मंगलवार, 9 जुलाई 2013

आंचलिक महायोजना बनाने का दम नहीं, विरोध कर रहें है ईको सेंसिटिव जोन का

ईको सेंसिटिव जोन से स्थानीय लोगों के नैसर्गिक अधिकारों पर नहीं पड़ेगा कोई प्रभाव
आंचलिक महायोजना बनाने का दम नहीं, विरोध कर रहें है ईको सेंसिटिव जोन का
राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 7 मई। उत्तरकाशी से गौमुख तक बनाए गए ईको सेंसिटिव जोन के नोटिफिकेशन पर भले ही प्रदेश सरकार इसे गैर व्यवहारिक बता रही हो, लेकिन पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 18 दिसंबर 2012 को जारी गजट नोटिफिकेशन के अध्ययन से यह बात साफ हो जाती है कि इससे स्थानीय लोगों के हक-हकूकों व उसके नैसर्गिक अधिकारों पर इसका कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा। कुल मिलाकर यह बात सामने आई है कि प्रदेश सरकार सहित जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, वे इस ईको सेंसिटिव जोन में जमकर पर्यावरणीय छेड़छाड़ और माफियाओं को पनपाने के लिए इसका विरोध कर रहे हैं। गजट नोटिफिकेशन में साफ लिखा है कि भागीरथी नदी प्रवासी प्रजातियों सहित जलीय वनस्पति और जीव-जन्तुओं से समृद्ध क्षेत्र है तथा जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण के कारण, उनके प्रवास में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न होने से इस अद्भुत पारिस्थितकीय प्रणाली पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है और नदी पर शुरू हो चुकी या प्रस्तावित अथवा कार्यान्वयनधीन परियोजनाओं और मानव एवं पशु आबादी में लगातार और असाधारण वृद्धि, पारिस्थितकीय प्रणाली और पर्यावरण पर नृजातीय दबावों में अत्याधिक वृद्धि से नदी के प्रभाव तथा स्वरूप सहित सुकोमल पर्वत परिप्रणालीयों को अपूर्णिय छति हुई है। लिहाजा गौमुख से उत्तरकाशी तक भागीरथी नदी के लगभग 100 किलोमीटर लंबे व 4179.59 वर्ग किलोमीटर के सम्पूर्ण जलसम्भरण क्षेत्र को भागीरथी नदी के पर्यावरणीय प्रभाव और पारिस्थितिकी को बनाए रखने के लिए पारिस्थितिकीय और पर्यावरणीय दृष्टि से पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र घोषित किया जाएगा।
    गजट नोटिफिकेशन में कहा गया है कि इस पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र के विकास के लिए एक आंचलिक महायोजना बनाई जाएगी, जिसमें स्थानीय जनता और विशेषकर महिलाओं के परामर्श से यह योजना बनेगी, जिसे भारत सरकार का पर्यावरण एवं वन मंत्रालय अनुमोदित करेगा। इतना ही नहीं गजट नोटिफिकेशन में साफ-साफ लिखा है कि पर्यावरण, वन, शहरी विकास, पर्यटन, नगर पालिका, राजस्व, लोक निर्माण विभाग, पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जल संसाधन, बागवानी, पंचायती राज, ग्रामीण विकास आदि जैसे राज्य के सभी संबंधित विभागों की सम्यक भागीदारी से आंचलिक महायोजना बनाई जाएगी। इस योजना में विद्यमान जल निकायों के संरक्षण, जल ग्रहण क्षेत्रों के प्रबंधन, जल सम्भरणों के प्रबंधन, भूमिगत जल के प्रबंधन, मृदा और नमी संरक्षण, स्थानीय सामुदायिक स्थानीय समुदाय की आवश्यकताओं तथा पारिस्थितिकी पर्यावरण के ऐसे अन्य पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता है। आंचलिक महायोजना जल सम्भरण की अवधारणा के आधार पर बनाई जाएगी, इसमें यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि नदियों और सहायक नदियों के किनारों पर किसी प्रकारण की संरचणाओं का निर्माण करके नदी और उसकी सहायक नदियों की प्राकृतिक सीमाओं में परिवर्तन का कोई प्रयास नहीं किया जाएगा। आंचलिक महायोजन में सभी विद्यमान ग्रामीण बस्तियों, वनों के प्रकारों और किस्मों, कृषि क्षेत्रों, उर्वर भूमि, हरित क्षेत्रों, बागान क्षेत्रों, फलोउद्यानो, झीलों एवं अन्य निकायों को चिन्हित किया जाएगा। वहीं गजट नोटिफिकेशन में कहा गया है कि पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्र (ईको सेंसिटिव जोन) में विभिन्न भवनों, होटलों, रिसोर्ट के निर्माण में क्षेत्र की परम्परागत संकल्पनाओं और वास्तु का पूर्णतः पालन किया जाएगा।
