मंगलवार, 23 जुलाई 2013

मुआवज़े के बीच अपनों का इंतज़ार

मुआवज़े के बीच अपनों का इंतज़ार


उत्तराखंड सरकार फ़ाइलों में लापता लोगों को मृत मानकर उनके परिजनों को मुआवज़ा देने की प्रक्रिया शुरू कर रही है, वहीं लापता लोगों के परिजनों के लिए इस सच्चाई को स्वीकार करना इतना आसान नहीं है.
मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने कहा है, "15 जुलाई तक 5,748 लोगों को मुआवज़ा देने की प्रक्रिया सोमवार से शुरू कर दी जाएगी. इस आपदा में मारे गए राज्य सरकार के कर्मचारियों के परिजनों को 16 जुलाई को मैं चेक दूंगा."
मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के अनुसार 15 जुलाई तक लापता लोगों की संख्या 5,748 है जिन्हें स्थाई रूप से लापता मानकर राहत राशि दे दी जाएगी.
मुख्यमंत्री का कहना था कि लोगों को एक हलफनामा भरकर देना होगा कि उनके परिजन किस तारीख को आए थे और कब और कहां से लापता हुए और ये कि घर वापस नहीं लौटे हैं.
मुआवज़ा
साथ में इंडेमिनिटी बॉंड भी भरकर देना होगा कि अगर उनके परिजन लौट आते हैं तो वो राहत राशि लौटा देंगे. इसी आधार पर उन्हें राहत राशि दे दी जाएगी.
इसी हलफनामे और बॉन्ड के आधार पर एलआईसी और अन्य बीमा कंपनियों से कहा गया है कि वो प्रभावित लोगों का इंश्योरेंस क्लेम दे दे. सोमवार को स्थानीय समाचारपत्रों में छपे कुछ बीमा कंपनियों के विज्ञापन में भी इसका उल्लेख है.
दरअसल भारतीय दंड संहिता के आधार पर 7 वर्षों तक लापता रहने के बाद ही किसी को मृत माना जा सकता है लेकिन उत्तराखंड की आपदा को विशेष स्थिति मानकर सरकार ने आपदा की तिथि से एक महीने तक लापता रहने वाले लोगों को मृत मानते हुए राहत राशि देने का फ़ैसला किया है क्योंकि क़ानूनन सरकार इतनी जल्दी उन्हें मृतक प्रमाणपत्र नहीं दे सकती है.
मुख्यमंत्री ने कहा, "हम इस विवाद में नहीं पड़ना चाहते कि वो जीवित हैं या नहीं लेकिन वो घर नहीं लौटे हैं और उनके परिजनों को राहत देने के लिए मौद्रिक राहत का वितरण शुरू कर दिया जाएगा. और जो लापता हैं और उनकी खोज जारी रहेगी."
हालांकि मुख्यमंत्री के इस बयान को महज़ सांत्वना की औपचारिकता माना जा रहा है.
इंतज़ार जारी रहेगा
दूसरी ओर अब भी कुछ लोग ऐसे हैं जो अपने परिजनों के इंतज़ार में हैं और उनके सब्र का बांध टूट चुका है. उनकी शिकायत है कि सरकार उन्हें ढूंढने में कोई मदद नहीं कर रही है.
अमेठी से आए अभिषेक कहते हैं "मेरे माता-पिता 41 लोगों के साथ केदारनाथ आए थे. वो दर्शन करके गौरीगांव लौट आए थे. उनके साथ गया एक व्यक्ति जीवित लौट आया और उसने बताया कि वो लोग वहां जीवित हैं लेकिन सरकार उन्हें निकालकर नहीं लाई."
अभिषेक का कहना है, "या तो सरकार कह दे कि वो मेरे माता-पिता को ढूंढ नहीं सकती या हमें पैसा दे. हम ख़ुद जाकर उन्हें खोजेंगे. मुआवज़ा लेकर मैं क्या करूंगा."
इसी तरह कानपुर से नवनीत मिश्र ने बीबीसी को फ़ोन पर बताया, "मुआवज़ा लेने के बारे में क्या कहूं, इस बारे में कुछ सोच नही पा रहा हूं. हमें तो अब भी उम्मीद है."
नवनीत की बहन इस आपदा की भेंट चढ़ गई जिनके शव की पहचान हो गई लेकिन उनके परिवार के 10 और लोग हैं जिनका अब तक पता नहीं चल पाया है.
यह सूची अंतिम नहीं
हालांकि सरकार से जारी 5,748 लोगों की इस सूची को अभी अंतिम और वास्तविक नहीं माना जा सकता. इसके तीन प्रमुख कारण हैं.
पहला ये कि सूची अभी तक पूरी तरह सत्यापित नहीं हो पाई है. आंध्र प्रदेश, जम्मू कश्मीर और पांडिचेरी की सरकारों ने अपने यहां से लापता लोगों की सूची सत्यापित कर दी है लेकिन उत्तर प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों से आई लापता लोगों की सूची के सत्यापन का काम अभी भी चल ही रहा है.
दूसरा कारण ये कि अभी तक लापता लोगों की सूचनाएं पहुंच ही रही हैं. मिसिंग सेल के अनुसार 14 जुलाई को ही गुजरात से कुछ और लापता लोगों के नाम भेजे गए हैं और इसी तरह बिजनौर से भी दो और लोगों के गुमशुदा होने की सूचना लिखाई गई है.
तीसरा बड़ा कारण ये है कि कई लापता लोग ऐसे होंगे जिनकी गुमशुदगी की रिपोर्ट ही नहीं लिखाई गई होगी जैसे भिखारी, साधु, घोड़े और खच्चरवाले और वैसे लोग जो इस प्रक्रिया से ही अनजान होंगे और दूसरी वजहों से अक्षम होंगे.
सत्यापन के काम में कंप्यूटर विशेषज्ञों और मोबाइल ट्रेसिंग की भी मदद ली जा रही है. इससे जुड़े कर्मचारियों का कहना है कि शायद इस प्रक्रिया को पूरा होने में और दो सप्ताह का वक्त लग सकता है लेकिन साथ ही उनका ये भी कहना है कि जब तक राहत राशि पूरी तरह बंट नहीं जाती, तब तक लापता लोगों की संख्या पर अंतिम तौर पर कुछ कहना कठिन होगा.

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