सिडकुल व कृषि विश्वविद्यालय की जमीन पर बनेगा मॉल और मल्टीप्लैक्स
राजेन्द्र जोशी
उत्तराखंड के इतिहास में शायद ही इतना बड़ा घोटाला हुआ हो जो वर्तमान सरकार ने रूद्रपुर में कर डाला। एक जानकारी के अनुसार लगभग 500 करोड़ से अधिक के इस घोटाले में कई ब्यूरोक्रेट से लेकर सफेदपोश नेताओं की तिजोरियां भरी गई हैं। मामला रूद्रपुर में पंतनगर तथा हरिद्वार सिडकुल क्षेत्र की भूमियों से जुड़ा है। अरबों की सरकारी भूमि के खुर्द बुर्द के बाद विभागीय अधिकारियों तथा अफसरशाही का उपर से ये तुर्रा कि औद्योगिक क्षेत्र के इन स्थानों पर लोगों के रहने के लिए आवासीय व्यवस्था पीपीपी मोड में की जायेगी। पहला मामला पंतनगर विश्वविद्यालय की उस भूमि का है जिस पर कृषि विश्वविद्यालय खेती पर प्रयोग करता रहा था बाद में इस भूमि को तिवारी सरकार के शासनकाल में सिडकुल को दे दी गयी थी। जिंदल उद्योग व डावर उद्योग के बीच स्थित इस भूमि पर एक बड़ा मॉल व आवासीय भवन का विज्ञापन दिल्ली के बड़े बिल्डर द्वारा उसकी बेव साइट पर डाल दी गयी है। जबकि दूसरा महत्वपूर्ण मामला पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय से जुड़ी उस जमीन का है, जिस पर पूर्व भाजपा सरकार ने यह भूमि विश्वविद्यालय से लेकर मण्डी समिति को 29 जुलाई 2011 को स्थानान्तरित कर खाद्यान व्यापार स्थल एंव अत्याधुनिक कृषि बाजार बनाने के लिए ली थी। सरकार की मंशा पर तब सवालिया निशान लगे जब एक ओर तो कृषि विपणन अनुभाग द्वारा इस 50 एकड़ भूमि पर अत्याधुनिक बहुमंजिला व्यवसायिक भवन सहित सम्मेलन केंद्र व फूलों की खेती केंद्र बनाए जाने के लिए बैठक बुलायी गई है। वहीं दूसरी ओर इसी भूमि पर बहुमंजिले व्यवसायिक भवन सहित अत्याधुनिक आवासीय भवन व भूखण्ड का विज्ञापन एक निजी संस्थान द्वारा वेबसाइट पर डाला गया है।
यहां भी उल्लेखनीय है कि 50 एकड़ भूमि को किसी निजी संस्थान को दिए जाने
मामले में पूर्व कृषि मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि इस सरकार को न तो किसानों की चिंता है और न कृषि की। उन्होंने कहा कि मण्डी समिति के काफी प्रयासों के बाद उसे यह भूमि मिल पायी थी जिसको यह सरकार खुर्द-बुर्द करना चाहती है। जबकि भाजपा शासनकाल में इस भूमि पर अत्याधुनिक मण्डी भवन बनाने का प्रस्ताव अन्तिम दौर में था। उन्होंने कहा कि सरकार की इस मंशा को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा और किसानों के लिए ली गई इस भूमि पर किसानों के हित के कार्य ही होंगे। उन्होंने राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि यह सरकार पूरे प्रदेश की सम्पतियों को पीपीपी मोड में देने को आखिर क्यों इतनी उतावली है इसकी जांच की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि यह घोटाला राज्य के इतिहास में सबसे बडा घोटाला साबित होगा जिसमें सरकार के मंत्री व अफसर बराबर के हिस्सेदार हैं।
हलद्वानी से पेशे से वकील चन्द्र मोहन करगेती का कहना है कि अब माल काटने के खेल की नए सिरे से फिर शुरूआत होने जा रही है, अबकी बार इसके नायक है औद्योगिक विकास विभाग के प्रमुख सचिव, बहुगुणा सरकार के इस निर्णय से बहुत सारे प्रश्न और शंकाएं को बल मिल रहा है, जिनका उत्तर हमें तलाशना ही पडे़गा, यह ऐसे में और जरूरी हो जाता है जब सन् 2001-2002 से 2010-2011 के बीच में राज्य में 53,027 हेक्टेयर कृषि भूमि खत्म हो जाती है, 2011-2012 के आंकड़े अभी प्राप्त नहीं हुए है, अगर इसके आंकड़ों को भी जोड़ दिया जाये तो स्थिति और भयावह है, इसके विपरीत हमारे पड़ोसी राज्य में साल दर साल कृषि भूमि में इजाफा होता है, और उत्तराखण्ड में साल दर साल घटोती हो रही है, यह आंकड़े सरकार की नीतियों पर तो एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह लगाती है ही लेकिन साथ ही इस राज्य की जनता की पसंद पर भी कि वह कैसे प्रतिनिधि विधानसभा में भेज रही है ? राज्य में उद्योगों के नाम पर ली गयी बेशकीमती जमीनों के इस बन्दर बाँट से जो प्रश्न खड़े हो रहे हैं उनका जवाब भी हमें ढूंढना है।
उन्होने कहा निम्न प्रश्न आज भी अनुत्तरित हैं
सिडकुल में टाउनशिप बनायी जायेंगी उस जमीन का लैंडयूज नियमों को ताक पर रखकर कैसे परिवर्तित किया जाएगा ?
जो टाउनशिप बनेगी उसमें रहने वाले लोग कौन होंगे क्योंकि सिडकुल में स्थायी कर्मकार के रूप में काम करने वाले लोगो का प्रतिशत 10 भी नहीं है जबकि सरकार के जीओ के यह व्यवस्था 70 प्रतिशत की थी ?
जमीन को दोबारा बेचने की जरुरत क्यों पड़ रही है ?
उद्योगों के नाम पर ली गयी उपजाऊ कृषि भूमि पर उद्योग क्यों नहीं स्थापित हो सकते, क्या इन्हें निजी बिल्डर को देना ही एक मात्र विकल्प है ?
आवासीय कॉलोनी निर्माण को ली गयी जमीन किस मूल्य पर बिल्डरों को दी जायेगी और उनके द्वारा उसे किस मूल्य पर बेचा जाएगा, और उस मुनाफे में सरकार का हिस्सा क्या होगा ?
क्या यह सरप्लस बची भूमि पहाड़ में आपदा से पीड़ित या टिहरी विस्थापितों को क्यों नहीं दी जा सकती ?
राज्य में आपदा के समय किसी भी अधिकारी को हेलिकोप्टर नहीं दिया गया, लेकिन भूमि तलाश को हेलिकोप्टर दिया गया है इसका खर्च कौन वहन कर रहा है ?
ये बहुत सारे प्रश्न है जिनका उत्तर हमें स्वयं को ही तलाशना होगा सरकार में बैठे मंत्री व विधायक तो इनका उत्तर देने से रहे, और नौकरशाहों से इसकी उम्मीद करना बेइमानी है जब वे इस राज्य के निर्वाचित प्रतिनिधियों को कुछ नहीं समझते तो जनता की कौन सुनेगा।
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