गुरुवार, 29 अगस्त 2013

बेकाबू ब्यूरोक्रेसी और आपदा मंत्री के उठे मामले

बेकाबू ब्यूरोक्रेसी और आपदा मंत्री के उठे मामले

आपदा मंत्री पर विधायकों ने लगाया उपेक्षा का आरोप
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : अभी तक प्रदेश की जनता ही मुख्यमंत्री पर यह आरोप लगाती रही है कि प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी उनकी नहीं सुन रही है, लेकिन अब कांग्रेस विधानमण्डल दल के विधायकों ने भी मुख्यमंत्री से शिकायत की है कि प्रदेश के जिले से लेकर सरकार में बैठे नौकरशाह तक उनको तवज्जो नहीं देते हैं। वहीं विधानमण्डल दल की बैठक में विधायकों के निशाने पर सबसे ज्यादा आपदा प्रबंधन मंत्री यशपाल आर्य ही रहे। इतना ही नहीं जब विधायकों ने उन पर शब्द बाणों से प्रहार करने शुरू किए तो वे तिलमिलाकर आपा खो बैठे। वहीं सतपाल महाराज गुट के पर्यटन मंत्री अमृता रावत, गणेश गोदियाल और राजेन्द्र भण्डारी भी सरकार के उपेक्षा पूर्ण रवैये से नाराज होकर बैठक को बीच में ही छोड़कर निकल गए। बीते दिन लगभग आठ घण्टे चली विधानमण्डल दल की सहयोगी दलों के साथ बैठक में उन विधायकों ने भी सरकार को आड़े हाथों लिया, जिनके विधानसभा क्षेत्र आपदा से प्रभावित हैं।
प्रदेश विधानमण्डल दल व सहयोगी दलों के साथ मुख्यमंत्री बहुगुणा ने सरकार बनने के 17 महीने के बाद पहली बार बैठक की। यह बैठक केंद्र के दबाव में की गई, क्योंकि प्रदेश सरकार के विधायक लगातार मुख्यमंत्री सहित आलाकमान से कांग्रेस विधायकों की बैठक को लेकर दबाव बनाए हुए थे। पहली बार हुई इस बैठक में प्रदेश के अधिकांश विधायकों ने अपनी ही सरकार पर आरोप लगाया कि जिले से लेकर प्रदेश शासन में बैठे नौकरशाह उनकी बातों को नजर अंदाज करते रहे हैं, जबकि दूसरी ओर मुख्यमंत्री के मुंह लगे कुछ तथाकथित नेताओं को राज्य की नौकरशाही पूरी तरह सहयोग कर रही है। ऐसे में प्रदेश के नेताओं में अंदरखाने आपसी द्वंद बढ़ रहा है, जिसका खामियाजा प्रदेश सरकार को भुगतना पड़ रहा है। अधिकांश विधायकों का आरोप था कि प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी लोक सेवक को मिलने वाले प्रोटोकॉल को भी नजरअंदाज कर रही है। वहीं बैठक के बाद कुछ मंत्रियों का तो यहां तक कहना था कि विभागीय फाईलों के अलावा क्षेत्र की समस्याओं को लेकर मुख्यमंत्री दरबार तक गई फाईलों के मामले में उनको पूछा तक नहीं जाता। उन्होंने कहा कि जब इस तरह की फाईलों पर निर्णय हो जाता है तब मंत्रियों को पता चलता है, जो कि एक गंभीर विषय है। वहीं एक विधायक ने तो यहां तक कहा कि विधायकों को दस बार निश्चित समय देने के बाद भी अधिकारी अपने कक्ष में नहीं मिलते हैं, जिससे विधायकों का समय तो बर्बाद हो ही रहा है, वहीं जनता के कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं।
सत्तारूढ़ विधायकों और सहयोगी दलों की बैठक में आपदा प्रबंधन मंत्री यशपाल आर्य का रहा, आपदा प्रभावित क्षेत्र के लगभग सभी विधायकों ने एक सुर में आपदा प्रबंधन मंत्री को घेरते हुए कहा कि उनके क्षेत्रों की समस्याओं और आपदा के बाद होने वाले कार्यों के लिए क्षेत्र के विधायकों को मंत्री नजर अंदाज कर रहे हैं। वहीं उन्होंने यशपाल आर्य पर विधायकों की उपेक्षा का आरोप भी लगाया। इस पर आपदा मंत्री यशपाल आर्य कई बार तिलमिला भी उठे। इतना ही नहीं सतपाल महाराज गुट के राजेन्द्र भण्डारी, अमृता रावत और गणेश गोदियाल तो सरकार पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए बैठक को बीच में छोड़कर चल दिए। कुल मिलाकर कांग्रेस विधानमण्डल दल व सहयोगी दलों की बैठक में विधायकों और मंत्रियों ने मुख्यमंत्री और आपदा मंत्री पर ही अपनी खींझ उतारी।

प्रदेश में आपदा के दो माह बाद भी 453 मार्ग खुल नहीं पाए

प्रदेश में आपदा के दो माह बाद भी 453 मार्ग खुल नहीं पाए

प्रभावित क्षेत्रों के लोगों को करना पड़ रहा दिक्कतों का सामना

राजेन्द्र जोशी
देहरादून । राज्य में आपदा के दो माह बीत जाने के बाद भी कई मार्ग यातायात के लिए अवरुद्ध पड़े हैं। मार्गों के अवरुद्ध पड़े होने के कारण आपदा प्रभावित क्षेत्रों के लोगों को अपने जरूरी कार्यों के लिए बाजार जाने के लिए कई किमी की पैदल दूरी तय करनी पड़ रही है। आपदा से क्षतिग्रस्त 2,283 मार्गों में से 1,830 मार्ग अस्थाई रूप से यातायात खुल पाए हैं, 453 मार्ग अभी खुल नहीं पाए हैं। आपदा परिचालन केन्द्र देहरादून से प्राप्त सूचना के अनुसार लोनिवि, प्रांतीय खण्ड, देहरादून लम्बीधार किमाडी मोटर मार्ग बन्द है। लोनिवि, निर्माण खण्ड, देहरादून कार्यालय वाली सडक बन्द है। लोनिवि ऋषिकेश से सम्बन्धित 3 सडकें बन्द हैं। सूर्यधार सनगाव मोटर मार्ग बन्द है। तंगोली बडेरना सम्पर्क मार्ग बन्द है। इठारना सम्पर्क मार्ग बन्द है। लोनिवि सहिया से सम्बन्धित 17 मार्ग बन्द है। लक्स्यार लुधेरा क्यारी कच्टा मोटर मार्ग बन्द है। पंजिटिलानी मंजरा सरऊ मोटर मार्ग बन्द है। समर जैन मोटर मार्ग बन्द है। कोरवा क्वारना मोटर मार्ग बन्द है। चकराता, मसूरी, त्यूनी, नई टिहरी, कीर्तीनगर मोटरमार्ग बन्द है। रानी गांव सम्पर्क मार्ग बन्द है। सकनी पंजिया मोटर मार्ग बन्द है।
लेल्टा पाटा मन्डोली मोटर मार्ग बन्द है। कोटी डिमउ लेल्टा मोटर मार्ग बन्द है। पंजिटिलाीनी चन्देऊ सुपेऊ केराऊ मोटर मार्ग बन्द है। हरिपुर इच्छाडी मोटर मार्ग बन्द है। बिजऊ क्वेटा खतार मोटर मार्ग बन्द है। कोटी डिमऊ डाण्डा मोटर मार्ग बन्द है। कालसी बैराटखाई मोटर मार्ग बन्द है। दौंदा सम्पर्क मार्ग बन्द है। गौराघटी मान्थात मोटर मार्ग बन्द सकनी ककाडी मोटर मार्ग बन्द है।
ऋषिकेश-केदारनाथ राजमार्ग कुण्ड तक तथा उखीमठ-गोपेश्वर मार्ग यातायात के लिए खुले हैं।
रुद्रप्रयाग जनपद में 19 मार्ग अवरूद्ध हैं, जिसके अंतर्गत मयाली-गुप्तकाशी मार्ग पांजणा में मलबा आने से अवरूद्व हैं। कर्णप्रयाग-रानीखेत-काठगोदाम, कर्णप्रयाग-पोखरी, गोपेश्वर-ऊखीमठ तथा सिमली-नारायणबगड़ मार्ग यातायात के लिए खुले हैं। ऋषिकेश-बद्रीनाथ राजमार्ग पातालगंगा एवं पागलनाला में, गोपेश्वर-पोखरी मार्ग हाफला में, नारायणबगड-थराली तथा नन्दप्रयाग-घाट, के साथ ही चमोली जनपद में 63 मार्ग मलबा आने से अवरूद्व हैं। बागेश्वर-अल्मोड़ा, कपकोट-बागेश्वर-शामा तथा कपकोट-पिण्डर मोटर मार्ग यातायात के लिए खुले हैं। चिन्यालीसौड़-सुवाखोली-मसूरी-दे
हरादून, उत्तरकाशी- धोहतरी, डामटा-देहरादून तथा धरासू-बड़कोट मार्ग यातायात के लिए खुले हैं। ऋषिकेश-गंगोत्री राजमार्ग नालूपानी एवं गंगोरी में तथा ऋषिकेश-यमुनोत्री राजमार्ग राणाचट्टी एवं सिलाई बैंड में मलवा आने से अवरूद्ध हैं। घाट-पिथौरागढ़-ओगला-जौलजीवी-बलुवाकोट-धारचूला राजमार्ग के साथ ही धारचूला-तवाघाट-पांगला राजमार्ग एलागाड़ तक, जौलजीवी-मदकोट मार्ग बंगापानी तक, मुनस्यारी-मदकोट, तेजम-सामा (कपकोट), पिथौरागढ़- झूलाघाट तथा बेरीनाग-राईआगर-सेराघाट मार्ग यातायात के लिए खुले हैं। थल-मुनस्यारी मोटर मार्ग हरड़िया तथा रातीगाड़ में तथा तवाघाट-सोबला मार्ग मलवा आने से अवरूद्ध हैं, जबकि कंजोती-नारायण आश्रम मार्ग कन्ज्योती में पुल टूटने के कारण अवरूद्व है। खैरना-अल्मोड़ा राजमार्ग, अल्मोड़ा-पिथौरागढ़, बागेश्वर- अल्मोड़ा तथा चौखुटिया-बछुवाबाण मार्ग यातायात के लिए खोल दिए गए हैं। जनपद में 9 मार्ग अवरूद्व हैं।
रामनगर-बुवाखाल राजमार्ग के साथ ही कालागड़- कोटद्वार, पौड़ी-श्रीनगर, पौड़ी-देवप्रयाग, पौड़ी- दुगड्डा-नजीबाबाद तथा पौड़ी-सतपुली मोटर मार्ग यातायात के लिए खोल दिए गए हैं। ऋषिकेश-टिहरी, चम्बा-ऋषिकेश, चम्बा-मसूरी, चम्बा-उत्तरकाशी, घनसाली-टिपरी-देवप्रयाग, घनसाली-टिपरी-नई टिहरी तथा छाम-कण्डीसौड़ मार्ग यातायात के लिए खोल दिए गए हैं।
भवाली-अल्मोड़ा राजमार्ग, हल्द्धानी-अल्मोड़ा राजमार्ग तथा भुजान-बेतालघाट-गर्जिया मार्ग खुल गए हैं।
जनपद में 5 ग्रामीण मोटर मार्ग अवरूद्व है। टिहरी जनपद में 5 ग्रामीण मोटर मार्ग अवरूद्व है।

मुफ्त सेवा के लिए नागरिक उड्डयन विभाग करेगा 168 करोड़ का भुगतान!

मुफ्त सेवा के लिए नागरिक उड्डयन विभाग करेगा 168 करोड़ का भुगतान!

