सोमवार, 22 दिसंबर 2014

राज्य में लागू नहीं हो पाया क्लिनिकल स्टेब्लीस्टमेंट एक्ट

आईएमए से जुड़े डाक्टरों के दबाव के आगे स्वास्थ्य महकमा झुका 

राजेन्द्र जोशी
देहरादून । राज्य में पब्लिक को राहत देने की सरकार की कितनी कोशिश है। इसकी बानगी स्वास्थ्य सेवाओं की मजबूती से लगाया जा सकता है। पब्लिक को राहत पंहुचाने की जगह सरकार निजि डाक्टरों की आगे झुकती नजर आ रही है। यही कारण है कि कई माह बीत जाने के बावजदू भी राज्य में क्लिनिकल स्टेब्लीस्टमेंट एक्ट लागू नहीं हो पाया है। हालात यह है कि आईएमए से जुड़े डाक्टरों के दबाव के आगे स्वास्थ्य महकमा झुक गया है और इस एक्ट को अब निजि अस्पतालों और नर्सिंग होम के लिए अनिवार्य करने की जगह सरकारी अस्पतालों में लागू करने की योजना बनाई जा रही है। 
   राज्य में पहले ही स्वास्थ्य सेवा पटरी से उतरी हुई है। जिसका सीधा फायदा निजि अस्पतालों और नर्सिंग होम चलाने वाले डाक्टरों को हो रहा है। सरकारी अस्पतालों में जनता को बेहतर इलाज नहीं मिलने से मरीजों की भीड़ प्राईवेट अस्पतालों और क्लिीनिक की ओर लगी हुई है। निजि अस्पताल भी पब्लिक की मजबूरी का फायदा उठा कर महंगा उपचार करने में लगे हुए हैं। राजधानी में ताबड़तोड़ निजि अस्पतालों की बाढ़ आ गई है। लेकिन इसके बावजूद भी पाईवेट क्लिीनिक और नर्सिंग होम चलाने वाले ज्यादातर डाक्टरों को सरकार द्वारा लागू की जाने वाली क्लिीनिकल स्टेब्लीस्टमेंट एक्ट से डर लग रहा है। तर्क दिया जा रहा है कि यदि सरकार इस एक्ट को लागू करती है तो कई छोटे अस्पताल और क्लिीनिक बंदी के कगार पर पंहुच जाऐंगे। जिससे इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इनमें से कई क्लिीनिक और अस्पताल ऐसे हैं जो एक्ट की शर्तो पर खरे नहीं उतरते हैं। इस एक्ट के लागू होने से राज्य की जनता को फायदा होगा। जहां निजि अस्पतालों में ट्रेंड स्टॉफ मिलेगा। वहीं उपचार पर मनमाफिक बढ़ाई जा रही फीस वृद्घि पर भी लगाम लग सकती है।
    यही कारण है कि निजि डाक्टर इस एक्ट के पक्ष में नहीं हैं। हाल ही में इस एक्ट को लेकर प्रमुख सचिव की अध्यक्षता  में आईएमए से जुड़े डाक्टरों की बैठक भी हुई जिसमें उनके सुझाव भी मांगे गए थे। लेकिन सूत्रों की माने तो बैठक के बाद भी राज्य में एक्ट के लागू होने का रास्ता साफ नहीं हो पाया है। निजि डाक्टरों के दबाव के आगे शासन और स्वास्थ्य महकमा दिख रहा है। जिसके चलते अब इस योजना को फिलहाल सरकारी अस्पतालों में लागू करने पर विचार किया जा रहा है। यदि सरकार निजि अस्पतालों पर क्लिीनिकल स्टेब्लीस्टमेंट लागू करने में विफल रहती हैं तो इसका सीधा फायदा इन अस्पताल के चलाने वाले संचालकों को ही मिलेगा और जनता को मनमाफिक इलाज का खर्च बताने पर लगाम नहीं लग पाएगी।

