बुधवार, 30 अक्तूबर 2013

सूचना विभाग का वित्त अधिकारी ,पड़ा सब पर भारी

वित्त अधिकारी ने कब्जाया सचिव सूचना का कार्यालय कक्ष
सूचना निदेशालय घोटाला - 4
 उत्तराखंड प्रदेश में सूचना विभाग ही एक ऐसा विभाग होगा जहाँ दूसरे विभाग के एक अदने से अधिकारी ने सूचना सचिव तक के ऑफिस के कमरे पर कब्ज़ा ही नहीं  जमाया बल्कि किराये के ऑफिस में दो -दो जगह अपना कमरा बना दिया है, सूचना सचिव का कमरा तो डील के लिए प्रयोग हो रहा है तो विभाग द्वारा आवंटित कक्ष धुम्रपान करने को। लोगों की समझ में यह नहीं आ रहा है कि आखिर इस वित्त अधिकारी के पास ऐसे कौन सी बूटी है जो महानिदेशक से लेकर सचिव सूचना तक इसके प्रभाव में हैं। इस मामले में सहायक निदेशक सूचना ने बताया कि  विभागीय तौर पर वित्त अधिकारी के सचिव महोदय के कक्ष में बैठने के कोई आदेश नहीं हैं। जबकि इस मामले में सचिव सूचना विनोद फोनिया का कहना है उनको इस बात की जानकारी नहीं है यदि ऐसा है तो उनके विरुद्ध कार्यवाही की जाएगी।
   एक जानकारी के अनुसार सूचना  विभाग में वे आदेश लागू  होते है जो  राज्य के किसी अन्य विभाग में नहीं राज्यभर में 5600 ग्रेड पे वाले इस अधिकारी को अन्य उच्च पदों पर काबिज  की तरह  किराये पर कार दी गयी है जिसका प्रयोग ये अधिकारी अपने कार्यालय के कार्यों के अतिरिक्त घरेलु कार्यों में भी करता है जिससे तीस हज़ार रुपये प्रति माह  सूचना निदेशालय को चूना  लगाया जा रहा है इस तरह अब तक लगभग 5  लाख से ज्यादा का चूना विभाग को लग चूका है जबकि ये वित्त अधिकारी राजधानी देहरादून के नगर निगम के भी वित्त अधिकारी हैं , ऐसे में वित्त अधिकारी का पूरा खर्च सूचना  विभाग द्वारा वहां किया जाना कितना तर्क संगत है  यह तो विभाग ही बता सकता है लेकिन आमजन की नज़र में यह खर्च सूचना विभाग की जेब पर डाके के सामान है। यहाँ यह बात भी उल्लेखनीय है कि  सुचना महानिदेशक दलीप जावलकर के कार्यकाल के दौरान गाड़ी को लेकर उन्होंने इसका जवाब तलब भी किया था लेकिन इस अधिकारी ने आज तक उनके पत्र जा जवाब तक देना मुनासिब नहीं समझा।
    इस मामले में एक और रोचक पहलु यह भी सामने आया है कि  इस विभाग के उच्चाधिकारियों  ने वित्त विभाग के इस अदने से अधिकारी को सूचना विभाग का आहरण -वितरण अधिकारी तक बना दिया है जबकि नियमानुसार व शासनादेशों  के अनुसार वित्त विभाग का अधिकारी किसी अन्य विभाग का आहरण-वितरण अधिकारी नहीं हो सकता,जब तक कि  वह कार्यालय अध्यक्ष घोषित नहीं हो जाता। इससे तो यह साफ़ है कि  इस अधिकारी द्वारा महानिदेशक  को  या तो गुमराह किया गया है या महानिदेशक को वित्तीय मामलों की जानकारी कुछ कम है। इतना ही नहीं बीते दिनों इस वित्तीय अधिकारी ने विभाग के मातहत अधिकारियों को गुमराह कर महानिदेशक से सीधे विभागीय कार्यों का विभाजन अपने आप करवा दिया।
  इतना ही नहीं जब विभागीय ऑडिट हुआ तो पता चला कि  जिस अधिकारी को प्रदेश सरकार ने वित्तीय मामलों पर नियंत्रण के लिए नियुक्त किया हुआ है उसी ने गड़बड़ी कर डाली ..मामला कुछ इस तरह जानकारी में आई है कि  इस अधिकारी ने चेनलों का भुगतान गैरयोजनागत मद से कर डाला  जबकि इसका भुगतान योजनागत मद के फिल्म निर्माण मद से किया जाना चाहिए था .......





