आपदा प्रबंधन विभाग ने न तो कोई तैयारी की है और न ही केदारनाथ आपदा से लिया कोई सबक

 देहरादून। सूबे के आपदा प्रबंधन विभाग ने केदारनाथ आपदा के बाद भी कोई सबक नहीं लिया है। यही वजह है कि उच्च पर्वतीय क्षेत्र में इस तूफान की चपेट में आए लोगों की वक्त पर कोई मदद नहीं की जा सकी। लगभग आठ घंटे बाद सूचना राजधानी पहुंची तो सीएम की पहल पर अलर्ट जारी किया गया। इस मामले में आपदा प्रबंधन और मौसम विभाग दोनों ही पूरी तरह से फेल साबित हुए है।
 देहरादून। सूबे के आपदा प्रबंधन विभाग ने केदारनाथ आपदा के बाद भी कोई सबक नहीं लिया है। यही वजह है कि उच्च पर्वतीय क्षेत्र में इस तूफान की चपेट में आए लोगों की वक्त पर कोई मदद नहीं की जा सकी। लगभग आठ घंटे बाद सूचना राजधानी पहुंची तो सीएम की पहल पर अलर्ट जारी किया गया। इस मामले में आपदा प्रबंधन और मौसम विभाग दोनों ही पूरी तरह से फेल साबित हुए है।
   16 जून 2013 को केदारनाथ में कुदरत ने कहर ढाया है। उस वक्त दो रोज तक इसकी सूचना ही सरकार को नहीं मिल सकी थी। मीडिया ने अपने तंत्र के आधार पर इसका खुलासा किया तो सरकार की ओर से बचाव और राहत कार्य शुरु किया था। उसी वक्त से कहा जा रहा है कि आपदा प्रबंधन विभाग को आधुनिक सुविधाओं से लैस किया जाएगा। ताकि इस तरह की आपदा के वक्त लोगों को वक्त पर राहत दी जा सके। लेकिन ऐसा कुछ नहीं किया गया।
  विगत दिवस चमोली, उत्तरकाशी और पिथौरागढ़ जिलों के ऊंचाई वाले इलाकों में इस बर्फीले तूफान ने अपना कहर ढाया। इससे कोई जनहानि होने की खबर तो अब तक नहीं है, लेकिन लोगों का काफी नुकसान हुआ है। सैकड़ों मकानों के क्षतिग्रस्त होने की खबर है। अहम बात यह है कि इस तूफान के बारे में सरकार को लगभग आठ घंटे बाद ही जानकारी हो सकी। इन जिलों का आपदा प्रबंधन विभाग सोता रहा। किसी भी जिले से राज्य मुख्यालय को इस बारे में कोई इनपुट वक्त पर नहीं मिला। प्रभावित लोगों ने खुद ही किसी तरह से फोन करके इस बारे में सूचना दी तो सरकारी मशीनरी हरकत में आई। इसके बाद मुख्यमंत्री हरीश रावत के निर्देश पर सात जिलों को अलर्ट जारी किया गया।
   इस मामले में राज्य मौसम विभाग भी फेल साबित हुआ है। नए साल की शुरुआत में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने चार और पांच जनवरी को इस तरह के तूफान के आने की आशंका जाहिर की थी। इस पर राज्य मौसम विभाग ने इस तरह के किसी तूफान के आने की आशंका से ही इंकार कर दिया। नतीजा यह रहा है कि प्राधिकरण की चेतावनी को नजर अंदाज कर दिया गया। सवाल यह भी उठ रहा है कि राज्य मौसम विभाग क्या करता रहा। उसने प्राधिकरण की चेतावनी को तो गलत बताने में देरी नहीं की ,लेकिन सटीक अनुमान खुद भी नहीं लगा सका। माना जा रहा है कि अगर प्राधिकरण की चेतावनी को ध्यान में रखते हुए ही कोई तैयारी कर ली गई होती तो लोगों को इस तूफान का सामना नहीं करना होता। सौभाग्य से कोई जनहानि नहीं हुई अगर दुर्भाग्यवश ऐसा कुछ हो जाता तो इसकी जिम्मेदारी किसके सर आती। बहरहाल, एक बार फिर साबित हुआ है कि राज्य में आपदा प्रबंधन विभाग ने न तो कोई तैयारी की है और न ही केदारनाथ आपदा से कोई सबक लिया है। इतना ही नहीं मौसम विभाग भी कारगर भूमिका नहीं निभा पा रहा है।
 
 वसुंधरा नेगी ( लाजो )
वसुंधरा नेगी ( लाजो )
