मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

पुलिस अधिकारी दुराचार मामले में पुलिस गहरी नींद में

पुलिस अधिकारी दुराचार मामले में पुलिस गहरी नींद में
ऐसे तो मित्र पुलिस से उठ जाएगा महिलाओं का विश्वास!
देहरादून। उत्तराखण्ड में महिलाएं कितनी महफूज हैं, यह बात प्रदेश पुलिस बड़े-बड़े बैनर और नारे देकर तो कर सकती है, लेकिन यथार्थ में ऐसा कुछ नहीं है। जहां दिल्ली में बीती दिसंबर व इस माह एक युवती व बालिका से बलात्कार के बाद समूचा जनमानस इस अपराध के खिलाफ सड़कों पर उतर गया था, वहीं राज्य में एक पुलिस अधिकारी द्वारा महिला के साथ दुराचार के बाद राज्य के समाजिक संगठन व पुलिस गहरी नींद में दिखाई दे रही है। दिल्ली में जहां एसपी स्तर के एक अधिकारी द्वारा एक महिला को थप्पड़ मारने पर बर्खास्त किया गया, वहीं उत्तराखण्ड में दुराचार के बाद भी प्रदेश सरकार ऐसे अधिकारी के खिलाफ कोई कदम नहीं उठा पाई। ऐसे में राज्य में कानून व्यवस्था के रखवाले ही जब भक्षक के रूप में सामने आएंगे तो प्रदेश की जनता का विश्वास प्रदेश की मित्र पुलिस से उठना लाजमी है।
उत्तराखण्ड के इतिहास में पहली बार ऐसा देखने को मिला कि एक युवती ने आवाम की रक्षा के लिए तैनात किए गए एक एसपी सिटी पर चीख-चीखकर खुला आरोप लगाया है कि उसने उसे शादी का झांसा देकर कई बार उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए। 25 दिन से युवती डीजीपी सहित कई पुलिस अधिकारियों से न्याय की भीख मांग रही है कि उसके साथ बलात्कार करने वाले एसपी प्रमेन्द्र डोभाल के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उसे इंसाफ दिलाया जाए। हालांकि प्रदेश के अंदर एसपी की ताकत से राज्य के अंदर महिला सुरक्षा के बड़े बड़े दावे तार-तार होते नजर आ रहे है। दिल्ली में एक युवती के साथ हुए गैंगरेप के बाद सरकार के मुखिया व प्रदेश के डीजीपी ने ऐलान किया था कि प्रदेश के अंदर महिलाओं की सुरक्षा में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी। इतना ही नहीं डीजीपी ने तो यहां तक दावा कर डाला था कि अगर कोई पीड़ित युवती या महिला गैंगरेप या किसी अन्य तरह से पीड़ित हुई है तो उसे थाने तक में जाने की जरूरत नहीं है और वह एक डाक द्वारा शिकायती पत्र थाने में भेजेगी तो तत्काल मुकदमा दर्ज कर
आरोपी के खिलाफ कार्रवाई की जायेगी। लेकिन लगता है कि प्रदेश में अगर रेप या छेड़खानी का दाग किसी बड़े अफसर पर लगता है तो सारे नियम कानूनों की धज्जियां उड़ाकर दागी को बचाने का खेल शुरू हो जाता है। सवाल उठ रहा है कि क्या एसपी के लिए प्रदेश में महिला सुरक्षा को लेकर कोई अलग कानून बनाया गया है। जिसके चलते बलात्कार का दंश झेल रही युवती को न्याय दिलाने के लिए प्रदेश में अब तक के सबसे बड़े ईमानदार डीजीपी खामोश होकर क्यों बैठे हुए है, इसको लेकर राज्य के अंदर पुलिस मुखिया की खामोशी पर भी लगातार सवाल उठने शुरू हो गए है। वहीं राज्य में तथाकथित महिला हिमायती संगठनों की भी इस घटना ने पोल खोलकर रख दी है। महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को लेकर हो-हल्ला मचाने वाले ये सामाजिक संगठन इस घटना पर क्यों मौन है, यह समझ से परे है।
