गुरुवार, 29 अगस्त 2013

दो महीने बाद भी प्रदेश की हालत जस के तस

दो महीने बाद भी प्रदेश की हालत जस के तस


आपदा राहत कार्यों में केवल सरकार ने चमकाई अपनी छवि

राजेन्द्र जोशी
देहरादून  । 16-17 जून को उत्तराखण्ड में जो तबाही मची, उसे भूल पाना मुश्किल है। प्रकृति ने जो जख्म देश के 18 राज्यों के तीर्थयात्रियों सहित उत्तराखण्ड को दिए, उनका भर पाना भी मुश्किल है। आपदा के महाप्रलय को दो महीने हो चुके हैं। इन दो महीनों में प्रदेश सरकार आपदा राहत कार्यों के अलावा पुर्नवास सहित उन तमाम मोर्चों पर फेल ही नजर आई है। इन दो महीनों में प्रभावित क्षेत्रों में कोई कार्य हुआ हो अथवा नहीं, लेकिन प्रदेश सरकार अपनी छवि चमकाने के अलावा और कुछ नहीं कर पाई है। सरकार के आपदा प्रबंधन और राहत कार्यों की पोल खुद सरकार के विधायक और विधानसभा अध्यक्ष समय-समय पर खोलते रहे हैं। हद तो तब हो गई, जब आपदा और राहत कार्यों की बदतर हालत और अकुशल आपदा राहत संचालन को देखते हुए विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने मुख्यमंत्री को तीन पन्नों के सुझाव तक दे डाले, इसके बाद भी सरकार ने इसे राजनैतिक मुद्दा बनाने का प्रयास किया। जबकि विधानसभा अध्यक्ष द्वारा दिए गए सुझाव व्यवहारिक और सरकार की छवि सुधारने के लिए महत्वपूर्ण थे।
    गौरतलब हो कि 16-17 जून की तबाही ने उत्तराखण्ड की आर्थिकी सहित सामाजिक ताने-बाने तक को छिन्न-भिन्न कर दिया। राज्य के उत्तरकाशी, बागेश्वर, चमोली और पिथौरागढ़ जनपद इस भीषण तबाही से कांप उठे। लगभग 200 गांव पूरी तरह बर्बाद हो गए, वहीं सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 6000 लोग इस त्रासदी की भेंट चढ़ गए और राज्य सरकार के अनुसार इस जलप्रलय से प्रदेश को लगभग 15 हजार करोड़़ से अधिक का आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा है। प्रदेश की लाईफ लाइन समझे जाने वाले चार-धामों को जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग बुरी तरह ध्वस्त हो गए, जो दो महीने बाद आज तक भी बंद पड़े हैं। रूद्रप्रयाग जनपद की बात की जाए तो, यहां के 126 गांव तक आज भी पहुंच मार्ग नहीं बन पाए हैं। लोग खाद्यान्न और जरूरी सामान के लिए कई किलोमीटर पैदल सफर तय करने को मजबूर हैं। इन दो महीनों में प्रदेश सरकार द्वारा किए जा रहे आपदा और राहत कार्यों ने सरकार की कार्यकुशलता की पोल खोलकर रख दी है। पर्वतीय इलाकों में चिकित्सा व शिक्षा की व्यवस्था तहस-नहस हो गई है। आपदा से पहले अतिसंवेदनशील पुर्नवास की बाट जोह रहे 233 गांव की संख्या बढ़कर लगभग 433 हो गई है। आपदा प्रभावित क्षेत्रों के लोग आज भी तंबूओं में जिंदगी जीने को मजबूर हैं। प्रदेश सरकार दो महीने बीत जाने के बाद भी आज तक आपदा में मृत हुए तीर्थयात्रियों व स्थानीय लोगों को मृत्यु प्रमाण पत्र की व्यवस्था नहीं कर पाई है। आपदा के बाद जान बचाकर बच गए लोग कहां गए इसका रिकार्ड अभी भी सरकार के पास नहीं है।
    आपदा प्रभावित क्षेत्रों में आज भी कई घर धीरे-धीरे जर-जर होकर गिर रहे हैं। राहत एवं बचाव कार्य में लगे गैर सरकारी संगठन आज भी आपदा प्रभावित क्षेत्रों में जमे हुए हैं। इन संगठनों के भरोसे ही ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को चिकित्सा सहायता व खाद्यान्न मिल रहा है। कुल मिलाकर दो माह पूरे होने के बाद भी प्रदेश सरकार जमीनी हकीकत से काफी दूर नजर आती है, जबकि सरकार ने अपनी छवि सुधारने में करोड़ों रूपये आपदा राहत कार्यों के बजाए विज्ञापनों में खर्च कर दिए हैं।


