सोमवार, 27 मई 2013

स्थाई राजधानी का मुद्दा एक बार फिर उछला

स्थाई राजधानी का मुद्दा एक बार फिर उछला
स्थाई राजधानी : सूबे में तीन विधानसभा भवन और दो सचिवालय किस लिए!
राजेन्द्र जोशी
देहरादून। एक बार फिर सूबे की स्थाई राजधानी का मुद्दा ठीक लोकसभा चुनाव से पूर्व राजनैतिक दलों द्वारा जमकर उछाला जा रहा है। उत्तराखण्ड की कांग्रेस सरकार ने जहां बीते दिनों गैरसैंण में विधानसभा भवन का शिलान्यास किया, वहीं अब रायपुर में भी नये विधानसभा भवन के निर्माण की कवायद ने स्थाई राजधानी के मुद्दे को एक बार फिर हवा दे दी है। वहीं रायपुर में नए विधानसभा भवन के बारे में विपक्षी भाजपा का कहना है कि पहले सरकार राज्य की स्थायी राजध्रानी पर तो फैसला लें। राज्य में एक विधानसभा भवन और सचिवालय पहले ही बन चुका है। अब दून में ही दूसरा विधानसभा भवन तथा गैरसैंण में तीसरा विधानसभा तथा सचिवालय बनाने का क्या औचित्य। भाजपा ने कहा कि कांग्रेस सरकार का यह कदम को जनता में भ्रम फैलाने वाला है।
पूर्ववर्ती सरकारों की तरह सूबे की वर्तमान कांग्रेस सरकार ने राज्य की स्थायी राजधानी के मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है, तो वहीं दूसरी ओर वह नये विधानसभा भवनों के निर्माण की कवायद में भी जुटी हुई है। वहीं इस मुद्दे पर राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि 13 जनपदों वाले इस छोटे राज्य के लिए एक ही राजधानी काफी है, बस सरकार को यह निर्णय लेना होगा कि स्थाई राजधानी पहाड़ में होगी या मैदान में। राजनैतिक सूत्रों का कहना है कि यदि सूबे के नेताओं का विचार यह है कि राज्य की राजधानी हिमाचल और पंजाब की तर्ज पर दो हो तो सरकार को अपनी इस राय पर आम सहमति बनाने पर विचार करना चाहिए। इतना ही नहीं स्वंय अल्मोड़ा से कांग्रेस सांसद प्रदीप टम्टा ने भी इस मुद्दे पर कहा कि क्या हर एक जिले में सरकार एक विधानसभा भवन बनाना चाहती है, किसी न किसी नेता द्वारा हर रोज एक ही मुद्दे पर अलग-अलग बयान जारी कर दिये जाते है। राज्य की स्थायी राजधानी कहां बनेगी पहले कैबिनेट में इस बात का फैसला तो कर लो, । स्थायी राजधानी पर तो कोई फैसला आज तक हो नहीं सका है विधानसभा भवनों की लाइन लगायी जा रही है।
गैरसैंण और रायपुर में सरकार द्वारा राज्य की अस्थायी राजधानी की घोषणा से पूर्व विधानसभा भवन बनाने का विरोध भाजपा और यूकेड़ी दोनों ही दलों ने कराना शुरू कर दिया है। भाजपा नेताओं का कहना है कि सरकार पहले राज्य की स्थाई राजधानी घोषित कर, जिसके बाद विधानसभा भवन बनाये। वहीं अब माना जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में एक बार फिर राज्य की स्थायी राजधानी का मुद्दा अहम होगा।

स्थाई राजधानी के मुद्दे पर कांग्रेसी दिग्गजों ने अपनी ही सरकार को घेरा!

स्थाई राजधानी के मुद्दे पर कांग्रेसी दिग्गजों ने अपनी ही सरकार को घेरा!