शुक्रवार, 19 दिसंबर 2014

उत्तराखंड की चिकित्सा व शिक्षा व्यवस्था बदहाल : एक रिपोर्ट


मंत्री व अधिकारी सरकारी धन की लूट खसोट में व्यस्त 

राजेन्द्र जोशी 
देहरादून : उत्तराखंड के काबिना मंत्री यदि यह सोच रहे हैं कि उनके कृत्यों को कोई नही देख रहा है तो वे यह गलफहमी न पालें. मुख्यमंत्री सहित केंद्र सरकार की निगाहों में उनका वह सब कला चिट्ठा दर्ज हो रहा है जिस पर वे पर्दा पड़ा समझ रहे हैं. मुख्यमंत्री हरीश रावत की मज़बूरी चाहे जो भी या उनके आँखों में शर्म हो वे इसलिए नही कह पा रहे है लेकिन केंद्र सरकार के दो बड़े अधिकारियों ने बीते दिनों गुप-चुप तरीके से राज्य के मंत्रियों के कृत्यों का काला चिट्ठा जो तैयार किया है वह बहुत ही चौंकाने वाला है, इन अधिकारियों में एक ने गढ़वाल इलाके का दौरा कर आम जनता से बात कर राज्य के मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड तैयार किया है तो दुसरे ने कुमायूं इलाके के मंत्रियों का. रिपोर्ट में कहा गया है कि दोनों ही विभागों के मंत्रियों का विभाग पर नियंत्रण नहीं है. 
हमारे हाथ लगी रिपोर्ट के अनुसार केंद्र के इन दोनों अधिकारियों ने राज्य सरकार तक को कठघरे में खड़ा किया है कि उसका राज्य के मंत्रियों पर कोई नियंत्रण नहीं है. दोनों अधिकारियों ने राज्य की चिकित्सा व शिक्षा व्यवस्था पर जमकर टिपण्णी की है और यहाँ तक कहा है दोनों विभागों में भ्रष्टाचार चरम पर है और चिकित्सा विभाग में तो सरकारी धन की लूट -खसोट की जा रही है. पर्वतीय इलाकों में न तो डॉक्टर है और न अस्पतालों में दवाएं ही और न स्टाफ, वहीँ शिक्षा विभाग में प्राथमिक शिक्षा का इतना बुरा हाल आज़ादी के बाद से अब तक का रिकॉर्ड है , स्कूलों में जहाँ छात्रों को पढ़ाने वाले शिक्षकों की कमी है तो कहीं बिना छात्रों के विद्यालयों में कई अध्यापक यह स्थिति पर्वतीय इलाकों की है. पर्वतीय इलाकों के सुदूरवर्ती स्कूलों में तो कोई देखने ही नही जाता कि वहां अध्यापक जाते भी हैं या नहीं. 
चिकित्सा विभाग में भी कमोवेश यही हाल है पर्वतीय इलाकों में अधिकांश अस्पतालों में डॉक्टर हैं ही नहीं. जनता द्वारा बताया गया कि पहले डॉक्टर नही होता था तो अस्पतालों में तैनात फार्मासिस्ट ही दवा दे दिया करता था और यदि वह भी छुट्टी चला जाता था तो वार्डबॉय ही उनका इलाज कर देता था लेकिन पिछले दो वर्षों से तो वहां भी ताले पड़ गए हैं लोगों को असुविधा का सामना करना पड़ रहा है. ठीक इसी तरह की टिपण्णी कुमायूं इलाके गए अधिकारी ने वहां के अस्पतालों पर की है. 
दोनों अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि केंद्र द्वारा चलायी जा रही योजनाओं का उत्तराखंड में बहुत बुरा हाल है. चाहे शिक्षा विभाग हो या चिकित्सा विभाग दोनों की विभागों में केंद्र द्वारा वित्तपोषित योजनाओं में भरी गड़बड़ी की जा रही है फर्जी आंकड़ों के सहारे योजनाओं का पैसा ठिकाने लगाया जा रहा है. वह चाहे सर्व शिक्षा अभियान हो अथवा एनआरएचएम द्वारा संचालित योजनाओं का लाभ ग्रामीण इलाके की जनता को नही मिला पा रहा है. विभाग व ठेकेदार इस पैसे को आपस में ही बाँट रहे हैं. 
अंत में इस रिपोर्ट में कहा गया है यदि राज्य सरकार ने इन दोनों विभागों पर कठोर नियंत्रण नहीं लगाया तो स्थिति और भी भयावह हो जाएगी और पर्वतीय इलाके के लोग चिकित्सा व शिक्षा को लेकर सड़कों पर उतर आयेंगे.

