंगे जो वे कहेंगे। इस अवसर पर कांग्रेस प्रवक्ता सुरेन्द्र कुमार सहित अन्य पदाधिकारी भी मौजूद थे।हजारों की संख्या में कई दिग्गज भाजपा, बसपा व सपा के नेताओं ने जिनमें कई जिला पंचायत सदस्य, जिला सहकारी बैंक के सदस्य, जिला सहकारी संघ, क्रय विक्रय समिति के पदाधिकारियों ने सोमवार को कांग्रेस का दामन मुख्यमंत्री हरीश रावत की उपस्थिति में थामा है। जिसमें प्रदेश के कबीना मंत्री सुरेन्द्र राकेश के भाई व बसपा नेता हरिदास के भाई व पुत्र शामिल हैं। बसपा के जिलाई नेताओं के कांग्रेस में शामिल होने से हरिद्वार में बसपा लगभग समाप्ति के कगार पर खड़ी नजर आ रही है लेकिन इस बात की पुष्टि अगले दो-तीन दिनों में तब होगी जब वहां मायावती की सभा होगी।
   कांग्रेस प्रवक्ता एवं मीडिया प्रभारी सुरेन्द्र कुमार ने बताया कि कैबिनेट मंत्री सुरेन्द्र राकेश के भाई हरिद्वार जिला पंचायत के सदस्य सुबोध राकेश व बसपा विधायक हरिदास के पुत्र आदित्य बृजवाल, जिला सहकारी बैंक़ के अध्यक्ष सुशील चैधरी, जिला सहकारी संघ, हरिद्वार के सभपति कुर्बान अली, क्रय विक्रय समिति मंगलोर के सभापति कुवंरपाल सैनी, साधन सहकारी समिति तेज्जूपुर के सभापति चैधरी सोमपाल सिंह, किसान सेवा सहकारी समिति मक्खनपुर के सभापति अरविन्द कुमार, किसान सेवा सहकारी समिति हबीबपुर नवादा के सभापति करण सिंह, सहकारी संघ चुडि़याला से अतुल त्यागी, पिछड़ा वर्ग आयोग उत्तराखण्ड के उपाध्यक्ष शमीम अहमद, ओमपाल सिंह, जिला पंचायत के सदस्य श्रीमती सियावती, श्रीमती उषा अग्रवाल, श्रीमती जुल्फाना, कृर्षि उत्पादन मण्डी समिति भगवानपुर के अध्यक्ष देवेन्द्र अग्रवाल, उपाध्यक्ष राव अखलाक, सदस्य बलधीरा, तालिब अहमद, चै0 मनोज कुमार  इनके साथ सैकड़ों जिला सहकारी बैंक, हरिद्वार एंव संचालक, प्रमुख क्षेत्र पंचायत भगवानपुर, सदस्य जिला पंचायत, ग्राम प्रधान, पूर्व ग्राम प्रधान, सदस्य क्षेत्र पंचायत, अध्यक्ष मण्डी समिति, सहकारी समितियों के सभापतियों ने कांग्रेस का दामन थामा है।, हरिद्वार, लक्सर, मंगलोर, तेज्जूपुर, मक्खनपुर, खेलपुर, भगवानपुर, हबीबपुर, झबरेड़ा, गोवर्धनपुर, रुड़की, खानपुर आदि कई लोगों ने कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की है। इस अवसर पर बोलते हुए मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि इन नेताओं के आने से क्रांगेस पार्टी मजबूत होगी व साम्प्रदायिक ताकतों को शिक्स्त का मार्ग प्रसस्त होगा, उन्होने कहा कि इनके परिवार के कैबिनेट मंत्री सुरेन्द्र राकेश व बसपा विधायक हरिदास कांग्रेस सरकार को मजबूती देने में लगे है जिस कारण हम अपने विकास का एजेण्डा आगे बड़ा रहे है। इस अवसर पर कांग्रेस प्रवक्ता, प्रभारी सुरेन्द्र कुमार, प्रदेश महामंत्री विजय सारस्वत, जसबीर रावत, राजीव जैन आदि उपस्थित थें।
    प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष यशपाल आर्य लगभग एक घंटा आगुन्तुक महमानों के लिए प्रतिक्षा करते रहे किन्तु उन्हे टिहरी जनसभा में पहुॅचना था तो उनकी अनुपस्थित में प्रदेश महामंत्री विजय सारस्वत ने सभी पार्टी में शमिल होने वाले नेताओं के लिए स्वागत का पत्र पढ़कर सुनाया। कार्यकर्ताओं से उनके से भारी जोश बड़ गया है।