सूचना निदेशालय घोटाला - 3 :  कैश नहीं लिफाफे से लेता है रिश्वत की रकम
देहरादून : 90  करोड़ रुपयों के विज्ञापन तमाम न्यूज़ चेनलों में चलाने व कुछ अख़बारों  में प्रकाशित करवाने को लेकर उत्तराखंड प्रदेश का सूचना निदेशालय इन दिनों सुर्ख़ियों में है । इतनी मोटी  रकम ठिकाने लगाने के बाद विभागीय वित्त अधिकारी का यह तुर्रा कि  इससे प्रदेश सरकार को दान दातव्य में मोटी  रकम मिली है। उत्तराखंड के सूचना विभाग को अपनी उँगलियों पर नचाने वाले इस अधिकारी के बारे में जो जानकारी मिली है वो तो और भी चौंकाने वाली है। उल्लेखनीय है कि  इस अधिकारी के पास वर्तमान में सूचना  निदेशालय सहित देहरादून नगर निगम के वित्त अधिकारी का भी कार्यभार है लेकिन यह सर्वाधिक वक़्त सूचना  निदेशालय को ही देता है क्योंकि यहाँ से उसकी अच्छी कमाई हो रही है यही कारण  है कि  यह अधिकारी नगर निगम को  वक़्त नहीं दे रहा है जितना इसको वहां देना चाहिए। प्रदेश के सूचना महानिदेशक जिस तरह सूचना  निदेशालय में न बैठ मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण के कार्यालय में ही सूचना की फाइल मंगवाकर वही से निदेशालय चला रहे हैं ठीक उन्ही की तर्ज पर यह वित्त अधिकारी भी सूचना निदेशालय में बैठकर नगर निगम देहरादून चला रहे हैं।
   सूत्रों के बताया है कि सूचना निदेशलय में कुर्सी तोड़ रहा ये वित्त अधिकारी इलेक्ट्रॉनिक  चेनलों व अख़बारों के कुछ लोगों से रिश्वत की रकम सीधे सीधे नकद नहीं बल्कि लिफाफे  में लेता है ,इस बात की तस्दीक कई लोगों ने भी की है। इतना ही नहीं सूत्रों ने तो यहाँ तक भी बताया है कि चमोली जिले के मुख्यालय गोपेश्वेर में भी यह वित्त अधिकारी काफी चर्चित रह चुका है व गोपेश्वर में इनकी कारगुजारियों को लेकर इनके खिलाफ आन्दोलन तक भी हुए .   देहरादून नगर निगम के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार सूचना निदेशालय में  बतोर वित्त अधिकारी होने के चलते इस अधिकारी ने  कुछ एक ठेकेदारों से मिलीभगत कर नगर निगम में करोड़ों  की निविदाओं को सूचना निदेशालय में अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर ऐसे अख़बारों में निविदा  का विज्ञापन छपवा डाला जिनका प्रसारण सीमित था, ताकि अपने चहेतों को वह मनमाफिक कार्य दिलवा सके। मामला खुल जाने  नगर निगम के मुख्य नगर अधिकारी ने इनका जवाब तलब भी किया था।  इतना ही नहीं बीते दिनों इसी अधिकारी ने नगर निगम में एकत्रित कबाड़ की निविदा में भी गड़बड़ी कर डाली ,जिस पर बीते तीन -चार दिन पूर्व कबाडियों ने नगर निगम में जमकर बबाल भी काटा था वहीँ हंगामा होने के बाद जहाँ मुख्य नगर अधिकारी को वो निविदाएँ स्थगित करनी पड़ी थी वही  इस मामले में अपर सचिव वित्त आर.सी.अग्रवाल ने भी इसकी जमकर क्लास ली थी। इतना ही नहीं सूचना विभाग में भी जो विज्ञापन डी ए वी पी दरों पर निर्गत किये जाने चाहिए थे इस विवादित अधिकारी ने उनको भी व्यवसायिक दरों पर अपने चहेतों में बंटवा दिए।
  

सूचना निदेशालय का बड़ा घोटाला - 2 :   चोर को कहा चोरी कर कोतवाल को कहा जागते रहो
देहरादून। उत्तराखण्ड सरकार की नाक के नीचे जो हो जाए वह कम है। यहां थानेदार को ही चोरी करने का पूरा मौका दे दिया जाता है। राज्य में आई  भीषण आपदा के बाद से ही राज्य का सूचना एंव लोक संपर्क विभाग सुर्खियां बटोरता रहा है। आपदा प्रभावित लोगों को प्रभावी विस्थापन के बजाय मुख्यमंत्री इस विभाग का सदुपयोग पूरे देश के मीडिया संस्थानों को विज्ञापन बांटकर अपनी छवि सुधारने का नाकाम प्रयास करते रहे हैं । हाल ही  में खुलासा हुआ कि  यह चर्चित  विभाग  मुख्यमंत्री के इशारे पर 90 करोड़ रूपए से अधिक के विज्ञापन और न्यूज डायरी के नाम पर बांट चुका जिसकी चर्चा पूरे देश में है ।
