गुरुवार, 29 अगस्त 2013

उधर उत्तराखण्ड जलप्रलय से कराह रहा था, इधर ब्यूरोक्रेट बेच रहे थे जमीन


ब्रेकिंग न्यूज---एक्सक्लूसिव

उधर उत्तराखण्ड जलप्रलय से कराह रहा था, इधर ब्यूरोक्रेट बेच रहे थे जमीन


सिडकुल ने बेची करोड़ों की जमीन कौड़ियों में

राजेन्द्र जोशी
देहरादून : जब समूचा उत्तराखण्ड जलप्रलय की महापीड़ा से कराह रहा था, ऐसे में उत्तराखण्ड के ब्यूरोक्रेट्स सिडकुल की सम्पत्ति बेचने में मशगूल थे। उन्हें न उत्तराखण्डवासियों से संवेदना थी और न ही उत्तराखण्ड से कोई सरोकार। ताजा मामला देहरादून के सहस्त्रधारा रोड़ स्थित आईटी पार्क क्षेत्र में सरकार द्वारा अधिग्रहित भूमि को बिल्ड़रों को बेचे जाने से जुड़ा है। बिल्ड़र ने बकायदा सहस्त्रधारा रोड़ स्थित आईटी पार्क की जमीन पर बहुमंजिले भवन का नक्शा बनाकर उसमें बनाए जाने वाले फ्लैटस् के विज्ञापन भी ‘‘द कैपिटल‘‘ नाम से बेचने भी शुरू कर दिए हैं, जबकि यह जमीन पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) पार्क के लिए अधिग्रहित की थी। उनके शासनकाल में कई नामी गिरामी कंपनियों ने इस पार्क में अपने संस्थान खोलने में इच्छा भी जाहिर की थी, लेकिन तिवारी के जाने के बाद भाजपा और कांग्रेस शासन के दौरान यह पार्क क्षेत्र कोई प्रगति नहीं कर पाया और न ही राज्य के नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स ने सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़े राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों को इस ओर आकर्षित ही किया। उल्टा राज्य के बेरोजगारों के लिए रोजगार दिलाने के उद्देश्य से पूर्व मुख्यमंत्री तिवारी के सपनों को सफेदपोश नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स के गठजोड़ ने धूल-धूसरित कर भूमाफियाओं को बेच दिया।
प्रदेश में तिवारी शासनकाल में राज्य के बेरोजगारों को रोजगार से जोड़ने और राज्य की आर्थिक तरक्की के लिए स्टेट इन्फ्रास्ट्रक्चर एण्ड इण्डस्ट्रियल डेवलपमेंट कारपोरेशन ऑफ उत्तराखण्ड लिमिटेड (सिडकुल) का गठन किया। राज्य में हरिद्वार, रूद्रपुर, रूड़की-भगवानपुर, सितारगंज, सेलाकुई तथा देहरादून में सरकार द्वारा बड़ी मात्रा में भूमि खरीद कर राज्य में औद्योगिक विकास का सपना बुना गया। तिवारी के मुख्यमंत्रित्व काल में सिडकुल द्वारा निर्धारित औद्योगिक क्षेत्र में तिवारी के व्यक्तिगत प्रयासों और उनके औद्योगिक घरानों से संबंधों को देखते हुए कई उद्योग उत्तराखण्ड की ओर आकर्षित भी हुए, इससे राज्य के कई बेरोजगारों को रोजगार तो मिला वहीं देश के बेरोजगारों को भी इन औद्योगिक क्षेत्रों में रोजगार की नई राह दिखाई दी। पूर्व मुख्यमंत्री तिवारी द्वारा प्रदेश के इन औद्योगिक क्षेत्रों में वर्तमान सरकार द्वारा उद्योगों के लिए निर्धारित भूमि सबसे पहले तो रूद्रपुर में बिल्ड़रांे को कौड़ियों के दाम बेची गई। इसके बाद सिडकुल हरिद्वार-रोशनाबाद स्थित करोड़ों की जमीन को कौड़ियों के दाम एक बिल्ड़र को बेच दी गई।