साकेत की कमाई देख सकते में कुबेर, जबकि भाजपा की महारानी कर्जदार


राजेन्द्र जोशी


currencyदेहरादून । टिहरी लोकसभा से कांग्रेस उम्मीदवार और पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के पुत्र साकेत बहुगुणा की कमाई को देखकर कुबेर भी सकते में पड़ जाए। जी हां साकेत ने पिछले डेढ़ साल में 10 करोड़ रूपए की आय की है। यही नहीं उनकी चल अचल संपत्ति में भी इस दौरान अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई है। ये हम नहीं साकेत बहुगुणा द्वारा गुरूवार को दाखिल अपने नामांकन पत्र में खुद स्वीकार किया गया है। जबकि दूसरी तरफ टिहरी लोकसभा सीट पर कांग्रेस को टक्कर दे रही भाजपा उम्मीदवार और टिहरी राजघराने की महारानी मालाराज लक्ष्मी शाह करोड़पति होने के बाद भी खुद को कर्जदार बताया है।

पहले बात करते है कांग्रेस के उम्मीदवार साकेत बहुगुणा की । अपने नामांकन पत्र में कांग्रेस नेता बताया है कि उन्होंने पिछले डेढ़ साल की अवधि में 11 करोड़,43 लाख,341 रूपए की चल संपत्ति अर्जित की है। जबकि करीब डेढ़ साल पहले (सितंबर-2012) हुए टिहरी लोकसभा के उपचुनाव में अपनी कमाई का ब्यौरा देते हुए उन्होंने बताया था कि उनके पास 99 लाख,83 हजार,257 रूपए की चल संपत्ति घोषित की थी। इस तरह तुलना करे तो मात्र डेढ़ साल की अवधि में ही साकेत ने 10 करोड़,43 लाख,17 हजार 84 रूपए कमाए।
2012-13 में उन्होंने अपनी कर योग्य आय 9 करोड़,82 लाख,77 हजार,256 रूपए बताई है। उनकी पत्नी गौरी बहुगुणा के पास भी अच्छी खासी संपत्ति है। हालांकि गौरी एक मामले में अलग है करोड़ पति होने के बाद भी उन्हें जेवरों का शौक बिल्कुल नहीं है। डेढ़ साल पहले उनके पास 25 लाख के गहने थे लेकिन इस बार उन्हें निल दिखाया गया है। एलएलबी डिग्रीधारी साकेत बहुगुणा के पास 14 लाख,61 हजार,618 रूपए की वर्तमान लागत वाली बीएमडब्ल्यू कार के साथ ही सेंट्रम पार्क में 47 लाख,82 हजार,467 रूपये की कीमत का अपार्टमेंट,मुंबई के फ्लैट स्काई में 8 करोड़,50 लाख,5 हजार,254 रूपए की हिस्सेदारी और नोएडा में 25 लाख रूपए को अपार्टमेंट भी है। पत्नी गौरी के नाम पर सेंट्रम पार्क में 34 लाख,61 हजार,170 रूपए की लागत का अपार्टमेंट,इंडियाबुल्स इनिग्मा में 1 करोड़,33 लाख,23 हजार,391 रूपए का निवेश व नई दिल्ली में काॅमर्शिलयल जीडी टाॅवर में 40 लाख रूपए कीमत का स्पेस व 6 लाख,67 हजार,625 रूपए का कार्यालय भी है।
नमांकन पत्र में उनकी नगदी के विवरण के तौर 42500,पत्नी के पास 35000 रूपए है।2012-13 में कर योग्य आय 9 करोड़,82 लाख,77 हजार,256 रूपए व पत्नी के पास 23 लाख,31 हजार,863 रूपए का विवरण उपलब्ध है। जबकि विभिन्न बैंको में जमा राशि के तौर साकेत के नाम पर 20 लाख,15 हजार,73 रूपए,पत्नी गौरी के नाम पर 3 करोड़,16 लाख,87 हजार,40 रूपए जमा है। दो आश्रितों के नाम पर 7-7 लाख रूपए जमा दिखाए गए है। इंडिया बुल्स के शेयर के तौर पर हिस्सेदारी 58 लाख,50 हजार,500 और पत्नी के नाम 7 लाख,15 हजार,185 रूपए शेयर हिस्सेदारी का विवरण भी दिया गया है। इसके अलावा खुद के पास छह लाख रूपए की बीमा पाॅलिसी और पत्नी की बीमा पाॅलिसी में 40 लाख रूपए का निवेश बताया गया है।
