शनिवार, 22 दिसंबर 2012

दरिंदगी के दाग से देवभूमि भी है दागदार

दरिंदगी के दाग से देवभूमि भी है दागदार
राजेन्द्र जोशी
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हुए गैंगरेप से समूचा देश सदमे में है। इस घटना के बाद लोगों के बीच जो प्रतिक्रिया आ रही है उससे साफ जाहिर होता है कि देश गुस्से में भी है। गैंगरेप के खिलाफ दिल्ली से लेकर आर्थिक राजधानी मुंबई तक लोग सड़कांे पर निकले, हवा में उछल रहे हाथों में जो तख्तियां लहरा  रही थी, उसमें लिखे संदेशों से स्पष्ट था कि महिलाओं पर हो रहे अत्याचार किसी भी सूरत में मंजूर नहीं, ऐसे लोगों को भारतीय दंड संहिता में सीधे  सजा-ए-मौत की लोग मांग कर रहे हैं।
   ऐसा ही नजारा उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में भी दिखा, जहां विभिन्न संस्थानों के छात्र-छात्राएं,  सामाजिक और राजनीतिक संगठन भी सड़कों पर  उतरा। दिल्ली के गुनहगारों को सजा-ए-मौत के नारे राजधानी की फिजाओं में तैर रहे हैं। ये लोग दिल्ली में हुए गैंगरेप पर अपना गुस्सा बयां कर रहे थे, ये गुस्सा जाजय भी है, बिडंबना देखिए कि दिल्ली की हवा के रूख में सभी बहे लेकिन किसी ने भी उत्तराखंड में हुए उन जघन्य अपराधों और अपराधियों के खिलाफ  कोई आवाज नहीं उठाई, जिन अपराधों ने देवभूमि के दामन पर भी दरिंदगी के दाग लगाये।
   ऋषि-मुनियों की तपस्थली और देवताओं की इस भूमि को भी दरिंदों ने कई बार घिनौनी हरकत से ना सिर्फ खून से लतपथ किया बल्कि कई मासूमों की जिंदगी को तबाह और बर्बाद की। चुप और  खामोश रहने वाले पहाड़ों में भी महिलाएं महफूज नहीं हैं, तो मैदानी और शहरी इलाकों के हाल इससे कई गुना ज्यादा खराब हैं, जहां महिलाएं घर से बाहर निकलते ही अपनी सुरक्षा के प्रति चिंतित रहती है। ये हालात उस पहाड़ी मुल्क में है जहां कभी घरों में ताले तक नहीं लगाये जाते हैं, पिछले दो दशक में ऐसा क्या घट गया कि अब लोगों को अपनी सुरक्षा की चिंता ज्यादा सताने लगी है। खैर दिल्ली में हुई इस घटना को लेकर समूचे देश में हो हल्ला मचा हुआ है। लेकिन उत्तराखंड की बात करें तो यहां हुए कई जघन्य अपराधों के खिलाफ जनता क्यों मुखर नहीं हुई। देहरादून में हुए अंशू हत्याकांड को लेकर क्यों चुप्पी  साधी हुई है, कुमाऊं में गीता खोलिया प्रकरण ठंडे बस्ते में समा गया है।