    गौरतलब हो कि महिलाओं व युवतियों से देश के अंदर हो रहे बलात्कार व छेड़खानी की घटनाओं के चलते सभी एक जुट होकर हवस के दरिंदों को सबक सिखाने के लिए आगे आए हुए है। उनका साफ तौर पर कहना है कि ऐसा कानून बनना चाहिए कि जिससे ऐसी घटनाओं को रोका जा सके। प्रदेश सरकार के मुखिया ने भी महिलाओं की सुरक्षा को लेकर पुलिस मुख्यालय में एक अलग सेल का गठन कर वहां महिला आईपीएस को तैनात किया था तथा प्रदेश के डीजीपी सत्यव्रत ने पूरे राज्य के पुलिस कप्तानों को फरमान जारी किया था कि वह अपने इलाकों में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर ठोस से ठोस कदम उठाएं, इतना ही नहीं डीजीपी ने यहां तक दावा कर दिया था कि अगर कोई महिला या युवती ऐसी घटनाओं का शिकार हुई हो तो उसे थाने व चौकी में जाने की कोई जरूरत नहीं है। वह सीध सरकारी डाक से अपनी शिकायत थाने व चौकी में भेज दे, जिसके तुरंत बाद उसकी शिकायत पर मुकदमा दर्ज कर आरोपी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। राजधानी में महिलाओं की सुरक्षाओं को लेकर बड़े होर्डिंगस सड़कों पर इस कदर लगाए हुए है कि मानो पुलिस ने संकल्प ले लिया हो कि अगर किसी भी महिला या युवती के साथ अश्लीलता होगी तो उसके आरोपी को बख्शा नहीं जाएगा। लेकिन जब हल्द्वानी की एक युवती ने डीजीपी के सामने चीख चीखकर आरोप लगाया कि हल्द्वानी के एसपी सिटी ने शादी का झांसा देकर उसके साथ कई बार यौन शोषण किया है तो खाकी पर लगे अब तक के इतिहास में सबसे बड़े दाग पर पूरा पुलिस महकमा एसपी सिटी को बचाने की गुप्त मुहिम में लगा हुआ है। सवाल उठ रहे है कि डीजीपी साहब, राज्य में महिला सुरक्षा को लेकर पुलिस महकमा दोहरा चरित्र क्यों अपना रहा है। क्योंकि अगर यही दाग किसी दरोगा पर लगा होता तो उसके खिलाफ मुकदमा कायम कर उसे जेल तक भेज दिया गया होता। लेकिन जब एक एसपी सिटी पर एक युवती ने 25 दिन पूर्व डीजीपी के सामने लिखित मेें आरोप लगाया कि एसपी प्रमेंद्र डोभाल ने उसे शादी को झांसा देकर उसके साथ यौन शोषण किया और अब वह उसे धमकाकर जान से मारने तक की धमकी दे रहा है। ऐसे में सवाल उठ रहे है कि आखिरकार एक एसपी राज्य में इतना बड़ा हो गया है कि उसके लिए नियम कानून को पुलिस मुख्यालय ने भी ताक पर रख दिया है। युवती को इंसाफ मिलेगा या नहीं यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन कहीं उसका हाल मधुमिता शुक्ला, भंवरी देवी, गीतिका जैसा न हो जाए, इसकी गारंटी कौन लेगा?
