बुधवार, 18 सितंबर 2013

निजी हाथों में खनन से बिगड़ेगा प्रदेश का माहौल!

निजी हाथों में खनन से बिगड़ेगा प्रदेश का माहौल!

राजेन्द्र जोशी
देहरादून। उत्तराखण्ड सरकार ने भले ही खनन कार्याें के लिए राज्य कैबिनेट के पांच सदस्यों की एक उप समिति बनाई हो, लेकिन खनन के खेल में सरकार भी अपने हाथ धोना चाहती है। सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार प्रदेश सरकार गढ़वाल मण्डल विकास निगम, कुमाउं मण्डल विकास निगम, वन विकास निगम के अलावा निजी क्षेत्र को भी खनन कार्य देने पर विचार कर रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि निजी खनन माफियाओं के मैदान में आने से जहां प्रदेश सरकार के निगमों के सामने प्रतिस्पर्धा का माहौल होगा, वहीं इसका विपरीत असर राज्य की कानून व्यवस्था पर भी पड़ेगा। उत्तर प्रदेश के कालान्तर में राज्यवासी निजी हाथों में माफियाओं के आपसी वर्चस्व के लड़ाई का कोपभाजन बन चुके हैं और माफियाओं की आपसी गुटबंदी से कई लोगों को जान से भी हाथ धोना पड़ा है। राज्य बनने के बाद प्रदेश सरकार ने खनन को निजी हाथों में देने के बजाय प्रदेश के निगमों को सौंप दिया था, जिसके बाद से प्रदेश में अपराधों पर अंकुश भी लगा था। सूत्रों का यह भी दावा है कि यदि खनन निजी हाथों में दिया गया तो, उससे अनियोजित तरीके से जहां खनन होगा, वहीं पर्यावरण को तो नुकसान होगा ही साथ ही वन्य प्राणियों को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा, लिहाजा प्रदेश के पर्यावरणविद् सरकार के इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर करने जा रहे हैं। जिससे सरकार के मंसूबों पर पानी फिर सकता है। पुख्ता सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश में खनन कार्यों को निजी हाथों में देने की पैरवी मुख्यमंत्री का मुंह लगा एक प्रमुख सचिव कर रहा है। विवदास्पद रहे इस प्रमुख सचिव के खनन माफिया पोंटी चढ्ढा से भी तत्कालीन समय में नजदीकी संबंध रहे हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष नामधारी और पोंटी चढ्ढा के बीच दिल्ली के एक फार्म हुए गोलाबारी के दौरान उक्त प्रमुख सचिव भी वहां मौजूद था, लेकिन प्रशासनिक पकड़ होने के चलते वह पुलिस की गिरफ्त से दूर हो गया। सूत्रों ने यहां यह भी बताया है कि पोंटी चढ्ढा के परिजन दिल्ली पुलिस द्वारा की जा रही जांच से खुश नहीं है और वह इस पूरे प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच चाहते हैं। कुल मिलाकर प्रदेश सरकार बीते 13 वर्षों से शांत प्रिय उत्तराखण्ड में खनन कार्य सरकार के निगमों के साथ निजी हाथों में देकर प्रदेश की फिजा को बिगाड़ना चाहती है। सूत्रों ने तो यहां तक बताया है कि वर्तमान में सरकार हरियाणा और दिल्ली सहित उत्तर प्रदेश के खनन माफियाओं को उत्तराखण्ड में प्रवेश देने जा रही है।

नहीं टेक पाए केदार बाबा के यहां मत्था, सोनिया दरबार में बार-बार मत्था टेकने वाले बहुगुणा

नहीं टेक पाए केदार बाबा के यहां मत्था, सोनिया दरबार में बार-बार मत्था टेकने वाले बहुगुणा


राजेन्द्र जोशी
देहरादून । राजनैतिक दल भले ही किसी व्यक्ति को कितना भी शक्ति सम्पन्न बना दे, लेकिन प्रकृति और दैवीय शक्ति के आगे आखिरकार उसे नतमस्तक होना ही पड़ता है। प्रदेश के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा सोनिया दरबार में भले ही महीने में 10 बार माथा टेकते रहे हों, लेकिन भगवान केदार के दरबार में आज माथा टेकने से वे वंचित रह गए। तमाम सुख साधन होने के बावजूद मुख्यमंत्री की प्रकृति और दैवीय शक्ति के आगे नहीं चल पाई और वे दिल्ली से केदारनाथ की ओर नहीं उड़ पाए।
    गौरतलब हो कि 13 मार्च 2012 को उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद विजय बहुगुणा की दिल्ली की उड़ान शुरू हो गई और लगभग हर वीकेण्ड दिल्ली में ही बीतता रहा है। प्रदेश के अब तक के पूर्व मुख्यमंत्रियों के दिल्ली दौरे के रिकार्ड को तोड़ते हुए मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा इस बार भी बीते चार दिनों से अभी तक दिल्ली से ही उत्तराखण्ड की सरकार चला रहे हैं। राज्य के नागरिक उड्डयन विभाग के अंतर्गत आने वाले स्टेट प्लेन और स्टेट हैलीकाप्टर की लॉग बुक से इस बात की तस्दीक होती है कि मुख्यमंत्री और उनके चहेते एक प्रमुख सचिव द्वारा सबसे ज्यादा प्रदेश के वायुयानों से हवाई यात्रा की गई, लेकिन बाबा केदार के दर्शनों के लिए वे नहीं उड़ पाए। 11 सितम्बर को बाबा केदार के मंदिर केदारनाथ में आपदा के 86 दिन बाद पूजा तो शुरू हो गई, लेकिन इस पूजा को सम्पन्न कराने में लगभग 46 करोड़ रूपया प्रदेश सरकार ने खर्च कर डाला। यह भी अपने आप में एक रिकार्ड है कि केदारधाम की पूजा करने के लिए किसी सरकार ने 46 करोड़ रूपया एक ही दिन में फूंक डाला हो। इसे प्रभु की माया ही कहेंगे कि सोनिया दरबार में महीने में लगभग 10 दिन हाजिरी बजाने वाला मुख्यमंत्री का गुरूर बाबा केदार के आगे नहीं चल पाया और वे बाबा के दर्शन से वंचित रह गए। यह भी किवंदन्ती है कि जिसे बाबा का बुलावा नहीं होता वो लाख कोशिश करे उनके दर्शन नहीं पा सकता, यही केदारनाथ में पूजा कराने को आतुर प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ भी हुआ। पूजा भी हुई अर्चना भी हुई भगवान केदार से 86 दिनों तक पूजा न करने को लेकर प्रायश्चित भी किया गया, लेकिन पूजा में मुख्यमंत्री बहुगुणा नहीं पहुंच पाए।

गुरुवार, 12 सितंबर 2013

आखिर क्या छिपाया जा रहा था केदारधाम में!

आखिर क्या छिपाया जा रहा था केदारधाम में!

केदारधाम के हलात कमोबेश आज भी आपदा के बाद जैसे!

राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 12 सितम्बर। इंजीनियर्स प्रोजेक्ट इंडिया लिमिटेट (ईपीआईएल) और नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउण्टेनियरिंग (एनआईएम) के भरोसे बीते दिन प्रदेश सरकार की केदारनाथ में बीते 86 दिन से होने वाली पूजा सम्पन्न कराई गई, लेकिन वहां ऐसा कुछ भी था जिसे वहां पहुंचे लोगों से छिपाया जा रहा था। शासन-प्रशासन ने फिनाईल और ब्लीचिंग पाउडर छिड़क कर केदारधाम को पूजा के समय के लिए सांस लेने के काबिल तो बना दिया, लेकिन मंदिर से थोड़ी दूरी पर उठ रखी बदबू आज भी केदारधाम के हालातों को बयां करने के लिए काफी है। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार जिस हाल में केदारनाथ धाम 17 जून को था, कमोबेश आज भी केदारधाम के वही हालात हैं। हलके हे हवा के झोंके के साथ उठने वाली बदबू आज भी यह बयां कर रही है कि केदारपुरी में हजारों लोग व पशु दफन हुए होंगे। जिला प्रशासन ने मंदिर और आस-पास के क्षेत्रों को कनात लगाकर नजर से दूर तो कर दिया, लेकिन वहां के हालात 16-17 जून को आए भीषण तबाही की कहानी खुद ही बयां कर रहे थे। मंदिर के आस-पास जहां 16-17 जून से पहले घनी बस्ती हुआ करती थी, जिसमें स्थानीय लोगों की चाय और खाने के होटल बने थे, वे सब नज़ाने कहां गुम हो गए। प्रदेश सरकार और जिला प्रशासन ने फैब्रिकेटिड कुटियाओं को स्थापित करने के बड़े-बड़े दावे किए थे, लेकिन बीते दिन केदारनाथ में रूकने वाले मंत्री और अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों के लिए एनआईएम के टैंट ही काम आए। गिने-चुने लोग तीर्थ पुरोहितों के सुरक्षित बची धर्मशालाओं और लॉज में रूके।
    जहंा तक केदारनाथ मंदिर में पूजा की बात है, तो प्रदेश सरकार की घोषणा से स्थानीय लोगों के हाथ निराशा ही लगी, क्योंकि इस पूजा में जितने भी लोग केदारधाम पहुंचे, वे सब हैलीकाप्टर से ढोऐ गए थे, जबकि बीते दिन ही भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक की पैदल केदारनाथ कूच की घोषणा ने भले ही उसे लोग राजनैतिक रंग दे, ने स्थानीय लोगों के चेहरों पर खुशी जरूर लौटा दी है। स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रदेश सरकार गुप्तकाशी से आगे जाने वालों को इस तरह रोक रही थी, जैसे कि वे पाकिस्तान जाने के लिए बाघा बॉर्डर पार कर रहे हों। स्थानीय लोगों का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक को प्रदेश सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते उनको मिलने वाले प्रोटोकोल से भी दूर रखा, उन्हें मात्र एक सिपाही सेटेलाईट फोन के साथ दिया गया।
    सरकार की 11 सितम्बर की पूजा को लेकर राजनैतिक जानकारों का कहना है कि सरकार ने यह प्रदर्शित करने की कोशिश की कि केदारनाथ में सबकुछ सामान्य हो गया है और वह केंद्र पर अब राहत राशि को अवमुक्त कराने के लिए दबाव बनाएगी। उन्होंने कहा कि सरकार ने पूजा कराकर यह संदेश भी देने का कुत्सित प्रयास किया है कि वह संवेदनशील है और प्रभावित क्षेत्र में काम कर रही है। कुल मिलाकर केदारनाथ के हालात आज भी जस के तस हैं, स्थानीय प्रभावित लोग आज भी टैंटों में अपने दिन गुजारने को मजबूर हैं और स्थानीय बच्चे शिक्षा से भी वंचित। प्रभुद्ध लोगों का कहना है कि क्या ही अच्छा होता, प्रदेश सरकार पूजा के साथ-साथ स्थानीय लोगों की चिंता भी करती, ताकि उनका जीवन भी पटरी पर लौटता, लेकिन सरकार ने झूठी लोकप्रियता पाने के लिए केदारधाम में पूजा का नाटक रचा। प्रत्यक्षदर्शितों के अनुसार परम्परागत तरीके से बीतीे कई सदियों से केदारधाम में पूजा की थाली चांदी की हुआ करती थी, लेकिन बीते दिन सामान्य थाली में पूजा कर सरकार ने लोगों की भावनाओं की ठेस पहुंचाया है।

पूजा आरंभ कराने का उद्देश्य है क्या ?

पूजा के पीछे सरकार का उद्देश्य क्या: खण्डूडी

सरकार पर चले हत्याओं का मुकदमा: निशंक

देहरादून, 11 सितम्बर (राजेन्द्र जोशी)। केदारनाथ में पूजा कराने को तो तमाम राजनैतिक दल ठीक मानते हैं, लेकिन पूजा के अलावा क्षेत्र के विकास, आपदा प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्य, स्कूलों में बच्चो को शिक्षा, चिकित्सा और स्वास्थ्य व्यवस्था भी पूजा से पहले हैं। वरिष्ठ भाजपा नेता व पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी ने कहा कि केदारनाथ धाम में पूजा तो ठीक है म
खंडूड़ी ने कहा कि केदारनाथ में पूजा को लेकर सरकार के साथ न तो तीर्थ पुरोहित हैं और न धर्माचार्याे की ही सहमति है, इस स्थिति में समझ नहीं आता कि सरकार का इस सबके पीछे उद्देश्य क्या है। यही नहीं, स्थानीय स्तर पर भी लोगों पर पाबंदी लगाए जाने से सरकार के खिलाफ माहौल बना हुआ है। उन्होंने कहा कि आपदा प्रभावित क्षेत्रों में राहत एवं पुनवार्स ज्यादा जरूरी है। सड़क संपर्क अब भी कई स्थानों पर कायम नहीं हो पाया है। लोग टैंट और स्कूलों में रहने को मजबूर हैं। स्कूल न खुलने से बच्चे तीन महीने से घर पर बैठे हैं।
उन्होंने सवाल किया कि जब 11 सितंबर की पूजा के बाद भी यात्रा आरंभ नहीं की जा रही है तो इसका औचित्य क्या है। सरकार बस श्रेय लेने की राजनीति कर रही है, जिसका कोई फायदा होने वाला नहीं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को चाहिए कि पहले प्रभावित क्षेत्रों तक पूरा सड़क संपर्क कायम किया जाए, स्कूल खुलवाए जाएं और पीड़ितों तक राहत पहुंचाना सुनिश्चित किया जाए।
पूर्व मुख्यामंत्री डा० निशंक ने कहा कि उत्तराखंड सरकार द्वारा श्री केदारनाथ पूजा का नाटक जनता को रास नहीं आ रहा है और केदारनाथ धाम के पुरोहित पूजा का विरोध कर रहे हैं; यह पूजा कांग्रेस की पूजा होकर रह गयी है। उन्होंने कहा कि केदारनाथ की पूजा का विज्ञापन देकर सरकार ऐसा प्रचार कर रही है जिसे असंभव को संभव करने जैसा हो। सरकार जिस स्तर तक नीचे गिर गया है इसका अहसास भी नही किया जा सकता है। आज भी उक्त क्षेत्र में हजारों शव बिखरे हुए हैं और उनके बाद पूजा का प्रवंध करना अजीब लगता है।
डा निशंक ने कहा कि सरकार की शीर्ष प्राथमिकता लोगों को बचाने की होनी चाहिए थी,लेकिन ऐसा नही हो पाया। प्रलय से डरकर जो लोग पहाडों की ओर जान बचाकर भागे उनको बचाने की जिम्मेदारी किसकी थी सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए। उन्होंने पहले ही कहा था कि जो लोग जान बचाकर पहाडों की ओर भागे,लेकिन सरकार ने जानकारी के बावजूद बचाने की पहल नही की। पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि केदारनाथ की पूजा अब भी उखीमठ में चल रही थी और यदि केदारनाथ में पूजा आरंभ करनी थी तो तीन माह क्यों लगाया गया। उस समय साफ सफाई कर पूजा शुरू करायी जा सकती थी। पूर्व सीएम ने वहां के पुजारी परिवारों की चर्चा करते हुए कहा कि केदारनाथ के पुजारी अनुनय विनय कर रहे हैं कि उन्हें उनके घरों तक जाने दिया जाए। उनके मकानों में उनके परिवारों के लोग मृत पडे हुए हैं जिनका अंतिम संस्कार किया जाना है।
डा. निशंक ने स्पष्ट रूप से कहा कि सरकार पर लोगों की हत्या का मुकदमा चलाया जाना चाहिए। सरकार को इतनी मौतों का जवाब देना होगा। पांच हजार से अधिक नेपाली कहां हैं उनका आज तक कोई पता नही है। जिन लोगों के शव मिल रहे हैं उन्होंने भी डेढ दो माह तक जीवन से संघर्ष किया। कितना दुर्भाग्य है कि पूजा का दावा कराने वाली सरकार तीन माह तक पैदल रास्ता तक नही बना पायी। डा निशंक ने कहा कि सरकार को पूजा प्रारंभ ही करानी ही थी तो पुरोहितों को न ले जाकर एक पाप क्यों किया। पूजा पुरोहितों का विशेष अधिकार है।
गर ज्यादा जरूरी आपदाग्रस्त क्षेत्रों में राहत कार्य हैं। सरकार यह स्पष्ट नहीं कर पाई है कि आखिर इस तरह पूजा आरंभ कराने का उद्देश्य है क्या।