हरिद्वार में कविता हत्याकांड का हश्र क्या हुआ आप सब जानते हैं। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर कितनी अंशू, कितनी गीता और कितनी कविताएं हैवनियत की शिकार होंगी। इन के परिवार वालों से जरा पूछिये कि उनकी आत्मा क्या कहती होगी, हर रोज पुलिस दफ्तर पर अपनी फरियाद लेकर पहुंच जाते हैं, लेकिन अपराधी आज भी कानून के शिकंजे से दूर हैं। आखिर न्याय की देवी की आंखों से काली पट्टी हटेगी और कब इन लोगों न्याय मिलेगा।
 जरा सोचिए क्या यह अपराध देश की राजधानी में हुआ और इसलिए ये ज्यादा बड़ा है, देवभूमि उत्तराखंड के दामन पर जिन जघन्य अपराधों के छींटे पड़े  क्या वो इसलिए भुला दिये जायेंगे कि वो एक पहाड़ी राज्य में हुए। ऐसा नहीं चलेगा! देवभूमि में हुए जघन्य अपराधों को लेकर क्या कोई सड़कों पर उतरा, क्या प्रदेश की विधानसभा में किसी ने भी उन मासूमों के लिए आवाज उठाई, जिनकी आवाज हवस की खातिर हमेशा के लिए फ़ना हो गई। लिहाजा अगर देश की राजधानी में हुए गैंगरेप पर समूचा देश में उबाल आता है तो फिर इन मासूमों के परिजनों को न्याय दिलाने की खातिर उत्तराखंड के लोग सड़कों पर क्यों नहीं उतर सकते?

गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

मुख्यमंत्री, राज्यपाल और मंत्री छोड गए राजधानी भगवान भरोसे

मुख्यमंत्री, राज्यपाल और मंत्री छोड गए राजधानी भगवान भरोसे
आंदोलनों की आग से झुलस रही राजधानी
नेताओं की आस में आम आदमी, जनप्रतिनिधि जूते घिसने को मजबूर
राजेन्द्र जोशी