    उल्लेखनीय है कि बीते सप्ताह हल्द्वानी की एक युवती ने वहीं के एसपी सिटी पर शादी का झांसा देकर उससे दुराचार करने की शिकायत डीजीपी के दरबार में पेश होकर इस उम्मीद से दी थी कि उसे न्याय मिलेगा, लेकिन डीजीपी ने इस मामले में मुकदमा न कायम कराकर डीआईजी नैनीताल से जांच कराने की बात कही लेकिन डीजीपी के आदेश से डीआईजी संजय गुंज्याल भी गाफिल है और उनका कहना है कि उनके पास ऐसी कोई जांच नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब सीआरपीसी 154 में साफ अंकित है कि किसी शिकायत पर तत्काल मुकदमा कायम कर फिर उसकी की जायेगी, तो जब एक एसपी पर यौन शोषण का खुला आरोप एक युवती द्वारा लगाया गया तो इस मामले में जांच कराने की नौटंकी क्यों की जा रही है। उत्तराखण्ड का पुलिस मुख्यालय वैसे तो महिलाओं की सुरक्षा को लेकर बड़े-बड़े ढोल पीटता आ रहा है। मुख्यालय में महिला सेल का गठन कर वहां का एक फोन नंबर प्रकाशित किया जिसपर महिलाएं व युवतियां अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है। लेकिन यह सेल भी मात्र एक दिखावा बनकर रह गया है। पांच अप्रैल को एक युवती ने डीजीपी के सामने चीख चीखकर कहा कि हल्द्वानी के एसपी प्रमेंन्द्र डोभाल ने उसे शादी का झांसा देकर उसके साथ कई बार दुराचार किया। डीजीपी ने इस मामले की जांच नैनीताल के डीआईजी को सौंपने व 26 अप्रैल को प्रगति का रिमाइंडर भेजने की बात कही थी। लेकिन जब 27 अप्रैल को इस जांच के बारे में डीआईजी संजय गुंज्याल से संपर्क किया गया तो उनका कहना था कि कौन सी जांच की बात कह रहे हो। जब उन्हें हल्द्वानी के एसपी सिटी के खिलाफ मिली जांच के बारे में पूछा गया तो उनका साफ कहना था कि उन्हें इस तरह की कोई जांच नहीं मिली है। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर यह जांच डीआईजी नैनीताल के पास नहीं है तो फिर यह जांच आखिरकार कहां करा रहा है। 154 सीआरपीसी में साफ तौर पर अंकित है कि संज्ञेय अपराध के किए जाने से संबंधित प्रत्येक इतिला, यदि पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को मौखिक दी गई है तो उसके द्वारा या निदेशाधीन लेखबद कर ली जाएगी और इतिला देने वाले को पढ़कर सुनाई जाएगी और प्रत्येक ऐसे इतिला पर चाहे वह लिखित रूप से दी गई हो या पूर्वोत्तफ रूप में लेखबद की गई हो, उस व्यक्ति द्वारा हस्ताक्षर किए जाएंगे। जो उसे दे, और उसका सार ऐसी पुस्तक में, जो  उस अधिकारी द्वारा ऐसे रूप में रखी जायेगी जिसे राज्य सरकार इस नियमित चिन्हित करें, प्रविष्ट किया जायेगा। इस धारा की उपधारा 1 के अधीन अभिलिखित इतिला की प्रतिलिपि इतिला देने वाले को तत्काल निःशुल्क दी जाएगी।
    यहां यह भी उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड सरकार एक ओर तो कुमाऊ के एक बड़े आईएएस अधिकारी को भ्रष्टाचार के मामले में निलंबित कर रही है। वहीं प्रदेश के एक एसपी पर यौन शोषण करने का खुला दाग लगने पर सरकार की खामोशी से कई सवाल उठने शुरू हो गए है। कितनी हैरानी वाली बात है कि दिल्ली में एक एएसपी ने जब एक युवती थप्पड़ मारा तो उसे तत्काल निलंबित कर दिया गया था। लेकिन उत्तराखण्ड में 25 दिन पूर्व हल्द्वानी के एसपी सिटी प्रमेन्द्र डोभाल पर वहीं की एक युवती ने आरोप लगाया कि अधिकारी ने उसकेे साथ यौन शोषण किया है, तो भी पूरा पुलिस महकमा इस एसपी को बचाने की जुगत में कहीं न कहीं लगा हुआ है।