दूसरी तरफ भाजपा उम्मीदवार महारानी माला राजलक्ष्मी शाह वैसे तो करोड़पति है लेकिन उन पर 44 लाख का कर्ज भी है। जी हां गुरूवार को अपना नामांकन दाखिल करने वाली महारानी माला राजलक्ष्मी शाह ने अपने नामांकन शपथपत्र में कुछ ऐसा ही दर्शाया है। महारानी के पति राजा मनुजेन्द्र शाह भी है तो अरबपति लेकिन उन पर भी एक करोड़ से ज्यादा का कर्ज है। महारानी द्वारा दी गई सूचना के अनुसार पिछले दो साल में उन्होंने 23 लाख रूपए से ज्यादा की चल संपत्ति जुटाई तो उनके पति ने 97 लाख रूपए से ज्यादा चल संपत्ति बनाई। दो साल पहले राजा मनुजेन्द्र शाह की चल संपत्ति 111 करोड़ थी जो इस बार बढ़ कर 143 करोड़ हो गई। हालांकि महारानी की अचल संपत्ति की रफ्तार कम रही जो दो साल में 10 लाख पर ही अटकी रही। महारानी ने आयोग को जो ब्यौरा दिया उसके अनुसार उनके पास कोई कार नही है। जबकि उनके पति मनुजेन्द्र के पास 9 कारें है। इनमें एक कार इंग्लैंड मेड है जिसकी कीमत 84 लाख रूपए है। महारानी ने वर्ष 2012-13 में 11 लाख से ज्यादा का आयकर भी भरा।जबकि उनके पति ने 1 करोड़ 85 लाख का आयकर जमा किया।
महारानी ने अपनी संपत्ति का जो विवरण दिया है उसके अनुसार उनके पास नगदी के तौर पर 35 हजार रूपए,पति के पास 40 हजार रूपए। विभिन्न बैंको में जमा के रूप में 84 लाख,2 हजार,127 रूपए,पति की जमा राशि 99 लाख,9 हजार,279 रूपए।एफडी 9 लाख,63 हजार,818 रूपए और पति की एफडी22 लाख,99 हजार,335 रूपए। फंड एवं शेयर में निवेश के तौर पर 71 लाख,58 हजार,208 रूपए और पति का 14 करोड़,72 लाख,54 हजार,966 रूपए। 12 लाख,57 हजार,800 रूपए का 247 ग्राम सोना और पति के पास 41 लाख,57 हजार रूपए का 1700 ग्राम सोना और 66 लाख,34 हजार रूपए की 140 किलो चांदी उपलब्ध है।
इसमें से महारानी की जो संपत्ति है वह चल के रूप में 1 करोड़,78 लाख,22 हजार,953 रूपए है। जबकि अचल संपत्ति के तौर पर उनके पास 90 लाख रूपए हैं।पति की चल संपत्ति 20 करोड़,52 लाख,86 हजार,922 रूपए है जबकि अचल संपत्ति 143 करोड़ की है।

बोलांदु बदरी की प्रतीक राजशाही व भ्रष्टाचारी, घोटालेबाज परिवारवाद के बीच जंग

राजेन्द्र जोशी

raj-laxmiदेहरादून: टिहरी संसदीय सीट पर भाजपा से रानी राज्य लक्ष्मी है, तो दूसरी ओर राजनीति के पुरोधा रहे हेमवती नंदन बहुगुणा नाती साकेत बहुगुणा हैं। परिवारवाद और राजशाही के मध्य छिड़ी इस जंग में कौन मैदान मारेगा यह भविष्य के गर्भ में है। लेकिन यह बात भी ख़ास है कि जहाँ परिवारवाद का बीड़ा उठाए साकेत पर अपने पिता के शासन काल में एक चर्चित अधिकारी के साथ मिलकर कई घोटालों करने के आरोप है तो वहीँ राजशाही की और से नुमाइंदगी कर रही महारानी का साफ़ व उजला चरित्र है, अब देखना यह होगा कि टिहरी लोकसभा के मतदाता घोटालेबाज को तरजीह देते हैं अथवा साफ़ छवि की महारानी को. इतना ही नहीं टिहरी लोकसभा सहित राज्यवासी महारानी के परिवार को भगवान बद्रीविशाल की प्रतिमूर्ति के रूप में देखते हैं तो वहीँ बहुगुणा परिवार के इस नई पीढ़ी के नेता को भ्रष्टाचारी और घोटालेबाज के रूप में देखते हैं.