देहरादून, 20 दिसम्बर,। दून घाटी आज कल आंदोलनों की आग से झुलस रही है, लेकिन आग बुझाने वाले मातहत गायब हैं। आंदोलनकारियों को आखिर समझाए तो कौन समझाए। यहां तक कि आंदोलनकारियों से ज्ञापन लेने के लिए अदने से अधिकारियों की जिम्मेदारी लगाई गई है। राजधानी में यदि कुछ हो गया, तो निर्णय लेने वाला भी कोई नहीं है। राज्य का मुख्यमंत्री विदेश दौरे पर तो राज्यपाल मध्यप्रदेश के दौरे पर हैं, वहीं कुछ मंत्रीगण तो अपने घरों में आराम फरमा रहे हैं और कुछ अपनी विधानसभा क्षेत्रों में बताए गए हैं। विधानसभा वीरान पड़ा है और समस्याओं के पुलिंदे लिए राज्य के सुदूरवर्ती अंचलों के जनप्रतिनिधि सचिवालय और विधानसभा के बीच झूल रहे हैं। यह उस राज्य की दशा है, जिसे बने अभी मात्र 12 वर्ष हुए हैं।
    आंदोलनों की आग में सूबे की राजधानी दून गुरूवार और भड़क गई। जहां सामान्य वर्ग के कर्मचारियों ने प्रोन्नति में आरक्षण को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों को जमकर कोसा वहीं उनकी शव यात्रा निकालकर पुतला दहन किया। इसके साथ ही दिल्ली में हुए सामूहिक गैंगरेप के विरोध में छात्राओं ने राजधानी की सड़कों पर रैली निकालकर आरोपियों को फांसी पर लटकाने की मांग की। वहीं समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने आरक्षण को
समर्थन देने के विरोध में भाजपा और कांग्रेस दोनों पर के खिलाफ प्रदर्शन किया। इधर हड़ताल कर रहे बैंक कर्मियों ने धरने-प्रदर्शन और जुलूस निकालकर निकाल राजधानी की सड़कों पर केन्द्र सरकार के खिलाफ अपना आक्रोश जाहिर किया। उधर उत्तराखंड परिवहन महासंघ द्वारा कर्मिशियल वाहनों पर पंजीकरण शुल्क बढ़ाये जाने के विरोध में धरना दिया और सरकार को चेतावनी दी कि अगर सरकार ने अपना निर्णय वापस नहीं लिया तो वह अनिश्चित कालीन हड़ताल पर चले जायेंगे। स्वास्थ्य विभाग के लैब टेक्नीशियल अपनी मांगों को लेकर हड़ताल पर चले गये जिसके कारण अस्पतालों में मरीजों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। रोज की तरह उधर मिनिस्ट्रियल कर्मियों का आंदोलन भी गुरूवार को जारी रहा। विभिन्न संगठनों और राजनीतिक दलों और कर्मचारियों के इन          राजधानी दून की सड़कें पूरी तरह से आंदोलनों से पटी पड़ी हैं, जिसके कारण प्रशासन की हालत खस्ता होती जा रही है और आम आदमी को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। धरने-प्रदर्शनों से राजधानी की सड़कों पर जाम की स्थिति बननी अब आम हो गई है, राज्य सभा में प्रोन्नति में आरक्षण के बाबत लाये जाने वाले संविधान संशोधन बिल के विरोध में सामान्य वर्ग के कर्मचारियों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है, जिसके चलते गुरूवार को भी इन कर्मचारियों ने परेड ग्राउंड में जनसभा कर भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही जमकर खरी-खोटी सुनाई वहीं इन कर्मचारियों ने नुक्कड नाटक के माध्यम से सरकार को कटघरे में खड़ा किया। इन कर्मचारियों में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों की शव यात्रा निकाली, उनकी यह शव यात्रा घंटाघर व पल्टन बाजार होती हुई लक्खीबाग पंहुची जहां कर्मचारियों ने इनके पुतले दहन किये।
    राज्य के मातहत नेता राज्य को भगवान भरोसे छोड़ अपनी-अपनी यात्राओं में मशगूल हैं, मुख्यमंत्री अफ्रीकी देशों सहित यूरोपीय देशों की यात्रा पर हैं, तो राज्यपाल अपने निजी दौरे पर अपनी कर्मस्थली रहे भोपाल के दौरे पर। ऐसा ही हाल मंत्रियों का भी है, कोई अपनी विधानसभा क्षेत्र में रहने की बात कहकर राजधानी से किनारा किए हुए है, तो कोई अपने निजी दौरे पर। राज्य के अधिकारियों का भी बुरा हाल है। ऐसे में दूरदराज से आए जनप्रतिनिधि व समस्याओं से जूझ रहे लोगों के जहां विधानसभा और सचिवालय के बीच जूते तो घिस रहे हैं, वहीं उनकी जेबों पर अतिरिक्त आर्थिक भार पड़ रहा है। 12 साल के इस राज्य में नेताओं का इतना गैर जिम्मेदाराना व्यवहार कभी नहीं देखा गया। राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि राज्य सही दिशा पर न चलकर अपने विकास के मार्ग से भटक गया है। उन्होंने इसकी सारी जिम्मेदारी राज्य के नेताओं पर डालते हुए कहा कि नेता राज्य को दिशा देता है, लेकिन जब नेता ही राज्य के प्रति लापरवाह हो तो वह राज्य कैसे उन्नति कर सकता है, यह विचारणीय है।

मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

योजना पर अमल की तैयारी, सरकार चली गैरसैंण

योजना पर अमल की तैयारी, सरकार चली गैरसैंण
राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 18 दिसम्बर। कांग्रेस सरकार ने अपने कदम अब उत्तराखंड में गैंरसैण की ओर बढ़ाना शुरू कर दिया हैं। बीती तीन नवंबर राज्य के इतिहास में पहली बार गैरसैंण में आयोजित हुई कैबिनेट की बैठक में लिये गये निर्णयों पर अमल के लिए सरकार ने अब ठोस पहल करनी शुरू कर दी है। दस अधिकारियों का एक दल 18 दिसम्बर को को गैंरसैण रवाना हो गया, जो 19 दिसंबर से लेकर 21 दिंसबर तीन दिन गैरसैंण में कैंंिपंग करेंगा और सरकार की घोषणाओं के आधार पर यहां पर बनाये जाने वाले भवनों के निर्माण के लिए सर्वेक्षण करेगा।
    उल्लेखनीय हो कि सरकार ने कैबिनेट की बैठक में निर्णय लिया था कि गैरसैंण में शीघ्र ही विधानभवन बनाया जायेंगा विधानसभा का एक सत्र यहां हर साल आयोजित किया जायेंगा। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा द्वारा की गई घोषणा कि 14 जनवरी 2013 को गैरसैंण में विधनसभा भवन का शिलान्यास किया जायेंगा। इस घोषणा पर अमल के लिए अब सरकार ने काम करना शुरू कर दिया है। गैंरसैण में सत्र चलाये जाने की परिकल्पना को पूरा करने के लिए यहां चार बड़े भवनों के निर्माण की जरूरत है जिसमें विधानसभा भवन, मिनी सचिवालय, विधायक व मंत्री आवास एंव अधिकारी आवास प्रमुख हैं। इन भवनों के निर्माण के लिए भूमि का चयन एंव अन्य तमाम जरूरतों को पूरा करने के लिए सर्वेक्षण जरूरी हैं। इन भवनों के सर्वेक्षण के लिए सचिव आवास एंव सचिव राज्य संपत्ति के अलावा पीडब्ल्यूडी और विधानसभा के उच्च अधिकारी भूगर्भ विशेषज्ञ कल से गैरसैंण में रहकर सर्वेक्षण करेंगे। इस क्षेत्र में भवनों के निर्माण के साथ-साथ सड़क बिजली, पानी और हैलीकॉप्टर लेंडिग के लिए जमीन की तलाश की जायेंगी। अपने इस कैंप के दौरान यह अधिकारी इन भवनों के निर्माण का खाका तैयार करेंगे। इस पहल से यह साफ हो गया है कि सरकार ने अपनी घोषणाओं को पूरा करने के लिए ठोस पहल शुरू कर दी हैं। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने कहा है कि 14 जनवरी 2013 को होने वाले शिलान्यास में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को बुलाया जायेगा। वहीं इस मामले में सांसद सतपाल महाराज ने केन्द्र सरकार से 50 करोड़ रुपये अतिरिक्त धन मुहैया कराने की मांग की है। वहीं एक जानकारी के अनुसार विधानसभा उपाध्यक्ष अनुसुया प्रसाद मैखुरी व राज्य के कुछ महत्वपूर्ण नेताओं ने विदेशी पशु प्रजनन प्रक्षेत्र भरारीसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी के लिए उपयुक्त बताया है। इनका कहना है कि भरारीसैंण में सरकार को कई आवासीय भवन सहित बैठक के लिए सभागार और कार्यालय भवन पर कम खर्च के बावजूद सुविधा मिल जाएगी, क्योंकि दो दशक पूर्व यहां पर विदेशी पशु प्रजनन प्रक्षेत्र का अच्छा खासा कार्यालय था, जो राज्य बनने के बाद लगभग खाली सा हो गया है, वहीं इसी स्थान पर विधानभवन और मिनी सचिवालय के निर्माण को भी हरी झण्डी मिल सकती है, क्यांेकि इस स्थान पर बिजली, पानी सहित हैलोड्रम तक बनाने के लिए जमीन उपलब्ध है। इससे जहां सरकार पुराने भवनों को इस्तेमाल में लाकर खर्चा बचा सकती है, वहीं इनका उपयोग भी ग्रीष्मकालीन राजधानी के लिए किया जा सकता है।

सोमवार, 17 दिसंबर 2012

इधर कर्मचारी हड़ताल पर, उधर मुख्यमंत्री विदेश यात्रा पर !

इधर कर्मचारी हड़ताल पर, उधर मुख्यमंत्री विदेश यात्रा पर !
 