 गोपेश्वर : उत्तराखंड के चमोली जिले की सबसे दूरस्थ निजमुला घाटी के गांवों में बर्फीले तूफान ने कहर मचा दिया। यहां पाणा, ईराणी, भनाली, बौंणा और झींझी गांवों में बर्फीले तूफान से करीब 115 आवासीय भवनों की छतें उड़ गई हैं। जिससे घाटी में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। सहमे ग्रामीणों ने पेड़ों और प्राकृतिक गुफाओं में शरण लेकर अपनी जान बचाई। घाटी में रात्रि बुधवार रात दो बजे से ही ग्रामीणों में अफरा-तफरी का माहौल बना हुआ है।
गोपेश्वर : उत्तराखंड के चमोली जिले की सबसे दूरस्थ निजमुला घाटी के गांवों में बर्फीले तूफान ने कहर मचा दिया। यहां पाणा, ईराणी, भनाली, बौंणा और झींझी गांवों में बर्फीले तूफान से करीब 115 आवासीय भवनों की छतें उड़ गई हैं। जिससे घाटी में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। सहमे ग्रामीणों ने पेड़ों और प्राकृतिक गुफाओं में शरण लेकर अपनी जान बचाई। घाटी में रात्रि बुधवार रात दो बजे से ही ग्रामीणों में अफरा-तफरी का माहौल बना हुआ है। 
 देहरादून। उत्तराखण्ड से जाते-जाते डा. अजीज कुरैशी कुलाधिपति की हैसियत से उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में कुलपति की नियुक्ति कर गए। कार्यभार छोड़ने के ठीक पहले उन्होंने वर्तमान कुलपति को ही अगले तीन वर्ष के लिए फिर कुलपति बनाने का आदेश जारी कर दिया। कुलाधिपति के इस तरह के आदेशों से शंकाओं के सुई अब कुलाधिपति की ओर धूम गयी है कि आखिर न्थानानान्तरण हो जाने के बाद उनको इस तरह के आदेश क्यों करने पडे़।
देहरादून। उत्तराखण्ड से जाते-जाते डा. अजीज कुरैशी कुलाधिपति की हैसियत से उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय में कुलपति की नियुक्ति कर गए। कार्यभार छोड़ने के ठीक पहले उन्होंने वर्तमान कुलपति को ही अगले तीन वर्ष के लिए फिर कुलपति बनाने का आदेश जारी कर दिया। कुलाधिपति के इस तरह के आदेशों से शंकाओं के सुई अब कुलाधिपति की ओर धूम गयी है कि आखिर न्थानानान्तरण हो जाने के बाद उनको इस तरह के आदेश क्यों करने पडे़।  देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड को राजनेताओं ने नरक बना दिया है। इन चौदह वर्षों में विकास के नाम पर लूटपाट का क्रम जारी है। जो नेता इस राज्य में ग्राम प्रधान का चुनाव नहीं जीत सकते थे वे आज दुर्भाग्य से मंत्री बने बैठे हैं। यही हाल सचिवालय व विधानसभा में बैठे उन अफसरों का भी है जो इस काबिल थे ही नहीं। हालात यह है कि सचिवालय तो लोगों के अरमानों का कब्रगाह बना हुआ है। काम होना तो दूर फाइलों को खिसकने में भी महीनों लग जाते है लेकिन किसी को भी कोई चिन्ता नहीं है। शायद ही कोई ऐसा विभाग हो जो भ्रष्टाचार से अछूता न हो।
देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड को राजनेताओं ने नरक बना दिया है। इन चौदह वर्षों में विकास के नाम पर लूटपाट का क्रम जारी है। जो नेता इस राज्य में ग्राम प्रधान का चुनाव नहीं जीत सकते थे वे आज दुर्भाग्य से मंत्री बने बैठे हैं। यही हाल सचिवालय व विधानसभा में बैठे उन अफसरों का भी है जो इस काबिल थे ही नहीं। हालात यह है कि सचिवालय तो लोगों के अरमानों का कब्रगाह बना हुआ है। काम होना तो दूर फाइलों को खिसकने में भी महीनों लग जाते है लेकिन किसी को भी कोई चिन्ता नहीं है। शायद ही कोई ऐसा विभाग हो जो भ्रष्टाचार से अछूता न हो।