गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

दोनों राष्ट्रीय दल परेशान : आपदा राहत कार्य बनता जा रहा है बड़ा चुनावी मुद्दा

राजेन्द्र जोशी
  aapda लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बहुगुणा को इसलिए हटाया ताकि जनता में यह सन्देश जाये कि आपदा राहत कार्यों में लापरवाही करने वाले को कांग्रेस नेतृत्व नहीं बख्शेगा लेकिन हवाई यात्रा करने वाले अधिकारियों पर कांग्रेस सरकार की नरमी मतदान के रूप मे भारी पड़ने वाली लगती है क्योंकि यदि हरीश रावत को छोड़ दिया जाये तो पूर्वमुख्यमंत्री विजय बहुगुणा का यमुना व गंगा  घाटी मे जिस तरह मुख्यमंत्री पद से हटाये जाने के बाद उनके दौरे के दौरान जो विरोध स्थानीय निवासियों ने किया उससे तो कम से कम यही सन्देश जाता है कि कांग्रेस के पक्ष मे आपदा प्रभावित इलाकों के लोग बिलकुल भी मतदान नहीं करने वाले. ऐसा नहीं आपदा प्रभावित इलाकों के लोगों के विरोध का सामना केवल कांग्रेस पार्टी के लोग ही कर रहे हों ,आपदा के दौरान सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाली केदार घाटी के लोगों ने बीते दिनों भाजपा के गढ़वाल प्रत्याशी व पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूरी का भी फाटा मे विरोध किया. स्थानीय लोगों का सरकार पर आरोप है कि वह केवल तीर्थ यात्रियों की सुविधा के लिए ऋषिकेश से गौरीकुंड व गौरी कुंद से केदारनाथ तक के पैदल मार्ग की दशा सुधारने पर जुटी है जबकि प्रभावित ग्रामीण इलाकों के लोगों को सरकार ने आज भी अपने भाग्य के भरोसे छोड़ा हुआ है. स्थानीय निवासियों का कहना है कि उनके परिजन आज भी  भारी ठण्ड झेलने के बाद अब गर्मी व आने वाली बरसात की कल्पना कर सिहर जाते हैं 
    गौरतलब हो कि करीब एक साल पहले 15-16 जून को उत्तराखंड में आई आपदा ने कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को इस तरह से झकझोर कर रख दिया था उसी का परिणाम था कि कांग्रेस को  विजय बहुगुणा को हटा कर हरीश रावत को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाना पड़ा , रावत के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के तुरंत बाद सबसे पहले आपदा प्रभावित इलाकों का दौरा ही नहीं किया बल्कि केदारनाथ मार्ग सहित राज्य के चारधाम मार्गों की दशा को सुधरने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय भी किये. बावजूद इसके बही तक  आपदा से पीड़ित लोगों की पीड़ा कम नहीं हो पाई है. लोकसभा चुनाव के से ठीक पहले कांग्रेस  नेतृत्व ने बहुगुणा को सीएम पद से इसलिए हटाया था कि जनता मे यह सन्देश जाये कि आपदा राहत कार्यों में हीलाहवाली करने वालों को कांग्रेस  माफ नहीं करेगी , जिस तरह से हरीश रावत ने आपदा कार्य संचालित किये उसके बाद भी लोगों में हरीश रावत के नहीं बल्कि कांग्रेस के खिलाफ आक्रोश है उसी का परिणाम था जो विजय बहुगुणा का गंगा व यमुना घाटियों में जबरदस्त विरोध हुआ  और आपदा का मुद्दा 16वीं लोकसभा के लिए चुनावी मुद्दा बन गया .यही कारण है कि आपदा प्रभावित इलाकों के लोग राहत कार्यों में हीलाहवाली को लेकर कांग्रेस से ही नहीं  बल्कि तक से भाजपा जवाब मांग रहे हैं.  