दूसरी बार मेयर बने विनोद चमोली, कांग्रेस को 22912 मतों से हराया , कांग्रेस प्रत्याशी धस्माना को जनता ने नकारा

दूसरी बार मेयर बने विनोद चमोली, कांग्रेस को 22912 मतों से हराया
कांग्रेस प्रत्याशी धस्माना को जनता ने नकारा
राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 30 अप्रैल। न्यायालय ने कांग्रेस के मेयर प्रत्याशी सूर्यकांत धस्माना को भले ही बरी कर दिया हो, लेकिन जनता की अदालत में वे आज भी राज्य आंदोलनकारियों के मुजरिम हैं। यह बात राजधानी में हुए स्थानीय निकाय चुनाव में मेयर पद के लिए हुई जंग से साफ हो गई है। राज्य आंदोलनकारी व भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी विनोद चमोली ने कांग्रेस प्रत्याशी सूर्यकांत धस्माना को 22912 के रिकार्ड मतों से हरा दिया, जबकि बहुजन समाज पार्टी को 46889 मत मिल पाए। इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 80530 मत मिले, जबकि कांग्रेस को 57618 मत ही मिल पाए। राजधानी देहरादून के 60 वार्डाें के लिए हुए चुनाव में भाजपा ने 33, कांग्रेस ने 23 जबकि बसपा और निर्दलीयों ने दो-दो वार्डाें पर कब्जा जमाया।
    इस चुनाव में वार्ड 1- राजपुर से भाजपा की रोशन बाला, वार्ड 2- सहस्त्रधारा से भाजपा की नीतू, वार्ड 3- जाखन से दया जोशी भाजपा, र्वाउ 4- हाथी बड़कला भूपेन्द्र कठैत भाजपा, वार्ड 5- आर्यनगर से सरोज भाजपा, वार्ड 6- डोभालवाला से रमेश बुटोला कांग्रेस, वार्ड 7- विजय कालोनी से निखिल कुमार कांग्रेस, वार्ड 8-किशन नगर से नंदनी शर्मा भाजपा, वार्ड 9 डीएल रोड से उषा भाजपा, वार्ड 10-रिस्पना से रानी कौर भाजपा, वार्ड 11-करनपुर से विनय कोहली कांग्रेस, वार्ड 12- बकराल वाडा से डा. बिजेन्द्र पाल कांग्रेस, वार्ड 13- चक्खुवाला अजय सोनकर कां्रगेस, वार्ड 15 घंटाघर से प्रकाश नेगी कांग्रेस, वार्ड 16 रेसकोर्स उत्तर से देवेंद्र पाल सिहं मांेटी कांग्रेस, वार्ड 16 कालिका माता मंदिर मार्ग से चरणजीत कौर भाजपा ने जीत दर्ज की अन्य वाडों की बात की जाए तो वार्ड 19 तिलक रोड़ से सविता ओबराय भाजपा, 20 खुडबुड़ा से अशोक कोहली पप्पू कांग्रेस, 21 शिवाजी मार्ग से विपिन चंचल भाजपा, 22 इंद्रेश नगर से तृप्ता देवी भाजपा, 23 धामावाला से नीनू सहगल कांग्रेस, 24 झंडा बाजार से अजय सिंघल भाजपा, 25 डालनवाला उत्तर से सीमा भाजपा, 26 डालनवाला पूर्वी राजेश चौधरी कांग्रेस, 27 डालनवाला दक्षिणी से राजेश जखमोला भाजपा, 28 अधोईवाला से राजीव कुमार मल्होत्रा कांग्रेस, 29 अधोईवाला दक्षिणी आनंद त्यागी कांग्रेस, 30 भगत सिंह कालोनी से कमली भट्ट भाजपा, 31 राजीव नगर वर्षा बडोनी भाजपा, 32 डिफेंस कालोनी सुशील कुमार कांग्रेस, 33 नेहरू कालोनी से बीना उनियाल भाजपा, 34 धर्मपुर से नीरू भट्ट, 35 दीपनगर से ललित भद्री कांग्रेस, 36 अजबपुर से मनमोहन सिंह कांग्रेस, 37 माता मंदिर मार्ग से सोनू उनियाल कांग्रेस, 38 रेसकोर्स दक्षिणी से राखी बड़थ्वाल भाजपा, 39 रेस्टकैंप से राजकुमार कक्कड़ भाजपा, 40 रीठा मंडी से निर्दलीय प्रत्याशी जाहिदा परवीन, 41 सुशील गुप्ता भाजपा, वार्ड 42 कारगी से अनीता सिहं भाजपा, वार्ड 43 पटेल नगर पूर्व महीपाल धीमान भाजपा, 44 ब्रहमपुरी से सतीश कश्यप भाजपा, वार्ड 45 निरंजनपुर से नीरज सेठी भाजपा, 46 माजरा से गुलिस्ता अंसारी कांग्रेस, 47 टर्नर रोड़ सुनील कुमार कांग्रेस, 48 इंद्रा नगर मीरा भाजपा, 49 द्रोणपुरी से बाबू राम भाजपा, वार्ड 50 कांवली से राजेश पुंडीर कांग्रेस, 51 इंद्र नगर से मीरा कैठत भाजपा, 52 बसंत विहार से अंजू बिष्ट भाजपा, 53 गांधी ग्राम से जगदीश धीमान कांग्रेस, 56 यमुना कालोनी से नेहा गुप्ता भाजपा, 57 गोविंद गढ़ से चरणजीत कौशल कांग्रेस, 58 श्रीदेव सुमन नगर से बीना बिष्ट कांग्रेस, वार्ड 59 बल्लुपुर से शारदा भाजपा और वार्ड 60 कौलागढ़ से गंगा क्षेत्री कांग्रेस ने जीत दर्ज की है।