राजेन्द्र जोशी
देहरादून । सरकार के नेताओं द्वारा ही जिस तरह से स्थायी राजधानी के मुद्दे अपनी सरकार की घेराबंदी की जा रही है, उससे यह साफ हो गया है कि कांग्रेस के नेताओं में न तो एकजुटता है और स्थाई राजधानी के मुद्दे पर एकमतता, तभी तो सभी नेता अपना-अपना राग अलाप रहे हैं।
वहीं विपक्ष को भी सत्तापक्ष के नेताओं द्वारा दिए जा रहे इस तरह के बयानों से सरकार को घेरने का मौका मिल गया है।
राज्य को अस्तित्व में आए 12 साल से भी अधिक का समय बीत चुका है, लेकिल आज तक राज्य में बनी सरकारों ने स्थाई राजधानी के मुद्दे का नहीं सुलझाया, यह अपने आप में एक दुर्भाग्यपूर्ण बात है, वहीं सूबे के नेता स्थाई राजधानी के मुद्दे को सुलझाने के बजाए अब उस पर अपनी राजनीति चमका रहे हैं। सत्ता संभालने के कुछ समय बाद ही मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने गैरसैंण में एक विधानसभा सत्र चलाकर और विधानसभा भवन बनाने और यहां हर वर्ष एक सत्र चलाने की घोषणा करके इस मुद्दे को और उछाल दिया, जिसका सभी दलों ने स्वागत किया। वहीं वर्तमान में गैरसैंण मे विधानसभा निर्माण का कार्य प्रगति पर है, जिसके बाद अचानक से ही इस मुद्दे पर वहीं बहुगुणा सरकार ने दूसरा राजनीतिक दांव चलते हुए रायपुर में भी विधानसभा और सचिवालय निर्माण के लिए भूमि का चिन्हित कर डाली, जिसके बाद खुद कांग्रेस के ही नेताओं द्वारा सरकार के इस कदम पर सवाल खड़े कर दिए गए हैं, एक ओर संासद प्रदीप टम्टा का कहना है कि सरकार पहले स्थायी राजधनी पर फैसला तो कर ले, क्या सरकार सूबे की दो राजधानी बनायेंगी और हर जनपद में एक विधानसभा भवन, वहीं केन्द्रीय मंत्री हरीश रावत का कहना है कि राजधानी कहीं भी बने लेकिन जनता में भ्रम की जो स्थिति बनी है वह समाप्त की जाएग। इधर विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल का कहना है कि सरकार को गैरसैंण को स्थायी राजधानी घोषित करना चाहिए। संसदीय कार्यमंत्री डा. इंदिरा हृदयेश पाठक का कहना है कि रायपुर में विधानसभा भवन का कार्य एक दो महीनें में शुरू हो जायेगा, जिस पर टिप्पणी करते हुए सांसद सतपाल महाराज का कहना है कि राजधानी कहीं भी बने सरकार गैरसैंण में विधानसभा का एक सत्र चलाने की घोषणा कर चुकी है इसका मतलब है कि सूबे की दो राजधानियां
बनायी जाए एक गैरसैंण और दूसरी देहरादून।
कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के यह अलग-अलग बयानों से सब हैरान हैं, जिसके बाद स्थाई राजधानी का मुद्दा और भी गरमा गया है। जब सत्तापक्ष के नेता इस मुद्दे पर अलग-अलग बयानबाजी कर रहे है तो, ऐसे में विपक्षी भाजपा ने भी सरकार पर हमला बोल दिया है। नेता विपक्ष का कहना है कि सरकार कहीं भी विधानसभा भवन बनवाये लेकिन वह पहले यह बताए कि सूबे की स्थायी राजधानी कहां होगी।

बहुगुणा को आई जनता की याद!