संवेदनहीनता की पराकाष्ठा दिख रही उत्तराखण्ड में
 
राजेन्द्र जोशी
देहरादून 17 दिसम्बर। इसे उत्तराखण्ड का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जिस राज्य के 56 विभागों के छहः लाख कर्मचारी हड़ताल पर हों और मुख्यमंत्री विदेश जाने की तैयारी में लगा हो  इससे पहले भी प्रदेशवासी राज्य के नेताओं की राज्यवासियों से बेरुखी उस वक़्त देख चुके हैं तब राज्य में आपदा के  दौरान जहां एक ओर उत्तरकाशी, बागेश्वर और रूद्रप्रयाग जिले के सैकड़ों लोग जीवन और मौत से लड़ रहे थे,  वहीं उस वक़्त राज्य के कुछ कबीना मंत्री व विधायक इंग्लैंड में गुलछर्रे उड़ा रहे थे।
    पदोन्नति में आरक्षण के खिलाफ चल रहे आंदोलन में राज्य के 56 विभागों के लगभग छहः लाख कर्मचारी आंदोलन पर हैं, सोमवार को राज्य के इन 56 विभागों के कार्यालयों में या तो ताले पड़े रहे या कार्यालयों में सन्नाटा पसरा रहा। शासन से लेकर मण्डलीय स्तर और जिले से लेकर तहसील स्तर और यहां तक ब्लॉक स्तर तक के कर्मचारियों के काम पर न आने से सरकारी कामकाज बुरी तरह प्रभावित रहा। वैसे आरक्षण समर्थक कुछ कर्मचारी जरूर काम पर आए, लेकिन इनकी संख्या प्रभावी न होने के कारण ये लोगों की दिक्कतों को दूर नहीं कर पाए। राज्य के लगभग सभी कर्मचारी संगठन मिलकर ताकत के साथ इस आंदोलन में प्रतिभाग कर रहे हैं। राज्य स्तरीय संगठनों में उत्तराखण्ड डिप्लोमा इंजीनियर्स महासंघ, उत्तराखण्ड कर्मचारी शिक्षक संगठन, पर्वतीय कर्मचारी शिक्षक संगठन, राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद, उत्तराखण्ड चालक महासंघ, उत्तराखण्ड कर्मचारी निगम महासंघ, वन निगम महासंघ और उत्तराखण्ड मिनिस्ट्रीयल फैडरेशन जैसे संगठन मैदान में है। ऐसे में राज्य के मंत्रियों व विधायकों के दौरे के बाद अब मुख्यमंत्री का 10 दिवसीय व्यक्तिगत विदेशी दौरा विवादों में आ गया है।
    एक जानकारी के अनुसार आज (सोमवार) मुख्यमंत्री देहरादून से दिल्ली जाएंगे, जहां से वे मंगलवार को मुंबई पहुंचेंगे, चर्चा है कि उनके साथ उनके परिवार के लगभग 24 लोग भी साथ  जा रहे हैं, जो 19 दिसम्बर को मुंबई से दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील तथा जर्मनी सहित कई अन्य यूरोपीय व दक्षिण अफ्रीकी देशों की यात्रा भी करेंगे । इस दौरान वे केपटाउन, जोहांसबर्ग व रिओ डी जनेरिओ की यात्रा भी करेंगे.  सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग में सहारनपुर निवासी खनन व्यवसायी राकेश कुमार गुप्ता के मेहमान बनकर जा रहे हैं, सूत्रों ने तो यह भी बताया कि इस पूरी यात्रा के प्रायोजक दक्षिण अफ्रीका का यह व्यवसायी ही हैं, जो भारत के उत्तराखण्ड प्रांत में खनन और होटल व्यवसाय में अपने हाथ आजमाने को तैयार हैं। जिनके दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब जुमा की तीसरी पत्नी के पुत्र डुडुजानी जैकब व्यवसायिक हिस्सेदार हैं।
    राजनीतिक जानकारों का कहना है जहां एक ओर राज्य के छहः लाख कर्मचारी हड़ताल पर हों और राज्य का मुख्यमंत्री अपनी विदेश यात्रा की तैयारी पर, इससे यह साफ झलकता है कि वह राज्य के प्रति कितने संजीदा हैं। जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने से लेकर आज तक मुख्यमंत्री ने इस राज्य को केवल राज्य में काम करने वाले ब्यूरोक्रेट्स की तरह ही लिया है, वे सत्ता में मात्र पांच दिन ही देहरादून में प्रवास करते हैं और शनिवार व रविवार उनका दिल्ली में ही गुजरता हैं । विश्लेषकों का मानना है कि इसे संवेदनहीनता की पराकाष्ठा ही कहा जाएगा कि एक और जहाँ राज्य के छह लाख कर्मचारी हड़ताल पर है और राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था छिन्न भिन्न हो और मुख्यमंत्री विदेश यात्रा पर जा रहा हो इससे पता चलता है कि वह राज्य के प्रति कितना संजीदा है। इतना ही नहीं प्रदेशवासी राज्य में काबिज कांग्रेस सरकार के मंत्रियों का राज्य के प्रति संजीदगी उस समय भी देख देख चुके हैं जब बादल फटने की घटना के चलते तीन सितंबर को ऊखीमठ, रूद्रप्रयाग और बागेश्वर जिलों के सैकड़ों लोग जहां जीवन और मौत के बीच संघर्ष कर रहे थे, उस दौरान राज्य के मंत्री इंग्लैंड में ओलपिंक का मजा ले रहे थे। मंत्रियों की इस यात्रा पर राज्य के लोगों का आक्रोश भी उस समय भी देखने को मिला था।