    गौरतलब हो कि वर्ष 2008 में हुए मेयर के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी विनोद चमोली को 60867, निर्दलीय प्रत्याशी मैडम रजनी रावत को 44294 व कांग्रेस प्रत्याशी सूरत सिंह रावत को 40662 मत मिले थे। चुनाव नतीजों पर यदि नजर डाली जाए तो भाजपा ने इस बार 20 हजार से अधिक मतों पर अपनी पैठ दर्ज की है, जबकि कांग्रेस ने लगभग मात्र छहः हजार मत संख्या की बढ़ोत्तरी की है। जबकि रजनी रावत के मतों में 12 हजार मतों का इजाफा हुआ है।


शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

18 सीट की मिनी बस को बना डाला टैक्सी

परिवहन विभाग का कारनामा
लाखों रूपये के राजस्व का लगा रहे हैं प्रदेश को चूना
18 सीट की मिनी बस को बना डाला टैक्सी
राजेन्द्र जोशी
देहरादून। उत्तराखंड के परिवहन विभाग के अधिकारी वाहन मालिकों से मिलकर प्रदेश को यात्री कर के रूप में मिलने वाले लाखों रूपये के राजस्व का चूना लगा रहे हैं। यह घोटाला पिछले तीन साल से चल रहा है, जिस में सरकार को अब तक लगभग करोड़ों रूपये का चूना लगाया जा चुका है। मामले के सज्ञान में आने के बाद अधिकारी वाहन स्वामियों को नोटिस देने की बात तो करते है, लेकिन इस घोटाले के लिए कौन-कौन अधिकारी जिम्मेदार हैं, उनका नाम लेने से बच रहे हैं। मामले में परिवहन मंत्री सुरेन्द्र राकेश का कहना है कि इसकी जांच कराई जाएगी और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। एआरटीओ का कहना है कि तीन साल से चल रहा यह मामला अब पकड़ में आया है। लिहाजा वाहन स्वामियों से इसकी वसूली की जाएगी। लेकिन इस घोटाले के कौन अधिकारी जिम्मेदार हैं इस पर एआरटीओ चुप्पी साध लेते हैं।
    प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्य के देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश तथा हल्द्वानी परिवहन कार्यालयों द्वारा टैम्पो ट्रेवलर वाहन, जिनका व्हील बेस 3700 मिलीमीटर होता है और इन वाहनों में यात्री क्षमता 18 लोगों की वाहन निर्माता कंपनी ने बनाई है। राज्य के परिवहन कार्यालयों द्वारा इन 18 सीटर वाहन को सात और 10 सीटों में पर्वतीय मार्गो में चलने के लिए स्वास्थता प्रमाण पत्र के साथ ही परमिट जारी किए गए हैं। एक जानकारी के अनुसार राज्य सरकार को ऐसे वाहनों से 800 रूपया प्रतियात्री प्रतिमाह प्रतिवाहन का नुकसान हो रहा है। ऐसे में बीते तीन सालों से राज्य को लाखों रूपया का चूना परिवहन विभाग के अधिकारियों द्वारा राज्य को लगाया जा चुका है। एक जानकारी के अनुसार देहरादून और ऋषिकेश परिवहन कार्यालयों द्वारा लगभग 200 ऐसे वाहनों को परमिट जारी किए गए हैं जो सरकार को प्रतिदिन लाखों रूपये का चूना लगा रहे हैं। यह भी जानकारी मिली है इन वाहनों को मध्यम दर्जे के यात्री वाहनों की जगह टैक्सी और मैक्सी कैब में पास किया गया है।
