गुरुवार, 8 अगस्त 2013

काले को सफेद करने में माहिर नौकरशाहों को एक साथ कई पद!

काले को सफेद करने में माहिर नौकरशाहों को एक साथ कई पद!
राजेन्द्र जोशी
देहरादून : प्रदेश सरकार जिस तरह से भ्रष्ट नौकरशाहों की टीम को पूरे प्रदेश की महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों से नवाज रही है और महत्वपूर्ण महकमा उनके सुपुर्द कर रही है, सरकार की इस कार्यप्रणाली से तो यही लगता है कि सरकार कुछ काला-सफेद करने की फिराक में है। ऐसे अधिकारियों के ताबड़तोड़ स्थानांतरण तो कम से कम यही प्रदर्शित करते हैं, क्योंकि इन अधिकारियों का इतिहास काला-सफेद करने का ही रहा है।
    आपदा के बाद से लेकर आज तक प्रदेश सरकार ने आपदा प्रभावित क्षेत्रों में जिस तरह से अधिकारियों के तबादले और उन्हें प्रोन्नति के नाम पर वहां भेजा गया और अधिकारी जिस तरह से वहां कि जिम्मेदारी संभालने से बचते रहे, उससे तो यह साफ जाहिर है कि आपदा प्रबंधन के नाम पर केदारघाटी में जो कुछ हुआ वह संदेहस्पद ही रहा है। बीते 40 दिनों में प्राकृतिक आपदा के बाद प्रदेश सरकार आपदा राहत क्षेत्र में अफसरों को स्थायित्व देने में नाकाम रही है। इसका खामियाजा आपदा प्रभावित क्षेत्र की जनता को भुगतना पड़ रहा है। जिन अधिकारियों को प्रदेश सरकार राहत पुर्नवास और पुर्ननिर्माण के मोर्चे पर भेज रही है, वे पीठ दिखाकर वापस लौट रहे हैं। कुल मिलाकर आपदा प्रभावित रूद्रप्रयाग, चमोली, पिथौरागढ़ और उत्तरकाशी जिलों में प्रदेश सरकार वरिष्ठ नौकरशाहों की तैनाती नहीं कर पाई है। हालात संभालने के लिए प्रदेश सरकार ने अब कनिष्ठ नौकरशाहों पर दांव खेलना शुरू कर दिया है, इसके पीछे यह बात उजागर है कि निष्ठावान नौकरशाह सरकार द्वारा कराए जा रहे अनैतिक कार्याें से बचने के लिए पीठ दिखा रहे हैं।
    वहीं दूसरी ओर सरकार प्रदेश ब्यूरोक्रेसी में भ्रष्टाचार के पर्याय बन चुके अधिकारियों को ऐसी जगह तैनाती पर दांव खेल रही है, जो उसके काले को सफेद कर सके, क्योंकि आपदा के चार दिन खामोश रहने के बाद प्रदेश सरकार ने जिस तरह आपदा प्रबंधन का नाटक किया, वह किसी से छिपा नहीं है। आपदा राहत कार्याें के नाम पर निजी कंपनियों के हैलीकाप्टरों के संचालन पर भी सरकार पर अंगुली उठ रही है, इस मामले में डीजीसीए के मात्र एक पत्र से प्रदेश नागरिक उड्डयन विभाग में खलबली मची है। ठीक इसी तरह आपदा राहत सामग्री के वितरण में भी प्रदेश सरकार की निष्ठा कठघरे में खड़ी है। यात्रा पर आए तीर्थयात्रियों की संख्या को लेकर भी प्रदेश सरकार ने जिस तरह से आंकड़ों का खेल खेला वह भी संदेह के घेरे में है। इतना ही नहीं महाप्रलय के बाद प्रदेश सरकार द्वारा मीडिया मैनेजमेंट के नाम पर जिस तरह से करोड़ों रूपयों की बंदरबांट की गई, वह भी प्रदेश की जनता को काफी अखरी है।
    उल्लेखनीय है कि वर्तमान में भ्रष्टतम सूची में शामिल नौकरशाहों हो, जिस तरह एक साथ कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों से नवाजा गया है, उससे नौकरशाहों के एक ईमानदार और निष्ठावान तबके ने खुशबुसाहट करनी शुरू कर दी है। हालिया उदाहरण प्रदेश की राजधानी में तैनात मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष का है, उन्हें प्रदेश सरकार ने इसके साथ ही जिलाधिकारी देहरादून और महानिदेशक सूचना की भी जिम्मेदारी दी है, इस अधिकारी पर आरोप है कि हरिद्वार में तैनाती के दौरान इस अधिकारी ने 24 करोड़ रूपये के कार्य महज चार घण्टे के भीतर अपने किसी चहेते को दे दिए थे, जिस पर तत्कालीन मंत्री और इनके बीच 36 का आंकड़ा रहा। वहीं चर्चाओं के अनुसार कहने को तो प्रदेश के मुख्य सचिव सुभाष कुमार हैं, लेकिन पर्दे के पीछे से कोई और ही मुख्य सचिव की जिम्मेदारी निभाते हुए सरकार चला रहा है, जिसका प्रदेश सरकार ने अभी कुछ दिन पहले डीपीसी कर मुख्य सचिव के समान पद पर प्रोन्नति के रास्ते खोले हैं, जबकि प्रदेश में चर्चा है कि यह अधिकारी कितना भ्रष्ट है।
    वहीं ब्यूरोक्रेसी में इस बात की भी चर्चा है कि जब आयुक्त गढ़वाल की जिम्मेदारी पूर्व से चली आ रही है, तो ऐसे में उसी क्षेत्र में एक और आईएएस की तैनात आयुक्त के रूप में किस वजह से की गई। इतना ही नहीं आपदा प्रभावित क्षेत्रों में चार-चार आईएएस अधिकारियों की तैनाती भी संदेह के घेरे में है, क्योंकि प्रदेश सरकार ने जितने आईएएस अधिकारियों की तैनात प्रभावित क्षेत्रों में कि उनमें से अधिकांश प्रभावित क्षेत्रों को छोड़ भाग खडे हुए हैं, जो इस बात की पुष्टि करता है कि इन पर सरकार का काले को सफेद करने का अंदरूनी दबाव भी था, जिस कारण उन्होंने हाथ खड़े कर दिए। कुल मिलाकर प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी में इस बात की खासी चर्चा है कि प्रदेश सरकार ईमानदार और जानकार नौकरशाहों की जगह भ्रष्ट और काले को सफेद करने में माहिर अधिकारियों की तैनाती कर आपदा राशि पर नजर गढ़ाये हुए है।

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