डीजीसीए के पत्र से प्रदेश नागरिक उड्डयन विभाग में खलबलीराजेन्द्र जोशी
देहरादून । उत्तराखण्ड में आई प्राकृतिक आपदा में निजी कंपनियों के हैलीकाप्टर को लगाए जाने को लेकर भारत सरकार के महानिदेशक नागरिक उड्डयन विभाग ने प्रदेश सरकार ने रिपोर्ट तलब की है कि उसने कितने हैलीकाप्टर आपदा राहत कार्या में लगाए और उन्होंने कितनी उड़ाने भरी और इसमें कितना तेल खर्च हुआ। महानिदेशक के पत्र के बाद प्रदेश सरकार के नागरिक उड्डयन विभाग में खलबली मची हुई है, क्यांेकि एक जानकारी के अनुसार आपदा प्रभावितों और जागरूक नागरिकों ने महानिदेशक नागरिक उड्डयन (डीजीसीए) को इस बात की शिकायत की है कि प्रदेश में निजी हैलीकाप्टरों के आपदा काल के दौरान अधिग्रहण किए जाने में बहुत बड़ा घोटाला हुआ है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ये हैलीकाप्टर गुप्तकाशी, फाटा, गौचर और जौलीग्रांट सहित सहस्त्रधारा हैलीपैड़ पर तैनात किए गए थे। सूत्रों से यह भी जानकारी मिली है कि नागरिक उड्डयन विभाग को दी गई सूचना के मुताबिक प्रदेश सरकार के नागरिक उड्डयन विभाग ने आपदा प्रभावित क्षेत्र में एक हैलीकाप्टर द्वारा 17 से 19 उड़ाने दस्तावेजों में दिखाई है, जबकि वास्तव में इन उड़ानों की संख्या सात से उपर नहीं हो सकती थी, ऐसा उड्डयन विशेषज्ञों का मानना है। उड्डयन विशेषज्ञों का कहना है कि केदारघाटी इतनी संकरी घाटी है कि वहां तीन हैलीकाप्टर से एक साथ उड़ान नहीं भर सकते हैं, ऐसे में प्रदेश सरकार द्वारा भारत सरकार के नागरिक उड्डयन महानिदेशक को दी गई जानकारी खुद नागरिक उड्डयन विभाग के अधिकारियों के गले नहीं उतर रही है। वहीं इसमें एक पेंच और फंस गया है कि प्रदेश सरकार के नागरिक उड्डयन विभाग द्वारा हैलीकाप्टर में प्रयोग होने वाला ईंधन की आपूर्ति प्रदेश में उतनी हुई ही नहीं, जितनी की दस्तावेजों में प्रदर्शित की गई है। एक जानकारी के अनुसार 23 जून के बाद ही प्रदेश के कुछ स्थानों तक हैलीकाप्टर में प्रयोग होने वाला ईंधन हैलीकाप्टरों के बेस स्टेशन तक पहुंच पाया था, ऐसे में डीजीसीए के गले यह बात भी नहीं उतर रही है कि प्रदेश सरकार द्वारा खपत में बताया गया ईंधन और वास्तविक ईंधन की खपतमें बड़ा गोलमाल है। वहीं दूसरी ओर राज्य सरकार द्वारा यह ऐलान किया गया था कि उसने निजी कंपनियों के हैलीकाप्टरों को अधिग्रहित कर लिया था, जिसका भुगतान राज्य सरकार को करना था। ऐसे में यह सवाल भी उठ खड़ा हुआ है कि जब राज्य सरकार द्वारा निजी कंपनियों के हैलीकाप्टरों को अधिग्रहित कर लिया गया था, तो निजी कंपनियों के हैलीकाप्टर प्रचालन कंपनियों ने यात्रियों से कैसे किराए की वसूली की, क्योंकि हर्षिल, फाटा और जोशीमठ से निकाले गए कई यात्रियों ने इस बात की शिकायत मीड़िया से की कि, जो हैलीकाप्टर उन्हें रेस्क्यू करने जौलीग्रांट अथवा सहस्त्रधारा हैलीपैड़ लाए हैं, उनमें से अधिकांश हैलीकाप्टरों ने उनसे तीन लाख से लेकर 18 लाख तक की वसूली की है। आपदा काल में फंसे यात्रियों द्वारा इस तरह की तमाम शिकायतों को लेकर डीजीसीए सक्रिय हुआ है और उसने प्रदेश सरकार ने आपदा काल के दौरान प्रयुक्त किए गए हैलीकाप्टर पर रिपोर्ट तलब की है, डीजीसीए के इस पत्र के बाद प्रदेश सरकार के नागरिक उड्डयन विभाग के अधिकारियों की नींद उड़ी हुई है।

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प्रधा
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गौरतलब हो कि भाजपा सरकार के शासनकाल के दौरान गोविंद बल्लभ पंत कृषि