सोनिया दरबार में बार-बार मत्था टेकने वाले, नहीं टेक पाए बाबा केदार के यहां मत्था

सोनिया दरबार में बार-बार मत्था टेकने वाले, नहीं टेक पाए बाबा केदार के यहां मत्था

राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 11 सितम्बर। राजनैतिक दल भले ही किसी व्यक्ति को कितना भी शक्ति सम्पन्न बना दे, लेकिन प्रकृति और दैवीय शक्ति के आगे आखिरकार उसे नतमस्तक होना ही पड़ता है। प्रदेश के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा सोनिया दरबार में भले ही महीने में 10 बार माथा टेकते रहे हों, लेकिन भगवान केदार के दरबार में आज माथा टेकने से वे वंचित रह गए। तमाम सुख साधन होने के बावजूद मुख्यमंत्री की प्रकृति और दैवीय शक्ति के आगे नहीं चल पाई और वे दिल्ली से केदारनाथ की ओर नहीं उड़ पाए।
    गौरतलब हो कि 13 मार्च 2012 को उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद विजय बहुगुणा की दिल्ली की उड़ान शुरू हो गई और लगभग हर वीकेण्ड दिल्ली में ही बीतता रहा है। प्रदेश के अब तक के पूर्व मुख्यमंत्रियों के दिल्ली दौरे के रिकार्ड को तोड़ते हुए मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा इस बार भी बीते चार दिनों से अभी तक दिल्ली से ही उत्तराखण्ड की सरकार चला रहे हैं। राज्य के नागरिक उड्डयन विभाग के अंतर्गत आने वाले स्टेट प्लेन और स्टेट हैलीकाप्टर की लॉग बुक से इस बात की तस्दीक होती है कि मुख्यमंत्री और उनके चहेते एक प्रमुख सचिव द्वारा सबसे ज्यादा प्रदेश के वायुयानों से हवाई यात्रा की गई, लेकिन बाबा केदार के दर्शनों के लिए वे नहीं उड़ पाए। 11 सितम्बर को बाबा केदार के मंदिर केदारनाथ में आपदा के 86 दिन बाद पूजा तो शुरू हो गई, लेकिन इस पूजा को सम्पन्न कराने में लगभग 46 करोड़ रूपया प्रदेश सरकार ने खर्च कर डाला। यह भी अपने आप में एक रिकार्ड है कि केदारधाम की पूजा करने के लिए किसी सरकार ने 46 करोड़ रूपया एक ही दिन में फूंक डाला हो। इसे प्रभु की माया ही कहेंगे कि सोनिया दरबार में महीने में लगभग 10 दिन हाजिरी बजाने वाला मुख्यमंत्री का गुरूर बाबा केदार के आगे नहीं चल पाया और वे बाबा के दर्शन से वंचित रह गए। यह भी किवंदन्ती है कि जिसे बाबा का बुलावा नहीं होता वो लाख कोशिश करे उनके दर्शन नहीं पा सकता, यही केदारनाथ में पूजा कराने को आतुर प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ भी हुआ। पूजा भी हुई अर्चना भी हुई भगवान केदार से 86 दिनों तक पूजा न करने को लेकर प्रायश्चित भी किया गया, लेकिन पूजा में मुख्यमंत्री बहुगुणा नहीं पहुंच पाए।

86 दिन बाद केदारनाथ धाम के कपाट वर्ष में दूसरी बार खुले

86 दिन बाद केदारनाथ धाम के कपाट वर्ष में दूसरी बार खुले

नहीं पहुंच पाए मुख्यमंत्री, काबीना मंत्री ने कराई पूजा


राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 11 सितम्बर। बीती 17 जून के बाद 11 सितम्बर (आज बुधवार) को 86 दिन बाद बारहवें ज्योर्तिलिंग भगवान केदार के कपाट वर्ष में दूसरी बार खोल दिए गए। यह सनातन धर्म परम्पराओं में यह पहला मौका है, जब बाबा केदार की पूजा में न तो भक्त ही शामिल हुए और न ही स्थानीय तीर्थ पुरोहित। बुधवार प्रातः 7 बजे मंदिर के कपाट प्रधान रावल भीमशंकर लिंग शिवाचार्य ने खोले। द्वार की परम्परागत पूजा के बाद मुख्य रावल ने चुनिंदा लोगों के साथ गर्भ गृह में प्रवेश किया। हालांकि वर्ष में दूसरी बार खुले कपाट को लेकर कई तरह की मत भिन्नताएं थी, लेकिन सरकार ने जहां इसे ‘‘सर्वार्थ सिद्धि योग‘‘ बताकर इस समय को सबसे उपयुक्त समय बताया, वहीं हिंदु धर्माचार्याें ने रक्षाबंधन से लेकर नवरात्र के पहले दिन तक के समय को किसी भी शुभ कार्य के लिए उचित नहीं बताया।
    केदारनाथ मंदिर की स्थापना से लेकर आज तक का यह पहला मौका रहा, जब ज्योर्तिलिंग की पूजा के लिए केदारधाम में न तो तीर्थयात्री ही मौजूद थे और न तीर्थ पुरोहित। तीर्थयात्री और तीर्थ पुरोहित दोनों ही गुप्तकाशी से लेकर फाटा, रामपुर, सौनप्रयाग और गौरीकुण्ड में केदारनाथ जाने के लिए जद्दोजहद करते रहे, लेकिन प्रदेश सरकार की कड़ी चौकसी के बाद, ये लोग आगे नहीं बढ़ पाए। हालंाकि बुधवार प्रातः प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक अपने समर्थकों के साथ गौरीकुण्ड-केदारनाथ पैदल मार्ग पर कूच कर गए थे।
    गुप्तकाशी से लेकर केदारनाथ तक सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के जमावड़े के अलावा चुनिंदा मीड़ियाकर्मी की मौजूदगी ही देखी गई। आज के इस कार्यक्रम की सफलता के लिए प्रदेश सरकार ने 18 निजी हैलीकाप्टर लगाए थे। पल-पल बदल रहे प्रकृति के मिजाज के चलते आपदा के बाद से आज तक केदारनाथ मंे पूजा कराने को आतुर प्रदेश के मुख्यमंत्री ही नहीं पहुंच पाए, जबकि प्रदेश काबीना मंत्री डा. हरक सिंह रावत, केदारनाथ विधायक शैलारानी रावत, जिलाधिकारी दलीप जावलकर आदि बीते दिन ही केदारपुरी पहुंच गए थे।
    केदारनाथ की पूर्व विधायक आशा नौटियाल का कहना है कि प्रदेश सरकार के अधिकारी और मंत्री आपदा राहत कार्यों को करने के बजाय केदारनाथ मंदिर में पूजा करवाने को ज्यादा महत्व देते दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि केदारनाथ मंदिर में पूजा कराने के बहाने प्रदेश सरकार मंदिर का शुद्धीकरण नहीं बल्कि अपना शुद्धीकरण कर रही है। वहीं दूसरी ओर तीर्थ पुरोहित समाज प्रदेश सरकार के खिलाफ खड़ा हो गया है। तीर्थ पुरोहितों के अनुसार यह इतिहास का पहला अवसर है, जब किसी प्रदेश सरकार ने उनके परम्परागत हक-हकूकों के साथ खिलवाड़ ही नहीं किया बल्कि उन्हें उनके धाम में जाने से भी रोका। वहीं दूसरी ओर शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के प्रतिनिध के पूजा में बैठने पर भी विवाद हुआ, जबकि इस बात पर भी विवाद हुआ कि भगवान केदार के मंदिर मंे हवन के दौरान का महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहता है, लेकिन बुधवार को हुए हवन में क्षेत्रीय विधायक शैलारानी रावत सहित लक्ष्मी राणा और मधु भट्ट भी उपस्थित थी।




