सोमवार, 7 जनवरी 2013

क्या मुख्यमंत्री गठबंधन को जारी रख पाएंगे?

क्या मुख्यमंत्री गठबंधन को जारी रख पाएंगे?
राजेन्द्र जोशी
देहरादून 07 दिसंबर। लालबत्तियों के लिए मारामारी के चलते मुख्यमंत्री के सामने गठबंधन धर्म को निभाने की समस्या आन खड़ी हुई है। ऐसे में मुख्यमंत्री के सामने यह यक्ष प्रश्न भी खड़ा हो गया है कि क्या वे गठबंधन को जारी रख पाएंगे। राज्य में कांग्रेस को उत्तराखंड में सरकार बनाए लगभग 10 माह हो चुके है और अब सरकार पर अपने कार्यकर्ताओं सहित चुनाव मेे हारे नेताओं को लेकर लालबत्तियों के लिए सरकार पर संगठन का भारी दबाव है।
गौरतलब हो कि राज्य में सम्पन्न विधान सभा चुनाव के परिणाम आने के बाद जहां भाजपा को 31 और कांग्रेस को 32 विधान सभा सीटें मिल पायी थी जो सरकार बनाने के लिए नाकाफी थी, लेकिन कांग्रेस ने जोड़ तोड़कर बहुमत हासिल कर राज्य में सरकार बना डाली। वर्तमान में राज्य में बहुगुणा सरकार को तीन निर्दलीय विधायकों सहित एक यूकेडी व तीन बसपा के सदस्यों का समर्थन प्राप्त है वहीं संख्या बल बढ़ाने के लिए मनोनीत एक एंग्लो इंडियन सदस्य का साथ भी कांग्रेस के साथ है।
सरकार का साथ दे रहे गठबंधन दलों में प्रदेश मंत्रिमंडल में बसपा के सुरेंद्र राकेश जहां परिवहन मंत्रालय संभाले हुए हैं वहीं उत्तराखंड क्रांति दल के प्रीतम पंवार शहरी विकास मंत्रालय तो निर्दलीय मंत्री प्रसाद नैथानी शिक्षा विभाग व हरीश चंद्र दुर्गापाल सहकारिता विभाग का दायित्व देख रहे हैं, वहीं विधायक दिनेश धनै को बहुगुणा सरकार ने गढ़वाल मंडल विकास निगम के अध्यक्ष का दायित्व दिया है। वैसे देखा जाय तो कांग्रेस के पास अपने कार्यकर्ताआंे की बडी लंबी फेहरिस्त है जो लालबत्ती की दौड़ में मुख्यमंत्री के नाक में दम किए हुए हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री के सामने आगे कुंआ तो पीछे  खाई की स्थिति आ खड़ी हुई है। उनके सामने यह समस्या भी आन खड़ी हुई है कि वे सरकार को समर्थन दे रहे दलों के साथ गठबंधन धर्म निभाएं या फिर गठबंधन तोड़ अपने कार्यकर्ताओं को लालबत्तियों से नवाजे। ऐसे में यदि वे गठबंधन धर्म तोड़ते हैं तो सरकार तो संख्या बल के हिसाब से उनकी सरकार तो बच जाएगी लेकिन सरकार तलवार की धार पर नजर आएगी।
 राज्य सरकार में वर्तमान में सुरेंद्र राकेश बसपा कोटे से बहुगुणा मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री हैं और उनके साथ विधायक हरीदास और शरबत करीम अंसारी सरकार को समर्थन दे रहे हैं, और मुख्यमंत्री ने बसपा के इन दोनों विधायकों को लालबत्ती देकर फिलहाल बसपा का दबाव कम किया है। वहीं मंत्री प्रसाद नैथानी के पीछे सांसद सतपाल महाराज का वरदहस्त है तो हरीश चंद्र दुर्गापाल के साथ कांग्रेस की वरिष्ठ नेता डा. इन्दिरा हृदयेश पाठक का हाथ है ऐसे में शहरी विकास मंत्रालय विभाग देख रहे प्रीतम सिंह पंवार ही एक मात्र ऐसे नेता हैं जिनका कोई गॉड फादर उत्तराखंड की राजनीति में नजर नहीं आता। वहीं वे वर्तमान में यूकेडी (पी) व यूकेडी (डी) के बीच जारी शीत युद्ध में पिस रहे हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री के सामने सबसे कमजोर कड़ी के रूप में यूकेडी विधायक प्रीतम सिंह पंवार ही बचते है जिनका सिर कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को लालबत्ती से नवाजे जाने के एवज में कलम किया जा सकता है।   