गजट नोटिफिकेशन में सबसे महत्वपूर्ण बात यह कही गई है कि आंचलिक महायोजना पारिस्थितिकी संवदेनशील क्षेत्र के विकास को ऐसे विनयमित किया जाएगा, जिससे कि वहां के वास्तविक निवासियों के अधिकारों और विशेषाधिकारों को प्रभावित किए बिना स्थानीय निवासियों की जरूरतें पूरी की जा सके, तथा उनके जीवन यापन की सुरक्षा के लिए पारिस्थितिकी अनुकूल विकास होना चाहिए। इस योजना में पर्यटन, तीर्थ यात्रा और स्थानीय उपयोग के लिए पैदल मार्गों के विकास को प्रत्साहित किया जाएगा। आंचलिक महायोजना में गैर हरित उपयोगों के लिए हरित उपयोगों जैसे उद्यान क्षेत्रों, कृषि भूमि, चाय बागानों, उद्यानों और अन्य जैसे स्थानों पर भूमि के उपयोग का परिवर्तन नहीं होगा, लेकिन स्थानीय निवासियों की आवासीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए राज्य सरकार की सिफारिश पर केंद्र सरकार के पूर्व अनुमोदन से कृषि भूमि में सिमित परिवर्तन की अनुमति होगी। इतना ही नहीं इस योजना में यह भी साफ कहा गया है कि पारिस्थितिकी संवेदनशील क्षेत्रों में स्थित जिन स्थानों पहाड़ों के कटाव से पारिस्थितिकी को नुकसान हो रहा है और ढलान अस्थित होते हैं, उनमें नुकसान से बचने के लिए कटाव के लिए समुचित उपाए किए जाएंगे। वहीं आंचलिक महायोजना में प्राकृतिक झरने और सभी झरनों के जलग्रहण क्षेत्र को चिन्हित किया जाएगा, उनके संरक्षण और सूख चुके झरनों को उनकी प्राकृतिक स्थिति में लाने के लिए उनका नवीनीकरण करने की योजनाएं शामिल की जाएंगी। वहीं पर्यटन के क्षेत्र में आंचलिक महायोजना संघटक के रूप में होगी और पारिस्थितिक संवदेनशील परिक्षेत्र के अध्ययन के ब्यौरों पर आधारित होंगी। वहीं पर्वतीय मार्गों की सड़कों के लिए आंचलिक महायोजना में पांच कि.मी. से अधिक की सड़कों को जैव अभियांत्रिकी और अन्य उपयुक्त तकनीकों के प्रयोग से बनाया जाएगा।
    कुल मिलाकर ईको सेंसिटिव जोन का जो हौवा राजनैतिक दलों द्वारा खड़ा किया जा रहा है, वह वास्तविकता से काफी दूर है। राजनैतिक दल नहीं चाहते कि इस हिमालयी क्षेत्र का योजनागत विकास हो और इस क्षेत्र के विकास के लिए कोई महायोजना बनाई जाए। केंद्र सरकार द्वारा गजट नोटिफिकेशन में महायोजना बनाए जाने की समय सीमा भी तय की गई है। नोटिफिकेशन के अनुसार इस अधिसूचना के प्रकाशन के दो वर्ष की अवधि के भीतर यह आंचलिक महायोजना बनाई जानी चाहिए, जिसे भारत सरकार का पर्यावरण एवं वन मंत्रालय अनुमोदन देगा, लेकिन बड़े-बड़े हाईड्रोपावर प्रोजेक्ट, खनन कार्यों और वन दोहन जैसे कार्याें पर रोक न लगा सकने वाली सरकार ऐसे लोगों के दबाव में ईको सेंसिटिव जोन का विरोध कर रही है। जबकि इससे स्थानीय लोगों के जीवन पर किसी भी तरह का कूप्रभाव पड़ता दिखाई नहीं दे रहा है, क्योंकि नोटिफिकेशन में साफ है कि आंचलिक महायोजना में स्थानीय महिलाओं की विशेष भूमिका रखी जाएगी, यहां यह बात भी दीगर है कि उत्तराखण्ड जैसे पर्वतीय क्षेत्र में महिलाएं समाज की रीढ़ हैं और तमाम समस्याओं से वे वाकिफ भी हैं, जब आंचलिक महायोजना में महिलाओं की भागीदारी होगी, ऐसे में ईको सेंसिटिव जोन का विरोध न्यायसंगत नहीं लगता। इससे यह साफ है कि प्रदेश सरकार में आंचलिक महायोजना बनाने की इच्छाशक्ति नहीं है और वह ईको सेंसिटिव जोन के नाम पर क्षेत्र के लोगों की भावनाओं को भड़का रही है।

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