     सूचना विभाग में एक और कारनामा इन दिनों सुर्खियों में है। मुख्यमंत्री  के अध्ीन इस विभाग में वित्त विभाग के जिस व्यक्ति  को वित्तीय गड़बडियों को पकड़ने की जिम्मेदारी दी गयी थी उसी व्यकित को बिल पास करने की भी अनुमति दे दी गयी  है। यानि वह खुद ही गड़बड़ी करेगा व बाद में खुद ही वित्त अधिकारी बनकर उस गड़बड़ी पर मुलम्मा लगाएगा.इतना ही नहीं इस अधिकार को विभाग का आहरण -वितरण (डी डी ओ ) भी बना दिया गया है .  अब यह बात आम आदमी के  समझ से परे है कि जो व्यक्ति विभागीय बिल पास करेगा, वह वित्तीय गड़बडियों पर कैसे अंकुश लगा सकता है । आम तौर पर व नियमतः  विभागीय मुखिया के पास बिल पास करने की जिम्मेदारी होती है या वह काम के बोझ को देखते हुए अपने ही विभाग के किसी जिम्मेदार अधिकारी को यह अधिकार दे देता है न कि  अपने विभाग से इतर किसी अन्य विभाग के अधिकारी को  यह जिम्मेदारी दी जा सकती है।
         यहां अजब तमाशा यह भी  हुआ कि महानिदेशक  ने विभागीय अधिकारियों को दरकिनार कर किसी दूसरे विभाग के अधिकारी को वह जिम्मा दे डाला  जिसको  सरकार  ने उस विभाग की वित्तीय अनियमितताओं  के खुलासे के लिये नियुक्त किया गया है ,इतना ही नहीं वित्त विभाग के इस  अधिकारी को 2 - 2  लाख रूपए तक के बिलों को पास करने का अधिकार तक भी दे दिया गया है ।
   उल्लेखनीय है कि  सूचना विभाग में तैनात वित्त विभाग के इस वित्त अधिकारी के पास सूचना विभाग के अतिरिक्त नगर निगम देहरादून के  वित्त अधिकारी की भी जिम्मेदारी है। नियमतः  वित्त अधिकारी का काम विभाग में आर्थिक घोटालों का पता लगाकर उन पर प्रभावी कार्रवाही  करना वित्तीय अनियमितताओं को रोकने की होती है, मगर सूचना विभाग में शासन में बैठे उच्चाधिकारियों ने उल्टी गंगा ही बहा दी। सूचना विभाग में तैनात इस वित्त अधिकारी को  2 लाख रूपए तक के बिलों के भुगतान का भी अधिकार देकर नियमतः वित्त अधिकारी के अधिकार को बौना कर दिया गया है । यही नहीं पूरे प्रदेश के साथ देश के विभिन्न प्रदेशों से राज्य सूचना विभाग से होने वाले पत्राचार को जांचने को ठेका भी  इसी वित्त अधिकारी को दे दिया गया है । अब शासन में बैठे उच्चाधिकारियों को कौन समझाए कि पत्राचार में मीडिया से संबंधित विभिन्न मसलों को विभाग के सम्मुख रखा जाता है और उन सब चीजों को समझने के लिए विभाग के अधिकारियों से बेहतर कोई  नहीं होता। वित्त विभाग का अधिकारी मीडिया से संबंधित मामलों पर कितना प्रभावी निर्णय ले सकता है, यह शासन में बैठे उच्चाधिकारी ही बेहतर जानते होंगे। लेकिन प्रशासन के इस निर्णय ने यह साफ कर दिया कि विभाग की ओर से बांटे गए विज्ञापनों के घोटाले को ढकने के लिए सूचना विभाग से इतर अधिकारी को यह जहाँ घोटाले करने की छूट दे दी है वहीँ उसी को इन घोटालों को दबाने का अधिकार भी दे दिया है ताकि घोटाले सार्वजनिक न हो पायें और फाइलों में ही दफ़न होकर रह जाएँ ।