पहले की थी मुफ्त सेवा की घोषणा अब दे रहे हैं करोड़ों में पैसा
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : उत्तराखण्ड में आए महाप्रलय के बाद आपदा राहत कार्यों में लगे निजि कंपनियों के हैलीकाप्टर, जिन्हें सरकार द्वारा त्रासदीकाल में यह कह कर अधिग्रहित किया गया था कि ये आपदा राहत कार्यों में मुफ्त में काम करेंगे, सरकार को केवल इनके ईंधन की व्यवस्था करनी है को प्रदेश सरकार 168 करोड़ रूपये भुगतान करने जा रही है, जिसके दस्तावेज लगभग बनकर प्रदेश के नागरिक उड्डयन विभाग में तैयार हो चुके हैं।
    गौरतलब हो कि यात्रा काल के दौरान प्रदेश सरकार द्वारा अगस्तमुनी से केदारनाथ, फाटा से केदारनाथ और गौचर से बद्रीनाथ-केदारनाथ सहित राजधानी देहरादून के सहस्त्रधारा हैलीपैड़ से चार धामों की यात्रा के लिए निजि कंपनियों के हैलीकाप्टरों को चलाने की दी जाती रही है। इन हैलीकाप्टरों के परिचालन के लिए प्रदेश सरकार डीजीसीए से अनुमति लेती है। 16-17 जून को आए महाप्रलय के बाद प्रदेश सरकार ने राज्य में हैलीकाप्टर सेवा दे रही इन कंपनियों के हैलीकाप्टरों को अधिग्रहित कर आपदा राहत कार्यों में लगाया था। इस दौरान प्रदेश सरकार द्वारा यह बयान भी दिया गया था कि इन हैलीकाप्टरों के ईंधन की व्यवस्था प्रदेश सरकार द्वारा की जा रही है, ताकि आपदा के बाद बचे यात्रियों को सुरिक्षत स्थानों तक पहुंचाया जा सके, वहीं सरकार द्वारा यह भी घोषणा की गई थी कि सरकार इन्हें कोई भुगतान नहीं करेगी साथ ही यह हैलीकाप्टर सेवा देने वाली कंपनियों आपदा प्रभावितों से भी कोई पैसा नहीं लेगी, लेकिन आपदाकाल में कई यात्रियों द्वारा हैलीकाप्टर संचालन कर रही इन कंपनियों पर यह आरोप भी लगाया गया कि उनके द्वारा उनसे दो लाख से लेकर 20 लाख रूपये तक वसूले गए हैं। जिसकी पुष्टि कई यात्रियों ने भी की थी। वहीं पुष्ट सूत्रों का कहना है कि प्रदेश का नागरिक उड्डयन विभाग अब इन हैलीकाप्टरों के एवज में 168 करोड़ रूपये का भुगतान करने जा रहा है। जिसकी फाईल प्रदेश के नागरिक उड्डयन विभाग में बनकर तैयार हो चुकी है। अब सबसे अहम सवाल यह है कि प्रदेश सरकार द्वारा आपदा के समय में इस तरह की घोषणा क्यों की गई और अब नागरिक उड्डयन विभाग इन हैलीकाप्टरों की सेवा के एवज में 168 करोड़ रूपया क्यों भुगतान करने जा रहा है। वहीं एक जानकारी के अनुसार प्रदेश के नागरिक उड्डयन विभाग ने आपदा राहत कार्य के 20 दिनों में 24 निजी कंपनी के हैलीकाप्टर राहत कार्यों में लगाए थ। पुष्ट जानकारी के अनुसार इन हैलीकाप्टरों ने प्रतिदिन चार से पांच चक्कर केदारनाथ, हर्षिल व गंगोत्री सहित गौचर व जोशीमठ के लगाए थे, लेकिन प्रदेश के उड््रडयन विभाग ने हैलीकाप्टर के चक्कर की इस संख्या को बढ़ाकर 17 से 19 भी प्रति हैलीकाप्टर प्रतिदिन कर दिया था, जिस पर महानिदेशक डीजीसीए ने आपत्ति भी दर्ज की थी। डीजीसीए का इस पर स्पष्ट मत था कि केदारघाटी में किसी भी तरह से तीन हैलीकाप्टर से ज्यादा एक समय में नहीं उड़ सकते। इस पर डीजीसीए ने दलील दी थी कि मंदाकिनी घाटी इतनी संकरी है कि वहां इतने अधिक हैलीकाप्टरों का एक साथ उड़ना नामुमकिन है। डीजीसीए के इस पत्र के बाद प्रदेश के नागरिक उड्डयन विभाग के हाथ-पांव फूल गए थे, लेकिन अब मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश सरकार इन हैलीकाप्टरों के ऐवज में 168 करोड़ रूपये के भुगतान की फाईल चला रहा है, जबकि विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि किसी भी भुगतान के लिए प्रदेश नागरिक उड्डयन विभाग के साथ निजी हैलीकाप्टर कंपनी का समझौता पत्र होना जरूरी है। सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि आपदाकाल के दौरान इन हैलीकाप्टर कंपनियों को भुगतान के लिए दो करोड़ रूपये की अग्रिम धनराशी की मांग की गई थी, लेकिन नागरिक उड्डयन विभाग के लिपिक द्वारा लिखित में किसी भी तरह का आदेश अथवा समझौता पत्र न होने की दशा में सरकार द्वारा चलाई गई उक्त फाईल को दो करोड़ रूपये भुगतान करने से स्पष्ट मना कर दिया, यहां पुष्ट सूत्रों का यह भी कहना है कि उड्डयन विभाग के बाबू द्वारा प्रतिकूल टिप्पणी के बाद भी मुख्यमंत्री सचिवालय द्वारा दो करोड़ रूपये भुगतान कर दिए गए। ऐसे में अब यह सवाल उठ रहा है कि आपदा की मार झेल रहे उत्तराखण्ड राज्य को देश भर से मिल रहे अपार समर्थन और पैसे के बाद क्या प्रदेश सरकार के मातहत अधिकारी इस तरह 168 करोड़ रूपये का चूना प्रदेश को लगाएंगे। वहीं इस संबंध में प्रदेश के अपर प्रमुख सचिव व नागरिक उड्डयन विभाग के प्रमुख सचिव राकेश शर्मा से बात करनी चाही तो उनका फोन बंद मिला।

आपदा प्रभावित गांवों की तरह खिसक रही है कांग्रेस की भी जमीन

आपदा प्रभावित गांवों की तरह खिसक रही है कांग्रेस की भी जमीन
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : उत्तराखण्ड में आए जलप्रलय ने कांग्रेस को भी शिकार बना दिया है। 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए पार्टी आलाकमान आपदा राहत और आपदा का विषय भुलाकर कुछ और नया नारा देकर जनता के बीच जाने को आतुर है, लेकिन जनता आपदा के दिए जख्मों से कराह रही है और सरकार के पास उन जख्मों पर लगाने को मरहम नहीं है, क्योंकि इन दो महीनों में प्रदेश सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे आपदा प्रभावित क्षेत्रों के लोगों के लोग अपने जख्मों को भुलाकर सरकार के नए राग को सुनने को तैयार हों। वहीं समूचे देश के उन लोगों के जख्म भी अभी हरें हैं, जिन्होंने इस महाप्रलय में अपनों को खो दिया है। यही कारण है कि लोकसभा चुनाव को सामने देख कांग्रेस आलाकमान को उत्तराखण्ड ही नहीं बल्कि समूचे देश में अपनी जमीन खिसकती नजर आ रही है, क्योंकि उत्तराखण्ड के पावन धामों में समूचे के देश के लोग किसी न किसी पीड़ा से प्रभावित हुए हैं। बदले परिदृश्य में प्रदेश सरकार पर भरोसा न कर अब सोनिया ने प्रदेश पर अपनी नजर लगा दी है। इसी कड़ी में प्रदेश की नब्ज टटोलने केंद्र के नेता सोनिया के इशारे पर प्रदेश की ओर लगातार रूख किए हुए हैं और प्रदेश की राजनैतिक और सामाजिक गतिविधियों की पल-पल की खबर वे दस जनपथ को दे रहे हैं।
हालांकि प्रदेश सरकार ने केंद्रीय नेताओं और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से अपनी उपलब्धियों की जमकर तारीफें की है, लेकिन सोनिया गांधी को प्रदेश सरकार के दावों पर कोई भी विश्वास नहीं है। हालांकि आपदा के बाद प्रदेश में जो विकास कार्य होने चाहिए थे वह नहीं हो पाए हैं, लेकिन आपदा प्रभावित लोगों को भी सरकार राहत नहीं दे पाई। ऐसे में प्रदेश के लोग काफी नाराज हैं और इसका असर आने वाले लोकसभा चुनाव में पड़ने वाला है। वर्तमान में कांग्रेस के उत्तराखण्ड से चार सांसद हैं, एक सीट मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के टिहरी लोकसभा सीट से इस्तीफे के बाद खाली हुई थी इस सीट पर उपचुनाव में भाजपा ने बाजी मार ली थी। कांग्रेस सरकार ने अपने डेढ़ साल में कोई भी नई योजना नहीं शुरू की है और विकास कार्य भी धरातल पर नहीं दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में जहां पहले लोग महंगाई से त्रस्त थे अब आपदा ने लोगों को खून के आंसू रूला दिया है। प्रदेश सरकार हर मोर्चे पर विफल साबित होती नजर आ रही है। कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौति अपनी राजनैतिक जमीन को बचाने के साथ ही राज्य की पांचों लोकसभा सीटों पर जीतने की है, उधर मुख्यमंत्री अब आपदा और उससे जुड़े मामलों को जल्द निपटाना चाहते हैं, ताकि प्रदेश में होने वाले लोकसभा चुनाव में संगठन के साथ ही सरकार एक साथ मिलकर काम करें। चुनाव नजदीक आते देख सरकार ने आपदा में मारे गए लोागें की सूची अन्य प्रदेशों से मंगवाई है ताकि मृतक आश्रितों को मुआवजा देकर इस विषय को हमेशा के लिए समाप्त किया जा सके। इसकों लेकर उनकी दिल्ली में कई केंद्रीय नेताओं के साथ बातचीत हो रही है। मुख्यमंत्री आपदा प्रभावित परिवारों को मुआवजा राशि देकर और केदारनाथ धाम में 11 सितंबर से पूजा पुनः कराने के बाद इस विषय को भुलाना चाहते हैं। वैसे भी प्रदेश सरकार आपदा विषय को जल्द ही बंद करना चाहती है। इसको लेकर मुख्यमंत्री केंद्रीय मंत्रियों समेट पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी चर्चाए कर चुके हैं, यही कारण है कि सरकार केदारनाथ में पूजा करने के बाद आपदा शब्द पर नहीं बल्कि लोकसभा चुनाव की तैयारियांे में काम करना चाहती है। अभी तक प्रदेश सरकार के खाते में कोई भी उपलब्धियां नहीं है, ऐसे में पार्टी और सरकार की चिंताए भी बढ़ती जा रही है।
प्रदेश में आई आपदा के बाद सरकार की गाड़ी भी पटरी से उतर गई, दो माह पहले आई आपदा में हजारों लोग मारे गए, आपदा आने के दो माह बाद भी सरकार ने मलबे में फंसे शवों को निकालने का काम पूरा तक नहीं किया है। सरकार आपदा में मारे गए लोगों की संख्या तक बताने से परहेज कर रही है। आपदा में मारे गए लोगों की संख्या यदि बता दी जाएगी तो सरकार की पूरे देश में किरकिरी होगी और आश्रितों को मुआवजा भी देना पड़ेगा, मरने वाले लोगों के परिजनों को भले ही अपनों की तलाश में रात को नींद न आए लेकिन सरकार को इससे क्या लेना-देना है। वहीं प्रदेश सरकार द्वारा दिए जा रहे मुआवजे की धनराशि बढ़ाने की मांग भी है, राजस्थान सरकार ने उत्तराखण्ड में आई आपदा में मारे गए राजस्थान के लोगों के आश्रितों को मुआजवा राशि पांच लाख दिए जाने के बाद भाजपा ने प्रदेश सरकार पर निशाना साधा है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत का कहना है कि जब दूसरे राज्य मृतकों के आश्रितों को पांच लाख रूपये मुआजवा दे रहे हैं तो उत्तराखण्ड सरकार को भी यह धनराशि बढ़ानी चाहिए। उनका कहना है कि आपदा में मारे गए लोगों को अनय पद्रेश की सरकारें पांच लाख रूपये मुआवजा दे रही है और प्रदेश सरकार उससे आधा मुआवजा दे रही है। जिससे मृतक आश्रितों को कुछ भी नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने सरकार से धनराशि को बढ़ाने की मांग की। वहीं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद खण्डूडी भी पहले ही कह चुके हैं कि आपदा के दो माह बाद भी प्रदेश में कहीं भी राहत का काम नजर नहीं आ रहा है और लोग भूखे मरने को मजबूर हैं।

नंदा राजजात एक बार फिर हुई स्थगित

नंदा राजजात एक बार फिर हुई स्थगित

कर्णप्रयाग ।  उत्तराखंड के चमोली जिले में प्रत्येक 12 वर्ष में एक बार होने वाली धार्मिक नंदादेवी राजजात यात्रा इस वर्ष प्राकृतिक आपदा के कारण स्थगित कर दी गयी है.
  कर्णप्रयाग में नंदादेवी राजजात यात्रा की परंपरागत आयोजन समिति के अध्यक्ष राकेश कुंवर ने बुधवार को इस आशय की विधिवत घोषणा करते हुए कहा कि इसी माह की 29 तारीख से नौटी गांव से प्रस्तावित यात्रा के आयोजन की नयी तिथियां 10 दिन के भीतर घोषित कर दी जायेंगी.
गढ़वाल और कुमांऊ के पांच सौ से अधिक गांवों की देव डोलियों को अलग-अलग जगह पर सम्मिलित होकर हिमालय की बर्फीली चोटियों के समीप स्थित होमकुंड तक की यात्रा करनी थी.
इस वर्ष नंदा राजजात यात्रा 13 वर्ष बाद हो रही थी लेकिन भारी बारिश और भूस्खलन के कारण आयी आपदा की मार यात्रा मार्गों पर भी पड़ी और आयोजन से जुड़ी समिति ने यात्रा से जुड़े गांवों और कस्बों की स्थिति और यात्रा के भागीदारों की सलाह पर यात्रा फिलहाल टाल दी.
समिति के सचिव और राज्य सरकार की नंदादेवी प्राधिकरण के सचिव भुवन नौटियाल ने बताया कि यात्रा को स्थगित करने से पहले कुंवर के नेतृत्व में इलाकों का स्थलीय जायजा लिया.
नौटियाल ने बताया कि यात्रा टाले जाने के बावजूद इसमें शामिल होने वाले देवी-देवताओं की परंपरागत पूजा 26 अगस्त से यथावत होगी.

दो महीने बाद भी प्रदेश की हालत जस के तस

दो महीने बाद भी प्रदेश की हालत जस के तस


आपदा राहत कार्यों में केवल सरकार ने चमकाई अपनी छवि

राजेन्द्र जोशी
देहरादून  । 16-17 जून को उत्तराखण्ड में जो तबाही मची, उसे भूल पाना मुश्किल है। प्रकृति ने जो जख्म देश के 18 राज्यों के तीर्थयात्रियों सहित उत्तराखण्ड को दिए, उनका भर पाना भी मुश्किल है। आपदा के महाप्रलय को दो महीने हो चुके हैं। इन दो महीनों में प्रदेश सरकार आपदा राहत कार्यों के अलावा पुर्नवास सहित उन तमाम मोर्चों पर फेल ही नजर आई है। इन दो महीनों में प्रभावित क्षेत्रों में कोई कार्य हुआ हो अथवा नहीं, लेकिन प्रदेश सरकार अपनी छवि चमकाने के अलावा और कुछ नहीं कर पाई है। सरकार के आपदा प्रबंधन और राहत कार्यों की पोल खुद सरकार के विधायक और विधानसभा अध्यक्ष समय-समय पर खोलते रहे हैं। हद तो तब हो गई, जब आपदा और राहत कार्यों की बदतर हालत और अकुशल आपदा राहत संचालन को देखते हुए विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने मुख्यमंत्री को तीन पन्नों के सुझाव तक दे डाले, इसके बाद भी सरकार ने इसे राजनैतिक मुद्दा बनाने का प्रयास किया। जबकि विधानसभा अध्यक्ष द्वारा दिए गए सुझाव व्यवहारिक और सरकार की छवि सुधारने के लिए महत्वपूर्ण थे।
    गौरतलब हो कि 16-17 जून की तबाही ने उत्तराखण्ड की आर्थिकी सहित सामाजिक ताने-बाने तक को छिन्न-भिन्न कर दिया। राज्य के उत्तरकाशी, बागेश्वर, चमोली और पिथौरागढ़ जनपद इस भीषण तबाही से कांप उठे। लगभग 200 गांव पूरी तरह बर्बाद हो गए, वहीं सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 6000 लोग इस त्रासदी की भेंट चढ़ गए और राज्य सरकार के अनुसार इस जलप्रलय से प्रदेश को लगभग 15 हजार करोड़़ से अधिक का आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा है। प्रदेश की लाईफ लाइन समझे जाने वाले चार-धामों को जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग बुरी तरह ध्वस्त हो गए, जो दो महीने बाद आज तक भी बंद पड़े हैं। रूद्रप्रयाग जनपद की बात की जाए तो, यहां के 126 गांव तक आज भी पहुंच मार्ग नहीं बन पाए हैं। लोग खाद्यान्न और जरूरी सामान के लिए कई किलोमीटर पैदल सफर तय करने को मजबूर हैं। इन दो महीनों में प्रदेश सरकार द्वारा किए जा रहे आपदा और राहत कार्यों ने सरकार की कार्यकुशलता की पोल खोलकर रख दी है। पर्वतीय इलाकों में चिकित्सा व शिक्षा की व्यवस्था तहस-नहस हो गई है। आपदा से पहले अतिसंवेदनशील पुर्नवास की बाट जोह रहे 233 गांव की संख्या बढ़कर लगभग 433 हो गई है। आपदा प्रभावित क्षेत्रों के लोग आज भी तंबूओं में जिंदगी जीने को मजबूर हैं। प्रदेश सरकार दो महीने बीत जाने के बाद भी आज तक आपदा में मृत हुए तीर्थयात्रियों व स्थानीय लोगों को मृत्यु प्रमाण पत्र की व्यवस्था नहीं कर पाई है। आपदा के बाद जान बचाकर बच गए लोग कहां गए इसका रिकार्ड अभी भी सरकार के पास नहीं है।
    आपदा प्रभावित क्षेत्रों में आज भी कई घर धीरे-धीरे जर-जर होकर गिर रहे हैं। राहत एवं बचाव कार्य में लगे गैर सरकारी संगठन आज भी आपदा प्रभावित क्षेत्रों में जमे हुए हैं। इन संगठनों के भरोसे ही ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को चिकित्सा सहायता व खाद्यान्न मिल रहा है। कुल मिलाकर दो माह पूरे होने के बाद भी प्रदेश सरकार जमीनी हकीकत से काफी दूर नजर आती है, जबकि सरकार ने अपनी छवि सुधारने में करोड़ों रूपये आपदा राहत कार्यों के बजाए विज्ञापनों में खर्च कर दिए हैं।