बुधवार, 4 सितंबर 2013

आसुमल से संत आसाराम बनने तक का सफ़र

आसुमल से संत आसाराम बनने तक का सफ़र




यौन शोषण से लेकर जमीन के अतिक्रमण तक के आरोपों से घिरे आसाराम का असली चेहरा क्या है? जवाब तलाशना शुरू किया तो सामने आया आसुमल का अतीत। आसुमल ने चाय की दुकान चलाने से लेकर दूध की दुकान तक पर नौकरी की। आसाराम के इस अतीत को जानने वालों के मुताबिक आसुमल और आसाराम में एक समानता भी है। आसाराम भी संगीन आरोपों से घिरे हैं और आसुमल पर भी कई संगीन आरोप लगे थे। 17 अप्रैल 1942 को बरानी गांव, नवाबशाह (आज का पाकिस्तान) में पेशे से व्यापारी थिउमल सिरुमलानी और मेंहगी बा के घर एक बच्चे का जन्म हुआ। मां-बाप ने बेटे का नाम रखा आसुमल। आसुमल का थोड़ा ही वक्त पाकिस्तान में बीता। बंटवारे के वक्त उजड़ने वाले लाखों परिवारों में थिउमल का परिवार भी था। बेटे आसुमल को लेकर ये परिवार अहमदाबाद के पास मणिनगर आ बसा, लेकिन थिउमल परिवार का साथ लंबे वक्त तक नहीं दे सके और चल बसे। थिउमल के देहांत के बाद बचपन में ही परिवार की जिम्मेदारी आसुमल के कंधे पर आ गई। आसुमल मेहसाणा के वीजापुर चले आए जो उस वक्त बृहद मुंबई हुआ करता था। गुजरात भी इसी राज्य का हिस्सा था।  । बात 1958-59 की है लेकिन मजिस्ट्रेट दफ्तर के बाहर एक चाय की दुकान आज भी है। आसुमल को जानने वालों का कहना है कि कभी इसी दुकान पर आसुमल बैठा करता था। ये दुकान आसुमल के रिश्तेदार सेवक राम की थी।
   जानने वाले कहते हैं कि आसुमल ने लंबे वक्त तक चाय की दुकान चलाई। वो उसी वक्त लंबी दाढ़ी रखने लगे थे। रिटायर हो चुके होमगार्ड जवान रसिक भाई उस दौर को नहीं भूले हैं। दरअसल, रसिक भाई भी उसी मजिस्ट्रेट दफ्तर के बाहर होमगार्ड के तौर पर तैनात हुआ करते थे, जहां वो दुकान है जिसे आसुमल की बताया जाता है। अतीत जानने वालों का यकीन करें तो आसाराम का विवादों से नाता पुराना है। स्थानीय लोगों के मुताबिक 1959 में आसुमल और उसके रिश्तेदारों पर शराब के नशे में हत्या का आरोप भी लगा। लेकिन सबूत न मिलने की वजह से आसुमल बरी हो गए। रसिक भाई कहते हैं कि उस दिन उन्होंने खूब शराब पी थी। कुछ लोगों से उनका झगड़ा हुआ तो धारदार हथियार से एक शख्स को मार दिया। कहते हैं हत्या के आरोप से बरी होने के बाद आसुमल ने वीजापुर छोड़ दिया और अहमदाबाद के सरदारनगर इलाके में आ बसे। वो 60 का दशक था। यहां भी आसाराम को जानने का दावा करने वालों ने आसुमल के अतीत के बारे में हैरान करने वाली बातें ही बताईं। काडूजी ठाकोर का दावा है कि कभी वो और आसुमल दोस्त हुआ करते थे। काडूजी का कहना है कि आसुमल तब शराब का धंधा करते थे। इस धंधे में आसुमल के चार साझीदार भी थे। नाम था जमरमल, नाथूमल, लचरानी और किशन मल। काडूजी के मुताबिक ये सभी उनकी दुकान से ही शराब खरीदते थे, जिसे बाजार में बेचकर आसुमल मोटा मुनाफा कमाते थे।
    काडूजी का कहना है कि वो आसुमल के इस अतीत को भूल नहीं सकते। आसुमल सफेद बनियान और नीली निकर पहनकर उनकी दुकान में शराब लेने आते थे। शराब का पूरा गैलन अकेले कंधे पर लादकर ले जाते थे। उन्हें जानने वालों के मुताबिक तीन-चार साल तक शराब का धंधा करने के बाद आसुमल ने ये काम छोड़ दिया। आसुमल एक दूध की दुकान पर महज तीन सौ रुपये में नौकरी करने लगा लेकिन कुछ वक्त बाद आसुमल गायब हो गया। इसके कई साल बाद दुनिया के सामने आसुमल नहीं आसाराम आए। वो आसाराम जो प्रवचन देते हैं, जो भक्तों की नजर में आध्यात्मिक गुरु हैं। सवाल ये कि आसुमल एक आम शहरी से आध्यात्मिक गुरु आसाराम कैसे बन गया? ये कहानी शुरू होती है सत्तर के दशक में। कहते हैं आध्यात्म की तरफ मुड़ने से पहले आसुमल ने कई तरह के धंधों में हाथ आजमाया। लेकिन सवाल ये भी है कि आखिर आसुमल ने आध्यात्म की तरफ मुड़ने का फैसला क्यों किया। दरअसल, आसुमल की मां आध्यात्मिक प्रवृत्ति की थीं। कहते हैं मां का प्रभाव ही उन्हें आध्यात्म की तरफ खींच ले गया। आसुमल पहले कुछ तांत्रिकों के संपर्क में आए। उन तांत्रिकों से आसुमल ने सम्मोहन की कला भी सीखी। वो प्रवचन भी देने लगे लेकिन तब तक वो इस कला में पूरी तरह माहिर नहीं हुए थे। अब उनकी दौड़ अध्यात्म की ओर थी। वे इस लाइन में खुद को सहज पा रहे थे। इस दौड़ ने उन्हें बापूजी की उपमा दे दी। आसुमल को आध्यात्म की तरफ मुड़ता देखकर उनके परिवार को चिंता हुई। आसुमल की शादी तय कर दी गई। आसाराम की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक शादी से बचने के लिए आसुमल घर से भाग गए। परिवारवालों को आठ दिन बाद वो भरूच के एक आश्रम में मिले। आखिरकार परिवार के सामने आसुमल को झुकना पड़ा। लक्ष्मी देवी से उनकी शादी हो गई। मगर, आध्यात्म में आसुमल की दिलचस्पी कम नहीं हुई। आसुमल को गुरु की तलाश थी। कहते हैं ये तलाश पूरी हुई गुजरात के बनासकांठा जिले में। आसुमल को लीला शाह बापू के रूप में गुरु मिल गए। आसुमल का अतीत जानने वालों के मुताबिक वो लीलाशाह बापू के पास कुछ वक्त तक रहे। यहीं उनका नाम आसुमल से बदलकर आसाराम हो गया। एक नए नाम और नई पहचान के साथ आखिरकार आसाराम अहमदाबाद के मोटेरा आ गए। साबरमती नदी किनारे आसाराम ने कच्चा आश्रम बनाया। धीरे-धीरे अपने प्रवचनों से आसाराम लोकप्रिय होने लगे। उनके साथ भक्तों का हुजूम जुड़ने लगा। फिर वो दौर भी आया जब आसाराम टेलीविजन पर भी नजर आने लगे। टेलीविजन पर आने वाले उनके प्रवचन लोकप्रिय होने लगे। देश भर में भक्तों की तादाद बढ़ने लगी। देश भर में फैले आश्रमों की तादाद भी चार सौ तक पहुंच गई। आसाराम देश के बड़े आध्यात्मिक गुरुओं की जमात में शामिल हो गए।