     यहाँ  हुए घोटालों का सबसे रोचक पहलू तो यह भी है कि  प्रदेश सरकार ने अब तक लगभग 90  करोड़ के विज्ञापन देश भर की मीडिया को इसलिए दे डाले ताकि आपदा के बाद मुख्यमंत्री की दागदार हो रही छवि को देश के सामने साफ़ सुथरी बनाकर पेश की जाये चाहे आपदा प्रभावित इलाकों में सरकार ने कोई कार्य किया हो अथवा नहीं . इस मामले में प्रदेश के सूचना विभाग में तैनात वित्त विभाग के इस अधिकारी ने अपनी जिम्मेदारी का किस तरह से निर्वहन किया इसकी एक बानगी यह है कि  जहाँ इस विभाग ने राज्य से प्रकाशित होने  वाले  पत्रों को डी ए वी पी से निर्धारित अथवा सूचना  निदेशालय से निर्धारित न्यूनतम दरों पर विज्ञापन जारी किये वहीँ देश अथवा राज्य से प्रसारित होने वाले चेनलों को विज्ञापन देने में न तो न्यूनतम दरों का ही ध्यान रखा गया और न डी ए वी पी से निर्धारित दरों का . इस समूचे प्रकरण में घोटाले की बू तब साफ़ आती  है जब प्रदेश में मात्र एक या आधा घंटे का स्लॉट लेकर चेनल चलाने वालों को राज्य में स्थापित 24 घंटे प्रसारित होने वाले चैनलों से  दो से तीन गुना अधिक रुपयों का पैकेज दिया गया।  इतना ही नहीं राज्य में मात्र एक आध स्थानों पर ही दिखाई देने वाले चैनलों  पर भी विभाग ने जमकर मेहरबानी की है वो भी व्यावसायिक दरों पर ।  ऐसे में सूचना  विभाग में वित्तीय अनियमितताओं को रोकने के लिए  वित्त विभाग के इस अधिकारी की जिम्मेदारी पर  भी सवालिया निशान लगता है जिसने सरकारी खजाने को मुक्त हाथों से लूटने दिया।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार वित्त विभाग के इस गड़बड़ झाले की जानकारी कांग्रेस के तमाम आला नेताओं  द्वारा मुख्यमंत्री तक को की जा चुकी है लेकिन अब यह देखना होगा अब तक तमाम विवादित लोगों चाहे वह  आयुष विभाग के  रजिस्ट्रार का मामला रहा हो या राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में सदस्य सचिव या कोई अन्य को उत्तराखंड की धरती पर लाने  वाले मुख्यमंत्री इस मामले में क्या निर्णय लेते हैं इसका इंतजार प्रदेश की जनता कर रहीं है।



डीएवीपी दरों को दरकिनार कर व्यवसायिक दरों पर निर्गत हुए विज्ञापन
राजेन्द्र जोशी
 राज्य में आई भीषण आपदा के बाद प्रदेश सरकार ने लगभग 90 करोड़ के विज्ञापन समाचार पत्रों और इलैक्ट्रानिक चैनलों को मुख्यमंत्री की छवि सुधारने के लिए बांटे हैं। इतनी बड़ी रकम से मुख्यमंत्री की छवि भले ही सुधरी हो या न सुधरी हो, लेकिन प्रदेश की जनता की गाढ़ी कमाई और आपदा के बाद राज्य पर तरस खाने वाले लोगों द्वारा दान में दी गई एक बहुत बड़ी राशि पर यह डाका नहीं तो और क्या है, जबकि इस पैसे से प्रदेश के कई स्कूलों की छत, कई किलोमीटर सड़क, कई अस्पतालों में दवाईयां, कई गांवों को पेयजल और कई आपदा प्रभावित परिवारों को दो जून की रोटी दी जा सकती थी। वहीँ सरकारी जानकारी के अनुसार 30 सितम्बर तक इस मद में 23 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम खर्च कि जा चुकी है जबकि इससे तीन गुनी राशि का भुगतान अभी बाकी है
    यह जानकारी सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत पूछे गए एक सवाल के जवाब में प्रदेश के सूचना विभाग ने हल्द्वानी निवासी आरटीआई कार्यकर्ता गुरविंदर सिंह चड्ढा को अपने पत्रांक 544/सू.एवं.लो.स.वि.(प्रशा)255/
2013 दिनांक 3 अक्टूबर 2013 को दी। प्रदेश सरकार द्वारा दिए गए जवाब में यह बताया गया है कि प्रदेश सरकार ने कुल 22 करोड़ 77 लाख 42 हजार पांच सौ दस रूपये के विज्ञापन आपदा के बाद दिए हैं। मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश सरकार ने 30 सितम्बर 2013 तक सहारा समय को 20 लाख 59 हजार 896 रूपये, टीवी-100 को 58 लाख 52 हजार 881 रूपये, साधना न्यूज 58 लाख 23 हजार 386 रूपये, चडदीकला टाईम टीवी को 33 लाख 28 159 रूपये, जैन टीवी को 17 लाख 69 हजार 670 रूपये, वाईस ऑफ नेशन को 57 लाख छहः