आपदा राहत कार्यों में केवल सरकार ने चमकाई अपनी छवि

राजेन्द्र जोशी
देहरादून  । 16-17 जून को उत्तराखण्ड में जो तबाही मची, उसे भूल पाना मुश्किल है। प्रकृति ने जो जख्म देश के 18 राज्यों के तीर्थयात्रियों सहित उत्तराखण्ड को दिए, उनका भर पाना भी मुश्किल है। आपदा के महाप्रलय को दो महीने हो चुके हैं। इन दो महीनों में प्रदेश सरकार आपदा राहत कार्यों के अलावा पुर्नवास सहित उन तमाम मोर्चों पर फेल ही नजर आई है। इन दो महीनों में प्रभावित क्षेत्रों में कोई कार्य हुआ हो अथवा नहीं, लेकिन प्रदेश सरकार अपनी छवि चमकाने के अलावा और कुछ नहीं कर पाई है। सरकार के आपदा प्रबंधन और राहत कार्यों की पोल खुद सरकार के विधायक और विधानसभा अध्यक्ष समय-समय पर खोलते रहे हैं। हद तो तब हो गई, जब आपदा और राहत कार्यों की बदतर हालत और अकुशल आपदा राहत संचालन को देखते हुए विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने मुख्यमंत्री को तीन पन्नों के सुझाव तक दे डाले, इसके बाद भी सरकार ने इसे राजनैतिक मुद्दा बनाने का प्रयास किया। जबकि विधानसभा अध्यक्ष द्वारा दिए गए सुझाव व्यवहारिक और सरकार की छवि सुधारने के लिए महत्वपूर्ण थे।
    गौरतलब हो कि 16-17 जून की तबाही ने उत्तराखण्ड की आर्थिकी सहित सामाजिक ताने-बाने तक को छिन्न-भिन्न कर दिया। राज्य के उत्तरकाशी, बागेश्वर, चमोली और पिथौरागढ़ जनपद इस भीषण तबाही से कांप उठे। लगभग 200 गांव पूरी तरह बर्बाद हो गए, वहीं सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 6000 लोग इस त्रासदी की भेंट चढ़ गए और राज्य सरकार के अनुसार इस जलप्रलय से प्रदेश को लगभग 15 हजार करोड़़ से अधिक का आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा है। प्रदेश की लाईफ लाइन समझे जाने वाले चार-धामों को जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग बुरी तरह ध्वस्त हो गए, जो दो महीने बाद आज तक भी बंद पड़े हैं। रूद्रप्रयाग जनपद की बात की जाए तो, यहां के 126 गांव तक आज भी पहुंच मार्ग नहीं बन पाए हैं। लोग खाद्यान्न और जरूरी सामान के लिए कई किलोमीटर पैदल सफर तय करने को मजबूर हैं। इन दो महीनों में प्रदेश सरकार द्वारा किए जा रहे आपदा और राहत कार्यों ने सरकार की कार्यकुशलता की पोल खोलकर रख दी है। पर्वतीय इलाकों में चिकित्सा व शिक्षा की व्यवस्था तहस-नहस हो गई है। आपदा से पहले अतिसंवेदनशील पुर्नवास की बाट जोह रहे 233 गांव की संख्या बढ़कर लगभग 433 हो गई है। आपदा प्रभावित क्षेत्रों के लोग आज भी तंबूओं में जिंदगी जीने को मजबूर हैं। प्रदेश सरकार दो महीने बीत जाने के बाद भी आज तक आपदा में मृत हुए तीर्थयात्रियों व स्थानीय लोगों को मृत्यु प्रमाण पत्र की व्यवस्था नहीं कर पाई है। आपदा के बाद जान बचाकर बच गए लोग कहां गए इसका रिकार्ड अभी भी सरकार के पास नहीं है।
    आपदा प्रभावित क्षेत्रों में आज भी कई घर धीरे-धीरे जर-जर होकर गिर रहे हैं। राहत एवं बचाव कार्य में लगे गैर सरकारी संगठन आज भी आपदा प्रभावित क्षेत्रों में जमे हुए हैं। इन संगठनों के भरोसे ही ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को चिकित्सा सहायता व खाद्यान्न मिल रहा है। कुल मिलाकर दो माह पूरे होने के बाद भी प्रदेश सरकार जमीनी हकीकत से काफी दूर नजर आती है, जबकि सरकार ने अपनी छवि सुधारने में करोड़ों रूपये आपदा राहत कार्यों के बजाए विज्ञापनों में खर्च कर दिए हैं।

तंम्बूओं में तंग जिंदगी जीने को मजबूर हैं आपदा प्रभावित

तंम्बूओं में तंग जिंदगी जीने को मजबूर हैं आपदा प्रभावित
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : उत्तराखण्ड त्रासदी के दो महीने होने को हैं, आपदा के बाद आपदा प्रभावित पिछले डेढ़ महीने से तम्बुओं में दिन गुजार रहे हैं। सबसे ज्यादा प्रभावित केदारघाटी के वो गांव हैं, जहंा प्रकृति ने अपना सबसे ज्यादा कहर बरपाया है। इन गांवों के लोग तम्बुओं में तंग जिंदगी जीने को मजबूर हैं। आपदा प्रभावित क्षेत्रों के लोगों की शिकायत है कि सरकार उन्हें तंबु देकर भूल गई है। आज भी प्रभावित क्षेत्रों के अधिकांश ग्रामीण अपने गांव से इतर तम्बूओं में जीवन काटने को मजबूर है, प्रदेश सरकार उनके स्थाई घरौंदों को लेकर जरा भी गंभीर नहीं दिखाई दे रही है। उनकी जिंदगी हर रात मौत के खौफ में कटती है और हर दिन कुछ नए आश्वासन के आस में। सरकार द्वारा दिए गए टैंट न उनकी सर्दी ही बचा पा रहे हैं और न ही जंगली जानवरों के खौफ को। टिहरी के हडियाना मल्ला गांव के लोगों के सर की छत आपदा से छीन ली है। खस्ता हाल घरों में रहना खतरे से खाली नहीं है, इस गांव के 26 परिवार पिछले डेढ़ महीने से टैंट के नीचे जिंदगी बीता रहे हैं, न इनके पास खाने का कोई सामान है और न ही पीने का पानी। सबसे खास बात तो यह है कि जिला प्रशासन ने आज तक इनकी खबर नहीं ली। जहां तक सरकारी दस्तावेजों की बात की जाए, तो सरकारी दस्तावेजों में इस गांव का सिर्फ एक ही परिवार दर्ज, जिसका आशियाना छीना गया है, लेकिन गांव के 26 परिवार आज भी अपना नाम सरकार के उन दस्तावेजों में दर्ज कराने के लिए भटक रहे हैं। कमोबेश यही हालत मंदाकिनी घाटी सहित भ्यूंडार घाटी, गंगा घाटी और देवाल क्षेत्र की भी है राहत के नाम पर दावें तो बहुत बड़े-बड़े हुए, लेकिन आपदा प्रभावितों तक एक दाना अन्न का भी नहीं पहुंच पाया, हां जहंा तक सड़क है, उसके आस-पास के गांवों तक तो राहत पहुंचने की बात ग्रामीण कबूलतें है, लेकिन दूरस्थ इलाकों में आज भी अन्न के एक-एक दाने के लिए लोग मोहताज हैं। जहां तक भूस्खलन और भूधंसाव के खतरे से जूझ रहे पूर्व के 233 गांवों के अलावा आपदा के बाद रहने योग्य न रहने वाले गांवों की संख्या बढ़कर लगभग 475 के करीब हो गई को लेकर राज्य सरकार की अभी तक कोई नीति साफ नजर नहीं आई है। यही कारण है कि प्रभावित क्षेत्रों के गांवों के ग्रामीणा में सरकार के प्रति धीरे-धीरे आक्रोश बढ़ता जा रहा है। प्रभावित क्षेत्र के लोग अब यह सोचने पर मजबूर हैं कि आखिर वे तम्बूओं में तंग जिंदगी कैसे जियेंगे।

उधर उत्तराखण्ड जलप्रलय से कराह रहा था, इधर ब्यूरोक्रेट बेच रहे थे जमीन


ब्रेकिंग न्यूज---एक्सक्लूसिव

उधर उत्तराखण्ड जलप्रलय से कराह रहा था, इधर ब्यूरोक्रेट बेच रहे थे जमीन


सिडकुल ने बेची करोड़ों की जमीन कौड़ियों में

राजेन्द्र जोशी
देहरादून : जब समूचा उत्तराखण्ड जलप्रलय की महापीड़ा से कराह रहा था, ऐसे में उत्तराखण्ड के ब्यूरोक्रेट्स सिडकुल की सम्पत्ति बेचने में मशगूल थे। उन्हें न उत्तराखण्डवासियों से संवेदना थी और न ही उत्तराखण्ड से कोई सरोकार। ताजा मामला देहरादून के सहस्त्रधारा रोड़ स्थित आईटी पार्क क्षेत्र में सरकार द्वारा अधिग्रहित भूमि को बिल्ड़रों को बेचे जाने से जुड़ा है। बिल्ड़र ने बकायदा सहस्त्रधारा रोड़ स्थित आईटी पार्क की जमीन पर बहुमंजिले भवन का नक्शा बनाकर उसमें बनाए जाने वाले फ्लैटस् के विज्ञापन भी ‘‘द कैपिटल‘‘ नाम से बेचने भी शुरू कर दिए हैं, जबकि यह जमीन पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) पार्क के लिए अधिग्रहित की थी। उनके शासनकाल में कई नामी गिरामी कंपनियों ने इस पार्क में अपने संस्थान खोलने में इच्छा भी जाहिर की थी, लेकिन तिवारी के जाने के बाद भाजपा और कांग्रेस शासन के दौरान यह पार्क क्षेत्र कोई प्रगति नहीं कर पाया और न ही राज्य के नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स ने सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़े राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों को इस ओर आकर्षित ही किया। उल्टा राज्य के बेरोजगारों के लिए रोजगार दिलाने के उद्देश्य से पूर्व मुख्यमंत्री तिवारी के सपनों को सफेदपोश नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स के गठजोड़ ने धूल-धूसरित कर भूमाफियाओं को बेच दिया।
प्रदेश में तिवारी शासनकाल में राज्य के बेरोजगारों को रोजगार से जोड़ने और राज्य की आर्थिक तरक्की के लिए स्टेट इन्फ्रास्ट्रक्चर एण्ड इण्डस्ट्रियल डेवलपमेंट कारपोरेशन ऑफ उत्तराखण्ड लिमिटेड (सिडकुल) का गठन किया। राज्य में हरिद्वार, रूद्रपुर, रूड़की-भगवानपुर, सितारगंज, सेलाकुई तथा देहरादून में सरकार द्वारा बड़ी मात्रा में भूमि खरीद कर राज्य में औद्योगिक विकास का सपना बुना गया। तिवारी के मुख्यमंत्रित्व काल में सिडकुल द्वारा निर्धारित औद्योगिक क्षेत्र में तिवारी के व्यक्तिगत प्रयासों और उनके औद्योगिक घरानों से संबंधों को देखते हुए कई उद्योग उत्तराखण्ड की ओर आकर्षित भी हुए, इससे राज्य के कई बेरोजगारों को रोजगार तो मिला वहीं देश के बेरोजगारों को भी इन औद्योगिक क्षेत्रों में रोजगार की नई राह दिखाई दी। पूर्व मुख्यमंत्री तिवारी द्वारा प्रदेश के इन औद्योगिक क्षेत्रों में वर्तमान सरकार द्वारा उद्योगों के लिए निर्धारित भूमि सबसे पहले तो रूद्रपुर में बिल्ड़रांे को कौड़ियों के दाम बेची गई। इसके बाद सिडकुल हरिद्वार-रोशनाबाद स्थित करोड़ों की जमीन को कौड़ियों के दाम एक बिल्ड़र को बेच दी गई।
ताजा मामला राज्य की राजधानी देहरादून से जुड़ा है। प्रदेश के रूद्रप्रयाग, चमोली और पिथौरागढ़ जनपद के जब अधिकांश क्षेत्र जलप्रलय की मार झेल रहे थे, ठीक इसी समय राज्य के ब्यूरोक्रेट्स और नेताओं के गठजोड़ ने आईटी सहस्त्रधारा रोड़ की बेशकीमती जमीन को कौड़ियों के भाव दो बिल्डरों को बेच डाली। प्रदेश के अधिकारी राज्य की पीड़ा को लेकर कितने संवेदनशील हैं, यह इस डील ने साफ कर दिया है। जब पूरे देश का ध्यान केदारनाथ आपदा पर टिका था और भारतीय सेना आपदा प्रभावित क्षेत्रों से जीवन और मौत के बीच झूल रहे प्रभावित लोगों को निकालने में व्यस्त थी, ठीक ऐसे ही समय पर राज्य के ब्यूरोक्रेट्स सहस्त्रधारा रोड़ स्थित करोड़ों की इस जमीन को कौड़ियों के भाव बेचने में व्यस्त थे। इस बात की तस्दीक बिल्ड़र और सिडकुल के बीच हुआ एमओयू साफ करता है। 26 जून 2013 को राज्य सरकार की ओर से सिडकुल के दो अधिकारियों और बिल्डर की ओर से उसके दो प्रतिनिधियों ने इस समझौते पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। इस पत्र को देखने पर यह भी साफ हो जाता है कि राज्य सरकार के अधिकारियों को सिडकुल की इस बेशकीमती जमीन को बेचने की कितनी जल्दी थी, क्योंकि सिडकुल द्वारा जारी पत्र में समझौते की तारीख 26 जून 2013 अंकित की गई है, जबकि बिल्ड़र द्वारा इस समझौते पत्र में 2 जुलाई 2013 की तारीख अपने हस्ताक्षरों के साथ अंकित की गई है। पुष्ट सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ठीक इसी तरह एक और समझौता पत्र प्रदेश के सिडकुल के अधिकारियों द्वारा उस बिल्डर से किया गया है और जिसे कुछ माह पूर्व रूद्रपुर स्थित एक पंच सितारा होटल के पास की मण्डी समिति की वह जमीन दे दी गई है, जो अत्याधुनिक किसान विपणन केंद्र व मॉर्डन बिजनेस सेंटर के लिए आरक्षित थी।
नेताओं और अफसरशाहों का गठजोड़ प्रदेश में नया उद्योग तो आकर्षित नहीं कर पाया, लेकिन उसने नए उद्योगों के लिए आरक्षित जमीन को जरूर बेच डाला है। इतना ही नहीं सूत्रों का तो यहां तक दावा है कि सहस्त्रधारा रोड़ स्थिति आईटी पार्क के लिए अधिग्रहित इस भूमि पर कई अन्य औद्योगिक घरानों को भी चारा डाला गया, लेकिन अपनी व्यवसायिक साख को देखते हुए वे कंपनियां वापस चली गई, क्योंकि उन्हें यह पता था कि जिस भूमि को सिडकुल के अधिकारियों द्वारा उन्हें औने-पौने दामों में दिया जा रहा है, उस पर असल में हक किसी और का है, लिहाजा उन कंपनियों ने अपने प्रस्ताव सरकार से वापस ले लिए। प्राप्त जानकारी के अनुसार सिडकुल ने जीटीएम नाम की कंपनी को 17659.41 वर्ग मीटर भूमि आवंटित की है, जिस पर वह ‘‘द कैपिटल‘‘ के नाम से आवासीय फ्लैटस् बना रही है। जिसमें फ्लैट की कीमत 21 लाख से लेकर 75 लाख रूपये तक रखी गई है।