 मामले के सामने आने के बाद उप सम्भागीय परिवहन अधिकारी संदीप सैनी ने बताया कि यह मामला उनके संज्ञान में आया है और इस प्रकरण पर वाहन स्वामियों को नोटिस जारी किये गये हैं लेकिन उन्होंने इस मामले में लिप्त अधिकारियों की जांच पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया कि सरकार को चूना लगाने वाले अधिकारियों के खिलाफ कौन कार्रवाई करेगा। वहीं सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बीते पाच मार्च को शासन द्वारा कई परिवहन अधिकारियों की प्रोन्नोती हुई है लेकिन मलाईदार पदो पर बैठे होने के कारण और ऊंची पहुंच के चलते ऐसे अधिकारियों को नई तैनाती नहीं दी गई है।

स्थायी निवास पर राजनीति

स्थायी निवास पर राजनीति
राजेन्द्र जोशी
देहरादून। कांग्रेस सरकार ने बीते दिन स्थायी निवास की कट ऑफ डेट को लेकर जो शासनादेश जारी किया, उसका कोई औचित्य ही नहीं बनता है, क्योंकि मामला अभी भी हाईकोर्ट की डबल बैंच में विराचाधीन है। नैनीताल हाईकोर्ट के 17 अगस्त 2012 के फैसले के आधार पर बीते दिन सरकार द्वारा स्थायी निवास की जो कट ऑफ डेट पर शासनादेश जारी किया है, वह सिर्फ वर्तमान समय में हो रहे निकाय और पंचायत चुनावों में जनता को रिझाने का एक प्रयास है। नैनीताल हाईकोर्ट की डबल बैंच का निर्णय आने के बाद ही इस मुद्दे पर कोई अंतिम निर्णय लिया जा सकता है। सरकार ने भी यह बात अपने शासनादेश में स्वीकार की है।
बीते दिन सरकार द्वारा स्थायी निवास की कट ऑफ डेट को लेकर जारी शासनादेश के खिलाफ अब विरोध साफ देखने को मिल रहा है। वहीं इस मामले में राज्य आंदोलनकारियों का कहना है कि कट ऑफ डेट के मामले में उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देर्शों का पालन किया जाना चाहिए, जिसमें उसने राज्यों में रहने वाले लोगों की स्थाई और मूल निवास के मामले पर कट ऑफ डेट 1950 तय की थी। आंदोलनकारियों का कहना है कि सरकार का यह शासनादेश लोगों को भ्रमित करने वाला है इस शासनादेश में सिर्फ अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़ा वर्ग को कट ऑफ डेट में छूट देते हुए राज्य गठन की तिथि 9 नवम्बर 2000 की गयी है। जबकि सामान्य वर्ग के लिए यह कट ऑफ डेट राज्य गठन के 15 साल पहले यानि की 1985 ही रखी गयी है। जिसका मतलब है कि जो लोग पिछले 27 से अधिक समय से राज्य में रह रहे है वही राज्य के स्थायी निवासी होंगे। लेकिन सामान्य तौर पर इस शासनादेश के बारे में प्रचारित यहीं किया जा रहा है कि राज्य गठन के समय से राज्य में रह रहे लोगों को राज्य का स्थायी निवासी माना जायेगा। वहीं दूसरी ओर राज्य आंदोलनकारियों का कहना है कि पीढ़ीदर-पीढ़ी जो लोग उत्तराखण्ड में रह रहे हैं और जिन्होंने राज्य आंदोलन की लड़ाई लड़ी, उनके साथ राज्य सरकार छलावा कर रही है, सरकार के इस फैसले से मूल उत्तराखण्ड के निवासियों को कोई लाभ नहीं होने वाला, बल्कि इसका लाभ उन लोगों को मिलेगा, जिन्होंने राज्य आंदोलन की मुखालफत की थी। राज्य आंदोलनकारियों ने कहा कि ऐसी स्थिति में जब अभी हाईकोर्ट द्वारा इस फैसले में किसी भी तरह का परिवर्तन किया जा सकता हैं सरकार द्वारा लाये गये इस शासनादेश का क्या औचित्य है। हालांकि यह यह संपूर्ण प्रकरण नैनीताल उच्च न्यायालय के एकल बैंच द्वारा निर्णय दिए जाने के बाद अब डबल बैंच में निर्णय के लिए सुरक्षित है। ऐसे में यह कहना गलत होगा कि नैनीताल उच्च न्यायालय के निर्णय को ही अंगिगृत कर लिया जाएगा। क्यांेकि राज्य आंदोलनकारी संगठन और राज्य के दूर-दराज इलाकों में कार्य कर रहे स्वयं सेवी संगठनों द्वारा इस मामले पर डबल बैंच के निर्णय आने के बाद भी राज्यवासियों के हितों के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जा सकता है।