     यूं तो कई सियासी दलों ने अपने सेनापति उतारे हैं, लेकिन संसदीय चुनाव का समर भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सिमटता रहा है। इस बार भाजपा को दुर्ग महफूज रखने की चुनौती है, तो कांग्रेस को इस किले में सेंध लगाकर भेदना है। कांग्रेस प्रत्याशी साकेत बहुगुणा को जहां किले की घेराबंदी कर खुद को साबित करना है वहीं वहीं भा जपा को इस सीट को बरकरार रखने के लिए माला राज्य लक्ष्मी को सीट बचाकर राज घराने के वर्चस्व को कायम रखने के लिए संघर्ष करना है।
 टिहरी लोक सभा  सीट पर एक बार फिर भाजपा और कांग्रेस ने उन्हीं उम्मीदवारों पर भरोसा किया है, जिन पर उसने 2012 के उप चुनाव में दांव खेला था। एक तरफ भाजपा की टिहरी राजशाही परिवार की माला राज्य लक्ष्मी हैं दूसरी तरफ कांग्रेस के साकेत बहुगुणा हैं। मैदान में यूकेडी, आम आदमी पार्टी और तीसरे मोर्चे ने भी अपने प्रत्याशी उतारे हैं। लेकिन मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही होने के आसार हैं। टिहरी सीट का पारंपरिक मिजाज भा जपा को संतोष देने वाला है। इस सीट पर राजशाही परिवार का दिग्विजयी रथ आजादी के बाद से दौड़ता रहा है। इस दिग्विजयी रथ पर लगाम कसने का श्रेय भी  विजय बहुगुणा को ही जाता है, जिनकी चुनौती के आगे रथ के पहिये थम गए थे। लोक सभा  चुनाव में अजेय मानवेंद्र शाह के अवसान के बाद हुये उपचुनाव में भाजपा ने जब शाही परिवार के मनुजेन्द्र शाह को मैदान में उतारा तो वह काफी आश्वस्त थी। पर मनुजेन्द्र हार गए। उनकी पराजय से ठिठकी भाजपा ने नये विकल्प पर सोचना शुरू कर दिया। दो साल बाद आम चुनाव हुये तो बहुगुणा के सामने निशानेबाज़  जसपाल राणा थे। मगर चुनाव में राणा का निशाना चूक गया। टिहरी की जनता ने राणा को खारिज कर दिया था। इस चुनाव में कांग्रेस ने 14 में से 10 विधान सभा  क्षेत्रों में भा जपा को पछाड़ा। पुरोला, गंगोत्री, प्रतापनगर, विकासनगर, रायपुर, देहरादून कैंट, चकराता, सहसपुर, राजपुर व मसूरी में बहुगुणा बढ़त में रहे जबकि भाजपा धनोल्टी, यमुनोत्री, घनसाली और टिहरी तक सिमट गई। राजशाही को बढ़त दिलाने वाला नरेन्द्र नगर भी  परिसीमन के चलते पौड़ी गढ़वाल सीट का हिस्सा बन चुका था। लेकिन टिहरी पर कांग्रेस की यह बढ़त 2012 तक ही कायम रह पाई। एक बार फिर इतिहास ने अपने आप का दोहराया। सीएम बनने के बाद बहुगुणा ने सीट खाली की। साथ ही अपने बेटे साकेत बहुगुणा को अपना उत्तराधिकारी भी  घोषित कर दिया। मगर उनके इस फैसले पर फाइनल मुहर तो जनता की अदालत में लगनी थी। उधर, दूध की जली भाजपा फिर राजशाही परिवार के दरवाजे पर पहुंची। समर में उतरे दोनों योद्धाओं में कुछ बातें ''कॉमन'' थी। दोनों को राजनीति विरासत में मिली। लेकिन मुख्य धारा की राजनीति में दोनों ही चेहरे नये थे। उपचुनाव हुआ जिसमें साकेत साफ़ हो गए । चुनाव में कांग्रेस पुरोला, गंगोत्री, धनोल्टी और चकराता में ही बढ़त बना सकी। जबकि उपचुनाव से पहले यही कांग्रेस विधान सभा  चुनाव में भा जपा को कड़ी टक्कर दे चुकी थी। उसने गंगोत्री, प्रताप नगर, रायपुर, चकराता, राजपुर व विकासनगर सीटें जीतीं लेकिन उपचुनाव में इनमें से कुछ सीटें गंवा दी। आंकड़ों की रोशनी में जीत-हार के ये समीकरण यही बयान कर रहे हैं कि  कभी  भाजपा का पलड़ा भारी रहा तो कभी  कांग्रेस का।