रविवार, 18 अगस्त 2013

आरक्षित वन क्षेत्र में अवैध खेती को बढ़ावा दे रहे आला वन अधिकारी

आरक्षित वन क्षेत्र में अवैध खेती को बढ़ावा दे रहे आला वन अधिकारी
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : वन विभाग के आला अधिकारियों, नेताओं और भूमाफियाओं के गठजोड़ के चलते उत्तराखण्ड के तराई क्षेत्र की आरक्षित वन भूमि पर खेती कर आरक्षित वन भूमि को धीरे-धीरे कब्जाने का खेल बीते 10-15 सालों से चल रहा है। वन विभाग के आलाधिकारी भी आंख बद कर आरक्षित वन क्षेत्र की भूमि को माफियाओं को कब्जा करने दे रहे हैं, जबकि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों में स्पष्ट उल्लेख है कि आजादी के बाद से जो वन भूमि आरक्षित वन क्षेत्र घोषित है, उसे किसी भी तरह परिवर्तित नहीं किया जा सकता है अथवा उसमें किसी भी तरह की मानव गतिविधियां प्रतिबंधित हैं, लेकिन वन विभाग के आलाधिकारी तराई क्षेत्र के इन आरक्षित वन क्षेत्रों में गैर वानिकी कार्य धड़ल्ले से करने दे रहे हैं। इस संबंध में उत्तराखण्ड शासन के प्रमुख सचिव वन ने 21 जून 2013 को प्रमुख वन संरक्षक उत्तराखण्ड को इस आशय से पत्र लिखा कि तराई क्षेत्र के वन प्रभागों में उच्चतम न्यायालय के आदेशों का खुले आम उल्लंघन कर गैर वानिकी कार्य किया जा रहा है। इस संबंध में उन्होंने प्रमुख वन संरक्षक को अतिक्रमण की सूची और डिजिटल मानचित्र भी उपलब्ध कराने को कहा है। यह मामला प्रदेश सरकार के संज्ञान में तब आया जब नैनीताल के एक पर्यावरणविद् अजय सिंह रावत ने सदस्य सचिव सेंट्रल इम्पावर कमेटी नई दिल्ली को पत्र लिखा। इस पत्र के संदर्भ में सेंट्रल इम्पावर कमेटी के सदस्य सचिव एम.के. जिवराज ने उत्तराखण्ड के मुख्य सचिव को 8 मई 2013 को पत्र लिखा कि प्रदेश में आरक्षित वन क्षेत्र में गैर वानिकी कार्य किया जा रहा है, इस पत्र के संदर्भ में प्रमुख सचिव ने प्रदेश के मुख्य वन संरक्षक को पत्र लिखा था।
    मामले में पिपुल फॉर एनिमल की सदस्य सचिव गौरी मौलिखी ने बताया कि आरक्षित वन क्षेत्र में इस तरह की गतिविधियां वन विभाग के आलाधिकारियों के संज्ञान में नहीं है, ऐसा नहीं हो सकता। उनका कहना है कि वन क्षेत्र में खेती से वन्य जंतुओं के जीवन के साथ खिलवाड़ है। उन्होंने यह बताया कि वन्य जीव स्वछंद प्राणी हैं, लिहाजा वन क्षेत्र में गैर वानिकी कार्यों के कारण वे उस ओर आकर्षित होते हैं, जिनका फायदा पशु तस्कर उठाते हैं। उन्हांेने यह भी बताया कि जानवरों को मारने के लिए खेतों में कीटनाशक का प्रयोग और फंदो का प्रयोग किया जाता है, जिससे आरक्षित वन क्षेत्र में हो रही खेतों के आस-पास अकसर जानवरों की मौत होती रही है। उन्होंने कहा यह गंभीर विषय है, लिहाजा आरक्षित वन क्षेत्र और खत्तों में खेती पर वन विभाग को प्रतिबंध लगाना चाहिए।

छिन सकती है 15 अगस्त के बाद मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी !

एक्सक्लूसिव ........ब्रेकिंग न्यूज़

प्रदेश में होगा बड़ा राजनीतिक फेरबदल

छिन सकती है 15 अगस्त के बाद मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी !

राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 7 अगस्त। भारी आपदा से जूझ रहे उत्तराखण्ड में एक और आपदा दस्तक देने लगी है। इस आपदा की गूंज भले ही बाहर न सुनाई दे रही हो, लेकिन कांग्रेस के अंतहपुर में जरूर सुनाई दे रही है। दो महीने बाद भी आपदा राहत कार्य ठीक नहीं होने से दस जनपथ मौजूदा सीएम से काफी नाराज हैं। कांग्रेस के युवराज दो महीने से उत्तराखण्ड के कार्याें पर पैनी नजर रखे हुए हैं। राहुल के सूत्र कांग्रेस सरकार की पल-पल की जानकारी उन तक पहुंचा रहे हैं। पुष्ट सूत्र बताते हैं कि हाईकमान इस पशोपेश में है कि पहले प्रदेश अध्यक्ष बदलें या फिर सीएम। कमोबेश दोनों ही कुर्सी के विकल्प तलाश लिए गए हैं। अगर कोई बहुत बड़ी घटना सामने नहीं आई तो 15 अगस्त के बाद उत्तराखण्ड की सरकार और संगठन में नए चेहरे दिखाई देंगे। गौरतलब हो कि उत्तराखण्ड सरकार पर 16-17 जून मंदाकिनी और अलकनंदा घाटी में आई महाप्रलय के बाद चार दिन तक हाथ पर हाथ धरे रहने और आपदा में फंसे लोगों को उनके भाग्य के भरोसे छोड़ने का आरोप लगता रहा है। इतना ही नहीं आपदा के दौरान मुख्यमंत्री के दिल्ली दौरे को लेकर भी प्रदेश में खासी चर्चाएं रही कि आखिर जब यहां लोग जीवन और मौत के बीच झूल रहे थे, तो मुख्यमंत्री दिल्ली में क्या कर रहे थे, जबकि केंद्र सरकार ने उत्तराखण्ड सरकार को राहत एवं बचाव कार्याें के लिए धन की कमी सहित किसी भी तरह की अन्य कमी में साथ देने का वादा किया था। वहीं राज्य को दोबारा खड़ा करने के लिए पुर्नविकास एवं पुर्ननिर्माण को लेकर प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री के बीच हुई नूराकुश्ती को भी केंद्र ने गंभीरता से लिया है। यहां यह भी काबिले गौर है कि राहत एवं बचाव कार्याें में प्रदेश सरकार द्वारा की जा रही हीलाहवाली को देखते हुए देश के इतिहास में आजादी के बाद यह पहला मौका है जब केंद्र सरकार ने प्रदेश सरकार के उपर कैबिनेट मंत्रियों की समिति और कैबिनेट सचिवों की एक कमेटी बनाकर राज्य में पुर्नवास एवं पुर्ननिर्माण के कार्यों के देख-रेख का जिम्मा सौंप दिया। इतना ही नहीं आपदा के दौरान राहत कार्यों की मॉनिटरिंग के लिए केंद्र ने उत्तराखण्ड के अधिकारियों और नेताओं पर भरोसा न कर कैबिनेट सचिव ए.के. दुग्गल को राज्य की पूरी जिम्मेदारी दी। वहीं आपदा के दौरान चल रहे राहत कार्यों का जायजा लेने कांग्रेस के युवराज भी बिना कुछ किसी को बताए आपदा प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर लौट गए। उन्होंने भी प्रदेश सरकार द्वारा आपदा राहत कार्यों में की जा रही हीलाहवाली पर नाराजगी जाहिर की, जबकि प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी प्रभावित क्षेत्रों का दौरा कर राज्य के बदतर हो रहे हालतों का जायजा लिया। सरकार पर आरोप है कि राज्य आपदा के बाद के हालतों से भी प्रदेश सरकार ने वे जरूरी कदम नहीं उठाए, जो उसे उठाने चाहिए थे। प्रदेश सरकार पर आपदा के बाद 50 दिनों तक भी प्रदेश के मुख्य मार्ग न खोल सकने सहित आपदा प्रभावित क्षेत्रों तक खाद्यान्न चिकित्सा और स्वास्थ्य सुविधाएं न पहुंचाए जाने का आरोप लग रहा है। इन सब आरोपों को देखते हुए दस जनपथ उत्तराखण्ड में कांग्रेस सरकार से कतई खुश नहीं है और उसने प्रदेश अध्यक्ष सहित मुख्यमंत्री को बदलने की कवायद शुरू कर दी है। पुष्ट सूत्रों के अनुसार भ्रष्टाचार और अन्य मामलों में लिप्त नेताओं की इस सूची से बाहर कर दिया गया है, एक जानकारी के अनुसार प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए जनजातीय क्षेत्र से एक विधायक को जो कि प्रदेश कैबिनेट में मंत्री भी है को जिम्मेदारी दी जा सकती है, जबकि मुख्यमंत्री पद की सूची में केंद्रीय मंत्री हरीश रावत के साथ, विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल और तेज तर्रार महिला नेता डा. इंदिरा हृदयेश पाठक का नाम सबसे आगे है। यह दस जनपथ की इच्छा पर निर्भर है कि वह किसे प्रदेश अध्यक्ष और किसे प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपता है। वहीं जानकार सूत्रों का यह भी कहना है कि विजय बहुगुणा की ताजपोशी को लेकर दस जनपथ में तरह-तरह की चर्चाएं चल रही हैं, सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि न्यायविद् और स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा के पुत्र होने के नाते विरासत में मिली राजनैतिक पृष्ठ भूमि के बावजूद वे दस जनपथ की आकांक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाए हैं, यही कारण हैं कि कांग्रेस आलाकमान को मुख्यमंत्री बदलने पर विचार करना पड़ रहा है। राजनैतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि कांग्रेस आसानी से मुख्यमंत्री नहीं बदलती है, लेकिन उत्तराखण्ड के हालात जिस तरह से हो चुके हैं और दिन -ब- दिन जिस तरह से कांग्रेस की लोकप्रियता में कमी आ रही है उससे दस जनपथ यह मानने लगा है कि अब पानी सर से उपर बढ़ चुका है लिहाजा कांग्रेस की छवि और 2014 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए नेतृत्व परिवर्तन आवश्यक हो गया है।

11 सितम्बर से पुनः शुरू होगी केदारनाथ धाम में पूजा

11 सितम्बर से पुनः शुरू होगी केदारनाथ धाम में पूजा
देहरादून : केदारनाथ धाम में 11 सितम्बर को सर्वार्थ सिद्धि अमृत योग के दिन पूजा पुनः प्रारम्भ करवाने पर सैद्धांतिक सहमति बनी है। शंकराचार्य, रावल, स्थानीय तीर्थ पुरोहित व संत समाज ने इस पर अपनी सहमति व्यक्त की है। शुक्रवार को सचिवालय में विश्व की आस्था के केंद्र केदारनाथ में पूजा दुबारा शुरू करवाने पर मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में विस्तार से विचार विमर्श हुआ।
     मुख्यमंत्री ने कहा कि मंदिर समिति द्वारा केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह, सभामण्डप में मलबे की सफाई की जा चुकी है। इसके दरवाजे भी लगाए जा चुके हैं। यहां तक की नंदी की मूर्ति के पास चबूतरा बनाया जा चुका है। आस्था के केंद्र केदारनाथ में पूजा प्रारम्भ करवाने के साथ ही इस कार्य में लगे लोगों की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जानी है। उन्होंने केदारनाथ में लोहे का पुल, रेलिंग सहित लगवाने के लिए लोक निर्माण विभाग के मुख्य अभियंता को निर्देशित किया। साथ ही 100 लोगों के लिए प्री-फेब्रिकेटैड आवास की व्यवस्था करने के लिए भी निर्देशित किया गया। उन्होंने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से रूद्रप्रयाग के जिलाधिकारी दिलीप जावलकर को केदारनाथ में दो माह का राशन व अन्य आवश्यक वस्तुएं भिजवाने को कहा ताकि वहां कार्यरत मंदिर समिति के पदाधिकारी व पुरोहित, पुलिस व प्रशासन के कार्मिकों को दिक्कत ना हो।
      मुख्यमंत्री ने बैठक में उपस्थित केदारनाथ के रावल भीमाशंकरलिंग, शंकराचार्य के प्रतिनिधि सुबोधानंद सहित स्थानीय तीर्थ पुरोहितों व मंदिर समिति के पदाधिकारियों से पूजा प्रारम्भ करवाने के बारे में उनकी राय जानी। सभी ने एक स्वर में कहा कि 11 सितम्बर को सर्वार्थ सिद्धि अमृत योग बन रहा है। इस दिन पूजा प्रारम्भ करने में किसी को कोई आपŸिा नहीं है। इस पर मुख्यमंत्री ने भी राज्य सरकार की आरे से सैद्धांतिक सहमति दी। उन्होंने अगस्त माह के अंतिम सप्ताह में एक बैठक और बुलाए जाने के निर्देश दिए जिसमें आवश्यक तैयारियों की समीक्षा की जाएगी। उन्होंने डीएम रूद्रप्रयाग को केदारनाथ के लिए वैकल्पिक पैदल मार्ग चिन्हित करने को भी कहा। यूसेक के निदेशक डा. एमएम किमोठी ने केदारनाथ में वैकल्पिक मार्गों पर थ्रीडी प्रस्तुतिकरण दिया।
      इस अवसर पर केबिनेट मंत्री यशपाल आर्य, डा.हरक सिंह रावत, श्रीमति अमृता रावत, दिनेश अग्रवाल, मंदिर समिति के अध्यक्ष गणेश गोदियाल, रावल भीमाशंकरलिंग, शंकराचार्य के प्रतिनिधि सुबोधानंद, स्थानीय तीर्थ पुरोहित, सहित वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