उत्तराखंड के पहाड़ी अंचलों में महिलाओं का शराब व शराबियों के खिलाफ अभियान ने दिखाया रंग

ये महिलाएं शराबियों की पिटाई ही नही करती  बल्कि बिच्छू घास से सिकाई तक भी करती हैं 

राजेन्द्र जोशी 
देहरादून : राज्य सरकार के लिए भले ही शराब का धंधा कमाई का जरिया हो लेकिन आपदा प्रभावित मन्दाकिनी घाटी सहित गंगा घाटी सहित गढ़वाल मंडल के कई गांवों की महिलाओं ने अपने- अपने गांवों में शराब के खिलाफ कमर कस ली है। इन इलाकों के पुरुषों की शराबखोरी पर लगाम लगाने के लिए इन्होंने लाठियां थामी और जरूरत पड़ने पर शराबियों की पिटाई ही नही की बल्कि बिच्छू घास से सिकाई तक की। महिलाओं का यह आन्दोलन यदि परवान चढ़ा तो आने वाले दिनों में  ‘सूर्य अस्त- पहाड़ मस्त ' की बात केवल कहने की ही रह जाएगी. राज्य के पर्वतीय अंचलों में शराबियों व शराब के खिलाफ महिलाओं की मुहिम का असर कई गांवों भी दिखायी देने लगा है। कई गांव अब शराबियों के उत्पात से मुक्त हो चुके हैं। उत्तराखंड के गुप्तकाशी में करीब तीन सौ परिवारों वाले नारायणकोटी गांव की महिलाओं ने शराबबंदी को लेकर जो मुहिम छेड़ी, उसके कारण अब यहां कोई शराब नहीं पीता। वहीँ गंगा घाटी में उत्तरकाशी के भटवाड़ी ब्लाक के टकनौर क्षेत्र के कई गांवों में महिलाओं ने आठ सदस्यीय समिति गठित कर शराब विरोधी अभियान चला रखा है। वह शादी में शराब परोसने का विरोध करने के साथ नशे से होने वाले नुकसान के बारे में भी बता रही हैं। महिलाओं की जागरूकता के चलते उत्तराखंड के कई गांवों में शराब का प्रचलन बंद हो गया है। इसी ब्लाक के कमद, कुमारकोट, ठांडी, बागी, भडकोट, मानपुर लक्षेश्वर बाडाहाट तथा चिन्यालीसौड़ ब्लाक की बचनौरा क्षेत्र की महिलाओं ने भी नशामुक्ति अभियान चलाने के लिए समिति बनाई है। वहीँ टिहरी के थौलधार ब्लाक में नगुण पट्टी के गांव भरदार तिरछा में बीती अगस्त में दो शराबी जो हुड़दंग मचा रहे थे। रोज-रोज के ऐसे किस्सों से परेशान पत्नियों ने उन्हें रस्सी से बांध दिया। प्रत्येक पर पांच सौ रुपए का जुर्माना लेने के बाद उन्हें छोड़ा गया। मन्दाकिनी घाटी के नारायणकोटी गांव की महिला मंगल दल की अध्यक्ष शीलावती धनाई का कहना है कि पहले गांव के बच्चे भी शराब के नशे में रहते थे। शाम को महिलाओं का घरों से बाहर निकलना मुश्किल था। मैंने ग्राम प्रधान व महिलाओं से बातचीत कर संगठन तैयार किया। अब हमने पूर्ण शराबबंदी का संकल्प लिया है।
   