   एक बार फिर टिहरी की जंग का ऐलान हुआ है। जंग में एक तरफ साकेत हैं तो दूसरी तरफ माला राज्य लक्ष्मी है। तीसरी धारा के दलों के प्रत्याशी भी  दम लगा रहे हैं। लेकिन मुकाबला साकेत और माला राज्यलक्ष्मी के बीच ही माना जा रहा है। पराजय के बाद बहुगुणा और उनके सुपुत्र साकेत ने टिहरी सीट पर अपना होमवर्क नहीं छोड़ा है। लेकिन ये भी  उतना ही सही है कि हवा का रुख कांग्रेस के अनुकूल नहीं माना जा रहा। मोदी की लहर और सत्ता विरोधी रुझान कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती मानी जा रही है। इन चुनौतियों के बीच मुकाबला सचमुच बेहद कांटे का दिखाई दे रहा है।लेकिन बीते दिन हुए नामांकन की भीड़ ने भी साफ़ कर दिया है कि महारानी के साथ आज भी इलाके के लोग हैं जबकि साकेत के साथ अधिकांश बाहरी लोकसभा के लोग रहे वो भी एक सीमित संख्या में..

केदारघाटी की हालत त्रासदी के 6 महीने बाद भी हैं दिल दहला देने वाले

मंजीत नेगी
MANDAKINI
केदारनाथ में आई प्रलय को 6 महीने का वक्त हो चुका है। इन 6 महीनों में जमीनी हालात कितने बदले हैं इसका जायजा लेने के बाद पता चला कि केदार घाटी के हालात दिल दहला देने वाले हैं। गोद में एक महीने का बच्चा और कड़कड़ाती ठण्ड के बीच लोग खुले आसमान के नीचे रात गुजारने के लिए मजबूर हैं। केदारनाथ की प्रलय में केदारघाटी के 50 से ज्यादा गांव प्रभावित हुए थे। दर्जनों गाँव के लोग अभी भी अस्थायी टीन शेडों में रह रहे हैं। इन लोगों को सरकार से कोई मदद नहीं मिली है। 50 से ज्यादा गावों के लोग जान हथेली पर लेकर लोहे की रस्सी के सहारे लटकी ट्राली से मन्दाकिनी नदी को पार करने के लिए मजबूर हैं। नदी पार करते समय हर रोज कई लोग नदी में गिर रहे हैं। केदारनाथ की प्रलय के वक्त मन्दाकिनी नदी में आई बाढ़ से सैकड़ों गाँव आज भी सामान्य जनजीवन से कटे हुए हैं। 6 महीनों से कई घरों में चूल्हा नहीं जला है। घर का अकेला कमाने वाला बेटा और माँ के बुढ़ापे की लाठी केदारनाथ कि तबाही की भेंट चढ़ गया। ऋषिकेश से हाइवे न.109 से होते हुए जैसे ही हम अगस्तमुनि पहुंचे तबाही के निशान नजर आने लगे। हाइवे जगह-जगह पर टूटा हुआ था। अगस्तमुनि में हमारे सामने ही एक बाइक सवार मन्दाकिनी नदी में जा गिरा। गनीमत थी कि बाइक सवार की जान बच गई। उसके साथी उसकी मोटरसाइकिल को निकालने की कोशिश कर रहे हैं। अगस्तमुनि के सिल्ली गाँव के उपेन्द्र सिंह ने बताया कि ऐसी दुर्घटनाएँ रोज की बात है। जैसे ही हम आगे बढ़े अगस्तमुनि के पास सिल्ली गाँव में मन्दाकिनी नदी का नजारा चैंकाने वाला था। जान हथेली पर लेकर लोहे की रस्सी के सहारे लटकी ट्राली से लोग मन्दाकिनी नदी को पार कर रहे थे। इस ट्राली से 30 गावों के लोग नदी पार करते हैं। हर रोज कई लोग नदी में गिर रहे हैं। 