सरकार का श्रद्धालुओं की मौत के साथ घिनौना खिलवाड़

सरकार का श्रद्धालुओं की मौत के साथ घिनौना खिलवाड़
श्रद्धालुओं के शवों को कूड़ें की तरह जलाया गया: पंडित
देहरादून : उत्तराखण्ड में आई दैवीय आपदा में हजारों श्रद्धालुओं के मारे जाने से देश के कई राज्यों में मातम छाया हुआ है क्योंकि जिस राज्य के श्रद्धालु इस आपदा में मारे गये उनके परिजनों में उत्तराखण्ड सरकार के प्रति एक बड़ी नाराजगी है और वह अपनों को केदारधाम में खोजते-खोजते आंखों में आंसू लेकर लौट गये।
केदारधम व रामबाड़ा में इधर-उधर बिखरे पड़ें शवों का अन्तिम संस्कार राज्य सरकार ने वहीं कराने का दावा तो किया है लेकिन इन शवों का संस्कार विधि के अनुरूप न किए जाने को लेकर सवाल उठने शुरू हो गये हैं। धर्मनगरी के पुरोहित सभा के अध्यक्ष ने सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा है कि जिन शवों का अन्तिम संस्कार किया जा रहा है उसकी न कपाल क्रिया की जा रही है और न ही उनके शवों की अस्थियों को गंगा में प्रवाहित किया जा रहा है जिससे आने वाले समय में इसके दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं। इसी बात से आहत होकर अखिलभारतीय युवा तीर्थ पुरोहित सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री को भावनात्मक पत्र लिखा है। उत्तराखण्ड में आई दैवीय आपदा के बाद केदारधाम व रामबाड़ा में हजारों श्रद्धालुओं की मौत हो गई। हालांकि सरकार
ने मौत का आंकड़ा सिर्फ एक हजार तक बताया। केदारधाम व रामबाड़ा के मलबे में हजारों श्रद्धालुओं के मारे जाने की आशंका से सरकार भी विचलित हो गई। सरकार ने केदारधाम व रामबाड़ा में मलबों को हटाने के लिए तत्काल बड़ी-बड़ी मशीने वहां तैनात करने का दावा किया था लेकिन अभी तक इन मलबों को
हटाने के लिए सरकार ने कोई पहल नहीं की। जिसको लेकर सरकार की कार्यशैली पर पूरे देश के अन्दर सवाल उठ रहे हैं। देश के कई राज्यों के श्रद्धालु इस आपदा में हमेशा के लिए मौत की नींद सो गये, जिसको लेकर उनके अपनों की आंखों में रात-दिन आंसूओं की गंगा बह रही है। केदारधाम व रामबाड़ा में
इधर-उधर बिखरे पड़ें कई शवों का अन्तिम संस्कार कराने के लिए सरकार ने दावे किए लेकिन इन संस्कारों के समय मीडिया को दूर रखना कहीं न कहीं कई सवाल खड़े कर गया। केदारधाम व रामबाड़ा में श्रद्धालुओं के संस्कार का मजाक उड़ाए जाने को लेकर हरिद्वार के अखिल भारतीय युवा तीर्थ पुरोहित महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उज्वल पंडित ने प्रदेश के मुख्यमंत्री  विजय बहुगुणा को एक पत्र  लिखा है जिसमें उन्होंने केदारधाम व रामबाड़ा में श्रद्धालुओं के शवों के अन्तिम संस्कार पर सवाल उठाये हैं। उन्होंने पत्र में लिखा है कि केदारधाम में श्रद्धालुओं के शवों का अन्तिम संस्कार मकानों की खिड़कियों व दरवाजों की लकड़ियों से किया जा रहा है तथा शवों को अधजली अवस्था में ही छोड़ा जा रहा है इतना ही नहीं उन्होंने पत्र में लिखा है कि सनातन संस्कार प्रक्रिया के तहत मृतकों की कपाल क्रिया भी नहीं की गई और न ही इन शवों की अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करने का आज तक कोई काम हुआ है जिसके चलते उनकी अस्थियां वहां जा रहे लोगों के पैरों में आ रही हैं। उन्होंने पत्र में लिखा है कि सरकार इन सभी अस्थियों को हरिद्वार तक पहंुचाए जिसके बाद तीर्थ पुरोहित सभा उन अस्थियों को सनातन संस्कार विधि से गंगा में प्रवाहित करंेगे। क्योंकि ऐसा न होना इन श्रद्धालुओं की मौत के साथ घिनौना खिलवाड़ है और भविष्य में इसके दुःखद परिणाम भी सामने आ सकते हैं और वहां ऐसी घटनाओं की पुनवृर्ति भी होती रहेगी। अखिलभारतीय युवा पुरोहित महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने सीधा आरोप लगाया कि केदारधाम में श्रद्धालुओं के शवों को कूड़ें की तरह जलाया गया है जिसके चलते आने वाले समय में इसके घातक परिणाम सामने आ सकते हैं।

कैकेयी बनते यशपाल !







कैकेयी बनते  यशपाल !



राजेन्द्र जोशी
देहरादून : सतयुग के राजा दशरथ की तीन रानियों में से कैकेयी का प्रसंग राम को वनवास और भरत को राजगद्दी सभी को याद है। कैकेयी के राजा को मनाने की तर्ज पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और बहुगुणा कैबिनेट में सिंचाई एवं आपदा मंत्री यशपाल आर्य भी लगभग वैसा ही व्यवहार कर रहे हैं, जैसा कैकेयी ने किया था। प्रदेशवासी उनके कोप भवन में जाने का राज ढूंढने पर लगे हैं कि आखिर वे क्या कारण थे, जिनकी वजह से यशपाल आर्य को बीते सप्ताह चार दिन तक कोप भवन में जाना पड़ा। 
    यशपाल आर्य और कोप भवन का करीबी रिश्ता है, इससे पहले भी वे कई बार कोप भवन में जा चुके हैं और कोप भवन से बाहर तब ही निकले हैं, जब उनकी मन की मुराद मुख्यमंत्री द्वारा पूरी की गई। सबसे पहले वे बहुगुणा मंत्रिमण्डल में विभागों के बटवारे को लेकर कोपभवन में गए थे, वहीं दूसरी बार वे नैनीताल के डीआईजी संजय गुंज्याल को हटाने को लेकर कोप भवन में गए। वर्तमान में वे आपदा राहत कार्यों से जुड़े पुर्नवास और पुर्नगठन प्राधिकरण आपदा प्रबंधन विभाग से इत्तर किए जाने के विरोध में कोप भवन में जा बैठे थे। कोप भवन में जाने का सिलसिला यूं ही बरकरार नहीं रहा। राजनैतिक विश्लेषक बताते हैं कि कोप भवन में जाने के बाद उन्हें बहुत कुछ मिला है। मसलन अपने मन मुताबिक विभाग, डीआईजी संजय गुंज्याल को हटाने के लिए दो पुलिस महानिरीक्षक रेंज को ही बहुगुणा सरकार को समाप्त करना पड़ा, वहीं अब बीते सप्ताह चार दिन कोप भवन में रहने के बाद आखिरकार मुख्यमंत्री को पुर्नगठन एवं पुर्नविकास प्राधिकरण से रोल बैक करना पड़ा और आपदा का समूचा कार्य राज्य आपदा प्राधिकरण (एसडीएमए) को दिए जाने के बाद ही वे कोप भवन से उठे। 
    बार-बार कोप भवन में जाना और मांगे मनवाने के बाद वापस लौट आना कितना राज्य हित में रहा है, इस पर राजनैतिक विश्लेषकों की अपनी-अपनी राय है। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि उधमसिंह नगर और नैनीताल जनपदों में खनिज कार्यों में व्यवधान के चलते डीआईजी संजय गुंज्याल को मंत्री के दबाव के बाद हटाना पड़ा था। वहीं अब आपदा कार्यों में केंद्र सरकार की झोली से बरस रही धन की बरसात को देखते हुए आपदा कार्यों को किसी अन्य प्राधिकरण के हवाले न करने की मांग उठाई गई है ऐसा चर्चा में है। चर्चाओं में तो यहां तक है कि हरिद्वार, उधमसिंह नगर और नैनीताल जनपद के खनन माफियाओं से नजदीकी रिश्तों के चलते और खनन कार्य में अधिकारियों द्वारा टांग अड़ाए जाने के चलते इस तरह के निर्णय उन्हें करने पड़े।

‘‘रोल बैक‘‘ करती बहुगुणा सरकार!

‘‘रोल बैक‘‘ करती बहुगुणा सरकार!
जितने कदम चले आगे उतना ही किया ‘‘रोल बैक‘‘
राजेन्द्र जोशी
देहरादून :  अपने ही निर्णयों से ‘‘रोल बैक‘‘ करना बहुगुणा सरकार की आदत में शुमार है। मुख्यमंत्री बहुगुणा द्वारा अब तक लगभग एक दर्जन से ज्यादा मामलों पर ‘‘रोल बैक‘‘ किया गया है। यह ‘‘रोल बैक‘‘ राजनैतिक कारणों से किया गया अथवा जानकारी के अभाव में, लेकिन सरकार की इस ‘‘रोल बैक‘‘ की आदत से यह साफ हो गया है कि प्रदेश सरकार पहले तो घोषणा कर देती है और बाद में उस से पीछे हट जाती है।
    प्रदेश में 17 महीने पुरानी बहुगुणा सरकार ने अभी तक कभी पूर्ववर्ती सरकारों के निर्णय, तो कभी अपने ही निर्णयों पर ‘‘रोल बैक‘‘ किया है। सरकार
द्वारा लगातार किए जा रहे ‘‘रोल बैक‘‘ से सरकार की इच्छा शक्ति पर सवालिया निशान स्वतः ही लग जाते हैं। विजय बहुगुणा द्वारा मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के तुरंत बाद सबसे पहले उनके द्वारा भाजपा शासनकाल के दौरान बनाए गए भू-अध्यादेश को समाप्त कर राज्य में भूमाफियाओं के लिए दरवाजे खोल दिए, वहीं प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश में लोकायुक्त गठन पर अभी तक किसी भी तरह की दिलचस्पी न दिखाया जाना और खण्डूडी सरकार के दौरान स्थानांतरण एक्ट को पलटने को पिछली सरकारों के निर्णय से ‘‘रोल बैक‘‘ करना ही कहा जाएगा। वहीं प्रदेश सरकार द्वारा प्रदेश की गन्ना चीनी मिलों को पीपीपी मोड़ में देने के बाद ‘‘रोल बैक‘‘ करना, केदारनाथ में आई आपदा के दौरान देश के सामने यह कहना कि 15 जुलाई तक सबको मुआवजा दे दिया जाएगा इस निर्णय पर भी प्रदेश सरकार ने ‘‘रोल बैक‘‘ किया। इतना ही नहीं पहले प्रदेश सरकार ने आपदा के बाद यह कहा था कि एक महीने बाद केदारनाथ, रामबाड़ा, सौनप्रयाग आदि क्षेत्रों से लापता लोगों को मृत मान लिया जाएगा, लेकिन राज्य सरकार अब अपनी इस घोषणा से भी ‘‘रोल बैक‘‘ कर गई है। वहीं सरकार द्वारा कर्मचारियों की पदोन्नति में आरक्षण के बाद एक्स कैडट व्यवस्था को खत्म किया जाना भी प्रदेश सरकार का ‘‘रोल बैक‘‘ ही रहा। वहीं मुख्यमंत्री द्वारा दिल्ली में मासूम के साथ बलात्कार के बाद राज्य में फास्ट ट्रैक कोर्ट की घोषणा करना और फिर उस घोषणा से ‘‘रोल बैक‘‘ करना, वहीं केंद्र द्वारा घरेलू उपयोग के लिए प्रतिवर्ष छहः गैस सिलेंडरों को रियायती दामों पर देने की घोषणा के बाद के बाद मुख्यमंत्री द्वारा तीन अतिरिक्त गैस सिलेंडर दिए जाने की घोषणा से ‘‘रोल बैक‘‘ करना सहित प्रदेश में एफडीआई लागू करने की घोषणा करने के बाद यह कहकर ‘‘रोल बैक‘‘ करना कि राज्य में उस स्तर के कोई शहर नहीं है, जहां एफडीआई लागू किया जा सके। वहीं भाटी आयोग सहित कई अन्य मामलों सहित अब ताजे पुर्नविकास और पुर्ननिर्माण के लिए बनाए जाने वाले प्राधिकरण के मामले पर भी राज्य सरकार ने ‘‘रोल बैक‘‘ किया है।
    कुल मिलाकर इन 17 महीनों में कांग्रेस की सरकार ने जितने कदम आगे बढ़ाए हैं, उतने ही कदम ‘‘रोल बैक‘‘ भी किए हैं। राजनैतिक विश्लेषकों का
मानना है कि प्रदेश में काबिज सरकार कोई भी घोषणा बिना सोचे-समझे कर देती है, यही कारण है कि उसे अपने हर निर्णय के बाद ‘‘रोल बैक‘‘ करना पड़ा
है।

