बुधवार, 17 जुलाई 2013

जिनके बह गए उनके सामने भी, जिनके रह गए उनके सामने भी संकट

जिनके बह गए उनके सामने भी, जिनके रह गए उनके सामने भी संकट
राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 5 जुलाई,। केदार घाटी में असल तबाही के बाद का मंजर अब धीरे-धीरे सामने आने लगा है। तीर्थ यात्रियों के लिए चलाया गया राहत महाभियान खत्म हो चुका है। एक लाख से अधिक फंसे लोगों को सेना-आईटीबीपी राहत कर्मचारियों ने बाहर निकाल लिया है। मची तबाही में सैकड़ों पर्यटक वाहनों के बहने की सूचना है। ऐसे वाहन चालकों को अब परिवार गुजारे के लिए आगे संकट नजर आने लगा है।
   केदारघाटी व आसपास के स्थानीय लोगों के सैकड़ों युवाओं की रोजी का जरिया पर्यटन ही है। यात्रा के दौरान वाहन में सवारियों को ढोकर इतनी कमाई हो जाती है कि साल भर का गुजारा चल जाता था। लेकिन जलप्रलय में वाहनों के बहने के बाद अब उनके सामने क्या करें और क्या न करें की स्थिति सामने है। अधिकांश युवाओं ने बैंक से लोन लेकर वाहन खरीदा हुआ था। एक तो वाहन बह गया दूसरी ओर बैंक का कर्ज चुकाने का दबाव। वहीं जिन स्थानीय युवाओं के वाहन हादसे में सुरक्षित रह गए उनके सामने में स्थिति भयावह है। सड़कों के तबाह होने से अब यात्रा जारी नहीं रह सकती। तो ऐसे में किस तरह आगे गुजारा किया जाए। वहीं ऐसे युवा भी हैं जिन्होंने कि यात्रा मार्गाें पर ढाबे-चाय आदि की दुकानें बनाई हुई थीं। जिससे कि उनकी रोजी चलती आ रही थी। नदियों का उफान ऐसे ढाबों व दुकानों को बहा चुका है। हालांकि ऐसे लोग खुद तो सुरक्षित निकल गए, लेकिन कमाई का जरिया तो नहीं रहा।
घाटी में मची तबाही जहां तीर्थ यात्रियों पर भारी पड़ी। वहीं यात्रियों की आवाजाही में लगे निजी वाहनों के चालकों को भी काफी नुकसान झेलना पड़ा। दून-हरिद्वार सहित अन्य स्थानों के वाशिंदों ने भी यात्रा में अपने वाहन लगाए हुए थे। सूत्रों की मानें तो यात्रा में कई निजी वाहन बगैर बीमा कागजातों के दौड़े। वाहनों के बहने के बाद अब संपूर्ण कागजात वाले वाहनों को तो बीमाराशि का भुगतान कंपनी की ओर से किया जाएगा। मगर बीमा कागजातांे बिना दौड़ रहे व बहे वाहनांे के स्वामियों के माथे की लकीरें बढ़ चुकी हैं।

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