रविवार, 2 सितंबर 2012

शहीदो हम शर्मिन्दा हैं

शहीदो हम शर्मिन्दा हैं
राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 2 सितंबर। जिन राज्य आन्दोलकारी शहीदों की शहादत पर आज तमाम राजनीतिक दल सहित समाजसेवी आज उत्तराखण्ड में अपनी राजनीति चमकाने पर लगे हैं उसी उत्तराखण्ड के शहीदों को आज के दिन मुख्यमंत्री के हाथों दो फूल भी मयस्सर नहीं हो पाये इस बार। जबकि राज्य के इन आन्दोलनकारियों को शहादत के बाद से लेकर राज्य के अस्तित्व में आने तक तमाम राजनैतिक दलों के नेताओं द्वारा दिखाने को ही सही लेकिन दो फूल तो उन तक पहुंच ही जाते थे , राज्य के अस्तित्व में आने के बाद  हर साल एक तथा दो सितम्बर को प्रदेश के मुख्य मंत्री द्वारा दो फूल उनके चित्र पर कम से कम चढ़ायें ही जाते थे, लेकिन इस बार राज्य आन्दोलनकारी शहीद इससे भी महरूम रह गये। ऐसा नहीं कि मुख्यंमत्री के चढ़ाये फूलों से उनकी आत्मा प्रसन्न हो जाती रही होगी, लेकिन यह शहीदों को याद करने का एक महज अवसर या औपचारिकता है तो था साथ ही अपने आप को जनभावनाओं से जोड़ने का एक अवसर भी। 
   उत्तराखण्ड राज्य बने 12 साल पूरे होने को हैं आज तक राज्य आन्दोलनकारियों के शहादत दिवस पर राज्य के हर पार्टी के मुख्यंमंत्री ने श्रद्धा सुमन अर्पित किये सिवा वर्तमान मुख्यमंत्री के। वह तो भला हो राज्य के सूचना विभाग का जिसे याद आ गया कि एक सितम्बर को खटीमा कांड का शहादत दिवस है और दो सितम्बर को मसूरी का, कम से कम उसने तो मुख्यमंत्री की ओर से दो शब्दों का प्रेस नोट तो भेजा। बीते दिन खटीमा में  एक सितम्बर 1994 को शहीद हुए स्वर्गीय भवान सिंह सिरौला, स्वर्गीय सलीम अहमद, स्वर्गीय गोपी चन्द,स्वर्गीय धर्मानन्द भट्ट, स्वर्गीय परमजीत सिंह, स्वर्गीय रामपाल और स्वर्गीय भगवान सिंह सिरोला को राज्य के मुख्यंमत्री सहित राज्य मंत्रिमंडल के सदस्यों तक को इनकी याद नहीं आयी, उस दिन पुलिस फायरिंग में बीचपुरी के बहादुर सिंह,श्रीपुर बिछवा के पूरन चन्द्र भी घायल हुए थे। वहीं आज मसूरी गोली कांड के 18 साल पूरे हो चुके हैं, दो सितम्बर 1994 को मसूरी में स्वर्गीय बेलमति चैहान,स्वर्गीय हंसा धनई, स्वर्गीय बलबीर नेगी, स्वर्गीय धनपत सिंह, स्वर्गीय राज सिंह बंगारी तथा मदन सिंह आदि शहीद हुए थे।
  राजनैतिक विश्लेषकों का कहना है कि जब वर्तमान मुख्यमंत्री आन्दोलन के समय उत्तराखण्ड में रहे ही नहीं अथवा उन्होने राज्य आन्दोलन की वह शक्ति देखी ही नहीं तो उनको कहां से याद आयेगा कि एक सितम्बर को खटीमा अथवा दो सितम्बर को मसूरी व दो अक्टूवर को रामपुर तिराहे पर मुजफ्फर नगर कांड के दौरान उत्तराखण्ड के जन-जन की क्या हालात थी। उन्होने राज्य आन्दोलन का वह वीभत्स दृश्य अपनी    आंखों से नहीं देखा तो उन्हे आन्दोलनकारियों का क्या दर्द होगा।
   बीते दिन खटीमा गोलीकांड तथा आज मसूरी गोली कांड पर हर उस राज्यवासी ने राज्य आन्दोलन के दौरान शहादत देने वालों को श्रद्धाजलि दी, अब यह देखना होगा कि सत्ता के मद में मदमस्त राज्य सरकार व मुलायम के नक्शेकदम पर चलने वाले मुख्यंमंत्री सहित हुक्मरानों को दो अक्टूवर तक भी राज्य आन्दोलनकारियों की याद आती है अथवा नहीं और कहीं वे इस दिन को तो नहीं भूलेंगे उसी दिन उसी मुलायम के दरिन्दों ने राज्य की अस्मत व राज्य आन्दोलनकारियों को शहीद कर डाला था।