गुरुवार, 8 अगस्त 2013

नेताओं के बाद सामने आया अधिकारियों का संवेदनहीन चेहरा

नेताओं के बाद सामने आया अधिकारियों का संवेदनहीन चेहरा

जहां इतने मर गए, एक और मर जाए तो क्या फर्क पड़ेगा: एसडीएम
राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 2 अगस्त। उत्तराखण्ड में आई आपदा के बाद नेताओं का संवेदनहीन चेहरा सामने तो आया ही था, अब अफसरशाही का भी संवेदनहीन चेहरा सामने आने लगा है। गुप्तकाशी के एक स्थानीय व्यक्ति के दो साल के बच्चे को जब इलाज के लिए कहीं ले जाने की मिन्नतें स्थानीय व्यक्ति एसडीएम गुप्तकाशी से करता रहा, तो उसने उस व्यक्ति को बेरूखी से मना ही नहीं कर दिया, बल्कि यहां तक कह दिया कि जब हादसे में इतने सारे लोग मरे हैं, ये तेरा बच्चा भी मर जाएगा तो क्या हो जाएगा। यह उत्तराखण्ड सरकार की अफसरशाही का एक वो घिनौना चेहरा है, जो आपदा में फंसे स्थानीय लोगों के सामने आया है, क्योंकि गुप्तकाशी, फाटा, सौनप्रयाग और गौरीकुण्ड में प्राथमिक चिकित्सा के अलावा गंभीर रोगों से निजात पाने की कोई व्यवस्था नहीं है और न ही यातायात हेतु सड़क मार्ग। प्रभावित क्षेत्र के ग्रामीण आखिर जाएं तो जाएं कहां, उनके पास सरकार के संवेदनहीन अधिकारियों के सामने मिन्नत करने के सिवा आखिर बचता भी क्या है। इसी तरह की घटना धारचूला क्षेत्र में एक बच्ची के साथ भी हुई, जिसको हायर सेंटर तक इलाज के लिए ले जाने को लेकर उसके परिजन और स्थानीय लोग अधिकारियों से मिन्नतें करते रहे, लेकिन उनका दिल नहीं पसीजा, आखिरकार मीड़िया में चर्चा होने के तीन दिन बाद उस बच्ची को हल्द्वानी बेस चिकित्सालय में भर्ती कराया गया, जहां स्थिति नाजुक होने पर उसे दिल्ली रैफर किया गया, हालांकि बच्ची की जान तो नहीं बच पाई, लेकिन बच्ची की मौत ने उत्तराखण्ड सरकार की अफसरशाही के उस घिनौने चेहरें को सार्वजनिक कर दिया, जिसमें संवेदन और भावनाओं की कोई कद्र नहीं है।
    ताजा प्रकरण गुप्तकाशी के पास स्थानीय ग्रामीण जब एसडीएम हरक सिंह रावत के सामने अपने बच्चे हायर सेंटर को रैफर करने को लेकर मिन्नतें करता रहा, तो एसडीएम ने उसे धमकाया ही नहीं बल्कि उसे बंद करने तक की धमकी दे दी और यहां तक कह दिया कि जब केदारनाथ हादसे में इतने लोग मारे जा चुके हैं, अगर तेरा एक बच्चा मर जाएगा तो क्या फर्क पड़ जाएगा। मामले में भाजपा नेता प्रकाश पंत का कहना है कि उत्तराखण्ड सरकार पूरी तरह संवेदनहीन हो चुकी है, उन्होंने कहा कि एक अधिकारी का इस तरह का सार्वजनिक स्थान पर कहना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने प्रदेश सरकार के मंत्रियों और नेताओं पर हैलीकाप्टरों के दुरूपयोग का आरोप भी लगाया। उन्होंने कहा कि जीवन और मौत के बीच झूल रहे लोगों के लिए हैलीकाप्टर उपलब्ध नहीं है और मंत्रियों व नेताओं के लिए हैलीकाप्टरों में घूमने की छूट मिली हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि केंद्र सरकार ने अभी तक घटना की गंभीरता को देखते हुए इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित नहीं किया है, जबकि इतनी गंभीर घटना राष्ट्रीय आपदा की श्रेणी में आती है। उन्होंने इस बात पर भी शक जाहिर किया कि आपदा के बाद राहत के नाम पर कांग्रेसी नेताओं में जो बंदरबांट होगी उसको रोकने के उपाय जनता को ही करने होंगे।

काले को सफेद करने में माहिर नौकरशाहों को एक साथ कई पद!

काले को सफेद करने में माहिर नौकरशाहों को एक साथ कई पद!
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : प्रदेश सरकार जिस तरह से भ्रष्ट नौकरशाहों की टीम को पूरे प्रदेश की महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों से नवाज रही है और महत्वपूर्ण महकमा उनके सुपुर्द कर रही है, सरकार की इस कार्यप्रणाली से तो यही लगता है कि सरकार कुछ काला-सफेद करने की फिराक में है। ऐसे अधिकारियों के ताबड़तोड़ स्थानांतरण तो कम से कम यही प्रदर्शित करते हैं, क्योंकि इन अधिकारियों का इतिहास काला-सफेद करने का ही रहा है।
    आपदा के बाद से लेकर आज तक प्रदेश सरकार ने आपदा प्रभावित क्षेत्रों में जिस तरह से अधिकारियों के तबादले और उन्हें प्रोन्नति के नाम पर वहां भेजा गया और अधिकारी जिस तरह से वहां कि जिम्मेदारी संभालने से बचते रहे, उससे तो यह साफ जाहिर है कि आपदा प्रबंधन के नाम पर केदारघाटी में जो कुछ हुआ वह संदेहस्पद ही रहा है। बीते 40 दिनों में प्राकृतिक आपदा के बाद प्रदेश सरकार आपदा राहत क्षेत्र में अफसरों को स्थायित्व देने में नाकाम रही है। इसका खामियाजा आपदा प्रभावित क्षेत्र की जनता को भुगतना पड़ रहा है। जिन अधिकारियों को प्रदेश सरकार राहत पुर्नवास और पुर्ननिर्माण के मोर्चे पर भेज रही है, वे पीठ दिखाकर वापस लौट रहे हैं। कुल मिलाकर आपदा प्रभावित रूद्रप्रयाग, चमोली, पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी जिलों में प्रदेश सरकार वरिष्ठ नौकरशाहों की तैनाती नहीं कर पाई है। हालात संभालने के लिए प्रदेश सरकार ने अब कनिष्ठ नौकरशाहों पर दांव खेलना शुरू कर दिया है, इसके पीछे यह बात उजागर है कि निष्ठावान नौकरशाह सरकार द्वारा कराए जा रहे अनैतिक कार्याें से बचने के लिए पीठ दिखा रहे हैं।
    वहीं दूसरी ओर सरकार प्रदेश ब्यूरोक्रेसी में भ्रष्टाचार के पर्याय बन चुके अधिकारियों को ऐसी जगह तैनाती पर दांव खेल रही है, जो उसके काले को सफेद कर सके, क्योंकि आपदा के चार दिन खामोश रहने के बाद प्रदेश सरकार ने जिस तरह आपदा प्रबंधन का नाटक किया, वह किसी से छिपा नहीं है। आपदा राहत कार्याें के नाम पर निजी कंपनियों के हैलीकाप्टरों के संचालन पर भी सरकार पर अंगुली उठ रही है, इस मामले में डीजीसीए के मात्र एक पत्र से प्रदेश नागरिक उड्डयन विभाग में खलबली मची है। ठीक इसी तरह आपदा राहत सामग्री के वितरण में भी प्रदेश सरकार की निष्ठा कठघरे में खड़ी है। यात्रा पर आए तीर्थयात्रियों की संख्या को लेकर भी प्रदेश सरकार ने जिस तरह से आंकड़ों का खेल खेला वह भी संदेह के घेरे में है। इतना ही नहीं महाप्रलय के बाद प्रदेश सरकार द्वारा मीडिया मैनेजमेंट के नाम पर जिस तरह से करोड़ों रूपयों की बंदरबांट की गई, वह भी प्रदेश की जनता को काफी अखरी है।
    उल्लेखनीय है कि वर्तमान में भ्रष्टतम सूची में शामिल नौकरशाहों हो, जिस तरह एक साथ कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों से नवाजा गया है, उससे नौकरशाहों के एक ईमानदार और निष्ठावान तबके ने खुशबुसाहट करनी शुरू कर दी है। हालिया उदाहरण प्रदेश की राजधानी में तैनात मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष का है, उन्हें प्रदेश सरकार ने इसके साथ ही जिलाधिकारी देहरादून और महानिदेशक सूचना की भी जिम्मेदारी दी है, इस अधिकारी पर आरोप है कि हरिद्वार में तैनाती के दौरान इस अधिकारी ने 24 करोड़ रूपये के कार्य महज चार घण्टे के भीतर अपने किसी चहेते को दे दिए थे, जिस पर तत्कालीन मंत्री और इनके बीच 36 का आंकड़ा रहा। वहीं चर्चाओं के अनुसार कहने को तो प्रदेश के मुख्य सचिव सुभाष कुमार हैं, लेकिन पर्दे के पीछे से कोई और ही मुख्य सचिव की जिम्मेदारी निभाते हुए सरकार चला रहा है, जिसका प्रदेश सरकार ने अभी कुछ दिन पहले डीपीसी कर मुख्य सचिव के समान पद पर प्रोन्नति के रास्ते खोले हैं, जबकि प्रदेश में चर्चा है कि यह अधिकारी कितना भ्रष्ट है।
    वहीं ब्यूरोक्रेसी में इस बात की भी चर्चा है कि जब आयुक्त गढ़वाल की जिम्मेदारी पूर्व से चली आ रही है, तो ऐसे में उसी क्षेत्र में एक और आईएएस की तैनात आयुक्त के रूप में किस वजह से की गई। इतना ही नहीं आपदा प्रभावित क्षेत्रों में चार-चार आईएएस अधिकारियों की तैनाती भी संदेह के घेरे में है, क्योंकि प्रदेश सरकार ने जितने आईएएस अधिकारियों की तैनात प्रभावित क्षेत्रों में कि उनमें से अधिकांश प्रभावित क्षेत्रों को छोड़ भाग खडे हुए हैं, जो इस बात की पुष्टि करता है कि इन पर सरकार का काले को सफेद करने का अंदरूनी दबाव भी था, जिस कारण उन्होंने हाथ खड़े कर दिए। कुल मिलाकर प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी में इस बात की खासी चर्चा है कि प्रदेश सरकार ईमानदार और जानकार नौकरशाहों की जगह भ्रष्ट और काले को सफेद करने में माहिर अधिकारियों की तैनाती कर आपदा राशि पर नजर गढ़ाये हुए है।

चौधरी वीरेन्द्रसिंह बताये उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री कितने सौ करोड में बने ?

चौधरी वीरेन्द्रसिंह बताये उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री कितने सौ करोड में बने ?

मुख्यमंत्री, केन्द्रीय मंत्री, प्रदेश अध्यक्ष कितने सौ करोड में बनते हैं चौधरी साहब ?
देव सिंह रावत
नयी दिल्ली : कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व केन्द्रीय महामंत्री चौधरी  वीरेन्द्रसिंह ने रविवार को  रहस्योद्घाटन करके अपनी पार्टी कांग्रेस को ही कटघरे में खडा कर दिया है कि कि राज्यसभा सांसद बनने के लिए 100 करोड़ रूपये तक लोग खर्च करते हैं। उनके अनुसार आज के दिन जनसेवा व प्रतिभा के दम पर नहीं अपितु थेली के बल पर ही यहां राज्यसभा सांसद बनते है। उन्होंने दावा किया कि वे ऐसे एक ही नहीं अपितु 20 सांसदों को जानता हूँ जिन्होंने धन बल के बल पर राज्यसभा की सीट अर्जित की।
आज पूरा उत्तराखण्ड ही नहीं पूरा देश यह भी सर छोटू राम के वंशज चौधरी वीरेन्द्रसिंह से इस रहस्य को भी जानना चाहते हैं कि उनके प्रभारी रहते हुए उत्तराखण्ड के विधायकों व जनता दोनों की भावनाओं को रौंदते हुए क्या मुख्यमंत्री भी इसी प्रकार की थेली सौंपने से बनाये गये? अगर बनाये गये तो कितने सो करोड़ में। जब एक सांसद बनने के लिए सो करोड़ तक का रेट चोधरी वीरेन्द्रसिंह खुद बता रहे हैं तो एक प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने की कीमत को सैकडों या हजारों करोड़ की होगी? उनको न केवल उत्तराखण्ड की अपितु हरियाणा व महाराष्ट्र सहित कई प्रदेशों के मुख्यमंत्री बनने की कीमत की भी जानकारी अवश्य होगी। होगी क्यों नहीं वे आखिर कांग्रेस में कई मुख्यमंत्री बनाने में निर्णायक रणनीतिकारों में से थे। इसके साथ चैधरी साहब यह भी देश की जनता को बताने की कृपा करेंगे कि केन्द्रीय मंत्री व प्रदेश सरकार के मंत्री या प्रदेश अध्यक्ष बनने में कितने की थेली चढायी जाती है। सवाल यही है कि जब राज्य सभा सांसद बनने के लिए कीमत चूकानी पडती है तो ये राजनीति के व्यापारी क्यों मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष, केन्द्रीय मंत्री जेसे महत्वपूर्ण पद मुफत मेें किसी को यो ही खेरात में क्यों देगे।
चैधरी वीरेन्द्रसिंह के आरोपों में उसी प्रकार की सच्चाई हो सकती है जिस प्रकार की सच्चाई कांग्रेसी दिग्गज नेत्री मार्गेट अल्वा ने कांग्रेस में टिकट बेचने का आरोप लगाने में थी। उसके बाद टिकटों की खरीद परोख्त पर शायद ही कोई कमी आयी होगी परन्तु अल्वा को कांग्रेस के दिग्गज नेत्री के पद से हटा दिया गया। उसके बाद उनको मनोगुहार लगाने के बाद दया करके कांग्रेस नेतृत्व ने राज्यपाल जेसे पद पर नवाजा। परन्तु इस प्रकरण के कई साल बाद भी मार्गेट अल्वा अभी तक कांग्रेस की मुख्यधारा में वापसी नहीं कर पायी।
यही हाल अब लगता है कि हरियाणा के दिग्गज नेता व मुख्यमंत्री के एक प्रमुख दावेदार रहे चोधरी वीरेन्द्र सिंह का है। उनकी बात को लोग केवल उनको केन्द्रीय मंत्रीमण्डल में व कांग्रेस की कार्यकारणी में सम्मलित न किये जाने की खीज के रूप में ही देख रहे हैं। हालांकि वे हरियाणा के मुख्यमंत्री बनने की लालशा आज भी अपने दिलो दिमाग से चाह करके भी दूर नहीं कर पा रहे है। इसी को हाशिल करने की लालशा को देखते हुए हरियाणा के वर्तमान मुख्यमंत्री हुड्डा ने उनको हरियाणा से दूर रखा। अब जब कांग्रेसी नेतृत्व ने उनको बेताज कर दिया, उत्तराखण्ड, हिमाचल व दिल्ली का प्रभार से भी मुक्त करने के साथ साथ केन्द्रीय महासचिव पद से भी हटा दिया । एक आशा जगी थी उनके दिल में कि उनको केन्द्रीय मंत्रीमण्डल में केन्द्रीय मंत्री बनाया जाने का वह भी नहीं बनाया गया। अब वे भी बेरोजगार हो गये हैं। इसी गुस्से में या कुछ नया खेल खेलने की रणनीति के तहत उन्होंने राज्यसभा सांसद बनने के रेट का रहस्योदघाटन किया। हो सकता हो कि उनको इस बात का भान हो गया हो कि हुड्डा के आगे कांग्रेस में उनकी दाल अब नहीं गलने वाली। आगामी लोकसभा चुनाव से पहले हो सकता है वे कुछ राजनैतिक गुल खिलाने या राजीव गांधी के करीबी मित्र होने का कुछ लाभ उठाने के लिए यह दाव चल रहे हो। हालांकि उनके कार्यकाल में कितने कीर्तिमान बने इसकी लम्बी सूचि उनकी कृपा पात्रों ने कांग्रेस नेतृत्व को सोंप दिया था, इन्हीं महान कार्यो के देख कर शायद कांग्रेस नेतृत्व ने उनको इस उम्र में ज्यादा काम न दे कर विश्राम करने का निर्णय लिया। अब देखना है राजनीति जगत में उठापटक की राजनीति के लिए विख्यात रहे हरियाणा में चोधरी वीरेन्द्रसिंह आगामी लोकसभा चुनाव में किस नाव पर सवार हो कर चुनावी भंवर को पार लगने का दाव खेलते है। परन्तु उनके बयानों से साफ हो गया कि वे समझ चूके हैं ंकि आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की सवारी करना बुद्धिमता का काम नहीं है।