बहुगुणा को आई जनता की याद!
राजेन्द्र जोशी
देहरादून। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को देर से ही सही प्रदेश के विकास और जनता की समस्याओं की याद आ ही गई, स्थानीय निकाय चुनावों में जनता ने सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी को अगर धूल नहीं
चटाई होती या लोकसभा चुनाव सर पर न होते तो शायद मुख्यमंत्री को अभी भी विकास और जन समस्याओं की
याद नहीं आती।
मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा आज रविवार से प्रदेश के चार दिवसीय दौरे पर है। इस दौरे का उद्देश्य विकास कार्यों की समीक्षा और जनता से रूबरू होकर उनकी समस्याओं को जानना हैं। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा को अपने इस दौरे के
दौरान विकास योजनाओं की प्रगति की समीक्षा भी करेंगे और जनता दरबार लगाकर लोगों से यह भी जानने की कोशिश करेंगे कि उनकी क्या-क्या समस्याएं है और उन्हें हल करने के लिए सरकार क्या कर सकती है। अपने इस दौरे के बाद उन्होंने प्रदेश भर के कांग्रेसियों को 31 मई को सीएम आवास बुलाया है। सीएम आवास पर होने वाले
इस कांग्रेस सम्मेलन में लोकसभा चुनाव की रणनीति बनायी जायेंगी। हाईकमान की  निकाय चुनाव में मिली हार पर फटकार के बाद मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा नींद टूटी है, अब उन्हें यह लगने लगा है कि आम चुनावों में यदि परिणाम बेहतर नहीं हुए है तो उनकी मुश्किलें बढ़ सकती है और बेहतर चुनाव परिणामों के लिए सूबे की विकास योजनाओं को गति देना जितना जरूरी है उतना ही जरूरी जनता के साथ नजदीकी भी हैं। यहीं कारण है कि अब मुख्यमंत्री जनता
के साथ नजदीकी और विकास के साथ कार्यकर्ताओं में नये जोश के संचार करने में जुटे हुए है। भ्रमण के दौरान मुख्यमंत्री ने आज 26 मई को पुरोला एवं बड़कोट में जनसंपर्क किया, वहीं  27 को टिहरी, 28 को पौड़ी एवं भगवानपुर, 29 को चम्पावत टनकपुर व 30 को किच्छा, खटीमा व सितागंज में जनसंपर्क करेंगे।