राहत कार्यों में सड़क ही बनी सबसे बड़ी बाधा

राहत कार्यों में सड़क ही बनी सबसे बड़ी बाधा

राजेन्द्र जोशी
देहरादून। उत्तराखण्ड में आई आपदा के दो महीने से ज्यादा का वक्त गुजर चुका है, लेकिन आपदा के दंश प्रभावित इलाकों में आज भी मौजूद हैं। जिंदगी को अपने रास्ते पर आने की कोशिश में खस्ताहाल सड़कें सबसे बड़ी बाधा बनी हुई हैं, लेकिन राज्य सरकार के तमाम दावों के बाद भी राज्य के प्रमुख राष्ट्रीय राजमार्गों सहित राज्य की 328 सड़कें बंद हैं। सड़क बनाने का काम अभी मौसम के चलते शुरू नहीं हो पाया है।
    आपदा ने पहाड़ की जिंदगी को और भी मुश्किल बना दिया है। 16-17 जून में आए भीषण सैलाब और भूस्खलन के बाद बर्बाद हुई सड़कों के कारण स्थानीय पहाड़ के लोग तंग हाल जिंदगी जीने को मजबूर हैं। आपदा प्रभावित क्षेत्रों के लोग आज भी तंबूओं में तंग जिंदगी जी रहे हैं। एक-एक तंबू में दो-दो, तीन-तीन परिवार किस तरह गुजर-बसर कर रहे हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। आपदा प्रभावित क्षेत्रों में सड़कें बंद होने के कारण खाद्यान्न का संकट भी गहरा गया है। मुख्यमंत्री और प्रशासनिक अधिकारी तो हैलीकाप्टर के जरिए दौरे कर लेते हैं, लेकिन आम आदमी आज भी परेशान और हताश नजर आ रहा है। आपदा की मार सबसे ज्यादा बुजुर्गों और बीमारों पर पड़ी है, जो सड़कें बंद होने के कारण तिलतिल कर मरने को मजबूर हैं। प्रकृति के कहर ने उत्तराखण्ड की 328 सड़कें बुरी तरह क्षतिग्रस्त कर दी हैं, इन सड़कों का एक से लेकर दो किलोमीटर तक का हिस्सा पूरी तरह बह गया है, जिस पर अभी तक काम शुरू नहीं हो पाया है, वहीं राष्ट्रीय राजमार्गों का भी कमोबेश यही हाल है। मुख्यमंत्री इसके लिए सीमा सड़क संगठन को जिम्मेदार ठहराते हैं, लेकिन सच तो यह है कि राज्य में सड़क बनाने की ज्यादातर जिम्मेदारी राज्य सरकार के पास है और जिसके मंत्री के रूप में दायित्व मुख्यमंत्री के पास ही है। प्रदेश में सड़क बनाने के लिए केंद्र पहले ही 150 करोड़ की सहायता मुहैया करा चुका है। ऐसे में राज्य में सड़क न बनने की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर ही आती है, इसको लेकर वह विपक्ष के निशाने पर है। महाप्रलय के चलते बर्बाद हुई सड़कों को बनाने की डेड लाईन 30 सितंबर तय की गई है और केदारनाथ में पूजा करने की तारीख 11 सितंबर ऐसे में सबसे बड़ा यह सवाल उठ खड़ा हो रहा है कि जब केदारनाथ तक पहुंचने के लिए मार्ग ही उपलब्ध नहीं होगा, तो आखिर केदारनाथ में पूजा को लेकर सरकार इतनी जल्दबाजी में क्यों है और वह पूजा किसके लिए कराई जा रही है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि वर्तमान में आपदा के बाद से लेकर अब तक केदारनाथ धाम में होने वाली पूजा ऊखीमठ के ओमकारेश्वर मंदिर में हो रही है। ऐसे में सरकार का 11 सितंबर तक केदारनाथ में पूजा करने पर  अड़िग रहना किसी के गले नहीं उतर रहा है, जबकि शास्त्रों की जानकारी रखने वाले लोगों का भी कहना है कि 11 सितंबर की तारीख पूजा कराने के लिए माकूल नहीं है। सच तो यह है कि अभी तक इन आपदा प्रभावित सड़कों से मलबा हटाने का काम ही शुरू हुआ है, बह गई सड़कों का बनना अभी भी बाकी है, ऐसे में पहाड़ के लोग क्या करें, उन्हें कुछ नहीं सूझ रहा है।

बहुगुणा के साथ कुल नौ, तो बाकी विधायक किसके साथ!

बहुगुणा के साथ कुल नौ, तो बाकी विधायक किसके साथ!


जब बहुगुणा खुद को सर्वमान्य नेता बता रहे, तो क्यों कर रहे

विधायक बहुगुणा की वकालत!