एंव प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय से वर्ष 2011 में 50 एकड़ भूमि रूद्रपुर में
अत्याधुनिक कृषि एंव खाद्यान्न व्यापार भवन हेतु लगभग साढ़े तीन करोड़ रूपये
में ली गई थी। जिसका शासनादेश 29 जुलाई 2011 को हुआ था। इस भूमि पर मण्डी
समिति द्वारा कब्जा प्राप्त कर आंशिक स्थल एवं विकास एंव भूमि के मद में
कुल मिलाकर 5.50 करोड़ रूपये व्यय किए जा चुके हैं। इतना ही नहीं इस भूमि पर
खाद्यान्न मण्डी और टर्मिनल मार्केट के रूप में फल, फूल व सब्जी के थोक
बाजार बनाने की प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी बनायी जा चुकी है जिस पर नेशनल
इंस्टीटयूट ऑफ ऐग्रीकल्चर मार्केट बोर्ड (एनआईएम) को डीपीआर बनाने के 35
लाख रूपये भी दिये जा चुके हैं। इतना ही नहीं बीती 20 दिसम्बर 2011 को
पूर्व कृषि मंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस प्रस्तावित भवन का शिलान्यास
भी कर दिया था।
की
सुगबुगाहट जब बीते विधानसभा सत्र के दौरान क्षेत्रीय विधायक राजकुमार
ठुकराल एंव राजेश शुक्ला को हुई तो उन्होंने इस मामले को ध्यानाकर्षण
प्रस्ताव के दौरान विधानसभा में रखा। जिस पर कृषि मंत्री हरक सिंह रावत व
संसदीय कार्य मंत्री डॉ. इन्दिरा हृदयेश पाठक ने सदन में बयान दिया था कि
इस भूमि को किसी को नहीं दिया जा रहा है और यहां खाद्यान्न बाजार व
अत्याधुनिक मण्डी बनायी जा रही है। विधानसभा में दिये गये इस बयान के उलट
राज्य सरकार के कृषि एवं विपणन अनुभाग-एक के पत्रांक 21 दिनांक 8 जनवरी
2013 के अनुसार यह भूमि सरकार द्वारा पीपीपी मोड में दिये जाने का प्रस्ताव
की पुष्टि करता है। इतना ही चर्चा तो यहां तक है कि इस भूमि को लेकर
प्रमुख सचिव औद्योगिक विकास एंव प्रमुख सचिव कृषि के बीच नोंक -झोंक भी हुई
थी। चर्चाओं के अनुसार प्रमुख सचिव औद्योगिक विकास का कृषि सचिव को यह
कहना कि क्या वे पंचसितारा होटल के सामने तबेला खोलना चाहते हैं। चर्चा तो
यहां तक है कि इस प्रकरण में इस भूमि को निजी हाथों में देने का तानाबाना
प्रमुख सचिव औद्योगिक विकास द्वारा ही बुना गया। वहीं यह चर्चा भी आम है कि
बीती 17 नवंबर को पोंटी चढ्ढा हत्या कांड से पूर्व राज्य के एक वरिष्ठ
आईएएस अधिकारी की दिल्ली में मौजूदगी इसी जमीन की डीलिंग को लेकर थी। एक ओर
सरकार द्वारा इस भूमि पर अत्याधुनिक व्यवसायिक भवन बनाए जाने को लेकर
पत्राचार तो दूसरी तरफ इस भूमि को पीपीपी मोड में देने की बात जहां लोगों
के गले नहीं उतर रही है वहीं इस भूमि पर सुपरटैक लिमिटेड द्वारा मैट्रो
पोलिस मॉल सहित व्यवसायिक संस्थानों के लिए शो-रूम व आवासीय भूखण्ड एंव भवन
का विज्ञापन दाल में काला नजर आने के लिए काफी है। इतना ही नहीं सरकार की
इस जमीन का मानचित्र भी वेबसाइट पर डाला गया है और सरकार से ली गई इस जमीन
की कीमत लगभग सवा लाख रूपया प्रति वर्ग गज की जानकारी भी डाली गयी है। इस
वेबसाइट पर यहां बनने वाले बहुमंजिले भवन का ले-आउट प्लान भी डाला गया है।
वेबसाइट पर बेसमेंट की भूमि दर जहां 11 हजार रूपया प्रति वर्ग फीट रखी गई
है तो भूतल की दर 12 हजार प्रति वर्ग फीट, इसी तरह प्रथम तल की दर 11 हजार
प्रति वर्ग, द्वितीय तल की 8 हजार रूपया, तृतीय तल की 6 हजार और चतुर्थ तल
की 4 हजार रूपया रखी गई है। इस सब के भुगतान के लिए कम्पनी द्वारा अपने
नोएडा कार्यालय का पता दिया गया है।
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