सोमवार, 6 मई 2013

विनोद चमोली और डा. जोगेन्द्र रौतेला ने ली मेयर की शपथ

    विनोद चमोली और डा. जोगेन्द्र रौतेला ने ली मेयर की शपथ



















 जनता के दोबारा विश्वास ने बढ़ा दी है  मेरी जिम्मेदारी: चमोली

राजेन्द्र जोशी
देहरादून। नगर पालिका परिसर में तय कार्यक्रम क अनुसार  शनिवार को  आयोजित एक 
भव्य समारोह में विनोद चमोली ने मेयर पद की शपथ ली। कमिश्नर गढ़वाल सुबर्द्धन ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। भारी मतों से जीतकर अपनी दूसरी मेयर पद की पारी के लिए आए मेयर विनोद चमोली का इस अवसर पर उनके समर्थकों ने फूल मालाओं से स्वागत किया। वहीं विनोद चमोली ने कहा कि दोबारा जनता न उनके उपर जो विश्वास व्यक्त किया है उससे उनकी जिम्मेवारी और भी अधिक बढ़ गयी है और वह पहले से अधिक बेहतर तरीके से जनता की सेवा के लिए कार्य करेंगे। विनोद चमोली के शपथ ग्रहण के बाद उन्होंने जीतकर आए सभी 60 पार्षदों को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई।
उल्लेखनीय हो कि भाजपा इस बार दून के नगर निगम में पूर्णबहुमत के साथ सत्ता में आयी है और उसके 33 पार्षद है जिनमें 21 महिलाएं है। शपथ  ग्रहण के दौरान यह सभी पार्षद अपने-अपने समर्थकों और परिजनों के साथ शपथ ग्रहण समारोह में पंहुचे थे। शपथ ग्रहण के साथ ही उनके समर्थकों ने उनका फूल मालाओं से स्वागत किया। शपथ ग्रहण के साथ ही बोर्ड की पहली बैठक से नगर निगम का नया बोर्ड अस्तित्व मंे आ गया है शपथ ग्रहण समारोह में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत के साथ भाजपा के कई विधायक और पूर्व विधायक भी उपस्थित थे वहीं कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता भी मौजूद रहे।
             हल्द्वानी के नगर निगम के बनने के बाद प्रथम नवनिर्वाचित मेयर डा. जोगेन्द्र रौतेला के साथ 25 निर्वाचित सभासदों ने शनिवार को रामलील मैदान में शपथ ग्रहण समारोह में शपथ ग्रहण की। जिलाधिकारी निधिमणी त्रिपाठी ने नवनिर्वाचित मेयर डा. जोगेन्द्र रौतेला को शपथ दिलाई तत्पश्चात मेयर रौतेला ने सभी निर्वाचित सभासदों को शपथ ग्रहण कराई। इस मौके पर डा. रौतेला ने कहा कि नगर की सभी समस्याओं का सभी के साथ मिलकर समाधान किया जाएगा। उन्होंने कहा कि नजूल नीति का सरलीकरण करने के लिए शासन पर दबाव बनाया जाएगा और नगर सौंदर्यीकरण के लिए पार्कों की दशा में सुधार लाने का प्रयास किया जाएगा। उन्होंने कहा कि कूड़ा निस्तारण की व्यवस्था, सीवर लाईन का विस्तार और स्वच्छ प्रशासन व वित्तीय अनुशासन के लिए वह सदैव प्रयासरत रहेंगे। उन्होंने सभी सभासदों को सम्बोधित करते हुए कहा कि अपने क्षेत्र की समस्याएं समझकर उन्हें निगम के माध्यम से दूर कराने का मिलजुलकर प्रयार करें, तभी निगम आदर्श नगर निगम बनेगा। इस मौके पर विधायक बंशीधर भगत व पूर्व पालिकाध्यक्ष रेनू अधिकारी ने पुष्प गुच्छ देकर मेयर का स्वागत किया व शुभकामनाएं दी।
शपथ ग्रहण समारोह में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक डा. सदानंद दाते, भाजपा जिलाध्यक्ष दीपक मेहरा, व्यापार प्रकोष्ठ प्रदेश संयोजक विजय प्रकाश, सहायक नगर अधिकारी नीरज जोशी समेत सैकंड़ों कार्यकर्ता व नगर निगम के कर्मचारी मौजूद थे।