आपदा राहत कार्यों में केवल सरकार ने चमकाई अपनी छवि

राजेन्द्र जोशी
देहरादून  । 16-17 जून को उत्तराखण्ड में जो तबाही मची, उसे भूल पाना मुश्किल है। प्रकृति ने जो जख्म देश के 18 राज्यों के तीर्थयात्रियों सहित उत्तराखण्ड को दिए, उनका भर पाना भी मुश्किल है। आपदा के महाप्रलय को दो महीने हो चुके हैं। इन दो महीनों में प्रदेश सरकार आपदा राहत कार्यों के अलावा पुर्नवास सहित उन तमाम मोर्चों पर फेल ही नजर आई है। इन दो महीनों में प्रभावित क्षेत्रों में कोई कार्य हुआ हो अथवा नहीं, लेकिन प्रदेश सरकार अपनी छवि चमकाने के अलावा और कुछ नहीं कर पाई है। सरकार के आपदा प्रबंधन और राहत कार्यों की पोल खुद सरकार के विधायक और विधानसभा अध्यक्ष समय-समय पर खोलते रहे हैं। हद तो तब हो गई, जब आपदा और राहत कार्यों की बदतर हालत और अकुशल आपदा राहत संचालन को देखते हुए विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने मुख्यमंत्री को तीन पन्नों के सुझाव तक दे डाले, इसके बाद भी सरकार ने इसे राजनैतिक मुद्दा बनाने का प्रयास किया। जबकि विधानसभा अध्यक्ष द्वारा दिए गए सुझाव व्यवहारिक और सरकार की छवि सुधारने के लिए महत्वपूर्ण थे।
    गौरतलब हो कि 16-17 जून की तबाही ने उत्तराखण्ड की आर्थिकी सहित सामाजिक ताने-बाने तक को छिन्न-भिन्न कर दिया। राज्य के उत्तरकाशी, बागेश्वर, चमोली और पिथौरागढ़ जनपद इस भीषण तबाही से कांप उठे। लगभग 200 गांव पूरी तरह बर्बाद हो गए, वहीं सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 6000 लोग इस त्रासदी की भेंट चढ़ गए और राज्य सरकार के अनुसार इस जलप्रलय से प्रदेश को लगभग 15 हजार करोड़़ से अधिक का आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा है। प्रदेश की लाईफ लाइन समझे जाने वाले चार-धामों को जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग बुरी तरह ध्वस्त हो गए, जो दो महीने बाद आज तक भी बंद पड़े हैं। रूद्रप्रयाग जनपद की बात की जाए तो, यहां के 126 गांव तक आज भी पहुंच मार्ग नहीं बन पाए हैं। लोग खाद्यान्न और जरूरी सामान के लिए कई किलोमीटर पैदल सफर तय करने को मजबूर हैं। इन दो महीनों में प्रदेश सरकार द्वारा किए जा रहे आपदा और राहत कार्यों ने सरकार की कार्यकुशलता की पोल खोलकर रख दी है। पर्वतीय इलाकों में चिकित्सा व शिक्षा की व्यवस्था तहस-नहस हो गई है। आपदा से पहले अतिसंवेदनशील पुर्नवास की बाट जोह रहे 233 गांव की संख्या बढ़कर लगभग 433 हो गई है। आपदा प्रभावित क्षेत्रों के लोग आज भी तंबूओं में जिंदगी जीने को मजबूर हैं। प्रदेश सरकार दो महीने बीत जाने के बाद भी आज तक आपदा में मृत हुए तीर्थयात्रियों व स्थानीय लोगों को मृत्यु प्रमाण पत्र की व्यवस्था नहीं कर पाई है। आपदा के बाद जान बचाकर बच गए लोग कहां गए इसका रिकार्ड अभी भी सरकार के पास नहीं है।
    आपदा प्रभावित क्षेत्रों में आज भी कई घर धीरे-धीरे जर-जर होकर गिर रहे हैं। राहत एवं बचाव कार्य में लगे गैर सरकारी संगठन आज भी आपदा प्रभावित क्षेत्रों में जमे हुए हैं। इन संगठनों के भरोसे ही ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को चिकित्सा सहायता व खाद्यान्न मिल रहा है। कुल मिलाकर दो माह पूरे होने के बाद भी प्रदेश सरकार जमीनी हकीकत से काफी दूर नजर आती है, जबकि सरकार ने अपनी छवि सुधारने में करोड़ों रूपये आपदा राहत कार्यों के बजाए विज्ञापनों में खर्च कर दिए हैं।

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