इंतजार, इंतजार और इंतजार

 इंतजार, इंतजार और इंतजार

राजेन्द्र जोशी
देहरादून। आपदा प्रभावित क्षेत्रों के लोगों की किसमत में शायद इंतजार ही लिखा है, महाप्रलय के बाद बिछड़े अपनों का इंतजार कर रहे हैं, तो अपने बिछड़ों का। कोई मृतकों की सूची का इंतजार कर रहा है, तो कोई हादसे में घायल लोगों के ठीक होने का इंतजार। महाप्रलय के बाद इनका इंतजार कब खत्म होगा, उसका भी वे इंतजार ही कर रहे हैं।
    गौरतलब हो कि आपदा प्रभावित क्षेत्रों के लोग आपदा के बाद राहत का इंतजार करते-करते थक चुके हैं। उनके पास दो जून की रोटी का भी जुगाड़ नहीं रह गया है। जिन खेतों से उनकी दिनचर्या चलती थी, वे पानी के साथ बह गए हैं। बस उन्हें इंतजार है तो सरकारी इमदाद का। तीर्थयात्री जो अपने को खो चुके हैं, उनको इंतजार है सरकार के द्वारा मृतक सूची में अपनों का नाम शामिल होने का। आपदा प्रभावित क्षेत्रों के लोग, आपदा में घायल हुए लोग अपने ठीक होने का इंतजार कर रहे हैं, तो कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने अपनों को खो दिया है, वे अपनों के घर लौटने का इंतजार कर रहे हैं। देश के श्रद्धालु केदारनाथ में पूजा का इंतजार कर रहे हैं, तो संत केदारनाथपुरी के सफाई का इंतजार। रावल भीमाशंकर लिंग मंदिर के शुद्धिकरण का इंतजार कर रहे हैं, तो मंदिर के पुजारी भगवान केदार के एक बार फिर पुर्नस्थापन का इंतजार कर रहे हैं। कुल मिलाकर केदारपुरी को अपने श्रद्धालुओं का इंतजार है और श्रद्धालुओं को केदारपुरी तक पहुंचने का। महाप्रलय के बाद जिन गांवों का मुख्य मार्ग से संपर्क कट गया, उनको आपदा राहत का इंतजार तो है, साथ ही उन सड़कों और पगडंडियों के ठीक होने का भी इंतजार है। प्रदेश सरकार वर्षा के रूकने का इंतजार कर रही है, तो आपदा राहत कार्याें में लगी टीम केदारनाथ तक पहुंचने के लिए हैलीकाप्टर का इंतजार। आपदा ग्रस्त क्षेत्रों के लोग उस अधिसूचना का भी इंतजार कर रहे हैं, जिसमें आपदा प्रभावित क्षेत्र चिन्हित हों, इतना ही नहीं केदारघाटी में निरीक्षण को जाने वाली आर्केलोजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया (ए.एस.आई.) की टीम भी चार दिन इंतजार करके वापस दिल्ली लौट गई। मौसम के ठीक होने का इंतजार सरकार भी कर रही है, सरकार इंतजार कर रही है नदियों में पानी के कम होने का। आपदा राहत शिविरों में रह रहे लोग इंतजार कर रहे हैं अपनो घरों में पहुंचने का, तो बीते 38 दिनों से मार्ग खुलने का इंतजार कर रही है क्षेत्र की जनता। कुल मिलाकर उत्तराखण्ड इंतजार के दिन गिन रहा है, वह इंतजार कब खत्म होगा इसी आस में उस समय का भी इंतजार कर रहे हैं लोग।

अपने लापता परिजनों की तलाश में भटक रहे लोग

अपने लापता परिजनों की तलाश में भटक रहे लोग

अपनों के बारे में जानकारी न मिलने से परेशान है परिजन

देहरादून । केदारघाटी में आपदा के दौरान लापता हुए लोगों की तलाश में परिजन और रिश्तेदार लगातार भटक रहे हैं। लोगों को अपनों के बारे में जानकारी नहीं मिल पा रही है, जिस कारण वह परेशान हैं। लोगों का कहना है कि उन्हें अपनों की खबर चाहिए।
आपदा के एक महीने बाद भी राज्य में 5,748 लोग लापता हैं। लापता लोगों के परिजन और सगे-संबंधी उनकी तलाश में दिन-रात एक किए हुए हैं। देहरादून, ऋषिकेश समेत विभिन्न स्थानों पर सैकड़ों लोग अपनों की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं। उन्हें अपनों की वापसी की इंतजार है। विभिन्न राज्यों के लोग अपना काम-धाम छोड़कर पिछले एक महीने से उत्तराखंड में अपने लापता लोगों को ढूंढ रहे हैं। जगह-जगह दीवारों पर पोस्टर, पूरा ब्यौरा चिपकाया गया है। अपनों की तलाश में आए लोगों को मुआवजा नहीं चाहिए वह तो अपनो की खबर के लिए सरकार को पैसा देने के लिए भी तैयार हैं। पीड़ित परिवार के लोगों का कहना है कि उन्हें प्रशासन से कोई मुआवजा नहीं चाहिए। पैसा किसी की जिंदगी से बड़ा नहीं होता। प्रशासन अगर कुछ करना चाहता है तो तलाश के दिन बढ़ा दे।
राज्य में 5,748 लोग प्राकृतिक आपदा के बाद से लापता हैं, इनमें से 4,804 लोग दूसरे राज्यों के हैं जबकि उत्तराखंड के 944 लोगों का पता नहीं लग रहा है। सरकार ने कानूनी वजह से ऐसे लोगों को अभी मृत नहीं माना है। सरकार का दावा है कि जो पैसा दिया जा रहा है वो मुआवजा नहीं है और लापता लोगों की तलाश लगातार जारी रहेगी। कुछ ऐसे लोग भी लापता हैं जिन्हें कि बचाव कार्य के दौरान हैलीकॉप्टर से सुरक्षित निकाला गया था। एक महीने से लोग अपने लापता परिजनों को ढूंढने में जुटे हैं लेकिन कोई सुराग नहीं लग पा रहा है। कुछ लोगों को उम्मीद है कि उनके लापता परिजन उन्हें जरूर मिलेंगे। इसी बीच जो जानकारी आज खबर को मिल रही है, उसके तहत हताश- निराश कई लोग ज्योतिषियों की चौखट में भी दस्तक दे रहे हैं। ज्योतिषियों द्वारा जो संभावित स्थान बताए जा रहे हैं लोग वहां भी अपने लापता परिजनों को ढूंढ रहे हैं। दैवीय आपदा के बाद राज्य में राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, झारखंड, दिल्ली आदि राज्यों के तीर्थयात्री लापता हैं। इन राज्यों के लोग एक माह पूर्व उत्तराखंड में चारधाम यात्रा पर निकले थे।    
उत्तराखंड की आपदा में वे लोग भाग्यशाली रहे जो सुरक्षित निकाल लिए गए और घर पंहुच गए लेकिन कुछ ऐसे मामले भी सामने आए हैं जिनमें 'लोगों को सुरक्षित निकाला गया, बचाया हुआ' बताया गया.लेकिन न वो घर ही पहुँच पाए हैं और न आपदा में घायल लोगों में शामिल हैं.
विडंबना ये है कि इसके बावजूद आज तक वो घर नहीं पंहुचे हैं. उनके परिजन हताश हैं, आक्रोश में हैं और सरकार अपनी जवाबदेही से पल्ला झाड़ रही है.
  सरकार ने अब तक 5,350 लोगों की सूची दी है जिनका पता नहीं चल पाया और इस आपदा के दौरान लापता लोगों की तलाश के लिए बनाए गए 'मिसिंग सेल' को अब बंद भी करने की तैयारी चल रही है.
ऐसे में सवाल उठता है कि वैसे लोग आख़िर गए तो कहां गए जो आपदा के बाद कथित रूप से सुरक्षित देखे और बचाए भी गए लेकिन घर नहीं लौट पाए.
अमेठी के सुरेंद्र दुबे पिछले तीन हफ्तों से अपने माता-पिता की फ़ोटो लिए देहरादून में सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट-काटकर थक हो चुके हैं.
वो बताते हैं, "मेरे माता-पिता, बद्री प्रसाद दुबे और विद्यावती दुबे केदारनाथ घूमने आए थे. 16 जून को उनसे आख़िरी बात हुई थी और उन्होंने दर्शन कर लिया था. उस दिन उन्होंने बताया था कि बहुत बारिश हो रही है फिर ये घटना हो गई. हमने उनकी रिपोर्ट लिखा दी थी और खोज ख़बर कर रहे थे कि 22 जून को हमें रूद्रप्रयाग से फ़ोन आया. किसी सरकारी अफ़सर ने कहा कि आपके माता-पिता निकाल लिए गए हैं और उन्हें बस में बैठा दिया गया है लेकिन वो लौटकर नहीं आए हैं. बताईए उन्हें कहाँ डाल दिया गया."
अमेठी के सुरेंद्र दुबे तीन हफ्तों से अपने माता पिता की तलाश में हैं.
अपनी बात के प्रमाण में वो सरकारी दस्तावेज़ भी दिखाते हैं. उत्तराखण्ड सरकार की सूची में उनको 'रेसक्यूड' यानी बचाया हुआ बताया गया है और उत्तर प्रदेश में ज़िला कार्यालय में बचाए हुए लोगों की सूची में भी 30 और 31 नंबर पर उनका नाम लिखा हुआ है.
अमेठी के ही अभिषेक के अनुसार उनके माता-पिता 41 लोगों के साथ आए थे. उनमें से एक व्यक्ति जीवित घर लौटा है.
अभिषेक कहते हैं, "जीवीत लौटे हुए व्यक्ति ने बताया कि सेना के जवानों ने हेलिकॉप्टर से उन्हें पहले निकाला क्योंकि उनकी हालत बेहद ख़राब थी और बाक़ी लोग सकुशल थे इसलिए उन्हें बाद में निकालने की बात कही गई लेकिन उन सकुशल बताए जा रहे लोगों में कोई नहीं लौटा है."
अभिषेक सवाल करते हैं, "अब सरकार ही बताए की जो लोग 22 जून तक जीवित थे वो कैसे मर गए, कैसे लापता हो गए. उसके बाद तो कोई आपदा आई नहीं है."
"हमें मुआवज़ा नहीं चाहिए. सरकार बताए कि वो क्यों ढूंढ नहीं पा रही है. क्या उसके पास हेलिकॉप्टर नहीं हैं."
उदयपुर में मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में प्राध्यापक डॉ विनीत सोनी के माता-पिता गीता स्वर्णकार और डॉ. प्यारेलाल स्वर्णकार अपने पड़ोसी दंपत्ति के साथ केदारनाथ आए थे.
विनीत सोनी ने उदयपुर से फ़ोन पर बताया, "हादसे के बाद मैं जॉलीग्रांट एयरपोर्ट पर अपने माता-पिता की फ़ोटो के साथ उनके इंतज़ार में खड़ा था. वहां हेलिकॉप्टर लोगों को लेकर आ रहे थे. उन्हीं में से एक हेलिकॉप्टर से लाए गए गोंडा के देवकीनंदन शुक्ला ने मेरी माँ और पापा को तुरंत पहचान लिया और कहा कि हम लोग पांच दिन तक जंगलचट्टी में साथ थे. मेरी तबीयत ख़राब थी इसलिए हमें हेलिकॉप्टर से लाया गया जबकि इनको सड़क मार्ग से निकाल रहे हैं."
विनीत बताते हैं कि उनकी माँ को 21 जून को जंगलचट्टी से सेना के जवानों ने निकाला और सोनप्रयाग में गाड़ी में बिठा दिया क्योंकि ये स्वस्थ थे. एक टेलीविज़न चैनल के 21 जून के वीडियो में भी उनकी माँ दिख रही हैं.
बक़ौल विनीत जब उनकी माँ घर नहीं आईं तो वो गुप्तकाशी और फ़ाटा तक गए और उनकी इन दोनों जवानों से भी मुलाक़ात हुई जो वीडियो में उनकी माँ को पकड़कर लाते हुए दिख रहे हैं और उनके नाम मानवेंद्र सिंह और सुरेंद्र सिंह हैं. उन्होंने भी इसकी पुष्टि की कि उनकी मां ठीक हाल में थीं और उन्हें गाड़ी में बिठा दिया गया था. वहां के रिकॉर्ड में उनकी मां ही नहीं आंटी विमला देवी का नाम भी 'रेस्क्यूड' लोगों में है.
विनीत कहते हैं कि सरकार के पास कोई सटीक आँकड़ा नहीं है और उत्तराखण्ड सरकार के अफ़सर और मंत्री इतने संवेदनहीन हैं और इस तरह से बात करते हैं जैसे मैं उनसे सालों पहले की बात पूछ रहा हूं.
डॉ विनीत सोनी का आरोप है, "मैं दावे से कह सकता हूं कि जितने लोग आपदा में नहीं मरे होंगे उससे अधिक उत्तराखंड सरकार की बदइंतज़ामी और लापरवाही से मरे होंगे. इस बात की जांच कराई जानी चाहिए कि सेना ने तो आपदाग्रस्त इलाक़ों से लोगों को सुरक्षित निकाल कर अपना काम कर दिया लेकिन उसके बाद स्थानीय प्रशासन इतना लापरवाह कैसे रह सकत है?"
    "हमें मुआवजा नहीं चाहिये. सरकार बताए कि वो क्यों ढूंढ नहीं पा रही है. क्या उसके पास हेलीकॉप्टर नहीं हैं."
दरअसल सेना के राहत और बचाव अभियान में पहले घायल और बीमार लोगों को निकाला गया फिर महिलाओं और बच्चों को जिससे लोग पहले ही अपने-अपने दल से अलग-थलग पड़ गए थे.
आपदा प्रबंधन विभाग और मुख्य सचिव सुभाष कुमार यही कहते रहे हैं कि हमने लोगों को निकाल दिया और फिर वो अपने-अपने घर चले गए. सवाल ये उठता है कि बाढ़, बारिश और भूस्खलन की तबाही के बीच जीवन और मृत्यु से संघर्ष कर रहे लोगों ख़ास तौर पर महिलाओं और बुजुर्गों की मानसिक दशा क्या ऐसी रही होगी कि उन्हें उनके हाल पर छोड़ा जाना चाहिये था.
सरकारी मशीनरी के पास अब एक ही जवाब है कि सूची बनाई जा रही है, सत्यापन किया जा रहा है और लापता लोगों का पता लगाने का काम अभी जारी रखा जाएगा लेकिन क्या इससे सरकार अपनी जवाबदेही से बच सकती है?

