मंगलवार, 9 जुलाई 2013

अब तक के घोटालों में सबसे बड़ा घोटाला सिडकुल घोटाला .......

अब तक के घोटालों में सबसे बड़ा घोटाला सिडकुल घोटाला .......

“उत्तराखण्ड की विजय बहुगुणा सरकार ने रुद्रपुर और हरिद्वार में सिडकुल की अरबों रुपए की भूमि बिल्डरों को कौड़ियों के भाव बेच डाली। हैरानी की बात है कि हरिद्वार की जो भूमि बाजार रेट पर करीब पौने तीन अरब रुपए में बिक सकती थी वह एक बिल्डर को महज 61 करोड़ 91 लाख 11 हजार रुपए में बेच दी गयी। यह सिलसिला यहीं नहीं थमा और न थमने वाला है। सितारगंज में भी करोड़ों रुपए की भूमि कौड़ियों के भाव बिल्डर को दे दी गई। अब देहरादून में भी ऐसी तैयारी की जा रही है। यह स्थिति तब है जब खुद मुख्यमंत्री बहुगुणा औद्योगिक विकास विभाग के मुखिया हैं। चर्चा है कि इस पूरी प्रक्रिया में प्रमुख सचिव राकेश शर्मा की वही भूमिका मानी जा रही है जो खण्डूड़ी सरकार में प्रभात कुमार सारंगी की थी”

उत्तराखण्ड की विजय बहुगुणा सरकार ने महज 11 महीने के अपने कार्यकाल में जिस तरह अरबों रुपए मूल्य की भूमि कौड़ियों के भाव बिल्डरों को कमाई करने के लिए सौंप दी है। उससे तो यही लगता है कि यह सरकार राज्य में अब तक हुए भ्रष्टाचार के सारे रिकॉर्ड तोड़कर नए कीर्तिमान बनाने की दिशा में आगे बढ़ रही है। सिडकुल हरिद्वार के अंतर्गत जो भूमि मार्केट रेट 28  हजार रुपए (वर्ग मी के हिसाब से दो अरब 62 करोड़ 65 लाख 68 हजार रुपए और सर्किल रेट 15  हजार रुपए के हिसाब से एक अरब 39 करोड़ 80 लाख 90 हजार रुपए में बिक सकती थी उसे सरकार ने अंतरिक्ष बिल्डर को मात्र 61 करोड़ 91  लाख 19  हजार 600  रुपए में बेच दिया। खास बात यह है कि इसी सिडकुल क्षेत्र में सन्‌ 2007  में सरकार 29934 .5 वर्ग मीटर भूमि 20502  रुपए के रेट पर 61 करोड़ 37 लाख 17 हजार 119  रुपए में बेच चुकी है। अगर आज भी सरकार 2007  के रेट पर ही 93806  वर्ग मीटर (23 ़ 18 एकड़) भूमि अंतरिक्ष बिल्डर को दे देती तो तब भी उसे इसके लिए एक अरब 92  करोड़ 32  लाख 10  हजार 612  रुपए मिलते। जाहिर है कि 2007 के सर्किल रेट पर भूमि न बेचकर सरकार ने जानबूझकर एक अरब 30  करोड़ 40  लाख 91 हजार 12  रुपए का घाटा खाया है।