शनिवार, 4 मई 2013

नैतिकता के आधार पर सरकार को इस्तीफा देना चाहिए: एनडी तिवारी

नैतिकता के आधार पर सरकार को इस्तीफा देना चाहिए: एनडी तिवारी
राजेन्द्र जोशी
देहरादून। स्थानीय निकाय चुनाव के परिणाम इस ओर साफ इशारा कर रहे हैं कि कांग्रेसी दिग्गजों की कोई भी रणनीति पार्टी को जिताने में कामयाब नहीं हो पायी और सत्ता में रहते हुए भी कांग्रेस का सूपड़ा लोकसभा उपचुनाव की तरह निकाय चुनाव में भी साफ हो गया। कांग्रेस को सूबे की सभी छह नगर निगम मेयर की सीटें पर करारी हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस ने जीत की बड़ी उम्मीदों के साथ राज्य में पांच नगर निगमों और कई नगर पंचायतों का गठन किया था, लेकिन स्थानीय निकाय चुनाव में कहीं भी उसे सफलता नहीं मिली। इतना ही नहीं गैरसैंण को नगर पंचायत बनाने और यहंा विधानसभा भवन का निर्माण कराने की राजनीतिक चाल भी कांग्रेस की फेल हो गई।
अब कांग्रेसी नेताओं को गैरसैंण में मिली शिकस्त ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर ऐसा क्या हुआ है, जिसकी वजह से जनता ने उन्हें इतनी
बुरी तरह हार का स्वाद चखाया। नगर निगम मेयर पदों पर ही कांग्रेस को करारी शिकस्त नहीं मिली है, बल्कि नगर पंचायतों में भी उसका प्रदर्शन अत्यंत खराब रहा है, मगर कुछ नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों में मिली जीत ने जरूर कांग्रेस का दर्द थोड़ा सा कम किया है। कांग्रेस की यह हार इसलिए भी ऐतिहासिक मानी जा रही है क्योंकि वह सूबे में सत्ता में है अब इस हार को लेकर कांग्रेस में घमासान मचना तय है। हार का ठीकरा एक दूसरे के सर फोड़ने का सिलसिला भी शुरू हो चुका है सांसद सतपाल महाराज ने इस मुद्दे पर संगठन और सरकार दोनों को आड़े हाथ लिया और कहा कि इस हार के पीछे सरकार का कामकाज और संगठन का जनता तक कांग्रेस की उपलब्धियों तक न पंहुचा पाना अहम कारण है, वहीं उन्होंने कार्यकर्ताओं के सम्मान की बात भी अपने पत्र में उठाई है।
    यह हास्यास्पद बात है कि इस करारी हार के बावजूद भी कांग्रेस नेताओं ने अपनी खीझ मिटाने के लिए कांग्रेस भवन में न सिर्फ अतिशबाजी की बल्कि मिठाईयां भी बांटी। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने तो सभी मर्यादाओं को ताक पर रखते हुए कांग्रेस की हार के बाद भी चुनावों के परिणामों को निराशाजनक न होने की बात तक कह डाली है। उनका कहना है कि यह चुनाव लोकसभा और विधानसभा की तरह गंभीरता से नहीं लिये जा सकते। वहीं मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि लोकसभा उपचुनाव मंे कांग्रेस को मिली हार को उन्होंने कितनी गंभीरता से लिया था। अब यह मानने को कांग्रेस का कोई भी नेता तैयार नहीं है कि जनता ने उन्हें नकार दिया है और इस हार का कारण प्रमुखता से सरकार के 14 महीनों के कार्यों से नाखुश होना है, वहीं पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी भी इसका एक कारण हो सकती है। चुनाव परिणाम के आने के बाद जो कांग्रेस नेता कल तक बड़े-बड़े दावे कर रहे थे और इन निकायों चुनावों को लोकसभा चुनाव का रिहर्सल बता रहे थे अब वहीं नेता इन चुनावों में अपनी हार को स्वीकारने से भी कन्नी काटने लगे हैं। इस हार पर कांग्रेस के वयोवृद्ध नेता एनडी तिवारी ने तो सरकार से इस्तीफा देने तक की बात कह डाली है। इन चुनावों से यह साबित हो गया है कि कांग्रेस की निचले स्तर पर स्थिति कितनी ज्यादा खराब है। कांग्रेस नेता भले ही इन चुनाव परिणामों को लेकर किसी को भी जिम्मेदार ठहराये लेकिन यह वास्तव में कांग्रेस के
लिए अत्यंत गंभीर और चिंतनीय बात तो है साथ ही यह लोकसभा चुनाव के लिए भी खतरे की घंटी है।

एक करोड़ रूपया और आउट ऑफ टर्न पदोन्नति तक का लालच भी नहीं डिगा पाया अधिकारी का ईमान!