शराब विरोधी अभियान की ये महिलाएं एकजुट होकर शाम को शराबियों को रंगे हाथ पकड़ने के लिए पूरे गांव का दौरा करती हैं। इन्होंने तय किया कि पहली बार शराब पीते पकड़ जाने पर महिला मंगल दल पांच हजार रुपए का जुर्माना व माफीनामा लेगा। लेकिन दूसरी बार सामाजिक बहिष्कार के साथ पुलिस को भी सौंपा जाएगा। गौर्ताब हो कि लगभग सात-आठ सालों में शराब से गांव के दो लोगों की मौत हो गई थी। उस समय भी कुछ लोगों ने शराब का विरोध किया लेकिन यह ज्यादा दिन तक नहीं चल सका। कई साल बाद महिलाओं ने गांव में पूर्णरूप से शराबबंदी का संकल्प लिया। इसके लिए महिला मंगल दल अध्यक्ष शीलावती धनाई और ग्राम प्रधान जमुना देवी पुजारी ने सभी महिलाओं को संगठित कर रेकी टीम बनाई। इस टीम में सुलेखा देवी, नर्मदा रावत, बैशाखी देवी, सुशीला राणा सहित अन्य महिलाएं शामिल हैं। इसके बाद महिला मंगल दल की अध्यक्ष उषा पंवार, सरोजनी, उमा, पार्वती , रेखा, जशोदा आदि महिलाओं ने पंचायत कर शराब पीने पर पांच सौ जुर्माना और सामाजिक बहिष्कार का निर्णय लिया। इसके बाद से शराबियों के हुड़दंग का कोई मामला सामने नहीं आया।
वहीँ गोपेश्वर के समीप पाडुली गांव की महिलाओं ने भी शराब पीकर उत्पात मचाने वालों से जुर्माना वसूलने का निर्णय लिया है। महिलाओं ने बीते नवंबर में रात्रि पहरे की योजना बनाई थी। एक माह में ही इसका असर दिखाई देने लगा है। पाडुली के समीप करीब सात गांव हैं जिनको शराबियों के हुड़दंग से काफी हद तक मुक्ति मिल गई है।
गुप्तकाशी के नारायणकोटी गांव में महिला मंगल दल के नेतृत्व में शराबंबदी को लेकर 12 नवंबर से अभियान शुरू किया। यह दल हर रोज शाम को गांव से लेकर स्थानीय बाजार में यह देखती हैं कि कही गांव का कोई व्यक्ति शराब पीकर उत्पात तो नहीं मचा रहा है। वहीँ शादी-विवाह में रात के 10 बजे तक ये डंडा लेकर गश्त करती हैं। अब तक ये चार-पांच शराबियों की पिटाई भी कर चुकी हैं।
गोपेश्वर के समीप पाडुली गांव की महिलाओं ने अब शराब के विरोध में रात में पहरा देना शुरू कर दिया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि गांव में एक माह के भीतर तीन शादी समारोह हुए लेकिन किसी भी समारोह में शराब नहीं परोसी गई और न आम रास्तों और गांव में कोई शराब पीकर झूमता दिखाई दिया। वहीँ उत्तरकाशी के भटवाड़ी ब्लाक के टकनौर क्षेत्र की महिलाओं ने शराब विरोधी अभियान के लिए आठ सदस्यीय समिति गठित कर रखी है। यह समिति कई सालों से क्षेत्र में शराब विरोधी अभियान चलाए हुए हैं। फलस्वरूप क्षेत्र के कई गांवों में शराब का प्रचलन बंद हो गया है। टिहरी के थौलधार ब्लाक में ग्राम पंचायत भरदार तिरछा में महिलाओं का शराबबंदी आंदोलन रंग लाया है। इन्होंने पंचायत कर शराबियों पर पांच सौ रुपये का जुर्माना लगाने और उसका सामाजिक बहिष्कार करने का निर्णय लिया। इसके बाद गांव में अभी तक किसी भी विवाह समारोह या कार्यक्रम में कॉकटेल पार्टी नहीं हुई। जबकि भरदार के तिरछा गांव के पूर्व प्रधान वीरेंद्र पाल का कहना है कि शराबियों को पकड़कर जुर्माना वसूलने के बाद गांव में पांच-छह विवाह समारोह हुए हैं, लेकिन महिलाओं की डर से कहीं भी कॉकटेल पार्टी नहीं हुई है। जबकि इससे पहले शादी से पूर्व मैदानी जिलों की तर्ज पर यहाँ भी कॉकटेल पार्टी हुआ करती थी.