मौजूदा सर्किल रेट के हिसाब से सरकार को 77  करोड़ 89  लाख 70 हजार 400  रुपए का घाटा हुआ। इसी तरह मौजूदा मार्केट रेट के हिसाब से भूमि न बेचने पर यह भाव बढ़कर दो अरब 74 लाख 48  हजार 400  रुपए तक पहुंच जाता है। अब सवाल उठना स्वाभाविक है कि सरकार ने जानबूझकर घाटे का सौदा क्यों किया? सवाल इसलिए भी गंभीर है कि औद्योगिक विकास विभाग जिसके मुखिया खुद मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा हैं ने हरिद्वार के सिडकुल क्षेत्र में यूटिलिटी सेवाओं के लिए आरक्षित सेक्टर-9  जो कि एकदम प्राइम लोकेशन पर स्थित है को बिल्डर को सौंपने का इरादा बनाया। भारत हैवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड (भेल) की ओर से पूर्व में अधिग्रहित की गई भूमि पर सन् 2004  में तत्कालीन नारायण दत्त तिवारी सरकार ने औद्योगिक क्षेत्र स्थापित करने की शुरुआत की थी। तब तिवारी सरकार ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि वह जिस भूमि पर उद्योग-धंधों की स्थापना करना चाहती है, भविष्य में उसे कांग्रेस पार्टी की ही सरकार कौड़ियों के भाव बिल्डरों को बेचने का काम करेगी। करोड़ों-अरबों रुपए की इस भूमि को महज 6600  रुपए (वर्ग मी के रेट पर 61  करोड़ 91  लाख 19  हजार 600  रुपए में खरीदकर बिल्डर अब इस पर प्लॉटिंग कर रहा है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक बिल्डर ने इस भूमि पर 120 , 150 , 180 , 138 , 200 , 281  गज के326  प्लॉट काटे हैं। ये प्लॉट बगैर पार्क आदि दर्शाए चार हजार रुपए प्रति वर्ग फीट के हिसाब से बेचे जा रहे हैं। दिलचस्प यह है कि आवासीय सेक्टर के नाम पर ली गई इस बेशकीमती जमीन पर 10  हजार फीट में स्थित क्षेत्रीय प्रबंधक सिडकुल के कार्यालय को वहां से हटाकर प्राइवेट मॉल में शिफ्ट किया जा रहा है। दरअसल इस 10  हजार फीट भूमि को भी कॉमर्शियल के नाम पर बिल्डर को आरक्षित किया गया है। इसे आठ हजार रुपए प्रति फीट की दर से बेचे जाने की योजना है। इस तरह बिल्डर आम लोगों से करोड़ों- अरबों रुपए कमाएगा और सरकार के हाथ सिर्फ कौड़ियां लगी हैं।

गौरतलब है कि 2007  में सरकार ने सुपरटेक को जब २०५०२ रुपए प्रति वर्ग मीटर की दर पर भूमि दी थी तो तब भी बवाल मचा था। लोग हैरान थे कि सुपरटेक को सस्ते दामों पर जमीन दी गई। लेकिन अब तो ६ साल बाद महज 6600  रुपए प्रति वर्ग मीटर के रेट पर अंतरिक्ष बिल्डर को प्राइम लोकेशन की जमीन दी गई और वह भी उस स्थिति में जबकि औद्योगिक विकास विभाग मुख्यमंत्री के ही अधीन कामकाज कर रहा है। क्या मुख्यमंत्री इस बात से अनजान थे कि अंतरिक्ष बिल्डर को सस्ते रेट पर जमीन देने से सरकार को करोड़ों- अरबों रुपए का घाटा होने जा रहा है ? क्या यह खेल नौकरशाहों ने रचा और मुख्यमंत्री को अंधेरे में रखा या फिर स्वयं राज्य का मुखिया इस षड्यंत्र में शामिल है ? इस तरह के कई सवाल खड़े होते हैं जो संदेह पैदा करते हैं कि जमीन के इस खेल में करोड़ों -अरबों रुपए का घोटाला हुआ है ।

हैरानी की बात है कि बिल्डर को जमीन देने के नाम पर बड़ी चालाकी से टेंडर भी निकाले गये । भले ही बहुगुणा सरकार और कांग्रेस के लोग भ्रष्टाचार के इस खेल को छिपाने के लिए यह तर्क दें कि टेंडर आमंत्रित कर भूमि बिल्डर को दी गई । लेकिन सच यह है कि सरकार ने टेंडर का सहारा लेकर पारदर्शिता की धज्जियां उड़ाई हैं । सरकार बखूबी जानती थी कि सन्‌ 2007  में सेक्टर-9  से भी कम महत्वपूर्ण लोकेशन की भूमि 20502  वर्ग मीटर के रेट से बिकी तो फिर आज सेक्टर-9  जैसी प्राइम लोकेशन वाली भूमि उसने कैसे कम रेट में अंतरिक्ष बिल्डर को दे दी। यदि टेंडर में किसी बिल्डर ने उचित रेट नहीं भरे थे तो टेंडर निरस्त भी किए जा सकते थे। टेंडर भी सिर्फ तीन भरे गये थे। क्या ऐसे में सरकार उन्हें निरस्त कर फिर से टेंडर जारी नहीं कर सकती थी? हर सवाल सरकार और उसके नौकरशाहों पर उंगली उठाता है।