6 महीने पहले नदी पर एक पुल था जो बाढ़ में बह गया। ये नजारा है अगस्तमुनि बाजार का जहां पर केदारनाथ के हादसे के 6 महीनों के बाद भी खतरा बना हुआ है। ये आसमान में झूल रहे मकान कभी भी गिर सकते हैं। अगस्तमुनि बाजार में 100 से ज्यादा दुकानें, स्कूल और मकान थे। अब हम आपको उन लोगों से मिलाते हैं जो आज भी इस हादसे से नहीं उभर पाये हैं। अगस्तमुनि के बनियाडी गाँव के सरादू लाल की एकलौती बेटी प्रलय की भेंट चढ़ गयी। गरीब सरादू लाल 6 महीनों से से सब काम छोड़कर सरकार से मिलने वाले मुआवजे के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहा है। अब हम केदारनाथ से 40 किमी दूर गुप्तकाशी पहुँच चुके हैं। 16 और 17 जून को केदारनाथ से आई तबाही से गुप्तकाशी के सेमी गाँव के 80 से ज्यादा मकान जमीदोज हो चुके हैं। इस गाँव में 150 परिवार रहते हैं। सरकार ने आपदा के समय लोगों को रहने के लिए टैंट दिये लेकिन जैसे ही सर्दी शुरू हुई स्थानीय प्रशासन ने लोगों से टैंट खली करवा दिए और कहा कि लोग अपने घरों में चले जायं। कुछ एनजीओ की मदद से लोग टीन शेडों में रह कर गुजरा कर रहे हैं। राधे लाल का 15 साल का बेटा बुखार से तप रहा है। सेमी गाँव में 12 लोगों का एक परिवार इस तरह के तीन शेड में कड़कड़ाती ठण्ड में रात काट रहा है। इस परिवार में एक महीने का एक छोटा बच्चा भी है। ठण्ड से बचने के लिए आग ही सहारा है। अब हम ऐसी कई अभागी माँ से मिलाते हैं जिनके आंसू पिछले 6 महीनों से अभी तक सूखे नहीं हैं। 52 साल की विजया देवी का एकलौता बेटा और बुढ़ापे की लाठी कल्पेश्वर शुक्ला केदारनाथ के प्रलय में खो गया। कल्पेश्वर शुक्ला हैलीकॉप्टर कम्पनी के साथ काम करता था। अब इस घर में इस बूढी माँ के अलावा कोई नहीं है। हैलीकॉप्टर कम्पनी ने कोई मदद नहीं की। अकेले रुद्रपुर गाँव के केदारनाथ में पूजापाठ करने वाले 10 पुरोहितों की मौत हुई। एक ही परिवार की ये तीन बूढी माँ हैं। जिनके जवान बेटे केदारनाथ की प्रलय का शिकार हो गये। अपना दुःख बांटने के लिए ये तीनों माएं पिछले 6 महीनों से इसी तरह रोती रहती हैं। 34 साल के जगदम्बा प्रसाद की माँ सविता देवी, 35 साल के जमुना प्रसाद की माँ कपूरी देवी और अनूप शुक्ला की माँ रेखा देवी को अब तक ये यकीन नहीं हो रहा है कि उनके जवान बेटे अब इस दुनिया में नहीं हैं। कोई इनका हाल लेने वाला नहीं है। होली हिमालय एनजीओ कि प्रमुख लता नेगी ने बताया कि अब इन लोगों कि सुध लेने के लिए कोई सरकारी अधिकारी नहीं आता है। कड़ाके की ठण्ड के बीच इन लोगों को कुछ एनजीओ का ही सहारा है। कई सामाजिक संगठन इन इलाकों में गर्म कपडे बाँट रहे हैं। केदार घाटी में 50 से ज्यादा गाँव आज भी सामान्य जनजीवन से कटे हुए हैं। कई गाँव खतरे के निशान पर खड़े हैं। इन गाँव के पुनर्वास का कोई इंतजाम नहीं है। पिछले 6 महीनों से सड़क बनाने का काम सुस्त रफ्तार से चल रहा है। दिल्ली से आये सामाजिक कार्यकर्ता बृजमोहन उप्रेती ने बताया कि हाल ही में राज्य सरकार ने लोगों के विरोध के बावजूद केदारनाथ हाइवे के पुनर्निर्माण का काम बीआरओ से वापस लेकर पीडब्लूडी को दे दिया है।