एक करोड़ रूपया और आउट ऑफ टर्न पदोन्नति तक का लालच भी नहीं डिगा पाया अधिकारी का ईमान!
राजेन्द्र जोशी
देहरादून। राजधानी देहरादून की मेयर सीट कांग्रेस के लिए जी का जंजाल बनकर रह गई है। तमाम दांव पेंचों के बाद भी कांग्रेस भाजपा से इस प्रतिष्ठित सीट को हथियाने में कामयाब नहीं हो पाई। चर्चा तो यहां तक है कि मतदान के एक दिन पूर्व, जिले के एक अधिकारी को एक करोड़ रूपया और आउट ऑफ टर्न पदोन्नति तक का लालच दिया गया, लेकिन पर्वतीय क्षेत्र के इस अधिकारी ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया। यदि कांग्रेस की यह चाल कामयाब हो जाती तो, भाजपा प्रत्याशी विनोद चमोली को जीतने के बावजूद हारने को मजबूर होना पड़ता।
    राजधानी में स्थानी निकाय चुनाव के परिणाम आने के बाद यह चर्चा खासो आम है कि कांग्रेस ने अधिकारियों तक को खरीदने की पूरी कोशिश की। इतना ही नहीं पर्वतीय समाज बाहुल्य मौहल्लों व क्षेत्रों के वोटरों के नाम इसलिए वोटर लिस्ट से हटा दिए गए कि उन्हें पता था कि ये वोट कांग्रेस को नहीं पड़ने वाले। देहरादून क्षेत्र में लगभग 30 हजार से अधिक पर्वतीय प्रवासियों को जानबूझकर उनके मताधिकार से वंचित रखा गया, अन्यथा कांग्रेस को भाजपा से मिलने वाली टक्कर का मतांतर 22912 से बढ़कर लगभग 40 हजार का होता। इस बात की तस्दीक दूसरी बार मेयर बने विनोद चमोली भी करते हैं। उनका कहना है कि राज्य आंदोलनकारी होने के नाते पर्वतीय जनमानस का उनके साथ भावनात्मक लगाव रहा है। यही कारण है कि पर्वतीय लोगों के नाम वोटर लिस्ट से गायब किए गए। उनका यह भी कहना है कि अधिकारी आज भले ही यह कहें कि लोगों ने अपने वोटों को सुरक्षित रखने के लिए निर्वाचन कार्यालय से संपर्क नहीं किया या उन्होंने अपने वोट अंकित कराने के लिए प्रयास नहीं किए। इस पर मेयर विनोद चमोली का कहना है कि यह सब लफ्बाजी है, उनके अनुसार यह जानबूझकर कांग्रेस की चाल रही है।
    राजधानी देहरादून में आज यह चर्चा रही है कि कांग्रेस ने मतगणना से पूर्व की रात ईवीएम मशीनों से छेड़छाड़ की पूरी तैयार कर ली थी, इसके लिए उसे हरी झंडी भी मिल चुकी थी, लेकिन एक अधिकारी के इस मामले में अपनी संलिप्तता से साफ मना करने पर कांग्रेस की यह योजना परवान नहीं चढ़ पाई, वहीं यह भी चर्चा है कि इस अधिकारी को एक करोड़ रूपया और आउट ऑफ टर्न पदोन्नति तक का लालच दिया गया, लेकिन इस अधिकारी ने साफ मना कर दिया। इतना ही नहीं ईवीएम मशीनों से छेड़छाड़ की भनक के बाद भाजपा खेमें के सक्रिय हो जाने के बाद और भाजपा द्वारा स्ट्रांग रूम की चौकसी बढ़ाए जाने के बाद मशीनों से छेड़छाड़ नहीं हो पाई। इस पर मेयर विनोद चमोली का कहना है कि जब उन्हें इस बात की भनक लगी तो वे अपने चार-पांच साथियों के साथ रेसकोर्स स्थित बन्नू स्कूल में बने स्ट्रांग रूम की ओर गए, तो उन्हें वहां मात्र चार सुरक्षाधिकारी ड्यूटी बजाते मिले। उन्होंने कहा कि अमूमन स्ट्रांग रूम की सुरक्षा में एक टुकड़ी पीएसी के साथ कई जवान तैनात किए जाते हैं, लेकिन सरकार और प्रशासन ने मिलकर ईवीएम मशीनों के साथ छेड़छाड़ की योजना के तहत स्ट्रांग रूम की सुरक्षा बहुत हल्की की गई थी, ताकि वे ईवीएम मशीनों से छेड़छाड़ कर सके, लेकिन प्रशासन के एक अधिकारी की ईमानदारी के चलते ऐसा नहीं हो पाया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने देहरादून की मेयर सीट पर कब्जा करने के लिए जहां मुख्यमंत्री तक को मैदान में उतारा वहीं मुख्यमंत्री पुत्र व उनकी पत्नी ने भी कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में जमकर अनर्गल बयानबाजी की, जिसका जवाब राजधानी की जनता ने उन्हें दे दिया है।

निकाय चुनाव परिणामों ने हिलाई बहुगुणा की कुर्सी की चूलें!