शनिवार, 15 दिसंबर 2012

रोजगार तो नहीं दे पाई सरकार नशे का कर लिया इंतजाम



रोजगार तो नहीं दे पाई सरकार नशे का कर लिया इंतजाम

उत्तराखण्ड़ी महिलाओं को दुख पहुंचाने वाला है सरकार का निर्णय: शमशेर सिंह बिष्ट

राजेन्द्र जोशी
देहरादून 15 दिसम्बर। ‘‘नशा नहीं रोजगार दो‘‘ के नारे उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में जनसंगठनों द्वारा लगभग तीन दशक से लगाए जाते रहे हैं, सरकार बेरोजगारों को रोजगार तो उपलब्ध नहीं करा पाई, लेकिन नौनिहालों को नशे की गर्त में धकेलने का इंतजामात सरकार ने जरूर कर दिए हैं। अब सरकार शराब के रास्ते लोगों को रोजगार देने और माफियाओं को पैसे बटोरने का पूरा इंतजाम खुद ही कर रही है। सरकार के इस निर्णय से शराब माफियाओं अथवा शराब के कारोबारियों और सरकार के बीच गहरा रिश्ता स्वतः ही उजागर हो गया है।
    बीते दिन विधानसभा सत्र की समाप्ति के बाद हुई कैबिनेट बैठक में सरकार ने विदेशी तर्ज पर और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के रास्ते पर चलते हुए राज्य में बार लाईसेंस वाले होटल और रेस्तरा में माईक्रोपब ब्रूवरी खोलने का रास्ता साफ हो कर दिया। इनमें स्थानीय स्तर पर पैदा होने वाले खाद्यानों से बीयर बनाई जाएगी। जिसमें पांच फीसदी ऐल्काहॉल होगा, इतना ही नहीं बार लाईसेंस वाले होटर और रेस्टोरेंट मात्र तीन करोड़ का उपकरण लगाकर पीने वालों के लिए बीयर दे सकेंगे। इससे राज्य को प्रति ईकाइ 300 बल्क लीटर क्षमता वाली मात्र एक फैक्ट्री से प्रतिवर्ष 18.46 लाख का राजस्व मिलेगा। इतना ही नहीं सरकार ने राज्य में बॉटलिंग प्लांट (बोतल भरने की व्यवस्था) के रास्ते भी खोल दिए हैं। इससे बाहरी प्रदेश अथवा देशों  से आने वाली मदिरा की बॉटलिंग प्रदेश में ही की जाएगी। सरकार ने अनुमान के अनुसार एक माह में लगभग इस प्लांट में लगभग छहः लाख बोतले भरी जाएंगी और इससे सरकार को प्रतिवर्ष 19.46 करोड़ का राजस्व मिलेगा। यह बॉटलिंग प्लांट हरिद्वार नगर निगम के पूरे क्षेत्र, ऋषिकेश नगर और आस-पास जिसमें र्स्वग आश्रम, मुनुकीरेती, लक्ष्मणझूला और तपोवन में नहीं लगाया जा सकेगा।