राजेन्द्र जोशी
देहरादून। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा का कहना है कि वे सर्वमान्य नेता हैं और कहीं कोई झगड़ा नहीं है। उनका यह बयान आज ऐसे समय पर आया, जब उनके पक्ष में नौ विधायक दिल्ली में हैं और वे पार्टी के आला नेताओं से इसलिए मिल रहे हैं कि बहुगुणा को उत्तराखण्ड से न हटाया जाए। मुख्यमंत्री के इस बयान की हवा तब निकल जाती है, जब कांग्रेस आलाकमान ने अभी तक उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री को बदलने का कोई संकेत नहीं दिया है। आखिर वह कौन सी वजह है कि मुख्यमंत्री को नौ विधायकों को अपने पक्ष में वकालात करने को दिल्ली भेजना पड़ा। राजनैतिक गलियारों में इस बात की चर्चा है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री की कार्यशैली से केंद्रीय नेतृत्व खुश नहीं है, लिहाजा वह अंदरूनी तौर पर नेतृत्व परिवर्तन के बारे में सोच तो जरूर रहा है, लेकिन उसने पार्टी के बाहर इस तरह की कोई बात अभी तक सार्वजनिक नहीं की है।
राजनैतिक विश्लेषकों के अनुसार मुख्यमंत्री इस समय हटो-बचो की राजनीति पर काम कर रहे हैं और उनके द्वारा नौ विधायकों को अपनी पैरवी के लिए दिल्ली भेजे जाने से मुख्यमंत्री की छवि पर ही बुरा असर पड़ा है। विश्लेषकों का मानना है कि जब प्रदेश में मुख्यमंत्री को हटाने को लेकर विरोधी खेमा वर्तमान में शांत है, तो आखिर मुख्यमंत्री को अपनी पैरवी के लिए नौ विधायकों को दिल्ली भेजने की जरूरत क्यों आन पड़ी, जबकि बीते दिन इन विधायकों के खेमें से ही यह हवा उड़ी थी कि मुख्यमंत्री के पक्ष में 11 विधायक दिल्ली कूच कर गए हैं, लेकिन मुख्यमंत्री के पक्ष में केवल सुबोध उनियाल, प्रदीप बत्रा, फुरकान अहमद, विजय पाल सजवाण, विक्रम सिंह नेगी, मदन बिष्ट, उमेश शर्मा (काऊ), राजकुमार और शैलेंद्र मोहन सिंघल ही दिल्ली जा पाए। इन विधायकों से जब दिल्ली जाने का कारण पूछा गया तो कुछ ने तो केदारनाथ पूजा के लिए आलाकमान को आमंत्रण देने के लिए आने की बात कही, तो कुछ ने भोजन गारंटी योजना अध्यायदेश पर आला नेताओं को बधाई देने को, लेकिन अंदरूनी सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश सह प्रभारी संजय कपूर की रिपोर्ट ही इन विधायकों के दिल्ली जाने का कारण बनी, क्योंकि प्रदेश सह प्रभारी संजय कपूर ने प्रदेश की ताजा स्थिति केंद्र के समक्ष रखी है। जिसे बहुगुणा सरकार पचा नहीं पा रही है, क्योंकि इस रिपोर्ट में बहुगुणा सरकार की उन खामियांे का भी जिक्र है, जिसकी वजह से आपदाकाल के दौरान कांग्रेस सरकार की खासी किरकिरी हुई थी।
हालांकि इस सब के बावजूद जहां इस मर्तबा हरीश रावत लॉबी कुछ भी कहने से बच रही हैं, वहीं सतपाल महाराज ने बीते दिन मुख्यमंत्री को आपदा प्रभावित क्षेत्रों में हो रहे कार्यांे के निरीक्षण पर कार से जाने का सुझाव दिया था। ऐसे में बहुगुणा समर्थकों की नींद हराम होनी लाजमी है।
कुल मिलाकर बहुगुणा की पैरवी के लिए गए विधायकों के इस दल को न तो राहुल गांधी ही मिल पाए और न ही अहमद पटेल, जो मिले उनमें गिरिजा व्यास और जर्नाधन द्विवेदी ही रहे। सूत्रों ने जो जानकारी दी है, उसके अनुसार गिरिजा व्यास ने उन्हें इस बात पर झिड़क किया कि आप लोगों को मुख्यमंत्री की पड़ी है और यहां फूड सिक्योरिटी बिल को लेकर कांग्रेस परेशान है। काबिलेगौर यह भी है कि उत्तराखण्ड के इतिहास में यह घटना पहली बार हुई है, जब किसी मुख्यमंत्री का विरोध ही न हुआ हो और उसको बचाने के लिए मुख्यमंत्री समर्थक विधायक दिल्ली के आलानेताओं से संपर्क कर रहे हों। राजनैतिक रस्सा-कस्सी के बीच मंगलवार को बहुगुणा का यह बयान कि ‘‘मै सर्वमान्य नेता हूं और नेतृत्व को लेकर कोई झगड़ा नहीं है‘‘ कि हवा स्वतः ही निकल जाती है कि कहीं कुछ न कुछ जरूर पक रहा है, जिसके परोसे जाने से मुख्यमंत्री बहुगुणा की परेशानियां बढ़ सकती हैं।

कांग्रेस सह प्रभारी की रिपोर्ट से बढ़ेंगी बहुगुणा सरकार की मुश्किलें

कांग्रेस सह प्रभारी की रिपोर्ट से बढ़ेंगी बहुगुणा सरकार की मुश्किलें

सरकार और संगठन में अविश्वास की भावना ले डूबेगी कांग्रेस को!