हजार 079 रूपये, श्री न्यूज चार लाख 13 हजार 91 रूपये, ए टू जेड न्यूज आठ लाख 23 हजार 150 रूपये, सी न्यूज सात लाख 58 हजार 431 रूपये और बुलंद समाचार न्यूज प्लस को 22 लाख 22 हजार 703 रूपये के विज्ञापन रेवड़ियों की तरह बांटे गए। जबकि इस सूचना में प्रदेश का प्रमुख न्यूज चैनल ईटीवी का जिक्र तक नहीं है। इतना ही नहीं सबसे बड़ा घोटाला तो इन चैनलों को विज्ञापन देने में सामने आया है, सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार भारत सरकार के दृश्य एवं प्रचार निदेशालय (डीएवीपी) द्वारा नियत दरों से कई अधिक दरों पर इन चैनलों को विज्ञापन बांटे गए। जबकि सरकार द्वारा जारी विज्ञापनों को डीएवीपी द्वारा जारी दरों पर ही दिया जाना चाहिए था न कि व्यवसायिक दरों पर, लेकिन विज्ञापनों की बंदरबांट में सरकारी आदेशों और निर्देशों को भी ताक पर रखा गया। जिससे प्रदेश को करोड़ों रूपये का नुकसान भी हुआ है। वहीं मिली जानकारी के अनुसार ईटीवी को एक करोड़ 78 लाख 33 हजार 650 के विज्ञापन दिए गए हैं, जबकि इंडिया न्यूज को लगभग 50 लाख व देश के प्रमुख आज तक, इंडिया टीवी, आईबीएन 7 आदि का तो इस पत्र में जिक्र ही नहीं किया गया है, जबकि सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार लगभग 60 करोड़ रूपये के विज्ञापन इन सब को बांटे गए हैं। वहीं इसी पत्र में दी गई जानकारी के अनुसार 16 जून 2013 से 31 अगस्त 2013 तक दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक व मासिक समाचार पत्र-पत्रिकाओं को दो करोड़ 28 लाख 40 हजार 603 रूपये के विज्ञापन जारी किए गए, जबकि इस बीच पड़ने वाले महत्वपूर्ण कार्यक्रमों पर प्रदेश सरकार ने दो करोड़ 31 लाख 87 हजार 292 रूपये विज्ञापनों में खर्च कर ड़ाले, जबकि समाचार पत्रों के अनुरोध पर 41 लाख 50 हजार 51 रूपये के विज्ञापन जारी किए गए।
सबसे ज्यादा चौकाने वाली जानकारी तो यह है कि विज्ञापन के अलावा न्यूज डायरी के नाम से विभिन्न समाचार चैनलों को दिए गए पैसे का तो कहीं उल्लेख ही नहीं है। इससे यह साफ होता है कि प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री की छवि चमकाने के लिए प्रदेश की जनता की गाढ़ी कमाई पर किस तरह से हाथ साफ किया है। समाचार चैनलों व समाचार पत्रों को इतनी मोटी रकम दिए जाने का औचित्य तो सरकार ही जाने लेकिन इतनी मोटी रकम से आपदाग्रस्त इस प्रदेश के कुछ गांवों का तो भला हो सकता था। विज्ञापन के ऐवज में मोटी रकम की बंदरबांट ने यह भी साबित कर दिया है कि प्रदेश में सरकारी धन की किस तरह लूट मची हुई है। जहां प्रदेश की जनता खाद्यान्न के एक-एक दाने के लिए तरस रही है, आने वाली सर्दियांे में उसके पास ओढ़ने के लिए कम्बल और बिछाने के लिए बिस्तर नहीं है, सिर की छत आपदा लील गई, वहीं प्रदेश में अभी भी सैकड़ों गांवों तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं है, अस्पताल और स्कूलों की तो बात ही कुछ और है। आपदा प्रभावित क्षेत्रों में बच्चे आज भी स्कूलों के भवन जमींदोज होने के कारण स्कूल नहीं जा पा रहे हैं और कई अस्पताल भी इस आपदा में समाप्त हो चुके हैं। ऐसे में सरकार की यह फिजूलखर्ची प्रदेश की भोली-भाली जनता के जेब पर डाका नहीं तो और क्या है।

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