डीजीसीए के पत्र से प्रदेश नागरिक उड्डयन विभाग में खलबली

डीजीसीए के पत्र से प्रदेश नागरिक उड्डयन विभाग में खलबली
राजेन्द्र जोशी
देहरादून  । उत्तराखण्ड में आई प्राकृतिक आपदा में निजी कंपनियों के हैलीकाप्टर को लगाए जाने को लेकर भारत सरकार के महानिदेशक नागरिक उड्डयन विभाग ने प्रदेश सरकार ने रिपोर्ट तलब की है कि उसने कितने हैलीकाप्टर आपदा राहत कार्या में लगाए और उन्होंने कितनी उड़ाने भरी और इसमें कितना तेल खर्च हुआ। महानिदेशक के पत्र के बाद प्रदेश सरकार के नागरिक उड्डयन विभाग में खलबली मची हुई है, क्यांेकि एक जानकारी के अनुसार आपदा प्रभावितों और जागरूक नागरिकों ने महानिदेशक नागरिक उड्डयन (डीजीसीए) को इस बात की शिकायत की है कि प्रदेश में निजी हैलीकाप्टरों के आपदा काल के दौरान अधिग्रहण किए जाने में बहुत बड़ा घोटाला हुआ है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ये हैलीकाप्टर गुप्तकाशी, फाटा, गौचर और जौलीग्रांट सहित सहस्त्रधारा हैलीपैड़ पर तैनात किए गए थे। सूत्रों से यह भी जानकारी मिली है कि नागरिक उड्डयन विभाग को दी गई सूचना के मुताबिक प्रदेश सरकार के नागरिक उड्डयन विभाग ने आपदा प्रभावित क्षेत्र में एक हैलीकाप्टर द्वारा 17 से 19 उड़ाने दस्तावेजों में दिखाई है, जबकि वास्तव में इन उड़ानों की संख्या सात से उपर नहीं हो सकती थी, ऐसा उड्डयन विशेषज्ञों का मानना है। उड्डयन विशेषज्ञों का कहना है कि केदारघाटी इतनी संकरी घाटी है कि वहां तीन हैलीकाप्टर से एक साथ उड़ान नहीं भर सकते हैं, ऐसे में प्रदेश सरकार द्वारा भारत सरकार के नागरिक उड्डयन महानिदेशक को दी गई जानकारी खुद नागरिक उड्डयन विभाग के अधिकारियों के गले नहीं उतर रही है। वहीं इसमें एक पेंच और फंस गया है कि प्रदेश सरकार के नागरिक उड्डयन विभाग द्वारा हैलीकाप्टर में प्रयोग होने वाला ईंधन की आपूर्ति प्रदेश में उतनी हुई ही नहीं, जितनी की दस्तावेजों में प्रदर्शित की गई है। एक जानकारी के अनुसार 23 जून के बाद ही प्रदेश के कुछ स्थानों तक हैलीकाप्टर में प्रयोग होने वाला ईंधन हैलीकाप्टरों के बेस स्टेशन तक पहुंच पाया था, ऐसे में डीजीसीए के गले यह बात भी नहीं उतर रही है कि प्रदेश सरकार द्वारा खपत में बताया गया ईंधन और वास्तविक ईंधन की खपतमें बड़ा गोलमाल है। वहीं दूसरी ओर राज्य सरकार द्वारा यह ऐलान किया गया था कि उसने निजी कंपनियों के हैलीकाप्टरों को अधिग्रहित कर लिया था, जिसका भुगतान राज्य सरकार को करना था। ऐसे में यह सवाल भी उठ खड़ा हुआ है कि जब राज्य सरकार द्वारा निजी कंपनियों के हैलीकाप्टरों को अधिग्रहित कर लिया गया था, तो निजी कंपनियों के हैलीकाप्टर प्रचालन कंपनियों ने यात्रियों से कैसे किराए की वसूली की, क्योंकि हर्षिल, फाटा और जोशीमठ से निकाले गए कई यात्रियों ने इस बात की शिकायत मीड़िया से की कि, जो हैलीकाप्टर उन्हें रेस्क्यू करने जौलीग्रांट अथवा सहस्त्रधारा हैलीपैड़ लाए हैं, उनमें से अधिकांश हैलीकाप्टरों ने उनसे तीन लाख से लेकर 18 लाख तक की वसूली की है। आपदा काल में फंसे यात्रियों द्वारा इस तरह की तमाम शिकायतों को लेकर डीजीसीए सक्रिय हुआ है और उसने प्रदेश सरकार ने आपदा काल के दौरान प्रयुक्त किए गए हैलीकाप्टर पर रिपोर्ट तलब की है, डीजीसीए के इस पत्र के बाद प्रदेश सरकार के नागरिक उड्डयन विभाग के अधिकारियों की नींद उड़ी हुई है।

अफसरशाही का पुर्नवास और आपदा पीड़ितों को दर-दर की ठोकरें

अफसरशाही का पुर्नवास और आपदा पीड़ितों को दर-दर की ठोकरें
राजेन्द्र जोशी
देहरादून  । उत्तराखंड की भी अपनी विभीशिका है कभी भूकंप से प्रलय तो कभी बाढ़ का कहर खतरे की जद में आए 233 ऐसे गांवों का आज तक पुर्नवास तो नहीं हो पाया है लेकिन यह संख्या अब बढ़ कर दो गुनी जरूर हो गई है जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे इन गांवों की चिंता न तो प्रदेश के नेताओं को है और न ही यहां की अफसरशाही को इन्हे इन गांवों के बजाए चिंता है तो अपने पुर्नवास की।
उल्लेखनीय है कि राज्य बनने से लेकर अब तक प्रदेश के एक दर्जन से ज्यादा ब्यूरोक्रेट अपना सेवा काल पूरा करने के बाद राज्य में ही पुर्नवासित होते रहे है। इनमें सबसे पहले प्रदेश के मुख्य सचिव डा. आर एस टोलिया रहे है जिन्होने राज्य की अफसरशाही को पुर्नवास का रास्ता दिखाया। टोलिया को मुख्य सूचना आयुक्त बनाकर प्रदेश सरकार ने जहां उनका पुर्नवास किया वहीं उनको वह सब सुविधाऐं भी मुहैया कराई गई जो उनको प्रदेश के मुख्य सचिव रहने के दौरान मिलती थी। इनके बाद प्रदेश के मुख्य सचिव एस केे दास का पुर्नवास करते हुए प्रदेश सरकार ने उनको लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष बना डाला। एस के दास के बाद प्रदेश के मुख्य सचिव बने एन एस नपच्याल को टोलिया के बाद राज्य सूचना आयोग का मुख्य सूचना आयुक्त बनाया गया। जबकि इनके बाद मुख्य सचिव बने इंदु कुमार पांडे को कुछ दिन बनवास में रहने के बाद मुख्य मंत्री का सलाहकार बनाया गया। वही प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री डी के कोटिया को राज्य सेवा अभिकरण का उपाध्यक्ष बनाया गया। जबकि सचिव हरिश्चंद्र जोशी को राज्य निर्वाचन आयोग और विपिन चंद्र चंदोला को भी सेवा काल के बाद पुर्नवासित किया गया। वही इसी महीने प्रदेश सरकार ने सेवानिवृत होने वाले आयुक्त गढ़वाल मंडल सुवर्धन, सचिव कार्मिक सुरेन्द्र सिंह रावत और सचिव दुग्ध विकास आरसी पाठक को तीन माह का सेवा विस्तार देते हुए पुर्नवासित किया गया।   
    राज्य के अस्तित्व में आने से पहले से ही प्रदेश के 233 ऐसे गंाव खतरे के मुहाने पर खड़े है लेकिन राज्य सरकार के पास इन गांवों के पुर्नवास की कोई नीति नज़र नहीं आती है। जबकि 16 - 17 जून को राज्य में आए प्रलयंकारी आपदा के बाद प्रदेश में मौत के दौराहे पर खड़े ऐसे गांवों की संख्या बढ़ कर दोगुनी को गई है। ऐसे 100 गांवों का भूगर्भीय सर्वेक्षण हो चुका है और लगभग 147 गांवों को सर्वेक्षण प्रस्तावित है। इन खतरे की जद में आए गांवों को कहां पुर्नवासित किया जाएगा सरकार के पास सोचने का वक्त नहीं है। इन गांवों के लोग अब ज़रा सी भी बारिश आने पर घबराते हुए अपने घरों से बाहर रात गुज़ारने को मज़बूर है। लेकिन सरकार के पास इनको दहशत से निज़ात दिलाने का वक्त नहीं है। वक्त है तो अपने जीवन के 60 वर्ष मौजमस्ती कर जीवन बिताने वाले उन अफसरों के पुर्नवास का जो ताउम्र मलाई खाने के आदी हो चुके है।

आपदा से बचने के बाद आखिर कहां गए वो!

                            आपदा से बचने के बाद आखिर कहां गए वो!
राजेन्द्र जोशी
देहरादून। लखनऊ की प्रजापति परिवार की महिला, नोएडा में रहने वाली रूचि के पिता और न जाने कितने उत्तराखण्ड में आई आपदा के बाद बच तो गए, लेकिन आज तक उनका कहीं कोई पता नहीं है और न ही सरकार ने ऐसे लोगों को ढूंढने की कोशिश की जो प्रकृति के प्रलय के बाद बच तो गए थे, लेकिन उसके बाद न जाने कहां गुम हो गए। लखनऊ की प्रजापति परिवार की इस महिला का आखिरी फोटो 21 जून को बद्रीनाथ में एक सैन्य अधिकारी के सामने गिडगिड़ाते हुए, बेबसी, लाचारी और दर्द का अहसास कराते हुए देखा जा सकता है।
एक महीने बाद भी ऐसे हजारों लोग हैं, जो न तो वापस लौटे और न ही उनके शव ही अभी तक मिले हैं। वहीं ऐसे लोगों की अभी तक गुमशुदगी भी कहीं दर्ज हो पाई होगी, इसमें संदेह है। 21 जून को प्रजापति परिवार की इस महिला की फोटो पत्रकार दानिश सिद्दकी ने बद्रीनाथ में उस वक्त खींची थी, जब वे सेना के एक हैलीकाप्टर से बद्रीनाथ पहुंचे थे। दानिश सिद्दकी ने बीबीसी की वंदना को बताया कि उस दिन मैं सेना के हैलीकाप्टर से बद्रीनाथ के इस इलाके पहुंचा था, बहुत छोटा सा हैलीकाप्टर था, जिसके द्वारा लोगों को निकाला जा रहा था, उन्होंने कहा कि मेरी नजर इस महिला पर पड़ी जो बहुत बुरी तरह रो रही थी औरी सैनिक से कह रही थी कि मुझे जाने दीजिए, लेकिन वह सैनिक इतना बेबस था कि वह उसे नहीं ले जा सकता था, क्योंकि उसे उसके उच्चाधिकारियों के आदेश थे कि सबसे पहले बुजुर्गों और जख्मी लोगों को ले जाना है। दानिश सिद्दकी ने कहा कि वह यह साफ कह सकते हैं कि मेरे वहां से जाने तक वह महिला सुरक्षित थी और उसे किसी तरह की चोट भी नहीं थी। दानिश ने बताया कि एक अखबार में तस्वीर छपने के बाद महिला के परिजनों ने किसी तरह उनका नंबर ढूंढ निकाला और वह इस उम्मीद के साथ मुझसे बात करने लगे कि शायद कुछ सुराग मिल जाए, लेकिन बद्रीनाथ से वह महिला कहां गई, इसका आज तक कुछ पता नहीं चल पाया है। दानिश ने यह भी बताया कि महिला का भाई इस बात को लेकर बहुत परेशान है कि जब उसकी बहन बद्रीनाथ में सुरक्षित थी और लोगों को वहां से हैलीकाप्टर से निकाला जा रहा था, तो आखिर वह उसके बाद से कहां गायब हो गई। यह तो केवल आपदा की एक बानगी है, न जाने कितने परिवारों की ऐसी कहानी होगी, जिनके मां, बहन, बच्चे, बुजुर्ग अभी भी अपनों का इंतजार कर रहे होंगे। ठीक इसी तरह नोएडा की रहने वाली रूचि के पिता भी उत्तराखण्ड से लापता हैं। पिता की तलाश में जुटी रूचि ने बीबीसी को फोन किया और बीबीसी फोटोग्राफर सज्जाद हुसैन जिसने उनकी फोटो खींची थी, उनसे संपर्क किया। इसके बाद रूचि और उसके मां के मन में अपने पिता के जिंदा होने की आस बंधी थी, लेकिन जब सज्जाद ने उन्हें बताया कि जिनकी फोटो उन्होंने खिंची थी, वह रूचि के पिता जैसे तो थे, लेकिन रूचि के पिता नहीं थे।
प्रकृति के प्रकोप के शिकार बने न जाने देश के ऐसे कितने लोग हैं, जो आज भी अपनों को ढूंढ रहे हैं। वहीं इनमें से कुछ परिवार को ऐसे हैं, जिन्होंने अपने दिलों में पत्थर रखकर खुद को समझाना शुरू कर दिया है कि शायद अब उनके अपने कभी नहीं लौटंेगे।