मंगलवार, 9 जुलाई 2013

सूबे की जमीनों को औद्योगिक घरानों को दिए जाने का विरोध

protest against cocacola companyसूबे की जमीनों को औद्योगिक घरानों को दिए जाने का विरोध
भूजल स्तर की कमी और राज्य को पारिस्थितिकीय दुष्परिणाम होंगे भोगने: पर्यावरणविद्
राजेन्द्र जोशी
देहरादून,22 अप्रैल । औद्योगिक निवेश के नाम पर उत्तराखंड की बेशकीमती जमीनों को औने-पौने दामों पर औद्योगिक घरानों को दिए जाने का विरोध शुरू हो गया है। जहां कोकाकोला को छरबा गांव में जमीन देने का विरोध शुरू हो गया है तो वहीं डीएस गु्रप को सितारगंज में जमीन दिए जाने का विरोध भी शुरू हो गया है। पर्यावरणविद् इसे भविष्य में प्रदेश के भूजल स्तर की कमी और राज्य की पारिस्थितिकीय दुष्परिणामों से जोड़कर देख रहे हैं।
     उल्लेखनीय है कि प्रदेश में निकाय चुनाव के लिए राज्यवासी व्यस्त हैं इसी व्यस्तता के बीच प्रदेश सरकार ने दो कंपनियों से एमओयू कर राज्य में उद्योग लगाने की बात कही है। जहंा प्रदेश सरकार ने हिन्दुस्तान बैवरिज प्राइवेट लिमिटेड से एमओयू किया है जो विकासनगर के छरवा-लांघा गांव में यमुना नहर के किनारे 600 करोड़ रूपये का निवेश प्रस्तावित किया है, इस योजना के लिए राज्य सरकार 60 एकड़ जमीन 95 लाख प्रति एकड़ की दर से उक्त कंपनी को देगी। वहीं सरकार का दावा है कि इसकी स्थापना के बाद एक हजार लोगों को रोजगार मिलेगा। वहीं प्रदेश सरकार ने दूसरा एमओयू धर्मपाल सतपाल औद्योगिक समूह से किया यह कंपनी सितारगंज औद्योगिक क्षेत्र में 54 लाख प्रति एकड़ की दर से 200 एकड़ जमीन समूह को देगी। इन दोनों ही निवेशों में सरकार ने यह बात छिपा दी कि क्या इन दोनों उद्योग समूह ने प्रदेश सरकार के पास निवेश का आवेदन किया था या प्रदेश सरकार ने इन दोनों औद्योगिक समूहों से सरकार ने स्वयं निवेश करनी की बात कहीं। वहीं यह बात भी सामने आयी है कि जब राज्य को केंद्र से मिलने वाला विशेष औद्योगिक पैकेज की मियाद खत्म हो चुकी है और कुछ ही मदों में राज्य को स्थापित उद्योगों को इसका लाभ वर्तमान वित्तीय सत्र 2013-14 तक ही मिल पाएगा। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि कहीं घोषित शर्तो के अलावा औद्योगिक विकास विभाग अथवा मुख्यमंत्री कार्यालय ने इन कंपनियों से कोई ‘‘हिडन‘‘ समझौता तो नहीं किया हुआ है। क्योंकि सूत्रों ने जानकारी दी है कि डीएस गु्रप को प्रदेश में निवेश कराने के पीछे राज्य के एक माफिया का हाथ बताया गया है जिसके डीएस गु्रप व मुख्यमंत्री कुनबे से काफी नजदीकियां बताई गयी हैं। सूत्रों ने तो यहां तक जानकारी दी है कि डीएस गु्रप राज्य मंे इस लिए भी निवेश का इच्छुक है क्योंकि उसने मसूरी से सटे हाथी पांव क्षेत्र में आज से लगभग सात साल पूर्व 2000 बीघे विवादित भूमि क्रय की हुई है जिसको लेकर ग्रामीणों और समूह के बीच कई बार कोर्ट कचहरी तक हो चुकी है। यही कारण है कि राजनैतिक पहुंच का फायदा उठते हुये समूह इसकी आड़ में इस भूमि के दस्तावेजों को दुरूस्त करना चाहता है।
       राज्य में हुए इन निवेशों पर पर्यावरणविद् खासे नाराज हैं। पर्यावरणविद् व चिपको आंदोलन के प्रणेता चंडीप्रसाद भट्ट का कहना है कि कोकाकोला का प्लांट देश के जिन स्थानों में लगा है वहां पेयजल का संकट पैदा हो गया है। वहीं प्लांट से निकलने वाले रसायनों के कारण भूमिगत जल तक प्रदूषित हो जाता है जिससे आसपास के क्षेत्रों में गंभीर बीमारियां होती हैं। लिहाजा सरकार को ऐसे निर्णयों बचना चाहिए। वहीं पर्यावरणविद् वंदना शिवा ने कहा कि पानी पर सबसे पहला अधिकार स्थानीय लोगों का होता है। यह बात केरल हाईकोर्ट ने भी अपने एक फैसले में स्पष्ट की है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार को यह अधिकार नहीं कि वह नदियों के पानी को अपनी इच्छा से इस्तेमाल करवाये। इस मामले में उत्तराख्ंाड नदी बचाओ आंदोलन के संयोजक सुरेश भाई का कहना है कि प्रदेश सरकार को 600 करोड़ रूपये का निवेश दिखाई दे रहा है जबकि उसे इससे होने वाले नुकसान का अंदाजा नहीं है। सरकार हिमालय से निकलने वाली जलधाराओं को वस्तु समझकर बेच रही है और जंगल काट कर जमीन बेची जा रही है जिससे विकास कम विनाश ज्यादा होगा। वहीं पर्यावरणविद् विजय जड़धारी ने कहा कि चंद लोगों को नौकरी देने के नाम पर स्थानीय लोगों के हक-हकूकों से खिलवाड़ किया जाएगा। इसका असर पेयजल के साथ पर्यावरण पर पड़ेगा।
             पर्यावरणविद्ों और स्थानीय लोगों के विरोध के बाद अब ग्रामीणों ने भी छरवा में विरोध प्रदर्शन कर कहा कि वे एक पेड़ भी नहीं कटने देंगे और पेड़ों को बचाने के लिए वे चिपको आंदोलन शुरू करने से पीछे नहीं हटेंगे। ग्रामीणों का कहना है कि ग्राम पंचायत ने पिछले कई सालों से कड़ी मेहनत के बाद 40 हेक्टेयर क्षेत्रफल में शीशम व खैर के जंगल को तैयार किया है जिसे सरकार उजाड़ने की प्रयास में है,वे सरकार की मंशा को कभी भी पूरी नहीं होने देंगे।

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