शनिवार, 19 अक्तूबर 2013

अगले कुछ दिनों में अस्तित्व में आ जायेगा उत्तराखंड का लोकपाल विधेयक

देहरादून :  भ्रष्‍टाचार पर लगाम कसने वाले लोकायुक्‍त विधेयक को राष्ट्रपति ने उत्तराखंड में मंजूरी दे दी है। यह विधेयक भाजपा की बीसी खंडूरी सरकार के दौरान पारित हुआ था। एक-दो दिन में इसका नोटीफिकेशन जारी कर दिया जाएगा। नोटीफिकेशन के साथ ही यह प्रदेश में कानून के तौर पर लागू हो जाएगा। राष्ट्रपति को भेजा गया विधेयक का ड्राफ्ट अगर किसी संशोधन के बगैर मंजूर हुआ है तो अब राज्य के सरकारी दफ्तरों में कार्यरत चपरासी (चतुर्थ श्रेणी कार्मिक) से लेकर प्रदेश के चीफ मिनिस्टर तक लोकायुक्‍त के दायरे में होंगे।
 चारों तरफ भ्रष्टाचार व सरकारी पैसे पर मौज करने के आरोपों से जूझ रही प्रदेश कि बहुगुणा सरकार के किये यह लोकपाल बिल प्रदेश में लागू करवाना खुद के लिए समस्या बन कर खड़ा होने वाला है क्योंकि राष्ट्रपति कि मंजूरी के बाद इसको लागू करना प्रदेश सरकार कि मज़बूरी बन गयी है .  प्रदेश में लागु होने वाले इस कानून के अधीन न्यायपालिका भी होगी जबकि हाईकोर्ट के जजों को इससे मुक्त रखा गया है। भाजपा सरकार में भुवनचंद्र खंडूरी ने दूसरी बार नेतृत्व संभालने के बाद अक्तूबर 2011 में मजबूत लोकायुक्‍त की घोषणा की थी और पखवाड़ेभर की मशक्कत में समाजसेवी अन्ना हजारे सहित अरविन्द केजरीवाल व साथियों के सहयोग से लोकायुक्‍त का ड्राफ्ट तैयार कर कैबिनेट में मंजूर कराया गया और फिर विधानसभा से पास करवा कर राज्यपाल को भेजा गया। तत्कालीन राज्यपाल मार्ग्रेट आल्वा ने भी ड्राफ्ट पर अपनी स्वीकृति देते हुए विधायी विभाग को भेज दिया था। इसके बाद विधायी विभाग ने नवंबर 2011 में विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेज दिया था। विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने में करीब दो साल लग गए और बीती सितम्बर में यह पास होकर राज्य में लागु करने के लिए भेज दिया गया था लेकिन प्रदेश की नौकरशाही ने इसको सचिवालय कि फाइलों में धूल फांकने को छोड़ दिया था. जो उप लोकायुक्त की ताजपोशी के बाद बाहर निकल आयी.
 तत्कालीन भाजपा सरकार के शासन काल में पारित इस कानून के तहत लोकायुक्‍त का चयन एक चयन समिति करेगी इस समिति में सात सदस्य होंगे। चयन समिति द्वारा एक सर्च कमेटी बनाई जाएगी, जो आवेदन एकत्रित कर प्रत्येक पद के लिए तीन-तीन नामों का पैनल चयन समिति को मुहैया कराएगी। चयन समिति फिर लोकायुक्‍त की नियुक्ति करेगी। लोकायुक्त का कार्यकाल अधिकतम पांच साल अथवा 70 वर्ष की आयु (जो भी पहले पूरा हो) का होगा।
  लोकायुक्त के दायरे में मुख्यमंत्री, मंत्रिपरिषद के सदस्य, विधायक, उत्तराखंड के सभी राजकीय सेवक (सभी अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारी सहित), पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व मंत्री, सेवानिवृत्त अधिकारी, स्थानीय निकाय के निर्वाचित सदस्य एवं कर्मचारी, सहकारी समितियों के निर्वाचित सदस्य एवं कर्मचारी, सार्वजनिक उपक्रम, निगम, विकास प्राधिकरण, परिषद, सरकारी कंपनी, आयोग, राज्य के विश्वविद्यालय और राज्य सरकार से वित्तीय सहायता प्राप्त करने वाली संस्थाएं शामिल होंगी.
 इस कानून के लोकायुक्‍त का चयन जितना मुश्किल भरा है, उससे कहीं ज्यादा कठिन उसे हटाना है। विधेयक के मुताबिक लोकायुक्‍त के अध्यक्ष अथवा सदस्य को उसके पद से राज्यपाल द्वारा सुप्रीमकोर्ट की संस्तुति पर ही हटाया जा सकेगा।
लोकायुक्त को तभी हटाया जा सकेगा जब संबंधित के विरुद्ध दुर्व्यवहार अथवा कदाचार में दोषी पाया जाएगा। अथवा मानसिक और शारीरिक अस्वस्थता के कारण अपना कार्य करने में असमर्थ हो गया हो। दीवालिया घोषित हो गया हो या फिर अपने कार्यकाल अवधि में दूसरे किसी रोजगार में संलग्न हो गया हो।
वहीँ प्रमुख सचिव विधायी एवं संसदीय कार्य केडी भट्ट ने बताया कि यहां से भेजे गए लोकायुक्‍त विधेयक को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई है। विधेयक देखने के बाद राष्ट्रपति की संस्तुति के मुताबिक एक-दो दिन में नोटीफिकेशन कर दिया जाएगा।

1 टिप्पणी:

  1. yah ek ais a mouka khanduri jee ne janat ko diya hai jiske ab samjhdar, immandar our sachche samajik kaf\rykarta ko man mashosh kr nahi rah janna parega. Uski kalam bhi bolegi our bawaba bhi daoregi.

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