वहीं राज्य आंदोलनकारियों का कहना है कि प्रदेश में होने वाले निकाय चुनावों के लिए अधिसूचना जारी होने वाली है, जिससे ठीक पूर्व सरकार द्वारा यह शिगूफा छोड़ा गया है, ताकि उसे निकाय चुनाव में इसका लाभ मिल सके। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस के पास जनता के बीच जाने के लिए कोई ऐसा मुद्दा अभी तक उसके पास नहीं था, जिससे की वह जनता से वोट मंाग सके। क्योंकि महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर लेकर कंेद्र से लेकर राज्य की कांग्रेस सरकार कटघरे में है।

परिवहन विभाग का कारनामा

परिवहन विभाग का कारनामा
लाखों रूपये के राजस्व का लगा रहे हैं प्रदेश को चूना
18 सीट की मिनी बस को बना डाला टैक्सी
राजेन्द्र जोशी
देहरादून। उत्तराखंड के परिवहन विभाग के अधिकारी वाहन मालिकों से मिलकर प्रदेश को यात्री कर के रूप में मिलने वाले लाखों रूपये के राजस्व का चूना लगा रहे हैं। यह घोटाला पिछले तीन साल से चल रहा है, जिस में सरकार को अब तक लगभग करोड़ों रूपये का चूना लगाया जा चुका है। मामले के सज्ञान में आने के बाद अधिकारी वाहन स्वामियों को नोटिस देने की बात तो करते है, लेकिन इस घोटाले के लिए कौन-कौन अधिकारी जिम्मेदार हैं, उनका नाम लेने से बच रहे हैं। मामले में परिवहन मंत्री सुरेन्द्र राकेश का कहना है कि इसकी जांच कराई जाएगी और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। एआरटीओ का कहना है कि तीन साल से चल रहा यह मामला अब पकड़ में आया है। लिहाजा वाहन स्वामियों से इसकी वसूली की जाएगी। लेकिन इस घोटाले के कौन अधिकारी जिम्मेदार हैं इस पर एआरटीओ चुप्पी साध लेते हैं। 
    प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्य के देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश तथा हल्द्वानी परिवहन कार्यालयों द्वारा टैम्पो ट्रेवलर वाहन, जिनका व्हील बेस 3700 मिलीमीटर होता है और इन वाहनों में यात्री क्षमता 18 लोगों की वाहन निर्माता कंपनी ने बनाई है। राज्य के परिवहन कार्यालयों द्वारा इन 18 सीटर वाहन को सात और 10 सीटों में पर्वतीय मार्गो में चलने के लिए स्वास्थता प्रमाण पत्र के साथ ही परमिट जारी किए गए हैं। एक जानकारी के अनुसार राज्य सरकार को ऐसे वाहनों से 800 रूपया प्रतियात्री प्रतिमाह प्रतिवाहन का नुकसान हो रहा है। ऐसे में बीते तीन सालों से राज्य को लाखों रूपया का चूना परिवहन विभाग के अधिकारियों द्वारा राज्य को लगाया जा चुका है। एक जानकारी के अनुसार देहरादून और ऋषिकेश परिवहन कार्यालयों द्वारा लगभग 200 ऐसे वाहनों को परमिट जारी किए गए हैं जो सरकार को प्रतिदिन लाखों रूपये का चूना लगा रहे हैं। यह भी जानकारी मिली है इन वाहनों को मध्यम दर्जे के यात्री वाहनों की जगह टैक्सी और मैक्सी कैब में पास किया गया है। 
 मामले के सामने आने के बाद उप सम्भागीय परिवहन अधिकारी संदीप सैनी ने बताया कि यह मामला उनके संज्ञान में आया है और इस प्रकरण पर वाहन स्वामियों को नोटिस जारी किये गये हैं लेकिन उन्होंने इस मामले में लिप्त अधिकारियों की जांच पर कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया कि सरकार को चूना लगाने वाले अधिकारियों के खिलाफ कौन कार्रवाई करेगा। वहीं सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बीते पाच मार्च को शासन द्वारा कई परिवहन अधिकारियों की प्रोन्नोती हुई है लेकिन मलाईदार पदो पर बैठे होने के कारण और ऊंची पहुंच के चलते ऐसे अधिकारियों को नई तैनाती नहीं दी गई है।