हरिद्वार ही नहीं बल्कि रुद्रपुर के सितारगंज में भी औद्योगिक इकाइयों के लिए अधिग्रहित भूमि बिल्डरों को बेची गई। हरिद्वार की तरह यहां भी जिस तरह टेंडर का सहारा लिया गया उससे घोटाले की बू आ रही है। पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय से उद्योग लगाने के उद्देश्य से ली गई 23.77  एकड़ भूमि को बिल्डरों को सौंपने के लिए शासन स्तर से बड़ी तत्परता दिखाई गई । इस भूमि पर हाउसिंग टाउनशिप बनाने के नाम पर शासन स्तर से पहल कर टेंडर निकाले गए । यहां भी सिर्फ तीन ही टेंडर आ पाए और तत्काल सुपरटेक बिल्डर को 5860 वर्ग मीटर की दर से भूमि सौंप दी गई । बताया जाता है कि 55  करोड़ रुपए में बेशकीमती भूमि हासिल करने के बाद बिल्डर उत्साहित है और इससे करोड़ों कमाने की उम्मीदें पाले हुए हैं । सिडकुल प्रबंधन और सरकार गंभीर होती तो कम रेट मिलने पर टेंडर निरस्त किये जा सकते थे लेकिन उसने यह उचित नहीं समझा। जिससे यहां भी उसकी नीयत पर संदेह किया जा रहा है ।

नवोदित उत्तराखण्ड राज्य गठन के बाद यहां सदैव घोटालों की गूंज रही है। कांग्रेस की तिवारी सरकार और भाजपा सरकार के दौरान हुए घोटाले अभी तक चर्चा में हैं। लेकिन बहुगुणा सरकार के कार्यकाल में हुआ यह घोटाला तो लोगों को और भी विचलित कर सकता है। दिलचस्प यह है कि बहुगुणा सरकार के हाथी के दांत खाने के कुछ और हैं और दिखाने के कुछ और सरकार ने पूर्व भाजपा सरकार के राज में हुए घाटालों की जांच के लिए एक सेवानिवृत्त आइएएस अधिकारी भाटी के नेतृत्व में बाकायदा जांच कमेटी बनाई गई है ।

वित्तीय वर्ष 2007  में सिडकुल प्रबंधन द्वारा सुपरटेक को आवासीय और वाणिज्यक उपयोग के लिए 20502  वर्ग मीटर की दर से जमीनें दी गईं तो वर्ष 2010  में नवभारत एसोसिएट (होटल को 8013  रुपए वर्ग मीटर की दर से भूमि दी गईं । वर्तमान सरकार ने सभी रिकॉर्ड तोड़ते हुए अंतरिक्ष बिल्डर को मात्र 6600  रुपए वर्ग मीटर की दर से जमीन उपलब्ध कराई। अगर बात वर्ष 2007  से 2012  तक जमीनों की कीमतों की करें तो इस दौरान जमीन की कीमतें 60 -70  प्रतिशत बढ़ गईं। फिलहाल जहां सरकार ने यह जमीन बिल्डर के हाथों में सौंपी वहां का तो बाजार मूल्य ही 28 -30  हजार के बीच है ।


विरोधाभासी बयान :-
सिडकुल हरिद्वार की भूमि सस्ती दरों पर बिल्डर को सौंपने वाली बहुगुणा सरकार के नौकरशाह भी इस प्रकरण में एक दूसरे पर जिम्मेदारी डालकर अपना पिंड छुड़ा रहे हैं। इस मामले दूरभाष पर हुई बातचीत में सचिव औद्योगिक विकास विभाग राकेश शर्मा ने बिल्डर को आवासीय क्षेत्र के अंतर्गत भूमि सस्ती दर पर दिये जाने पर अनभिज्ञता जताई। उन्होंने कहा कि अगर बिल्डर आवंटित भूमि का वाणिज्यक उपयोग करता है तो बिल्डर को जमीन का बैनामा नहीं किया जाएगा क्योंकि जमीन आवासीय क्षेत्र के अंतर्गत दी गई है। दूसरी ओर सिडकुल हरिद्वार के क्षेत्रीय प्रबंधक केएन नौटियाल का कहना है कि अंतरिक्ष बिल्डर को आवंटित भूमि आवासीय व्यावसायिक प्रयोजन के लिए दी गई है। नौटियाल ने बताया कि आवंटी बिल्डर को भूमि कर बैनामा कर दिया गया है। कब्जा भी दे दिया गया है। सिडकुल प्रबंध निदेशक और प्रमुख सचिव औद्योगिक विकास विभाग राकेश शर्मा एवं सिडकुल के क्षेत्रीय प्रबंधक केएन नौटियाल के विरोधाभासी बयान ही समूची कार्यवाही को संदिग्ध बनाने के लिए काफी हैं।

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