गुरुवार, 8 अगस्त 2013

अफसरशाही का पुर्नवास और आपदा पीड़ितों को दर-दर की ठोकरें

अफसरशाही का पुर्नवास और आपदा पीड़ितों को दर-दर की ठोकरें
राजेन्द्र जोशी
देहरादून  । उत्तराखंड की भी अपनी विभीशिका है कभी भूकंप से प्रलय तो कभी बाढ़ का कहर खतरे की जद में आए 233 ऐसे गांवों का आज तक पुर्नवास तो नहीं हो पाया है लेकिन यह संख्या अब बढ़ कर दो गुनी जरूर हो गई है जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे इन गांवों की चिंता न तो प्रदेश के नेताओं को है और न ही यहां की अफसरशाही को इन्हे इन गांवों के बजाए चिंता है तो अपने पुर्नवास की।
उल्लेखनीय है कि राज्य बनने से लेकर अब तक प्रदेश के एक दर्जन से ज्यादा ब्यूरोक्रेट अपना सेवा काल पूरा करने के बाद राज्य में ही पुर्नवासित होते रहे है। इनमें सबसे पहले प्रदेश के मुख्य सचिव डा. आर एस टोलिया रहे है जिन्होने राज्य की अफसरशाही को पुर्नवास का रास्ता दिखाया। टोलिया को मुख्य सूचना आयुक्त बनाकर प्रदेश सरकार ने जहां उनका पुर्नवास किया वहीं उनको वह सब सुविधाऐं भी मुहैया कराई गई जो उनको प्रदेश के मुख्य सचिव रहने के दौरान मिलती थी। इनके बाद प्रदेश के मुख्य सचिव एस केे दास का पुर्नवास करते हुए प्रदेश सरकार ने उनको लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष बना डाला। एस के दास के बाद प्रदेश के मुख्य सचिव बने एन एस नपच्याल को टोलिया के बाद राज्य सूचना आयोग का मुख्य सूचना आयुक्त बनाया गया। जबकि इनके बाद मुख्य सचिव बने इंदु कुमार पांडे को कुछ दिन बनवास में रहने के बाद मुख्य मंत्री का सलाहकार बनाया गया। वही प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री डी के कोटिया को राज्य सेवा अभिकरण का उपाध्यक्ष बनाया गया। जबकि सचिव हरिश्चंद्र जोशी को राज्य निर्वाचन आयोग और विपिन चंद्र चंदोला को भी सेवा काल के बाद पुर्नवासित किया गया। वही इसी महीने प्रदेश सरकार ने सेवानिवृत होने वाले आयुक्त गढ़वाल मंडल सुवर्धन, सचिव कार्मिक सुरेन्द्र सिंह रावत और सचिव दुग्ध विकास आरसी पाठक को तीन माह का सेवा विस्तार देते हुए पुर्नवासित किया गया।   
    राज्य के अस्तित्व में आने से पहले से ही प्रदेश के 233 ऐसे गंाव खतरे के मुहाने पर खड़े है लेकिन राज्य सरकार के पास इन गांवों के पुर्नवास की कोई नीति नज़र नहीं आती है। जबकि 16 - 17 जून को राज्य में आए प्रलयंकारी आपदा के बाद प्रदेश में मौत के दौराहे पर खड़े ऐसे गांवों की संख्या बढ़ कर दोगुनी को गई है। ऐसे 100 गांवों का भूगर्भीय सर्वेक्षण हो चुका है और लगभग 147 गांवों को सर्वेक्षण प्रस्तावित है। इन खतरे की जद में आए गांवों को कहां पुर्नवासित किया जाएगा सरकार के पास सोचने का वक्त नहीं है। इन गांवों के लोग अब ज़रा सी भी बारिश आने पर घबराते हुए अपने घरों से बाहर रात गुज़ारने को मज़बूर है। लेकिन सरकार के पास इनको दहशत से निज़ात दिलाने का वक्त नहीं है। वक्त है तो अपने जीवन के 60 वर्ष मौजमस्ती कर जीवन बिताने वाले उन अफसरों के पुर्नवास का जो ताउम्र मलाई खाने के आदी हो चुके है।

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