अब छात्रों का भी सरकारी स्कूलों से प्राइवेट स्कूलों की तरफ पलायन


गुणवत्तापरक शिक्षा न दे पाने के लिए अध्यापक भी दोषी 

राजेन्द्र जोशी
   देहरादून ।  अभी तक रोजगार की तलाश में युवकों का ही पलायन उत्तराखंड से अन्य राज्यों या विदेशों की तरफ सुनाई देता था लेकिन सरकार  की लचर शिक्षा व्यवस्था के चलते अब सरकारी स्कूलों में पढने वाले छात्र भी प्राइवेट स्कूलों की तरफ पलायन करने लगे हैं यह तो तब है जब राज्य सरकार के राजकीय प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में सरकार द्वारा तमाम सुविधाएं मुहैया करा रही है इसके बावजूद सरकारी स्कूलों में छात्र संख्या साल दर साल लगातार घटती जा रही है। सरकार द्वारा राजकीय विद्यालयों की ओर छात्रों को आकर्षित करने के लिए तमाम योजनाएं संचालित की जा रही हैं लेकिन नतीजे सिफर हैं। हर वर्ष शिक्षा के लिए भारी भरकम बजट की व्यवस्था की जा रही है, लेकिन छात्र सरकारी विद्यालयों को छोड़कर पब्लिक स्कूलों और निजी विद्यालयों की ओर रूख कर रहे हैं। इसके लिए कहीं न कहीं अध्यापक भी दोषी माने ने जा सकते हैं जो छात्रों वह गुणवत्तापरक शिक्षा नहीं दे पा  रहे हैं जिसकी उनके अभिवावकों को दरकार है. 
       राजकीय विद्यालयों की ओर छात्रों को आकर्षित करने के उद्देश्य से सरकार द्वारा मध्याह्न भोजन योजना, चाइल्ड फ्रेंडली प्रोग्राम, निःशुल्क शिक्षा, निःशुल्क ड्रेस, छात्रवृत्ति योजना, राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कंप्यूटर लर्निंग प्रोग्राम समेत तमाम योजनाएं संचालित की जा रही हैं, लेकिन उसके बावजूद इन विद्यालयों में छात्र संख्या में लगातार कमी आ रही है। राजकीय प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में हर वर्ष छात्र संख्या तेजी से घटती जा रही है। निजी और पब्लिक स्कूलों में महंगी शिक्षा होने के बावजूद अभिभावक अपने बच्चों को इन्हीं विद्यालयों में पढ़ाना पसंद कर रहे हैं।
     वर्ष 2011-12 में राज्य के राजकीय प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 8,68,392 छात्र-छात्राएं अध्ययनरत थे, जिनमें कि 4,07,642 छात्र और 4,60,750 छात्राएं शामिल थीं। वर्ष 2012-13 में राजकीय प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में छात्र संख्या घटकर 8,28,938 रह गई, जिनमें कि 3,88,453 छात्र और 4,40,485 छात्राएं शामिल थीं। शैक्षिक सत्र 2013-14 में राजकीय प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में छात्र संख्या घटकर 7,92,937 रह गई, जिसमें कि 3,72,199 छात्र और 4,20,738 छात्राएं शामिल हैं। पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष छात्र संख्या 36,001 घट गई है। प्रदेश में राजकीय प्राथमिक विद्यालयों की संख्या 12,510 है, जिनमें कि 27,077 शिक्षक नियुक्त हैं। जबकि राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालयों की संख्या 2,807 है जिनमें कि 9,580 शिक्षक नियुक्त हैं। हर वर्ष शिक्षा के लिए भारी भरकम बजट की व्यवस्था की जा रही है, लेकिन छात्र संख्या लगातार घट रही है। 
   जिला स्तर पर यदि देखा जाए तो वर्ष 2011-12 में अल्मोड़ा जिले के राजकीय प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 74,427 विद्यार्थी, 2012-13 में 69,105 विद्यार्थी अध्ययनरत थे, जबकि इस वर्ष 62,748 विद्यार्थी रह गए हैं। बागेश्वर जिले में वर्ष 2011-12 में 33,594 विद्यार्थी, 2013-14 में 28,723 विद्यार्थी पंजीकृत थे जबकि 2013-14 में विद्यार्थियों की संख्या 27,188 रह गई है। चमोली जिले में 2011-12 में 48,060 विद्यार्थी और 2012-13 में 45,637 विद्यार्थी पंजीकृत थे, इस शैक्षिक सत्र में विद्यार्थियों की संख्या घटकर 43,154 रह गई है। चंपावत जिले में वर्ष 2011-12 में 33,174 विद्यार्थी और 2012-13 में 31,692 विद्यार्थी पंजीकृत थे, वर्ष 2013-14 में विद्यार्थियों की संख्या घटकर 30,096 रह गई है। देहरादून जिले में वर्ष 2011-12 में विद्यार्थियों की संख्या 81,802, वर्ष 2012-13 में 79,246 छात्र संख्या थी, इस वर्ष यह संख्या घटकर 75,421 रह गई है। पौड़ी जिले में वर्ष 2011-12 में 70,994 विद्यार्थी, 2012-13 में 66,232 विद्यार्थी पंजीकृत थे, 2013-14 में 62,346 विद्यार्थी रह गए हैं।
     हरिद्वार जिले में वर्ष 2011-12 में 1,18,410 विद्यार्थी, 2012-13 में 1,18,803 विद्यार्थी थे, 2013-14 में यह संख्या घटकर 1,18,379 रह गई है। नैनीताल जिले में 2011-12 में 74,486 विद्यार्थी, 2012-13 में 71,413 विद्यार्थी थे, इस शैक्षिक सत्र में विद्यार्थियों की संख्या 70,051 रह गई है। पिथौरागढ़ जिले में वर्ष 2011-12 में 49,814 विद्यार्थी, 2012-13 में 47,122 विद्यार्थी और 2013-14 में विद्यार्थियों की संख्या घटकर 44,345 रह गई है। रूद्रप्रयाग जिले में वर्ष 2011-12 में 31,209 विद्याथी, 2012-13 में 29,049 विद्यार्थी थे, वर्ष 2013-14 में विद्यार्थियों की संख्या 27,309 रह गई है। टिहरी जिले में वर्ष 2011-12 में 81,787 विद्यार्थी, 2012-13 में 76,152 विद्यार्थी पंजीकृत थे, इस वर्ष 71,251 रह गए हैं। उधमसिंहनगर जिले में वर्ष 2011-12 में 1,33,287, 2012-13 में 1,26,936 पंजीकृत थे, वर्ष 2013-14 में विद्यार्थियों की संख्या घटकर 1,23,931 रह गई है। उत्तरकाशी जिले में वर्ष 2011-12 में 40,348 विद्यार्थी, 2012-13 में 38,828 विद्यार्थी पंजीकृत थे, वर्ष 2013-14 के शैक्षणिक सत्र में राजकीय प्राथमिक और उ़च्च प्राथमिक विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या घटकर 36,718 रह गई है।