बुधवार, 3 अप्रैल 2013

सरकार ने लगाई हाईकोर्ट के फैसले पर अपनी मुहर

सरकार ने लगाई हाईकोर्ट के फैसले पर अपनी मुहर
15 साल से रहने वाले स्थायी निवासी
राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 2 अप्रैल। स्थाई निवास और जाति प्रमाण पत्र को जारी करने के लिए प्रदेश सरकार ने मंगलवार को अपनी स्थिति साफ करते हुए नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले को स्वीकार किया। राज्य गठन नौ नवम्बर 2000 से पहले रहने वाले (जो 15 वर्षों से उत्तराखण्ड में रह रहा है) को स्थायी निवासी माना जएगा तथा 1985 से पहले से रहने वालों को जाति प्रमाण पत्र जारी किए जाएंगे, जिसके लिए मंगलवार को सरकार ने शासनादेश जारी कर दिया है।
    पहले प्रदेश में स्थाई निवास और जाति प्रमाण पत्रों को जारी करने में 1950 की व्यवस्था थी। पूर्व भाजपा सरकार ने स्थाई व जाति प्रमाण पत्रों को जारी करने के लिए 1950 के भूमि से संबंधित दस्तावेजों को शामिल करना अनिवार्य किया हुआ था। जिसको लेकर राज्य में मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों ने आपत्ति जताई थी और आंदोलन कर सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश भी की थी। अजय कुमार ने सरकार के इस निर्णय के खिलाफ नैनीताल उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी, जिसमें सरकार के स्थाई और जाति प्रमाण पत्रों को निर्गत करने वाले आदेशों को अदालत में चुनौती दी गई थी। 17 अगस्त 2012 को नैनीताल हाईकोर्ट की एकल बैंच ने याचिकाकर्ता के तथ्यों से सहमति जताते हुए सरकार को आदेश किए थे कि वह नौ नवम्बर 2000 को कट ऑफ डेट मानते हुए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्ग को जाति प्रमाण पत्र जारी करें और उन्हें स्थाई निवासी माना जाए। राज्य आंदोलनकारियों के साथ ही कई राजनैतिक दलों ने भी अदालत के इस आदेश के बाद आपत्ति जताते हुए एक दिन का बंद किया था और कहा था कि इसका लाभ उन लोगों को मिलेगा जो राज्य निर्माण से पहले यहां आकर रहने लगे हैं इसके खिलाफ जमकर हंगामा व प्रदर्शन भी हुआ था।
मंगलवार को यहां मुख्य सचिव आलोक कुमार जैन ने पत्रकारों से वार्ता करते हुए कहा कि नौ नवम्बर 2000 को कट ऑफ डेट मानते हुए अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों को जाति प्रमाण पत्र जारी करें और उन्हें स्थाई निवासी माना जाए तथा अन्य लोगों को जो 1985 से उत्तराखण्ड में रह रहे हैं को जाति प्रमाण पत्र जारी करें। उन्होंने कहा कि ऐेसे लेागों को भूमि से संबंधित या यहां रहने वाले प्रमाण पत्रों के आधार पर ही जाति प्रमाण पत्रों को जारी किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यदि कोई किरायेदार है और उसके पास किराये की रसदी है तो उसको भी दस्तावेजों में शामिल किया जाएगा। इसके अलावा जिनका यहां आवास है और वह रोजगार के लिए बाहर चला गया है को भी जाति और स्थाई निवास प्रमाण पत्रों को जाारी किया जाएगा। उन्होंने कहा कि नैनीताल हाईकोर्ट की एकल बैंच का यह निर्णय है, जिसे सरकार ने माना है और इस मामले में दो और याचिकाएं रविन्द्र जुगरान व त्रिवेन्द्र सिंह पंवार की पर अभी कोई निर्णय नहीं हो पाया है यदि इस मामले में हाईकोर्ट अपना फैसला देती है तो उसे अंतिम माना जाएगा।