ताजा मामला राज्य की राजधानी देहरादून से जुड़ा है। प्रदेश के रूद्रप्रयाग, चमोली और पिथौरागढ़ जनपद के जब अधिकांश क्षेत्र जलप्रलय की मार झेल रहे थे, ठीक इसी समय राज्य के ब्यूरोक्रेट्स और नेताओं के गठजोड़ ने आईटी सहस्त्रधारा रोड़ की बेशकीमती जमीन को कौड़ियों के भाव दो बिल्डरों को बेच डाली। प्रदेश के अधिकारी राज्य की पीड़ा को लेकर कितने संवेदनशील हैं, यह इस डील ने साफ कर दिया है। जब पूरे देश का ध्यान केदारनाथ आपदा पर टिका था और भारतीय सेना आपदा प्रभावित क्षेत्रों से जीवन और मौत के बीच झूल रहे प्रभावित लोगों को निकालने में व्यस्त थी, ठीक ऐसे ही समय पर राज्य के ब्यूरोक्रेट्स सहस्त्रधारा रोड़ स्थित करोड़ों की इस जमीन को कौड़ियों के भाव बेचने में व्यस्त थे। इस बात की तस्दीक बिल्ड़र और सिडकुल के बीच हुआ एमओयू साफ करता है। 26 जून 2013 को राज्य सरकार की ओर से सिडकुल के दो अधिकारियों और बिल्डर की ओर से उसके दो प्रतिनिधियों ने इस समझौते पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं। इस पत्र को देखने पर यह भी साफ हो जाता है कि राज्य सरकार के अधिकारियों को सिडकुल की इस बेशकीमती जमीन को बेचने की कितनी जल्दी थी, क्योंकि सिडकुल द्वारा जारी पत्र में समझौते की तारीख 26 जून 2013 अंकित की गई है, जबकि बिल्ड़र द्वारा इस समझौते पत्र में 2 जुलाई 2013 की तारीख अपने हस्ताक्षरों के साथ अंकित की गई है। पुष्ट सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ठीक इसी तरह एक और समझौता पत्र प्रदेश के सिडकुल के अधिकारियों द्वारा उस बिल्डर से किया गया है और जिसे कुछ माह पूर्व रूद्रपुर स्थित एक पंच सितारा होटल के पास की मण्डी समिति की वह जमीन दे दी गई है, जो अत्याधुनिक किसान विपणन केंद्र व मॉर्डन बिजनेस सेंटर के लिए आरक्षित थी।
नेताओं और अफसरशाहों का गठजोड़ प्रदेश में नया उद्योग तो आकर्षित नहीं कर पाया, लेकिन उसने नए उद्योगों के लिए आरक्षित जमीन को जरूर बेच डाला है। इतना ही नहीं सूत्रों का तो यहां तक दावा है कि सहस्त्रधारा रोड़ स्थिति आईटी पार्क के लिए अधिग्रहित इस भूमि पर कई अन्य औद्योगिक घरानों को भी चारा डाला गया, लेकिन अपनी व्यवसायिक साख को देखते हुए वे कंपनियां वापस चली गई, क्योंकि उन्हें यह पता था कि जिस भूमि को सिडकुल के अधिकारियों द्वारा उन्हें औने-पौने दामों में दिया जा रहा है, उस पर असल में हक किसी और का है, लिहाजा उन कंपनियों ने अपने प्रस्ताव सरकार से वापस ले लिए। प्राप्त जानकारी के अनुसार सिडकुल ने जीटीएम नाम की कंपनी को 17659.41 वर्ग मीटर भूमि आवंटित की है, जिस पर वह ‘‘द कैपिटल‘‘ के नाम से आवासीय फ्लैटस् बना रही है। जिसमें फ्लैट की कीमत 21 लाख से लेकर 75 लाख रूपये तक रखी गई है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें