बुधवार, 19 जून 2013

राज्य के 1,144 जर्जर स्कूल भवनों का नहीं हो पाया पुनर्निर्माण

राज्य के 1,144 जर्जर स्कूल भवनों का नहीं हो पाया पुनर्निर्माण  

-जर्जर पाठशाला भवन कभी भी ढहा सकते हैं कहर


-अल्मोड़ा में सर्वाधिक 212 व चमोली में 207 जर्जर स्कूल


-शिक्षा विभाग स्कूलो के रखरखाव के प्रति बना है उदासीन
राजेन्द्र जोशी
देहरादून  । शिक्षा विभाग जर्जर विद्यालय भवनों के पुनर्निर्माण और रखरखाव के प्रति उदासीन बना हुआ है। जर्जर हो चुके विद्यालय भवन कभी भी कहर ढहा सकते हैं। उत्तराखंड में विभिन्न जनपदों में 1,144 स्कूल भवन जर्जर हालत में हैं। कुमांऊ मंडल के अल्मोड़ा जिले में सर्वाधिक 212 व गढ़वाल मंडल के चमोली जनपद में 207 जर्जर स्कूल भवन हैं। शिक्षा विभाग द्वारा यह जर्जर विद्यालय भवन चिन्हित तो किए गए लेकिन इनका पुनर्निर्माण कार्य नहीं हो पाया। कई जगह विद्यार्थी खुले आसमान के नीचे बैठकर पढ़ाई करने को मजबूर हैं तो कहीं कक्षाएं पंचायत भवनों में चल रही हैं, कुछ जगह विद्यार्थी जर्जर भवनों में ही बैठ रहे हैं।   
  राज्य में चमोली जिले में 207, अल्मोड़ा में 212, पिथौरागढ़ में 137, रुद्रप्रयाग में 97, टिहरी में 131, नैनीताल में 75, देहरादून मे 113, चंपावत में 69, पौड़ी में 37, हरिद्वार में 24, उत्तरकाशी में 15, उधमसिंहनगर में 14 और बागेश्वर जिले में 13 विद्यालय जर्जर हालत में है। देहरादून जनपद अंतर्गत चकराता और कालसी विकासखंडों में सर्वाधिक जर्जर विद्यालय भवन हैं। इसके अलावा सहसपुर ब्लॉक, विकासनगर ब्लॉक, रायपुर ब्लॉक व डोईवाला ब्लॉक और देहरादून नगर क्षेत्र में भी कई विद्यालय भवन जर्जर हालत में हैं। चकराता विकासखंड अंतर्गत प्राथमिक विद्यालय सिलामू, प्रावि सेंज, प्रावि चातरा, प्रावि मैंद्रथ, प्रावि जगराड़, प्रावि त्यूणी-प्रथम जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं। कालसी ब्लॉक अंतर्गत प्रावि आरा, प्रावि देऊ, प्रावि कोप्टी, प्रावि रानीगांव, प्रावि जुगाया, प्रावि बिसोई, प्रावि तांगड़ी-हजरा के विद्यालय भवन जर्जर हालत में हैं। विकासनगर और सहसपुर ब्लॉक के अलावा नगर क्षेत्र देहरादून में भी कई विद्यालय भवन बैठने योग्य स्थि िमें नहीं हैं। विद्यालय भवन जब से बने इनके रखरखाव की ओर विभाग ने कोई ध्यान नहीं दिया जिस कारण इनकी हालत अत्यंत दयनीय बनी हुई है। यह जर्जर विद्यालय भवन कभी भी धराशायी हो सकते हैं जिससे कि कोई बड़ा हादसा भी घट सकता है। इन जर्जर हो चुके विद्यालय भवनों की छतें जगह-जगह पर क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं और दीवारों पर दरारें पड़ी हुई हैं। फर्श उखड़ चुकी है और दरवाजे व खिड़कियों को दीमक चाट चुका है। बारीश में छत टपकने लगती हैं, जिस कारण विद्यालय प्रशासन के पास छात्रों की छुट्टी करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह जाता है। इन विद्यालय भवनों में बैठना छात्रों के लिए खतरे से खाली नहीं है। कुछ विद्यालय भवनों की हालत तो इतनी जर्जर हो चुकी है कि छात्र-छात्राओं को पढ़ाई करने के लिए खुले आसमान के नीचे बैठना पड़ता है। विभाग इन विद्यालयों भवनों के प्रति लापरवाह बना हुआ है। क्षेत्र के जनप्रतिनिधि शिक्षा विभाग से कई बार इन जर्जर विद्यालय भवनों का पुनर्निर्माण की मांग कर चुके हैं लेकिन विभागीय अधिकारियों की कानों में जूं तक नहीं रेंगी। एक ओर शिक्षा विभाग विद्यालय भवनों के रखरखाव पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की धनराशि खर्च कर रहा है वहीं, इन जर्जर विद्यालय भवनों की विभागीय अधिकारी सुध नहीं ले रहे हैं। विभाग की अनदेखी से लोगों में रोष व्याप्त है। कई विद्यालय भवनों की हालत इतनी जर्जर हो चुकी है कि वहां छात्र-छात्राओं को खुले आसमान के नीचे बैठकर पढ़ाई करनी पड़ती है। 

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