गुरुवार, 3 जनवरी 2013

राजधानी मसला कितनी हकीकत कितना छलावा

राजधानी मसला कितनी हकीकत कितना छलावा
राजेन्द्र जोशी

 राजधानी को लेकर सरकार कितनी संजींदा है यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा कि राज्य के हुक्मरानों की नीति और नीयति कितनी साफ है। राज्य सरकार जहां एक ओर गैरसैंण से लगे भराड़ीसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की बात कर रही है तो वहीं देहरादून के पास रायपुर क्षेत्र में विधान भवन के लिए भूमि की तलाश शुरू कर दी गई है। राजधानी को लेकर राज्यवासियों से कहीं सरकार छलावा तो नहीं कर रही है राज्यवासियों को अब भी सरकार के नीयत पर संदेह है कि इस छोटे से प्रदेश में दो- दो राजधानियां आखिर क्यों और किसके लिए?
उत्तराखंड राज्य की लडाई में गैरसैंण को प्रतीक मानते हुए आंदोलन चलाया गया था। राज्य आंदोलनकारियों का सपना था कि राज्य बनने के बाद इस पर्वतीय प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनेगी लेकिन राज्य बनने के बाद राजनीतिक दलों ने अपने सहूलियतों को देखते हुए और जनभावनों को दरकिनार करते हुए देहरादून को अस्थाई राजधानी के लिए चुना। 12 साल में राज्य में काबिज भाजपा और कांग्रेस की सरकार  ने जनभावनाओं को  दरकिनार करते हुए देहरादून से ही राज्य का काम काज चलाया।
 राज्य में तीसरी बार हुए विधानसभा चुनाव के बाद व कांग्रेस की सरकार आने के बाद बहुगुणा सरकार ने राजधानी के इस संवेदनशील मामले को छुआ। इसे बहुगुणा सरकार की राजनीतिक दूरदर्शिता कहा जाय या राजनैतिक महत्वाकांक्षा, मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के छह महीने बाद उन्हें गैरसैंण की याद आई और उन्होंने गैरसैंण में राज्य के इतिहास में पहली बार कैबिनेट बैठक बुलाकर राज्यवासियों सहित तमाम राजनैतिक दलों का ध्यान गैरसैंण की ओर आकर्षित भी  किया। वहीं उन्होंने उसी दिन गैरसैंण में राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी की घोषणा करते हुए आगामी 14 जनवरी मकर सक्रान्ति के पर्व पर  शिलान्यास की घोषणा तक भी कर डाली। इतना ही नहीं बहुगुणा सरकार ने जहां गैरसैंण मंे राजधानी के लिए उपयुक्त स्थान की खोज के लिए विधान सभा उपाध्यक्ष अनुसुया प्रसाद मैखुरी के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया जिसने  गैरसैंण के निकट स्थित सात स्थानों में से भराड़ीसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी के लिए उपयुक्त पाया वहीं अब मकर सक्रान्ति को इस स्थान पर ग्रीष्मकालीन राजधानी का शिलान्यास कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी करने वालीह है। जबकि वहीं गुरूवार (आज) को मुख्यमंत्री बहुगुणा सहित विधान सभा अध्यक्ष गोविन्द सिंह कुंजवाल की टीम ने रायपुर क्षेत्र में विधान भवन के लिए उपयुक्त स्थान की तलाश की।
राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि राज्य आंदोलनकारी शहीदों की अंतिम इच्छा गैरसैंण को राज्य की स्थाई राजधानी के रूप में देखना रहा है। इनका कहना है कि अस्थाई राजधानी से पर्वतीय क्षेत्र को क्या मिलेगा यदि स्थाई राजधानी बनती तो पर्वतीय क्षेत्र का और अधिक विकास होता इनका मानना है कि यदि सरकार की नीति और नीयति साफ है तो देहरादून में विधानभवन के लिए भूमि की तलाश क्यों ? क्यों नहीं गैरसैंण को ही स्थाई राजधानी के रूप में विकसित किया जाता। इनका मानना है गैरसैंण में राजधानी बनने के बाद जहां विकास की बाट जोह रहे इस पर्वतीय क्षेत्र में विकास की किरण पहुंचेगी जो इन बारह सालों में नहीं पहुंच पायी और इससे पलायन रोकने में भी मदद मिलेगी।