इस फैसले पर कई सवाल उठ रहे हैं। इस फासले का मतलब सीधा-सीधा भ्रष्टाचार है। इस निराशा के बीच कोई है जो लोगों के आंसू पोंछ रहा है। सरहद पर निगरानी करने वाली बीएसफ ने केदारघाटी के 12 गावों को गोद लिया है।बीएसफ के जवान दिनरात लोगों कि मदद कर रहे हैं। बीएसफ ने सिर्फ कालीमठ गाँव का पुर्निर्माण किया बल्कि पौराणिक कालीमठ मंदिर को भी मन्दाकिनी नदी में बहने से बचाया। कालीमठ मंदिर को बचाने के लिए बीएसफ ने 100 मीटर लम्बी सुरक्षा दीवार कड़ी कर दी। इस पूरे इलाके में कालीमठ मंदिर की बहुत मान्यता है। कहा जाता है कि यहाँ पर माँ काली ने रक्तबीज राक्षस का संहार किया था। बीएसफ ने कालीमठ मंदिर के अलावा गाँव में लोगों के लिए पंचायत भवन, स्कूल और छोटे बच्चों के लिए आंगनबाड़ी केंद्र को दोबारा तैयार किया है। बीएसफ ने एक और बड़ा काम किया है कालीमठ के हाई स्कूल को दोबारा तैयार किया है। स्कूल में नए कमरों का निर्माण, फर्नीचर और स्कूल बैग देकर बच्चों के चेहरों पर हंसी लौटाने का काम किया है। केदारघाटी में पिछले 6 महीनों से सरकार की बेरुखी से लोगों का गुस्सा अब सड़कों पर आ गया है। न सड़क बन पायी है और न बिजली की बहाली ऐसे में लोगों का रोजगार ठप्प है। लोग सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं। ये सब देखकर यही लगा कि सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त है और लोगों के प्रति सवेंदनहीन हो गयी है।
(लेखक : इंडिया टीवी के विशेष संवाददाता मंजीत नेगी , केदारनाथ घाटी में आयी प्रलयंकारी त्रासदी के बाद सबसे पहले पैदल केदारनाथ मंदिर पहुँचने वाले पत्रकार हैं।यह रिपोर्ट 25 दिसम्बर 2013 की है )।)

बहुगुणा सरकार का कारनामा : डोबरा -चांटी पुल तो बना नहीं कर डाला पूरा भुगतान

राजेन्द्र जोशी

देहरादून : उत्तराखंड में टिहरी बांध की झील के ऊपर बनने  वाले डोबरा चांटी पुल के निर्माण में सौ करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले का मामला सामने आया है।  खास बात यह है कि देश के इस सबसे बड़े सस्‍पेंशन पुल का निर्माण बीते चार सालों  से अभी तक पूरा नहीं हुआ है, जबकि पुल बनाने वाली ठेकेदार कंपनी को 120 करोड़ रुपये की लगभग पूरी लागत का भुगतान कर दिया गया है, और इस इलाके के लोग इस पुल के निर्माण को लेकर आन्दोलनरत हैं।  
गौरतलब है कि टिहरी से प्रतापनगर की 4-5 किलोमीटर की दूरी पुल के डूब क्षेत्र में आ जाने के बाद बढकर करीब 70 किलोमीटर हो गई थी. जिसके बाद टिहरी बांध परियोजना पुर्नवास निदेशालय ने 440 मीटर लंबे डोबराचांटी पुल की परियोजना तैयार की. पुल की लागत 129.43 करोड़ रुपये प्रस्तावित थी. जिसका ठेका चंडीगढ़ की मै.वीके गुप्ता एंड एसोसिएट्स को दिया गया. लेकिन 2006 में निविदाएं आमंत्रित किए जाने के बाद से अब तक पुल के दोनों छोर पर केवल पिलर ही बन पाये हैं. जबकि ठेकेदार कंपनी को 124 करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है.