  वहीँ आपदा के दौरान मारे गए लोगों को दिए जाने वाले मुआवजे की राशि में भी अंतर का मामला कांग्रेस के लिए जी का जंजाल बन गया है गौरतलब हो कि बहुगुणा सरकार ने राज्य के बाहर के प्रदेशों के लोगों के लिए साढ़े तीन लाख रुपये व उत्तराखंड राज्य के लोगों के लोए मुआवजे की राशि पांच लाख रुपये निर्धारित की थी यही कारण है न तो भाजपा के लोग ही इस बात को उत्झा रहे है और न ही कांग्रेस के लोग ही क्योंकि भाजपा को इस बात का खतरा है कि जब राज्यसरकार मुआवजे की राशि को लेकर मंथन कर रही थी तो उसने राशि कम होने की बात को क्यों नहीं उठाया और कांग्रेस इस बात से परेशान है कि यदि इसे वो खुद उठती है तो बाहरी प्रदेशों मे इसका नकारात्मक सन्देश जायेगा कि कांग्रेस सरकार ने मरे हुए लोगों के साथ भी राशि को लेकर भेदभाव किया .लेकिन प्रदेश की जनता खुद भी तत्कालीन बहुगुणा सरकार के इस निर्णय से खुश नहीं है क्योंकि लोगों का मानना है कि कई ऐसे लोग काल कलवित हो गए जो केवल उनके परिवारों के पोषण कर्ता थे ऐसे मे मात्र पांच लाख रुपये मे आखिर वे कितने समय तक अपने परिवारों का लालन पालन कर पाएंगे ? 
  उल्लेखनीय है कि  सरकारी आकड़ों के अनुसार आपदा के दौरान लापता हुए लोगों की कुल संख्या 4119 बताई गई है.उत्तराखंड को छोड़ अन्य  प्रांतों के कुल 3175 लोगों को प्रदेश सरकार ने लापता माना है. इसमें 1587 पुरुष,1335 महिलाएं एवं 253 बच्चे शामिल हैं. वहीं राज्य सरकार ने संबंधित राज्यों को 2,722 लापता लोगों के अब तक मृत्यु प्रमाणपत्र दिए  हैं.प्रदेश  सरकार द्वारा अभी 453 लापता लोगों के परिजनों को मृत्यु प्रमाणपत्र जारी होने बाकी हैं. प्रदेश सरकार इन प्रमाण पत्रों के साथ साढ़े तीन लाख रुपये का चेक भी भेज रही है   यदि आपदा के दौरान जन गंवाने वाले लोगों को दी जाने वाली मुआवजा राशि की बात की जाये तो इसमे प्रधानमंत्री राहत कोष के दो लाख, केंद्रीय आपदा के तहत 1.50 लाख और मुख्यमंत्री राहत कोष के तहत 1.50 लाख रुपये  दिए जाने का प्रावधान है. लेकिन अन्य प्रान्तों के लोगों को जो राशि भेजी जा रही है उसमे मुख्यमंत्री राहत कोष का पैसा नहीं भेजा जा रहा है.  15-16 जून को आई आपदा के दौरान  22 राज्यों के श्रद्धालु लापता हुए हैं. इनमें उत्तर प्रदेश के 1150, मध्य प्रदेश के 542, राजस्थान के 511, दिल्ली के 216, महाराष्ट्र के 163, गुजरात के 129, हरियाणा के 112, आंध्र प्रदेश के 86, बिहार के 58, झारखंड के 40, पंजाब के 33, पश्चिम बंगाल के 36, छत्तीसगढ़ के 28, उड़ीसा के 26, तमिलनाडु के 14, कर्नाटक के 14, मेघालय के छह, चंडीगढ़ के चार, जम्मू-कश्मीर के तीन, केरल के दो, पांडिचेरी के एक और असम का एक व्यक्ति बताया गया हैं जबकि  नेपाल के कुल 92 लोग लापता हैं, जिनमें 79 पुरुष, 11 महिलाएं एवं दो बच्चे हैं वहीँ उत्तराखंड के कुल 852 लोग लापता हुए हैं. इनमें 647 पुरुष, 37 महिलाएं और 168 बच्चे हैं. करीब 20 सरकारी कर्मचारी भी लापता है. इन सभी को राज्य सरकार ने पांच-पांच लाख रुपये दिये हैं.

  कुलमिलाकर आपदा राहत कार्यों व आपदा राशि को लेकर स्थानीय लोग हों अथवा बहरी प्रदेशों के दोनों ही स्थानों के लोगों में सरकार के प्रति नाराजगी है स्थानीय लोग तो इस बात से भी नाराज है कि उनको अभी तक सुरक्षित स्थान तक सरकार उपलब्ध नही करा पाई है और जो लोग इधर उधर किराये के मकानों में रह रहे है और सरकार जो उनका किराया de रही है लेकिन अब उसकी समयावधि भी समाप्त होने जा रही है ऐसे मे उनके सामने आगे कुंआ पीछे खायी वाली कहावत चरितार्थ हो रही है क्योंकि आपदा के बाद से लेकर अब तक ना तो वे अपना घर ही बना पाए हैं और न सरकार ने ही उनको घर बनाने की पूरी सहायता ही उपलब्ध करायी है.

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