राजेन्द्र जोशी
देहरादून :कांग्रेस के प्रदेश सह प्रभारी संजय कपूर ने जो रिपोर्ट पार्टी के आलाकमान को सौंपी है, उस पर यदि गौर किया जाए तो मुख्यमंत्री बहुगुणा की मुश्किलें आने वाले दिनों में और बढ़ती नजर आ रही हैं। पार्टी में असंतोष, मंत्री व विधायकों से जनता नाराज और विधायकों का सरकार के प्रति अविश्वास आदि जैसे कई मुद्दों को लेकर प्रदेश सह प्रभारी ने दस जनपथ को यह रिपोर्ट सौंपी है।
    मुख्यमंत्री बनने के 18 महीने के बाद पहली बार प्रदेश में काबिज कांग्रेस सरकार ने विधायकों मंत्रियों और सहयोगी दलों के नेताओं की एक बैठक आपदा प्रबंधन के नाम पर बुलाई थी, लेकिन आठ घण्टे चली इस मैराथन बैठक में आपदा प्रबंधन पर किसी भी तरह की चर्चा नहीं हुई, बल्कि विधायक जहां मंत्रियों की खिंचाई करते नजर आए, वहीं सब मिलकर आपदा प्रबंधन मंत्री यशपाल आर्य की खिंचाई करते नजर आए। मामला तो यहां तक बढ़ गया कि आपदा प्रबंधन मंत्री यशपाल आर्य कई बार तिलमिला तक गए, वहीं सतपाल महाराज गुट के विधायकों ने तो बैठक का बायकाट ही कर डाला। यह सब प्रदेश सह प्रभारी संजय कपूर की आंखों के सामने हो रहा था। पहले इस बैठक में प्रदेश प्रभारी अंबिका सोनी को उपस्थित रहना था, लेकिन तेज बुखार और यात्रा न कर सकने की स्थिति के चलते मुंबई यात्रा पर गए संजय कपूर को पार्टी नेतृत्व ने देहरादून में आहूत इस बैठक में उपस्थित रहने के निर्देश दिए। बैठक में जो कुछ भी हुआ उसका विवरण तैयार कर प्रदेश सह प्रभारी ने दस जनपथ को सौंप दिया है। पुष्ट सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आपदा प्रभावित इलाकांे में जिस तरह से कार्य होना चाहिए था प्रदेश सरकार उसमें विफल रही है, इतना ही नहीं उन्होंने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि पार्टी के कार्यकर्ता और सहयोगी दल जिनकी बदौलत उत्तराखण्ड में कांग्रेस की सरकार बनी है, वे भी सरकार की कार्यप्रणाली से संतुष्ट नहीं है। उन्होंने पार्टी आलाकमान को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा कि मंत्रियों ने अपने कर्तव्य का निर्वहन सही ढंग से नहीं किया है, कोई भी मंत्री यह बताने की स्थिति में नहीं है कि आपदाकाल के दौरान उसने कितने दिन कौन से स्थान में रहकर आपदा प्रभावित स्थानों का जायजा लिया और वहां कार्य किया। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया है कि पार्टी के विधायकों में सरकार के प्रति अविश्वास की भावना है, यही कारण है कि कई विधायक मुख्यमंत्री से नाराज चल रहे हैं। अपनी गोपनीय रिपोर्ट में उन्होंने कहा कि यदि इसी तरह के हालात उत्तराखण्ड में रहे तो इसका असर लोकसभा चुनाव में भी पड़ेगा।
    सूत्रों का तो यहां तक दावा है कि प्रदेश सरकार ने अब विपक्षी विधायकों से भी संपर्क कर उनसे आपदा प्रभावित क्षेत्रों की जानकारी और उनके क्षेत्रों में होने वाले कार्याें पर जानकारी मांगी है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि बीते दिन प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक प्रदेश सरकार पर यह आरोप भी लगा चुके हैं कि क्या केवल सत्तापक्ष के विधायकों के यहां ही आपदा हुई है, क्योंकि सरकार केवल कांग्रेस विधायकों के विधानसभा क्षेत्र में ही आपदा प्रभावित कार्यों को तवज्जो दे रही है। पूर्व मुख्यमंत्री का यह बयान इस बात की भी तस्दीक करता है कि प्रदेश सरकार सत्तापक्ष के विधायकों के अलावा विपक्ष के विधायकों के आपदा प्रभावित क्षेत्रों को नजर अंदाज कर रही है। जिसके बाद ही मुख्यमंत्री ने गोपनीय तरीके से विपक्षी दलों के विधायकों से आपदा प्रभावित क्षेत्रों की जानकारी मांगी। कुल मिलाकर प्रदेश सह प्रभारी की इस रिपोर्ट से प्रदेश संगठन के आला नेता और प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। सूत्रों का यहां यह भी दावा है कि पार्टी आलाकमान प्रदेश संगठन के नेतृत्व को लेकर बीते काफी दिनों से होमवर्क में लगा है, जिन-जिन लोगों के नाम सामने आए हैं, उनसे पार्टी के आला नेताओं ने बात भी की है, लेकिन जिन लोगों के नाम पार्टी संगठन के दायित्व को संभाले जाने के लिए आगे आ रहे हैं, उनमें अधिकांश प्रदेश कैबिनेट में मंत्री हैं और वे सत्ता की मलाई नहीं छोड़ना चाहते हैं, यही कारण है कि प्रदेश आलाकमान के सामने लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व परिवर्तन चुनौति बनकर खड़ा हो गया है। जहां तक सरकार के नेतृत्व की बात है, उसमें भी कई वरिष्ठ लोगों के नाम सामने आए हैं, क्योंकि मौजूदा हालात बहुगुणा के खिलाफ चल रहे हैं। पार्टी आलाकमान को 2014 का लोकसभा चुनाव सामने दिखाई दे रहा है और वह प्रदेश सरकार का नेतृत्व कर रहे बहुगुणा और संगठन का नेतृत्व कर रहे यशपाल आर्य को तुरंत हटाना चाहता है, क्योंकि पार्टी आलाकमान को इनसे उम्मीदे बहुत कम नजर आ रही हैं।

बहुगुणा सरकार की उल्टी गिनती शुरू!

बहुगुणा सरकार की उल्टी गिनती शुरू!


11 सदस्यीय विधायक करेंगे बहुगुणा की पैरवी

राजेन्द्र जोशी
देहरादून। 19 अगस्त को हुई कांग्रेस विधान मण्डल दल की बैठक के नतीजे आने शुरू हो गए हैं। प्रदेश सह प्रभारी संजय कपूर की गोपनीय रिपोर्ट के बाद प्रदेश कांग्रेस में हलचल बढ़ गई है। मुख्यमंत्री के समर्थन में 11 सदस्यीय विधायकों का दल राहुल गांधी और अहमद पटेल को मिलने दिल्ली पहुंच गया है। चर्चा हैं कि इनमें वो विधायक शामिल हैं, जिन्होंने बहुगुणा कार्यकाल में जमकर माल काटा है। अचानक बढ़ी सरगर्मी से अब लगने लगा है कि बहुगुणा की कुर्सी डावांडोल हो रही है। जानकार सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी और अहमद पटेल से समय न मिलने के बाद विधायकों का यह दल संसद के सेंट्रल हॉल में गया, लेकिन वहां भी उन्हें मायूसी ही हाथ लगी है। जानकारी यह भी है कि देहरादून पहुंचे राष्ट्रपति के कार्यक्रम के बाद मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा डैमेट कंट्रोल के लिए दिल्ली रवाना हो सकते हैं।
    गौरतलब हो कि बीती 19 अगस्त को प्रदेश विधान मण्डल के विधायकों द्वारा केंद्र से विधान मण्डल दल की बैठक बुलाने के दबाव के बाद मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने अपने शासनकाल के 17 महीने बाद प्रदेश सह प्रभारी संजय कपूर की उपस्थिति में यह बैठक हो पाई। आठ घण्टे से ज्यादा समय तक चली इस बैठक में मुख्यमंत्री समर्थक और मुख्यमंत्री विरोधी विधायकों और मंत्रियों ने जमकर अपनी भड़ास निकाली। इस बैठक का लब्बोलुबाब यह रहा कि प्रदेश सरकार आपदा राहत कार्यों में पूरी तरह फेल रही है।  बैठक में क्या कुछ हुआ वह सब मसौदा लेकर प्रदेश सह प्रभारी संजय कपूर ने अपनी गोपनीय रिपोर्ट कांग्रेस आलाकमान को बीते चार दिन पूर्व ही सौंपी थी। इस रिपोर्ट के बाद प्रदेश सरकार की चूलें हिलने लगी हैं। यही कारण है कि नेतृत्व परिवर्तन की सुगबुगाहट सुन बहुगुणा के करीबी विधायक दिल्ली कूच कर गए हैं। चर्चा तो यहां तक है कि बहुगुणा के समर्थन में वे विधायक दिल्ली गए हैं, जिन्होंने बहुगुणा राज में जमकर खाई बाड़ी की है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बहुगुणा समर्थक विधायकों का यह दल कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और अहमद पटेल से मिलने गया है। सूत्रों से बताया है कि ये विधायक राहुल गांधी और अहमद पटेल से मिलकर यह बताएंगे कि बहुगुणा सरकार ठीक काम कर रही है, जबकि इसके इतर 19 अगस्त को कांग्रेस विधानमण्डल दल की बैठक में अधिकांश विधायक प्रदेश सरकार पर यह आरोप लगा चुके हैं कि ‘‘लगता है प्रदेश में प्रोपर्टी डीलर की सरकार है‘‘। इस बैठक में क्या कुछ हुआ यह भी अब धीरे-धीरे बाहर आने लगा है। बैठक का ब्यौरा देते हुए एक विधायक ने कहा कि मंत्रियों के पास विधायकों के सवालों का जवाब नहीं था कि इन दो महीनों में उन्होंने क्या किया इसका भी जवाब किसी मंत्री के पास नहीं था। वहीं 2012 में उत्तरकाशी के गंगनानी, धारचूला और चमोली जिले में आपदा के दौरान मिले 300 करोड़ रूपये का क्या हुआ इसका भी जवाब आपदा मंत्री के पास नहीं था।
    बहुगुणा की कुर्सी डावांडोल होने की सुगबुगाहट के बाद बहुगुणा समर्थक विधायक लामबद्ध होने लगे हैं। इसी कड़ी में बहुगुणा के दांहिने हाथ माने जाने वाले नरेन्द्रनगर विधायक सुबोध उनियाल के नेतृत्व में 11 विधायकों का एक दल दिल्ली कूच कर गया है। जो कंाग्रेस नेतृत्व से मुलाकात कर बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाए रखने की बात करेगा। इन विधायकों का दावा है कि चार अन्य निर्दलीय विधायक भी बहुगुणा के समर्थन में हैं और वे किसी अन्य को मुख्यमंत्री बनाए जाने पर उनका साथ नहीं देंगे। यहां यह भी गौरतलब है कि राहुल गांधी के उत्तराखण्ड दौरे के बाद और प्रदेश से मिल रही जानकारियों के बाद केंद्रीय आलाकमान बहुगुणा के कार्यों से जरा भी खुश नहीं है। क्योंकि आए दिन प्रदेश सरकार की मिल रही शिकायतों से केंद्रीय नेतृत्व भी आजिज आ चुका है और वह मन बना चुका है कि अब प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन ही एक मात्र विकल्प है। हालांकि कांग्रेस सूत्रों ने यह भी जानकारी दी है कि पार्टी आलाकमान इतनी जल्दी मुख्यमंत्री बदलने पर सहमत नहीं था, लेकिन उत्तराखण्ड में पानी सिर से उपर जा चुका है और इससे कांग्रेस की काफी छिछालेदारी हुई है। लिहाजा केंद्र के पास अब नेतृत्व परिवर्तन के अलावा कोई और विकल्प शेष नहीं रह गया है।