उत्तराखंड सरकार के इस गड़बड़झाले का खुलासा राजेश्वर पैन्यूली नाम के एक व्यक्ति द्वारा दायर आरटीआई के जरिए हुआ है. इस पुल के न होने से टिहरी से प्रतापनगर और आसपास के दर्जनों गांवों को भारी परेशानी का सामना करना करना पड़ रहा है. आरटीआई में मिली जानकारी के अनुसार इस पुल के लिए कुल लागत का 50 फीसदी केन्द्र सरकार द्वारा दिया जाना था, जबकि बाकी 50 फीसदी राज्य सरकार द्वारा खर्च होना था. योजना के लिए कुल 128.53 करोड़ की राशि टिहरी बांध परियोजना पुर्नवास निदेशालय को दी गई थी. वहीं, 2006 में निविदा स्‍वीकृत होने के बाद से इस साल अप्रैल तक निर्माता ठेकेदार ने 124.44 करोड़ रुपये खर्च कर दिये, इस पुल पर अब तक लगभग 130 करोड़ रुपये खर्च किये जा चके हैं .
  पुल भले ही नहीं बना हो, लेकिन इस पुल के लिए तकनीकी सहायता के नाम पर अधिकारियों ने 10 से ज्‍यादा बार विदेश यात्राएं की हैं. यही नहीं, इस पुल की तकनीक के लिए आईआईटी खड़गपुर से अनुबंध भी किया गया था. जानकार बताते हैं कि यह पुल आम झूला पुल से काफी अलग है, लेकिन सरकार इसे केवल एक इंजीनियर के भरोसे बना रही है, जबकि इसके लिए अंतरराष्‍ट्रीय निविदाएं मंगाई जानी चाहिए थी.
पुल के निर्माण में भ्रष्‍टाचार का आलम यह है कि यहां रेत बजरी तैयार करने के लिए कंपनी द्वारा अवैध ढंग से स्‍टोन क्रेशर भी लगा लिया गया. इस क्रेशर से पुल के निर्माण के लिए नाममात्र मैटेरियल तैयार किया जाता और बाकी अवैध रूप से खुले बाजार में बेचा जा रहा था. जानकारी मांगने पर अधिकारियों ने भी इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि अवैध संचालन के कारण क्रेशर सीज कर लिया गया.
राष्‍ट्रमंडल खेल से लेकर कोयला घोटाले का दंश झेल रही कांग्रेस सरकार इस नए घोटाले से सकते में हैं. राज्‍य की कांग्रेस सरकार जो अब तक इस पूरे मामले में आंखे मूंदी बैठी थी, आरटीआई से खुलासे के बाद हरकत में आई है. उत्तराखंड सरकार में कैबिनेट मिनिस्‍टर मंत्री प्रसाद नैथानी ने मामले में सरकार द्वारा जांच करवाने की बात कही है
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2004  में जब टेहरी बांध परियोजना की सुरंग संख्या चार को पूर्णरूप से बंद कर दिया गया तो एक एक कर के भागीरथी और भिलंगना नदी पर बने पुल एक एक कर के डूबने लगे। नदी पर बने यह पुल ही उस पार बसे सम्पूर्ण प्रतापनगर क्षेत्र की जीवन रेखा हुआ करते थे , आवागमन के लिए दो हल्का मोटर वाहन पुल बनाये गए जो कर्मश: पीपल डाली और स्यांसू नामक स्थानों में बनाये गये। इन पुलों से मात्र हल्के वाहन ही गुजर पाते है और भारी वाहनों को उत्तरकाशी या घनसाली होते हुए यहाँ पहुचना पड़ता है जिसके लिए उन्हें लगभग सौ किलोमीटर की अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ती है, अतिरिक्त दूरी तय करने के कारण माल भाड़े में वृद्धि हुई और यहाँ पहुचने वाले सामान की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि हो गयी है जहाँ एक और देश की जनता महगाई से त्रस्त है वही दूसरी और इस क्षेत्र की जनता पर दोगुनी महगाई का बोझ पड़ रहा है , कोई भारी मोटर मार्ग न होने की वजह से जनता को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है प्रत्यक्ष रूप से लगभग दो लाख लोग सीधे रूप से प्रभावित हो रहे है और लाखो लोग परोक्ष रूप से। वर्ष 2006  में जनता के आक्रोश को देखते हुए डोबरा चांठी नामक पुल को स्वीकृति दी गयी थी जो अब तक तैयार नहीं हो पाया है।