निकाय चुनाव परिणामों ने हिलाई बहुगुणा की कुर्सी की चूलें!
राजेन्द्र जोशी
देहरादून। स्थानीय निकाय चुनाव के परिणामों के नतीजों ने मुख्यमंत्री बहुगुणा की कुर्सी की चूलें तक हिला दी हैं। भले ही मुख्यमंत्री बहुगुणा इन परिणामों को हल्के में ले रहे हों, लेकिन यह बात सरे आम है कि चुनाव परिणामों की गूंज दिल्ली दरबार तक पहुंच गई है। इतना ही नहीं स्थानीय निकाय चुनाव की घोषणा से कुछ ही दिन पहले राजधानी देहरादून आए कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी की नसीहत भी उत्तराखण्ड कांग्रेसियों को रास नहीं आई। इसका यह परिणाम रहा कि कांग्रेस ने तराई क्षेत्र में स्वंय बनाए नगर निगमों तक में अपना खाता नहीं खोला।
    प्राप्त जानकारी के अनुसार उत्तराखण्ड के इन चुनाव परिणामों से राहुल गांधी काफी मायूस हैं और उनकी इस मायूसी की गाज़ मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा पर गिर सकती है, क्योंकि देशभर में आने वाले वर्ष में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में उत्तराखण्ड में कांग्रेस को मिली हार की प्रतिछाया वह लोकसभा चुनाव पर नहीं पड़ने देना चाहेंगे। उत्तराखण्ड के चुनावों की हलचल दिल्ली में भी दिखाई दे रही है। राज्य में चुनाव परिणामों को लेकर कांग्रेस फिलहाल कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनाव के सम्पन्न होने तक नहीं करेगी। कर्नाटक में पांच मई को विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होगा, इसके बाद ही उत्तराखण्ड के चुनाव नतीजों पर कांग्रेस के भीतर विचार-विमर्श होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। सबसे खास बात यह है कि उत्तराखण्ड में हुए स्थानीय निकाय चुनाव में कांग्रेस के तमाम झण्डावरदार नेता अपने ही क्षेत्रों में अपनी ही पार्टी के प्रत्याशियों को नहीं जीता पाए हैं। इस स्थानीय निकाय चुनाव में जहां मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा व उनके परिवार ने जहां देहरादून नगर निगम के चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर लड़ा था, वहीं हल्द्वानी क्षेत्र से कैबिनेट मंत्री डा. इंदिरा हृदयेश पाठक ने अपने पुत्र की जगह हेमंत बगड़वाल को पहली बार नगर निगम बने हल्द्वानी में मेयर का चुनाव लड़ाया, वहीं रूड़की और हरिद्वार में भी कांग्रेस की रणनीति फेल साबित हुई है, हालांकि कांग्रेस सरकार में केंद्रीय नेता हरीश रावत यह कह रहे हैं कि चुनाव में उतारे गए प्रत्याशियों का नाम उनकी इच्छा से नहीं फाईनल किया गया, लेकिन कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में हरिद्वार और रूड़की में मिली हार को उन्हें न चाहते हुए भी स्वीकार करना होगा। इतना ही नहीं पर्वतीय क्षेत्र की ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में कांग्रेस द्वारा प्रचारित किए जा रहे गैरसैंण को लेकर भी कांग्रेस को निराशा मिली है, वहां की जनता ने भाजपा और कांग्रेस दोनों को नकार कर निर्दलीय प्रत्याशी को नगर पंचायत की बागडोर सौंपी है। वहीं पौड़ी में भी सतपाल महाराज का प्रभाव नहीं चल पाया, वहां भी निर्दलीय प्रत्याशी व पूर्व विधायक यशपाल बेनाम एक बार फिर नगर पालिका में पहुंचे हैं।
    कुल मिलाकर उत्तराखण्ड में स्थानीय निकाय चुनावों को भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों ही दल लोकसभा चुनाव के रिहर्सल बता रहे थे और चुनाव परिणामों ने काफी हद तक तस्वीर भी साफ कर दी है कि वह राजनैतिक दलों के छलावे में आने वाले नहीं है और प्रदेश सरकार को इस बात का भी जनता ने संदेश दिया है कि विकास के हवाई वादों से जनता को कोई सरोकार नहीं है।