    आखिर सरकार को राज्य में शराब व्यवसाय को पनपाने के पीछे क्या गणित नजर आई, यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन सरकार का तर्क है कि इससे राज्य में शराब पीने वालों कई तरह की शराब मिल पाएगी और आपसी प्रतिस्पर्द्धा के चलते शराबियों को शराब की कीमत कम देनी पडे़गी और ऐसे शराब विक्रेता निर्यात शुल्क देकर ऐसी शराब का निर्यात भी कर सकेंगे। राज्य में वर्तमान में उधमसिंह नगर में खेतान, देहरादून में बोर्डमैन, काशीपुर में आईजीएल पहले से ही शराब की बॉटलिंग कर रहे हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि राज्य में शराब व्यवसाय सरकार को एक कमाउ सौदा नजर आ रहा है, लेकिन राज्य सरकार को राज्य के बेरोजगारों की कतई चिंता नहीं दिखाई दे रही है कि राज्य के लगभग साढ़े आठ लाख बेरोजगारों के लिए राज्य सरकार ने क्या किया। जबकि राज्य के पर्वतीय इलाकों में नशा नहीं रोजगार दो के नारों से पूरो उत्तराखण्ड का पर्वतीय क्षेत्र आज भी गूंज रहा है। लोगों के पास रोजगार नहीं है और वे रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं, विश्लेषकों का कहना है कि जब राज्य के बेरोजगारों के हाथ में रोजगार नहीं होगा और जेब में पैसे नहीं होंगे तो सरकार की शराब को कौन खरीदेगा। विश्लेषकों का मानना है कि कहीं सरकार शराब के व्यवसाय को फैलाकर राज्य के युवाओं को नशेड़ी तो नहीं बनाने जा रही है। इस मामले पर लोक वाहिनी तथा नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन के मुखिया रहे शमशेर सिंह बिष्ट ने कहा कि यह राज्य 200 साल तक शराब विहीन था अंग्रेजों ने यहां शराब लाकर राज्य को बर्बाद करने का कार्य किया, जिसे कांग्रेस सरकार आगे बढ़ा रही है। उन्होंने कहा उत्तराखण्ड की महिलाओं का शराब के खिलाफ आंदोलन और राज्य सरकार का यह निर्णय महिलाओं को दुख पहुंचाने वाला है। उन्होंने बताया कि नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन के कार्यकर्ता सरकार के इस निर्णय का पुरजोर विरोध करेंगे।
    सरकार का यह निर्णय राजनेताओं, अफसारशाहों और शराब माफियाओं के बीच गठजोड़ का नमूना है, सरकार का यह निर्णय इस बात की भी तस्दीक करता है कि राज्य में शराब व्यवसाय में शराब व्यवसायियों और सफेद पोशों नेताओं व अधिकारियों के बीच कितना मित्रतापूर्ण संबंध है। सूत्रों ने तो यहां तक बताया है कि यह निर्णय बीती 17 नवंबर को पोंटी चढ्ढा हत्याकाण्ड से पहले पोंटी चढ्ढा व राज्य के दो आईएएस अधिकारियों के बीच हुई डील का परिणाम है, जिसे सरकार ने अब जाकर मूर्त रूप दिया है।