हजारों बच्चों को राहत सामग्री नहीं स्कूल चाहिए

हजारों बच्चों को राहत सामग्री नहीं स्कूल चाहिए

देहरादून। हमें राहत सामग्री की नहीं बल्कि पढ़ने के लिए एक स्कूल चाहिए ताकि हम अपनी पढ़ाई जारी रख सकें....ये उदगार सिर्फ एक बच्चे के नहीं बल्कि जनपद के उन हजारों बच्चों के हैं जो 16-17 जून की आपदा के कारण अपना स्कूल खो चुके हैं। आपदा से प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में हुई भारी तबाही में जहां आम जनमानस ने अपना घरबार सब कुछ खो दिया है वहीं देश का भविष्य कहे जाने वाले नौनिहालों ने अपना घर तो खोया ही है साथ ही खो दिये है अपने स्कूल। जो कि उनके सुनहरे भविष्य की नींव थे। आपदा के कारण जनपद के 176 विद्यालय पूर्ण तथा आशिंक रूप से क्षतिग्रस्त हो चुके है इन विद्यालयों में पढ़ने वाले ढ़ाई हजार से अधिक बच्चे अपनी पढ़ाई से वंचित हो गये है। इन बच्चों का भविष्य अंधकारमय बना हुआ है। हालांकि प्रशासन द्वारा इन बच्चों को पढ़ने के लिए स्थानीय स्तर पर वैकल्पिक व्यवस्था तो की गई है लेकिन शिक्षकों और विद्यालय के अभाव में इन बच्चों का क्या होगा कहा नहीं जा सकता है। कतिपय स्थानों पर तो बच्चों के स्कूलों में आपदा राहत शिविर बनाए गये है ऐसे में यहां पर पठन-पाठन की व्यवस्था होना संभव नहीं है। बच्चों के भविष्य के साथ कुदरत ने यहीं एक खिलवाड़ नहीं किया है बल्कि विद्यालयों के क्षतिग्रस्त हो जाने से बच्चों के स्कूली डक्यूमेंटस भी खो चुके है अब ये कागजात कैसे बनेगें यह भी एक बड़ा सवाल बच्चों और उनके अभिभावकों के सामने मुंह बाये खड़ा है।
जनपद चमोली में आई आपदा को दो माह से अधिक का समय गुजर गया है लेकिन अभी भी लोगों की परेशानी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। जहां प्रभावित लोग फिर से जन-जीवन को पटरी पर लाने के लिए मसकत कर रहे तो वहीं उनके नौनिहालों जो पढ़ाई से भी वंचित हो रहे है, उनके भविष्य को लेकर भी चिंतित है। आपदा ग्रस्त क्षेत्र भ्यूंडार के बच्चों का कहना है कि उनके परिवारों को राहत सामग्री तो भरपूर मिल है और मिल रही है, लेकिन अब उनके सामने पढ़ाई का संकट पैदा हो गया है प्रशासन से उनकी गुहार है कि वह उनके लिए एक स्कूल की व्यवस्था कर दे साथ ही उनकी फीस माफ तथा प्रशिक्षण संस्थानों में शिक्षा ग्रहण करने की सुविधा मुहैया करवा दे। इन बच्चों का दर्द तो देखिये ये पढ़ने के लिए इतने लालायत है गांव की स्कूल क्षतिग्रस्त होने के बावजूद भी अपने गांव से कई-कई किमी दूर पैदल चल कर अपनी जान जोखिम में डाल स्कूलों तक पहुंच रहे है। जंगलों के विहड़ रास्तों से होकर ये बच्चे स्कूल तक तो पहुंच रहे हे लेकिन स्कूल की हालत ऐसी नहीं है कि वह वहां पठन-पाठन कर सकें बच्चों का यहां तक कहना है कि उन्हें जंगलों के रास्ते मुश्किल से स्कूल पहंुच तो रहे है लेकिन डर लगा रहता है कि कहीं रास्तें में जंगली जानवर हमला न कर दें। इन विहड़ रास्तों पर बारिश के साथ चटानों से पत्थर भी बरस रहे हैं ऐसे में स्कूल तक पहुंचना इन बच्चों के लिए एवरेस्ट की चोटी फतेह करने से कम मुश्किल भरा नहीं है।
ऐसा नहीं है कि अभिभावक अपने बाल्कों के भविष्य को लेकर तथा उनके द्वारा तय किये जा रहे विहड़ रास्तों से स्कूल पहुंचने तक के सफर से अनजान है और वे इसके प्रति सजग नहीं है लेकिन बच्चों की पढ़ाई के प्रति रूचि और लगन के सामने उनकी एक नहीं चल रही है हालांकि विद्यालय प्रशासन बारिश के दिनों में बच्चों को स्कूल न आने की हिदायत दे चुके है वे भी बच्चों के लिए चिंतित है कहते है कि जान है तो जहान है पढ़ाई के लिए जीवन होना आवश्यक है। अभिभावक भी प्रशासन की लापरवाही को लेकर चिंतित है । उनका कहना है कि यदि बच्चों को किसी सुरक्षित स्थानों पर पढ़ाई की व्यवस्था हो जाती तो उन्हें भी राहत मिल जाती।  
आपदा ग्रस्त क्षेत्र में कुल 176 विद्यालय पूर्ण रूप से क्षतिग्ररूस्त हो चुके है इन विद्यालयों के छात्रों के पठन-पाठन की व्यवस्था जिला शिक्षा अधिकारी बेसिक का कहना है कि उनके द्वारा संबंधित क्षेत्र के खंड विकास अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे बारीश में स्कूल चलाने की कदापि भी इजाजत न दें साथ स्कूलों के प्रधानाचार्यों को भी इस हेतु दिशा निर्देश दिये गये है। साथ प्रभावित विद्यालयों के बच्चों को पढ़ने समुचित व्यवस्था के लिए पूरी तरह से कार्य किया जा चुका है।